Wednesday, November 12, 2025

आतम तृप्ति (उपन्यास) भाग-1

 आत्म-तृप्ति

I

उत्तर प्रदेश में जिला बुलन्द शहर का एक छोटा सा कस्बा डिबाई | डिबाई का नाम कई कारणों से काफी प्रसिद्ध है | एक तो आसपास के बहुत से गाँवों के लिये यही एकमात्र बाजार है | दूसरे यहाँ वृहस्पतिवार को पैंठ लगती है जिसमें आसपास के गाँवों से कारिन्दे अपना अपना बनाया सामान बेचने के लिये यहाँ पटरियों पर बाजार लगाते हैं | इस बाजार में, घरों में इस्तेमाल होने वाला, छोटे से छोटा तथा बडे से बडा सामान मिल जाता है | अर्थात सुई से लेकर सोफे तक | वैसे तो यहाँ के बाजारों में रोजाना ही अच्छी खासी भीड़ रहती है परंतु पैंठ वाले दिन तो बाजार की सड़कों पर तिल रखने की भी जगह नहीं मिलती | तीसरे देहली से बदायूँ जाने का एकमात्र रास्ता यही है | चौथे गंगा नदी पर नरौरा बिजली परियोजना के लिये डिबाई ही वहाँ की जरूरतों को पूरा करता है | पाँचवे राजघाट या नरौरा पर गंगा स्नान के लिये आने वाले यात्री भी अपना पडाव डिबाई को ही बनाते हैं |

वीरवार का दिन था | शहर में चहल पहल थी | कस्बे के एक समृद्ध व्यक्ति लाला मुंशी राम जी के पौत्र एवं लाला जय प्रकाश के जुड़वां पुत्र आमोद तथा प्रमोद के गंगा चढाने का उत्सव था | घर में इस बाबत तैयारियाँ लगभग पूरी हो चुकी थी फिर भी इस मकसद से कि कहीं कोई त्रुटी न रह गई हो लाला मुंशी राम आसवस्त होने के लिए हर काम का खुद जायजा लेते हुए मुआईना करने लगे |

अपनी पारखी नजरों से देखते हुए वे आगे बढे तथा ताकीद करने लगे कि कौन सा काम कैसे करना है तथा किसे करना है | आँगन के एक कौने में औरतों को गीत गाते सुनकर अपनी पत्नि को आवाज लगाते हुए, "अजी सुनती हो, ये औरतें कैसी मरी मरी आवाज में गीत गा रही हैं | इनसे कहो कि जरा जोर से आवाज बुलन्द करके गाऐं जिससे बाहर आस पडौस में भी पता चले कि उत्सव का शुभारम्भ हो गया है |

गीत गाने वाली सभी औरतें लाला जी की आवाज बखूबी पहचानती थी अत: आवाज सुनते ही उनमें जोश भर गया और वे मुखर आवाज में गाने लगी |

बजरंगी देख यहाँ कोना खाली पडा है एक गलीचा यहाँ भी बिछवा दे |

अच्छा मालिक |

पंडित जी गंगा पर ले जाने वाले क्लश अभी सूने क्यों हैं | इन पर सतिया नहीं बनेगा क्या ? और पूजा वगैरह का सामान तो सब पूरा होगा | एक बार और जाँच करलो कहीं कोई कमी न रह जाए | सारा सामान अपने ही पास रख लो अब यह आप की जिम्मेदारी है |

बिलकुल सेठ जी, मैं सब सम्भाल लूंगा |   

अरे ये पर्दे किसने टाँगे हैं ? इनको उतरवाकर पहले प्रैस करवाओ फिर टाँगना | कितने भद्दे लग रहे हैं |

मालिक अभी करवा देता हूँ |

बेटा माला तू अभी तैयार नहीं हुई ?

