Wednesday, October 19, 2011

परख


परख
आफिस में आए अभी एक महीना भी नहीं बीता था कि हर कर्मचारी की जबान पर उसके नाम की चर्चा रहने लगी थी | हो भी क्यों | लोगों ने अपनी आशाओं से कहीं अधिक उसमें सभी कुछ पाया था | यहाँ तक की कम्पनी का बॉस/मालिक भी उसको बहुत अधिक चाहने लगा था | इसका सबसे बडा कारण उस लड़की की प्रतिभा के साथ साथ उसके कारण लोगों का आफिस में आने जाने का समय भी आफिस के निर्धारित समय पर हो गया था |
वह इतनी सुन्दर थी कि कम्पनी का हर कर्मचारी उसकी एक झलक देखने को तरसता सा मालूम पड्ता था | वह अपने आफिस हमेशा निर्धारित समय पर आती थी | अतः उसको निहार पाने की लालसा के लिए सभी कर्मचारियों ने उस लड़की के आने से पहले ही आफिस में पहूँचना शुरु कर दिया था | सभी उस राह पर नजरें गडाए रहते थे जिस तरफ से वह आती थी | उसके आते हुए दिखने पर सब लोगों के दिलों से एक ठंडी आह निकलती | वह अपने चेहरे पर भरपूर मुस्कान लिये एक हवा के झोंके के समान आती, एक झटके से बौस की केबिन का दरवाजा खुलता, और पलक झपकते ही वह सभी की नजरों से अंतर्ध्यान हो जाती | इसके बाद या तो वह दोपहर के खाने के बाद दिखाई देती या फिर आफिस की पूरी छुट्टी के समय |
उस लड़की का स्वभाव भी उसके नाम 'दिप्ति ' के अनुरूप ही था | वह जहाँ से भी गुजरती ऐसा लगता जैसे कोई प्रकाश फैलाती जा रही हो | मुश्किल से ही कोई ऐसी निगाह बचती होगी जो उसकी झलक देखने को उठती हो | उसका ह्नसमुख चेहरा, चहकती आवाज, मस्तानी चाल और भिनी-भिनी सुगंध फैलाने वाला लगाया गया गुलाब का इत्र सभी देखने वालों का दिल भी गुलाब की तरह खिला देता था |  
दिप्ति को किसी बात पर भी, किसी से भी, कभी भी, किसी ने भी नाराज होते नहीं देखा  तथा ही कभी ऊँची आवाज में बोलते सुना | उसके चेहरे पर सदा एक मधुर मुस्कान बिखरी रहती थी | इतनी सुन्दर होने के बावजूद उसने कभी किसी पर नाक भौं चढाई थी | ऐसा लगता था जैसे अहंकार उसे छू तक नहीं गया था | और सोने पर सुहागा यह कि वह अपने काम में भी पूरी तरह निपुण थी | तभी तो एक महीने के अन्दर ही बौस भी दिप्ति के काम का उदाहरण देकर दूसरों को वैसा ही प्रतिभाशाली बनने की सलाह देने लगे थे |   
दो वर्ष पहले दिप्ति इस कम्पनी में ट्रेनिंग के लिए आई थी | वह फैशन डिजाईनर की ट्रेनिंग कर रही थी | उसकी मेहनत, काम के प्रति लग्न एवं कुशाग्र बुद्धि ने जल्दी ही कम्पनी के अधिकारियों को प्रभावित कर लिया था | अतः ट्रेनिंग समाप्त होते ही दिप्ति को कम्पनी में ही जूनियर फैशन डिजाईनर के पद पर नियुक्त कर लिया गया | 
मैनेजमैंट उसके काम से खुश थी अतः उसने उन्नति भी खूब की  | जिस तेजी से उसने तरक्की हासिल की उससे हर कर्मचारी आश्चर्य चकित था | क्योंकि देखते ही देखते दिप्ति डिजाईनर, सिनियर डिजाईनर तथा सहायक प्रबंधक की सिढियाँ पार कर गई थी | और कम्पनी के कर्मचारियों ने अपने दाँतों तले उंगलियाँ दबा ली जब प्रबंधक निदेशक सेठ राम नारायण ने मात्र 27 वर्ष की आयु में दिप्ति को अपनी कम्पनी का वाईस प्रैजिडेंट नियुक्त कर दिया |       
सेठ राम नारायण का लड़का "श्याम" अमरीका में माडर्न फैशन डिजाईनिंग का अध्ययन कर रहा था | कोर्स समाप्त होने को था | उन्हीं दिनों श्याम को अपने पिता जी द्वारा लिखित एक पत्र मिला |
प्रिय श्याम !
