Wednesday, May 8, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 10

 

आत्म सम्मान

 

नौकरी छोड़ने के बाद चन्दगी ने पहले तो खेती के लिए कुछ जमीन ली | वह मेहनती भी था और उसके शरीर में जान भी थी | वह अपने खेत में जीतोड़ मेहनत करके इतनी पैदावार कर लेता था जिससे उसके परिवार के खाने लायक भरपूर पैदावार हो जाती थी और कुछ बच भी जाती थी जिसे वह मंडी में एक आढ़ती को बेच देता था | बचे पैसों से उसने एक ईंटों का भट्टा लगा लिया |

इस अप्रत्यासित उन्नती से चन्दगी की ख्याती चारों और ऐसे फ़ैल गयी जैसे चमन के फूलों की सुगंध हवा के साथ दूर दूर तक फ़ैल जाती है | चन्दगी जवान था, निरोगी काया थी, बुरी लत कोई नहीं थी, मेहनती था ओर सबसे ऊपर ईमानदार था | इसलिए उसके आर्थिक द्रष्टि से संपन्न रिश्तेदार जो कभी उसके गरीब परिवार को घास तक डालना मुनासिब नहीं समझते थे चन्दगी से रिश्ता जोड़ने की फिराक में लगे दिखाई देने लगे | वह जिस गाँव से निकलता लोग उसकी राह में पलकें बिछाने लगे | ऐसे ही एक दिन जब उसके कुछ गाँव वाले पशु मेले से वापिस आ रहे थे तो वे रास्ते में सुस्ताने के लिए रुके | वहां के वाशिंदों को बातों में जब पता चला कि वे चन्दगी के गाँव से ताल्लुक रखते हैं तो उन्होंने उनकी बहुत आवभगत की तथा उन्हें चन्दगी से रिश्ता जुडवाने की बात कही | चन्दगी शादी लायक तो हो ही चुका था अत: उन्होंने इस बाबत बहोड़ू राम के पास संदेशा भेज दिया | इस तरह चन्दगी भाई गूगन अपने पिता जी के साथ उस गाँव की तरफ रवाना हो गए | गाँव के बाहर पनघट पर बहुत सी औरतें पानी भर रही थी | उनके साथ उनकी शादी लायक जवान लड़कियां भी थी | चन्दगी को देखकर उनमें कानाफूसी शुरू हो गयी |  

शीला आगुन्तकों की तरफ इशारा करके, अरी ओ मूर्ती उन्हें जानती है क्या?

मूर्ती उस तरफ देखकर, हाँ हाँ अब तो इन्हें सभी जानते होंगें |

केला ने हामी भरी, पैसा एक ऐसी चीज है जिसकी ख्याति बहुत जल्दी फैलती है |

अंगूरी ने जोड़ा, कुछ दिनों पहले की तो बात है जब कोई काम देने आता था तो यह बोहड़ू राम  सभी के सामने हाथ जोड़कर खडा रहता था |

ऊषा ने हाँ में हाँ मिलाई, बिलकुल सही कहा बहन, पर अब देखो क्या ठाठ आ गए हैं |

शीला, अब तो इसने अपना जुलाहे का धंधा भी छोड़ दिया है |

केला, छोड़ेगा क्यों नहीं, बेटा जो अच्छी कमाई करने लगा है |

अंगूरी, अब तो इसके रिश्ते भी अच्छे अच्छे आएँगे |

रिश्ते की बात आते ही सभी औरतें जल्दी जल्दी अपने घर जाने की जुगत में लग गई और देखते ही देखते पनघट खाली हो गया | घर जाकर जिनकी लडकियां शादी लायक हो गयी थी उन्होंने घर में सलाह मशवरा करके चन्दगी के पिता जी से उसके रिश्ते की बात करने की ठान ली | शाम को सभी मर्द चौपाल में बैठे थे | चन्दगी भी अपने पिता जी के साथ बैठा था | शादी ब्याह की बात चल गई | उनमें से सात आठ ऐसे थे जो चमकते सितारे चन्दगी को अपनी बेटी देना चाहते थे | एक ने शुरू किया, हाँ भाई बहोड़ू राम जी आपका लड़का चन्दगी तो शादी लायक हो गया है ?

जी देख लो आपके सामने है |

दूसरा, वह तो हम देख ही रहे हैं परन्तु आपकी क्या मर्जी है |

बोहड़ू राम, हर बाप तो चाहेगा कि उसकी संतान की शादी ठीक समय पर हो जाए |

तीसरा, अब तो चन्दगी की उम्र शादी लायक है ?

बाल किशन, मैं तो तैयार हूँ अगर यह (चन्दगी की तरफ देखकर) राजी हो तो |

चन्दगी शरमाकर, पिता जी जैसा आप मुनासिब समझें |

पहला, परन्तु तुम्हें लडकी कैसी चाहिए ?