बस हो ही रही हूँ पिता जी |

सभी चलने को तैयार हैं और तू अभी तक ऐसे ही घूम रही है | चल नया सूट पहन कर जल्दी से तैयार हो जा |

पिता जी मेरी चुनरी नहीं मिल रही |

बेटा शालू देख तो इसकी चुनरी कहाँ है ?

जी पिता जी |

बेटा जय प्रकाश क्या सारी गाडियाँ आ गई ?

हाँ पिता जी, उन्हें फूलों से सजवा भी दिया है |

बहुत अच्छा किया | अब खाने पीने का सारा सामान एक गाडी में लदवा दो ?

हाँ पिता जी भाई ब्रह्म प्रकाश यह काम करवा रहा है |

सभी औरतों को एक ही गाडी में बिठवा देना |

ठीक है पिता जी |

और हाँ औरतों की गाडी को और गाडियों के बीच में चलाने को कहना | तथा चलाने वाले को यह भी पक्की हिदायत दे देना कि वह सावधानी से हाँके |

अच्छा पिताजी आपके कहे अनुसार करवा दूंगा |

ऊं ..........कुछ सोचते हुए, वे दिल्ली वाले कहीं दिखाई नहीं दे रहे | क्या वे अभी पहूँचे नहीं ?

पिताजी उनकी खबर आई थी कि वे दस बजे वाली बस से आएँगे,फिर कलाई पर बंधी घडी की और देख कर, दस बजने वाले हैं आते ही होंगे |

क्या कोई लिवाने भी भेजा है ?

नहीं अभी तो कोई नहीं भेजा |

समय हो गया है बेटा किसी को भेज दो,फिर स्वंय ही, अरे ओ राजू जा देख 10 बजे वाली बस पर दिल्ली वाले आते होंगे उन्हें लिवा ला | उन्हें पहचानता हो होगा ?

नहीं सेठ जी |

माला जो वहाँ खडी सब कुछ सुन रही थी, पिता जी क्या राजू के साथ मैं चली जाऊं ?

लाला मुंशी राम माला को ऊपर से नीचे तक देखकर, पर तू तो अभी तैयार भी नहीं हुई है ?

आकर हो जाऊंगी | देर ही क्या लगती है तैयार होने में |

अच्छा जा | राजू देख जरा ध्यान से ले जाना माला को क्योंकि आज बाजार में बहुत भीड् होगी |

दस बजे वाली बस डिबाई के बस अड्डे पर आकर रूकी | माला हर उतरने वाले यात्री को देख रही थी | वह व्यक्ति भी बस से नीचे उतरा जिसे लिवाने वह राजू के साथ यहाँ आई थी | उसको देखकर माला जल्दी से उसकी तरफ लपकी, "जीजा जी नमस्ते" |

नमस्ते, नमस्ते |

कैसी है माला ?

अच्छी हूँ | बिलकुल तन्दुरूस्त | आप देख तो रहे हो |

घर पर सब ठीक हैं ?

केवल एक नहीं है |

कौन ?

वहीं जा रहे हो, खुद देख लेना |

लगता है बातों में बहुत चतुर हो गई हो |

आपका असर तो पडॆगा ही |

क्या मतलब ?

यह चतुराई मैं आप से ही सीख रही हूँ |

अरे वाह | कितना समय बिताती है मेरे साथ जो मुझ से सीख रही है ?

ज्यादा समय नहीं चाहिये, कुछ सीखने के लिए, पारखी नजर रखने वालों को  |

अच्छा जी !

माला और उसके जीजा जी के बीच होने वाली नोंक झोंक को उसी बस से उतरने वाला एक भोला-भाला एवं बेहद शरीफ सा दिखने वाला कोई ग्यारह बारह साल का लड़का बडे ध्यान से सुन रहा था | माला उससे अनभिज्ञ थी अतः उसकी और उसका कोई ध्यान नहीं गया | परंतु माला तथा उसके जीजा जी के बीच हो रहे वर्तालाप के दौरान लड़के नें माला का पूरी तौर से मुआयना कर लिया था | उसके विचार में वह खुद की उमर, 11-12 साल, के बराबर की होगी | गौरी-चिट्टी, इकहरा बदन, चंचल तथा बे-झिझक बातें बनाने में माहिर थी | नयन नक्श के मामले में भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी | लड़के से बे-खबर माला ने अपने जीजा जी की अटैची उठाते हुए, "राजू यह इनका थैला उठा ले |

फिर अपने जीजा जी की तरफ देखकर, और कोई सामान तो नहीं है जीजा जी ?