                 खुश रहो | अब तुम्हारे अध्ययन को समाप्त होने में केवल दो महीने बाकी हैं | यहाँ की उन्नति के बारे में तो मैं तुम्हें समय समय पर अवगत कराता रहता था अतः अब तक तुम यह भी बखूबी जान गये होगे कि हमारी कम्पनी की उन्नति में सबसे बडा योगदान तथा सहयोग कुमारी दिप्ति का रहा है | वह हमारी कम्पनी में एक ट्रेनिंग डिजाईनर की हैसियत से आई थी परंतु आज वह अपने प्रभाव, मेहनत, लग्न और व्यवहार कुशलता की वजह से वाईस प्रैजिडैंट के पद पर आसीन कर दी गई है | बेटा आपके आने का इंतजार है | मैं अपने दिल की बात तुम्हें बताना चाहता हूँ कि मैं दिप्ति को अपने घर की बहू बनाना चाहता हूँ | आगे यह तुम्हारी अपनी जिन्दगी, सोच एवं फैसले पर निर्भर होगा |
                                         तुम्हारा पिता
                                          राम नारायण 
श्याम की शिक्षा बचपन से ही विदेशों में हुई थी | वह विदेशों के वातावरण, रहन-सहन एवं संस्कारों से भली भाँति परिचित था | वह जानता था कि विदेशों में वहाँ की अधिकतर औरतों को उन्नति करने के लिये अपने चरित्र को ताक पर रखना पड़ता है | वैसे पश्चिमी देशों में इस बात को इतना महत्व भी नहीं दिया जाता | यह तो वहाँ आम बात गिनी जाती है | हालाँकि श्याम विदेशों में ही पढलिख कर  बड़ा हुआ था फिर भी वहाँ की संस्कृति उसके मन में कोई खास छाप नहीं लगा पाई थी | वह रसिक मिजाज का तो बन गया था परंतु वह भारत माँ की गोद में भारतीयता के आँचल को औढकर एक भारतवासी की तरह ही जीना चाहता था | शायद इसीलिए वह अभी तक अछूता था |  
जब श्याम को अपने पिता जी का पत्र मिला तो वह विदेशों के वातावरण में पल रही तथा वहाँ के आफिसों में नौकरी करने वाली युवतियों के व्यवहार को देखते हुए कुछ सोचने लगा | एक साथ कई प्रशन श्याम के दिमाग में उठ खडे हुए |
दिप्ति की इतनी शिघ्र उन्नति  का वास्तव में क्या कारण हो सकता है ? क्या वास्तव में वह प्रतिभाशाली है या फिर उसने भी अपना चरित्र दाँव पर लगाकर.......? नहीं-नहीं सभी एक जैसी नहीं हो सकती | फिर हमारा समाज, हमारी रीतियाँ, हमारी संस्कृति ........नहीं नहीं उसने कदापि ऐसा नहीं किया होगा | और हाँ वह तो शुरू से ही हमारी कम्पनी में रही है | अगर ऐसी कोई बात होती तो पिता जी को तो अवशय इन बातों की भनक लग जाती | अब जबकी पिता जी ने खुद दिप्ति के साथ उसके रिस्ते की बात लिखी है तो अवशय ही सब कुछ जाँच परख कर ही लिखी होगी | अंत में श्याम एक निष्कृष पर पहुंचा और अपने इस निशचय से उसके अपने चेहरे पर संतुष्टता के भाव उभर आए |
"मंगला डिजाईंस" की कम्पनी की स्टाफ कैंटीन में भीड़ लगी है | यह लंच का समय है | हर मेज के चारों और पाँच छः लोग बैठे हैं | खाना खाने के साथ-साथ वे आपस में बातें भी कर रहे हैं | इन लोगों के बीच आज एक नया व्यक्ति नजर रहा है | उसकी दाढी बढी हुई है | कपड़े भी साधारण पहने हुए है | वैसे देखने में सुन्दर है, नौजवान है, परंतु बढी हुई दाढी की वजह से उसकी सुन्दरता एवं जवानी कुछ दबती सी प्रतीत हो रही है |
नया व्यक्ति वास्तव में श्याम है जो भेष बदल कर कैंटीन में बैठा था जिससे वह दिप्ति के बारे में कुछ तथ्य जान सके | उसने एक कर्मचारी से पूछा, क्यों भाई साहब इस कम्पनी में रिक्त स्थानों के बारे में कहाँ से पता चलता है ?
कर्मचारी अपनी उंगली का इशारा करते हुए बोला, वह जो सामने नोटिस बोर्ड लगा है, उससे |
श्याम ने नोटिस बोर्ड की तरफ देखकर कहा, उस बोर्ड पर तो कोई सूचना नहीं लगी | परंतु मेरे चाचा जी ने कहा था कि यहाँ कुछ जगह खाली हैं |
कर्मचारी का दूसरा साथी बोला, क्या पूछ रहे हो भाई ?
इस कम्पनी में रिक्त स्थानों के बारे में |
सुनो अगर सूचना बोर्ड  पर कोई नोटिस नहीं लगा तथा तुम्हारे पास पक्की सूचना है कि यहाँ कुछ रिक्त स्थान हैं तो आप लंच के बाद (एक दरवाजे की और इशारा करते हुए ) उस दरवाजे के अन्दर चले जाना |
इस पर पहला कर्मचारी बड़े ही शायराना अंदाज में बोला, परंतु जाना दिल थाम के |
तीसरा कर्मचारी अपने साथी की बातों को तूल देकर, देखना सम्भल के जाना | अन्दर कहीं गश खाकर ही गिर जाना |
श्याम ने बारी बारी से सभी के चेहरे निहार कर अचरज से पूछा, भाई साहब अन्दर ऐसी क्या चीज है जो सम्भल कर जाने की सलाह दे रहे हो ?
तीसरे कर्मचारी के कहने पर, अरे यह नहीं जानता कि अन्दर क्या चीज है,सभी ठहाका लगाते हैं |
पहला कर्मचारी अपने साथियों से, भाईयो पहले इसे सब कुछ बतला दो जिससे अन्दर जाकर यह संयम रख सके तथा सही सलामत बाहर सके |
एक कर्मचारी ने श्याम की बांह पकड़ कर एक तरफ ले जाकर कहा, आजा भाई आजा बैठ | अन्दर जाने से पहले तुम्हें सारी राम कहानी समझा दें |
तीसरे कर्मचारी ने एक ठंडी सी साँस लेकर कहना शुरू किया, अंदर बैठती है दिप्ती और दिप्ति यहाँ के हर व्यक्ति के दिल की रानी है |
पहले कर्मचारी ने अपनी बाट जारी रखते हुए बताया, दिप्ति यहाँ दस वर्षों से काम कर रही है परंतु उसकी जवानी अभी भी ऐसी लगती है कि जैसे नई-नई सोलह साल की लड़की आई है | और इन दस वर्षों के अन्दर दिप्ति ने इतनी तरक्की पा ली है जो किसी के लिये भी कैसे भी पाना नामुमकिन है |
तो फिर यह उसके लिये कैसे मुमकिन हो गया ?श्याम ने असमंजसता से पूछा ?
एक बोला, एक हसीन्, सुन्दर एवं हंसमुख औरत के लिए  यह क्या मुश्किल काम है |
दूसरे ने कहा, लड़के तुम बहुत भोले हो | शायद इस दीन दुनिया के बारे में कुछ नहीं जानते |
तीसरा चहका, नहीं जानता तो बता दे |
दूसरे ने बताना शुरू किया, ठीक है | सुनो | जब दिप्ति इस कम्पनी में नई-नई जूनियर डिजाईनर बनकर आई थी तो सिनियर डिजाईनर के स्कूटर पर शाम को रोज बैठकर जाती थी | रोज एक जवान लड़की को लिफ्ट देने का क्या मतलब हो सकता है तुम खुद ही सोच सकते हो ? मुझे इसका पूरा खुलासा करने पर मजबूर करो |
दूसरा कर्मचारी अपनी टांग अडाते हुए, अरे कर दे न खुलासा कि जब दिप्ति खुद सिनियर डिजाईनर बन गई तो प्रबंधक महोदय ने उसके चारों और चक्कर लगाने शुरू कर दिये | वह दिप्ति के साथ कभी एक होटल में तो कभी दूसरे होटल में, कभी चाय के लिए तो कभी लंच के प्रोग्राम बनाने लगे | अब तुम ही बताओ कौन मुफ्त में रोज चाय या लंच का बेफिजूल खर्चा उठाएगा | पैसा खर्च करने वाले का कुछ तो स्वार्थ होगा ही |
तीसरा कर्मचारी बीच में उछलकर आते हुए, और सुनो,जब दिप्ति  प्रबंधक के पद पर आसीन हो गई तो महा प्रबंधक साहब भी रस चाटने के चक्कर में पड गए | वह एक भौरे की तरह दिप्ति पर हर प्रकार से मर - मिटने को तैयार थ्रे | और फिर उनकी वजह से दिप्ति को एक और तरक्की मिली तथा वह निर्देशक के साथ जोड़ दी गई |
पहले कर्मचारी ने अपने मुहं में पानी लाकर कहा, निर्देशक भी शायद दिप्तिपर फिदा हो गए | वे दिप्ति को अपने साथ एक सप्ताह के लिये विदेश यात्रा पर ले गये तथा वापिस आते ही दिप्ति "मंगला दिजाईंस "की वाईस प्रैजिडैंट नियुक्त कर दी गई | अब आप खुद ही अन्दाजा लगा लो कि विदेश यात्रा के दौरान क्या-क्या गुल खिले होंगे ? और सुना है अब तो कम्पनी के मालिक एवं निर्देशक, सेठ राम नारायण, कम्पनी के कारोबार का भार अपने पुत्र के कंधों पर डालना चाहते हैं | वह विदेश से शिक्षा ग्रहण करके वापिस आने वाला है | वह तो वहाँ के रंग में पहले से ही रंगा होगा |
तीसरा कर्मचारी अपना थूक सताकते हुए बोला, फिर तो खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे दिवाने दो |
वहाँ बैठे सभी कर्मचारी जोर से ठहाका लगाने में मशगूल देख  श्याम मौका पाकर उन्हें हँसता छोड्कर कैंटीन से बाहर निकल जाता है | बाहर निकलकर श्याम देखता है कि उससे थोड़ी दूर पर एक सुन्दर सी औरत के साथ एक लड़का (शशी भूषण ) कुछ बातचीत कर रहा है | जुदा होने के समय वह लड़का उस औरत के चरण छूता है तथा आगे बढ जाता है | वह औरत निर्देशक के कमरे में प्रवेश कर जाती है | इससे श्याम ने अपने मन में अन्दाजा लगाया कि हो हो वही औरत दिप्ति होगी |
कम्पनी की कैंटीन में लोगों के मुँह से सुनी बातों से श्याम का मन बहुत विचलित हो गया था | अगर वह केवल उनकी बातों पर जाता है तो दिप्ति के प्रति उसके मन में घृणा के अलावा कुछ नहीं बचता | परंतु श्याम ने अभी जो दृशय कैंटीन से बाहर निकल कर देखा था उससे अचानक श्याम के मानस पटल में एक विचार उमड्ता है कि क्या केवल कुछ लोगों के कहने मात्र से ही किसी को दोषी ठहराना उचित है | क्या दूसरों की विचारधाराओं के सुनने मात्र से ही किसी के चरित्र पर लांछ्न लग जाता है ? फिर मेरे तो खुद के पिता जी ने दिप्ति को अपनी बहू स्वीकारने की बात लिखी थी | नहीं-नहीं दिप्ति कभी भी वैसी नहीं हो सकती जैसी लोग उसे समझते हैं | खैर फिर भी एक बार खुद मुझे दिप्ति को परख लेना चाहिये | क्योंकि जो उसने अभी तक महसूस किया था वह दिप्ति के प्रति केवल सुनी सुनाई बातों के कारण था | किसी ने भी अपनी आखों से दिप्ति को किसी के भी साथ कभी भी आपत्तिजनक मुद्रा एवं स्थिति में नहीं देखा था |
"मंगल डिजाईंस्" में खुशी का माहौल था | श्याम, सेठ राम नारायण का लड़का, जो विदेश में अपनी पढाई पूरी करके स्वदेश वापिस लौटा था आज कम्पनी का कार्यभार सम्भालेगा | नियत समय पर कारों का कारवाँ कम्पनी पहूँचा | विधिवत पूर्वक श्याम को कम्पनी का कार्यभार सौंप दिया गया | तत्पशचात श्याम को सभी कर्मचारियों से अवगत कराने की औपचारिक्ता शुरू हुई |
जब श्याम ने दिप्ति को देखा तो देखता ही रह गया | उसने देश विदेशों में रूपसी तो बहुत देखी थी परंतु दिप्ति जैसी अभी तक कोई दिखाई नहीं दी थी | दिप्ति का सौन्दर्य श्याम की आशाओं से कहीं अधिक बढकर था | ऐसा लगता था कि जैसे भगवान ने उसके साँचे पर कुछ खास ही मेहनत की थी | श्याम ने महसूस किया कि वास्तव में कोई भी देखकर दिप्ति को पाने को लालायित होए बिना नहीं रह सकता था | श्याम ने दिप्ति को परखने के लिये संयम से काम लेना ही उचित समझा | समय व्यतीत होने लगा | दिप्ति के कारण श्याम ने कम्पनी के कार्यक्षेत्र के विकास में अच्छी खासी रूची  लेनी शुरू कर दी | दिप्ति तथा श्याम देर रात तक बैठे इस विष्य पर विचार विमर्श करते रहते कि किस तरह विदेशों में अपनी कम्पनी के नाम का सिक्का जमाया जा सकता है | एक दिन आफिस में ही विदेशी कम्पनियों के आर्डर पर चर्चा करते-करते रात अधिक हो गई | 
श्याम ने अंगड़ाई लेते हुए कहा, दिप्ति आज तो बहुत देर हो गई है |
दिप्ति ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर डालकर,हाँ, सर हो तो गई है |
श्याम ने अपना पेट पकड़ कर कहा,मुझे तो जोरों से भूख भी लग रही है | मुझे क्या आपको भी तो लग रही होगी ?
शायद श्याम के भोलेपन से कहे इस वाक्य को सुनकर ही दिप्ति केवल मुस्करा कर रह गई |
श्याम (कुछ सोचकर ), “ एक सुझाव है | क्यों आज तुम भी हमारे घर पर ही खाना खा लो ?कहते हुए श्याम दीप्ती की तरफ देखता है जो अभी भी मुस्करा रही थी |
दिप्ति ने दोनों हाथ जोड्ते हुए,जी धन्यवाद |
श्याम ने भी मुस्करा कर पूछा, यह धन्यवाद ना में समझूं या हाँ में ?”
दिप्ति हँसते हुए समर्पण करने के अंदाज में कहा, जी जैसा आप मुनासिब समझें |
श्याम कुर्सी से उठते हुए, तो चलो जल्दी करो | बहुत तेज भूख लगी है |
घर पहूँच कर दोनो ने एक साथ खाना खाया | खाना खाकर जैसे श्याम की जान में जान आई | वह उबासी लेते हुए, “दिप्ति आज रात तो कम्पनी दोगी ?
दिप्ति, श्याम का आशय समझते हुए, सर्! शायद आज आप ज्यादा ही थक गये हैं | अतः बाकी की चर्चा ..........|
श्याम बीच में ही टोक कर तथा कुछ तुनक कर, मैं महसूस करता हूँ कि तुम अपनी सर्वोत्तम डिजाईन से भी सुन्दर हो परंतु मैनें तुम्हारे चर्चे भी बहुत सुने हैं |
दिप्ति ने कुछ खिन्न होकर, तो क्या सर ! आप भी आफिस के औच्छे लोगों की बकवास पर विशवास करते हैं ?
परंतु दूसरों की छिंटाकशी पर तुमने एतराज भी तो  कभी नहीं उठाया | इसका क्या मतलब रहा ?”