चन्दगी कुछ सोचकर, यह तो लड़की देखकर ही बता सकता हूँ |

एक बुजूर्ग, परन्तु यहाँ बैठों में से कई के पास लडकियां हैं जो ब्याह लायक हो गयी हैं | 

आखिर में फैसला हुआ कि सभी अपनी लड़कियों को चौपाल पर बुला लें तथा चन्दगी जिस लडकी को पसंद करेगा उससे रिश्ता पक्का कर दिया जाएगा | 

पुराने समय में राजा महाराजा अपनी पुत्रियों की शादी करने के लिए स्वम्बरों का आयोजन किया करते थे जिसमें एक से एक बढ़कर योद्धा, गुणवान, शूरवीर, सम्राट इत्यादि अपनी किस्मत आजमाने आते थे | कभी कभी तो ऐसे आयोजन सशर्त रखे जाते थे और कभी कभी होने वाली वधु को यह छूट दे दी जाती थी कि वह वहां उपस्थित किसी भी व्यक्ति को अपने मन पसंद अनुसार अपना जीवन साथी चुन सकती है | ऐसा मुश्किल से ही देखने को मिलता था कि एक व्यक्ति के सामने लड़कियों का प्रदर्शन करके लड़के से कहा जाता हो कि वह किसी एक का चुनाव करले | चन्दगी के लिए आज उसके आत्म सम्मान की पराकाष्ठा थी क्योंकि उसके सामने आठ लडकियां थी और उनमें से उसे एक को चुनना था | एक एक करके उसने सभी लड़कियों पर गहरी नजर डाली और धीरे से अपने पिताजी से कहा, पिताजी मैं चाहता हूँ कि सभी लड़कियों की चुन्नियाँ थोड़ा ऊपर करवा दी जाएं |

बहोड़ू राम असमंजस से, क्यों क्या बात है ?

चन्दगी बिना किसी झिझक के, मैं उनके वक्ष देखना चाहता हूँ |

बोहड़ू राम, क्या यह वाजिब है ?

मैं चुन्नी हटाने की नहीं कह रहा केवल थोड़ा ऊपर सरकाने की कह रहा हूँ |

बहोड़ू राम अपने बेटे की कामना से अनभिग्य, परन्तु इससे होगा क्या ?

चन्दगी, इससे मुझे अपनी होने वाली संगिनी का चुनाव करने में बहुत सहयोग मिलेगा |

बोहड़ू राम ने अपनी तरफ से चन्दगी की इस बात से असहमती जताते हुए कहा, यह जायज नहीं है |  

बाप बेटे की नोंक झोंक देखकर चौपाल में बैठे लोगों ने पूछा, क्या समस्या है ?

बोहड़ू राम तो चुप रहा परन्तु चन्दगी ने अपने मन की इच्छा जाहिर कर दी | और उसकी बात मान ली गई | चन्दगी ने उस लडकी का चयन कर लिया जिसकी छातियों का उभार सबसे कम था क्योंकि चन्दगी के अनुसार वह लडकी बहुत भाग्यवान होती है, शादी से पहले जिसकी छातियों का उभार कम होता है |   

आज चन्दगी का रोम रोम पुलकित दिखाई देने लगा था | इसलिए नहीं कि उसके रिश्ते की बात चल रही थी बल्कि इस लिए कि आज समाज के लोगों ने उसके पिता जी को उसके पूरे नाम, बोहड़ू राम, वह भी जीलगाकर सम्बोधित किया था | बचपन में उसने महसूस किया था कि आत्मसम्मान एक सफल सुखी जीवन का आधारभूत तत्व है। व्यक्ति आत्मसम्मान के अभाव में सफल तो हो सकता है, बाह्य उपलब्धियों भरा जीवन भी जी सकता है, किंतु वह अंदर से भी सुखी, संतुष्ट और संतृप्त होगा, यह संभव नहीं है। आत्मसम्मान के अभाव में जीवन एक गंभीर अपूर्णता व रिक्तता से भरा रहता है। यह रिक्तता एक गहरी कमी का अहसास देती है और जीवन एक अनजानी- रिक्तता, एक अज्ञात पीड़ा, असुरक्षा और अशांति से बेचैन रहता है। आज उसके मन की सारी रिक्तताएँ भर गयी थी |

Friday, May 3, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 9

 