नहीं बस ये ही दो नग हैं |

तो चलें जीजा जी ?

सभी घर की तरफ चल दिये | उस लड़के ने भी उनका अनुशरण करना शुरू कर दिया | राजू ने माला से अटैची भी ले ली तथा तेज कदम बढाता हुआ उनसे आगे निकल गया | माला अपने जीजा जी से बातें करती हुई चल रही थी | बीच बीच में चोर निगाह से वह उस लड़के को भी निहार रही थी जो बस स्टैंड से ही उनका अनुशरण कर रहा था | माला का जब सब्र का बाँध टूट गया तो उसने अपने जीजा जी से धीरे से पूछा, "क्या वह लड़का जो हमारे पीछे-पीछे आ रहा है आपके साथ आया है ?

जीजा जी शायद अपनी साली की शंका समझ गए थे तथा उन्होने इस बात का भी अन्दाजा लगा लिया था कि माला उसे नहीं जानती | अतः शरारती अन्दाज में ऐसे बोले जैसे सचमुच में कुछ जानते ही नहीं, "कौन सा लड़का ?

वही जो हमारे पीछे पीछे आ रहा है ?”

माला के जीजा जी ने झूठे ही पीछे मुड़कर देखते हुए, नहीं तो |

अपने जीजा जी की ना सुनकर माला सोचने लगी कि यह लड़का यहाँ का तो लगता नहीं क्योंकि उसने उसे अपने मौहल्ले में इससे पहले कभी देखा ही नहीं था | फिर हमारे पीछे पीछे आने का उसका क्या मकसद हो सकता है | माला के दिमाग में कुछ गलत आशंकाओं ने घेरा डाल लिया अतः अब वह चोर निगाहों से उस लड़के की गतिविधियों को ज्यादा ध्यान से देखने लगी | आखिर अधिक देर तक उससे न रहा गया | अपने मकान की गली के नुक्कड पर ज्योंही वह लड़का उनके पीछे मुडा, माला एकदम से पल्टी तथा लड़के से तैश में बोली, "ऐ लड़के मेरे पीछे पीछे क्यों आ रहा है ?

लड़के ने अपना धैर्य न खोया तथा शांत स्वभाव से ऊत्तर दिया, "क्योंकि आप मेरे आगे आगे जा रही हैं |  

माला कुछ तैश दिखाकर, तूझे कहाँ जाना है ?

लड़का बड़े शंयम से बोला, वैसे तो बताना जरूरी नहीं समझता फिर भी आपका दिल रखने को बता देता हूँ कि मुझे भी वहीं जाना है जहाँ आपको जाना है |

माला गुस्से में अभी कुछ कहना ही चाहती थी कि उसने अपने जीजा जी के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान को भाँप लिया | फिर झट से जब उसने उस लड़के की तरफ नजर घुमाई तो उसे भी, अपने भाई(माला के जीजा जी) की तरफ देखते हुए, वैसे ही मुस्कराते हुए पाया | माला को समझते हुए देर न लगी कि जरूर कुछ दाल में काला है | माला का गुस्सा एकदम ठंडा हो गया | वह अपनी झेंप छिपाते हुए बोली, "तो आप हमारे छोटे जीजा जी हैं, नमस्ते | 

लड़के ने कुछ जवाब न देकर माला के अभिवादन के उत्तर में केवल अपने दोनों हाथ जोड् दिये |

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