मैं तो इतना ही समझती हूँ सर ! कि किचड़ में पत्थर फैकने से किचड़ अपने उपर ही छिटकता है |   
दिप्ति ! मैं विदेशों में ही अधिकतर पला -पढा हूँ | तथा वहाँ के वातावरण एवं रहन सहन के तौर तरीकों से इस निष्कर्ष पर पहूँचा हूँ कि इसमें कोई बुराई नहीं है | क्योंकि वहाँ माना जाता है कि मालिक की हर जरूरत पूरी करना ही तो प्रोफेशनेलिज्म है |
दिप्ति अपने कानों पर हाथ रखते हुए, बस सर बस बहुत हो गई | परंतु शायद सर आप भूल रहें हैं कि आप अब भारतवर्ष में बैठे हैं कि अमरीका में |
श्याम ने एक और वार किया, दिप्ति शायद तुम नहीं जानती कि जिस शिखर पर आज तुम हो वह तुम्हें तुम्हारी योग्यता के कारण नहीं बल्कि तुम्हारी सुन्दरता एवं यौवन के कारण ही मिला है | अपनी योग्यता के बल पर तो तुम जिवन पर्यंत ये ऊचाईंया छू लेने का ख्वाब भी नहीं  ले सकती थी |
दिप्ति ने संयम बरतते हुए जवाब दिया, धन्यवाद सर ! आपने आज मुझे  अपने विचारों की हकीकत बता दी वरना मेरा भ्रम तो मुझ में अहंकार भरता जा रहा था | सर, आज से मैं अपनी योग्यता के अनुरूप स्थान पर ही रहना पसन्द करूँगी | 
इतना कह्कर दिप्ति जल्दी से बाहर निकल गई | श्याम उसे जाता देखता रहा | श्याम के मन का संशय समाप्त हो चुका था | वह अपने को भाग्यशाली समझने लगा था कि उसके पिताजी ने उसके लिये एक योग्यवान एवं चरित्रवान लड़की चयन की है | अगले दिन वही हुआ जिसकी श्याम को अपेक्षा थी | दिप्ति को लाने के लिए भेजी गई गाड़ी खाली वापिस  गई | इस पर श्याम ने शशिभूषण को बुला भेजा | यह वही लड़का था जिसको श्याम ने दिप्ति के पैरों को छूते हुए देखा था |
दिप्ति के आफिस आने की बात आग की तरह सारी कम्पनी में फैल गई थी | शशिभूशण भी इससे बेखबर नहीं था | वह अपने अन्दर एक आग लिये हुए श्याम की कैबिन में दाखिल हुआ |
बैठो शशि, बैठो |
शशि बड़े रूखेपन से बोला,मैं ऐसे ही ठीक हूँ सर ! कहिए आपने मुझे किस लिए बुलाया है ?”
श्याम सीधा प्रशन करते हुए, तुम्हारा दिप्ति से क्या रिस्ता है ?
जैसा एक देवी और एक याचक में होता है |
मतलब ?
मतलब कि वह मेरी सब कुछ है | माँ, बहन एवं पालक | उसके मेरे उपर बहुत एहसान हैं | देखा जाए तो दिप्ति की वजह से ही मेरा पुंर्जन्म हुआ समझो | वरना मैं तो कभी का इस दुनिया को ..............|
श्याम ने शशी को बीच में ही टोकते हुए, तुम्हें पता है दिप्ति आज आफिस नहीं आई ?”
शशि नथुने फुलाकर, जानता हूँ | और यह भी जानता हूँ कि आपने उसके .............|”
श्याम एक बार फिर बीच में ही बात काटते हुए तथा अपनी खुशी छिपाते हुए, दिप्ति से कहना कि अब उसे आफिस में आने की आवशयक्ता नहीं, (शशि गुस्से से लाल-पीला होकर कुछ कहना ही चाहता था कि श्याम ने उसे हाथ के इशारे से रोकते हुए आगे कहा ) उससे यह भी कहना कि मैं (श्याम ) अपने बंधु बांधवों सहित गाजे बाजे के साथ उसे (दिप्ति को ) पालकी में बैठाकर शिघ्र ही अपने घर लिवाकर ले जाने के लिये आऊँगा | अतः शिघ्र ही उसे एक और प्रमोशन मिल रही है | अब वह कम्पनी की नौकर नहीं बल्कि मालकिन बनेंगी |
शशि आश्चर्य से, “परंतु वह अफवाह जो कम्पनी के लोगों में आज गर्म है कि कल रात आपने ............. ?
श्याम ने मुस्कराते हुए सभी शंकाओं का निवारण करने के लिए जवाब दिया, सब बकवास है | वह तो मैनें अपने विदेशी मन का भ्रम मिटाने के लिए मात्र एक नाटक किया था | जिससे मैं कीचड़ से घीरे  कमल के सुन्दर फूल के सामान दिप्ति की प्रतिभा एवं चरित्र की परख करने में सफल हो सका |