चन्दगी  की लक्ष्य पूर्ति  

चन्दगी का साथी जो उसके साथ डिपो में अन्दर काम करता था वह बाहर से आने वाले सामान को पहचान कर उसे सही जगह पर रखता था | वह उस सामान पर, जो उन पांच प्यारों को वहां से निकालना होता था, एक ख़ास निशान लगा देता था तथा चन्दगी को बता देता था | शाम को ड्यूटी ख़त्म होने पर चन्दगी बाहर न जाकर सामान के हैंगर में ही रह जाता था | वह धीरे धीरे उन सब सामानों को एक बक्से या बोरे में भर लेता था जो उनके काम के होते थे | इसके बाद उनका साथी गार्ड हैंगर का शटर खोल देता था | हालांकि सामान का वजन बहुत हो जाता था परन्तु चन्दगी को उसे उठाने में कोई दिक्कत नहीं आती थी क्योंकि उसे तो भारी वजन उठाने की आदत हो चुकी थी | जोखीम तो सामान को 10 फीट ऊंची दिवार के दूसरी पार पहुंचाने में था | दीवार के साथ साथ अन्दर की तरफ चार फुट चौडा तथा 6 फुट गहरा नाला बना था | पहले तो सामान के साथ उसे पार करना पड़ता था | फिर 10 फीट ऊँची दीवार पर चढ़कर सामान दूसरी तरफ फैकना पड़ता था | इसके लिए गार्ड नाले पर एक फट्टा तथा दीवार के साथ एक सीड़ी का प्रबंध कर दिया करता था | हालाकिं डिपो के चार कौनों पर चार बुर्जी थी जिनपर फ़ौज के जवानों का पहरा रहता था | इन पहरेदारों को डिपो की दीवार के पास होने वाली गतिविधिओं पर ध्यान रखना होता था क्योंकि डिपो की दीवार से लगभग 10 फुट की दूरी पर पास वाले  गाँव वालों के खेत थे जहां फसल उगाई जाती थी | डिपो की दीवार के चारों और कच्चे रास्ते थे इसलिए फौजियों के खाने वगैरह की गाडी उसके मेन गेट पर ही आती थी | दूसरे जब भी ड्यूटी बदलने का समय होता था तो ड्यूटी पर तैनात फ़ौजी को आने वाले गार्ड को बन्दुक तथा गोलियां इत्यादि सुपुर्द करने के लिए मेंन गेट पर ही जाना पड़ता था | यही एक समय होता था जब चन्दगी और उसके साथी अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचा सकते थे, वह भी केवल रात की ड्यूटी बदलते समय | चन्दगी दीवार के बाहर सामान का बोरा फैंक कर खुद भी 10 फुट ऊँची दीवार से बाहर कूद जाता था | वहां उनका ड्राईवर साथी गाडी लेकर तैयार रहता था | दोनों मिलकर बोरा लादते और रफूचक्कर हो जाते थे | यह क्रम लगभग एक साल चला | अब तक चन्दगी ने 7000 रूपये जमा कर लिए थे | जब चन्दगी ने अंदाजा लगा लिया कि अब वह इन पैसों से अपनी आगे की जिन्दगी को खुशहाल बनाने के लिए बहुत कुछ कर सकता है तो उसने ज्यादा लालच न करते हुए अपनी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया |

चन्दगी के त्याग पत्र ने उसके साथियों में हडकंप मचा दिया | एक एक करके वे चन्दगी को अपना त्याग पत्र वापिस लेने पर जोर देने लगे | पहले तो चन्दगी ने उन्हें समझाया था परन्तु  अब उनकी बारी थी | खजान ने पूछा, चन्दगी ऐसा क्यों कर रहे हो?

चन्दगी ने अपनी मंशा बताई, देख भाई मैं हूँ मजदूर आदमी | अगर मैं यहीं रहा तो बोझा ढोते ढोते मेरी उम्र गुजर जाएगी |

गार्ड बोला, बेशक आप मजदूर हो परन्तु कमाई तो अच्छी हो रही है?

वो तो है परन्तु एक मनुष्य का आत्म सम्मान भी तो कुछ मायने रखता है |

विक्की ने जवाब दिया, मनुष्य के पास पैसा बढ़ता है तो उसका आत्म सम्मान अपने आप बढ़ जाता है |

तुमने बिलकुल ठीक कहा विक्की परन्तु यहाँ कौन जानेगा कि मेरे पास इतना पैसा है | अगर बता भी दिया तो एक मिनट में सब बंटाढार हो जाएगा |  

विक्की ने अहंकारी अंदाज में कहा, मुझे देख लो जब से मैनें नई गाड़ी ली है मेरे साथी मुझे सलाम सी करने लगे हैं |

चन्दगी ने अपना मन खोला, तुम यह सब दिखा सकते हो परन्तु मैं नौकरी में तो मजदूर ही रहूँगा |

खजान कुछ बुदबुदाया, परन्तु आपने ही तो यह कला शुरू कराई थी ?

कराई थी और अब कह रहा हूं बंद करने की |

क्यों?

चन्दगी द्रड़ता से,क्योंकि ज्यादा लालच अच्छा नहीं | अब हम सब आर्थिक द्रष्टि से इतने समर्थ हो चुके है कि बाहर जाकर कोई काम करके सम्मान जनक जीवन जी सकते हैं |

उसके साथियों ने उससे बहुत आग्रह किया कि वह उनका साथ निभाता रहे परन्तु चन्दगी नहीं माना | चन्दगी के बाकी साथी उसी हेरा फेरी में उलझे रहे और अंत में वही हुआ जो एक बुरे काम का नतीजा होता है | सौ सुनार की एक लुहार की, कुछ साल बाद चन्दगी के सभी साथी हेराफेरी करते हुए पकडे गए और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी |