Monday, February 20, 2012

मन की मुराद


मन की मुराद
सितम्बर माह समाप्त होने को था | प्रातः काल के समय गुलाबी ठंड पड़नी शुरू हो गई थी | शीतल मन्द समीर बहने लगी थी | शरीर का रोम-रोम कम्पित करने वाली हवा शीत का साम्राज्य स्थापित करने पर उतारू थी | ऐसा प्रतीत होता था कि सूर्य अपनी उष्णता गॅंवाता जा रहा है | अतः प्रातः कालीन परिभ्रमण का मौसम बहुत सुहावना बन गया था |
मैं प्रातः कालीन परिभ्रमण को नियमित रूप से जाता हूँ | मेरा आने -जाने का रास्ता भी निश्चित है | विशाल नगरों की तंग गलियों से बाहर निकलकर खुला वातावरण शरीर में नई स्फूर्ति भर देता है | एक दिन जब मैं प्रातः कालीन भ्रमण से वापिस लौट रहा था तब मैने सड़क के किनारे एक बिजली के खम्बे के नीचे एक निर्जीव से व्यक्ति को चिथड़ों में लिपटे बैठे देखा | जहां वह बैठा था ठीक उसके सामने सड़क के उस पार एक लम्बा चौड़ा मैदान था | मैदान को समतल करने में बहुत से मजदूर कार्यरत थे | उसी मैदान के एक कोने में विधुत चलित शवदाह गृह निर्माणाधीन था |
घर आकर समाचार पत्र पढ़ने से पता चला कि देश की संसद के चुनाव अक्टूबर माह की 26 तारीख को होने निश्चित हो गए  हैं | शाम होते होते नगर के सामान्य जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन चुका था | हर गली, चौराहे एवं खाली स्थानों पर लोगों ने छोटे छोटे गुट बनाकर चुनाव के बारे में अटकलबाजियाँ लगाना प्रारम्भ कर दिया था | तीन चार दिनों के अंतर काल में ही शहर का चप्पा-चप्पा चुनाव दलों के नारों से भरे पोस्टर एंव झंडियों से भर गया था | चुनाव के लिए खड़े होने वाले प्रत्याशी भी अपने अपने सहयोगियों के साथ घर घर जाकर प्रत्येक व्यक्ति से अपने लिए वोट माँगने की प्रार्थना करने लगे थे
 
पिछ्ले कुछ दिनों से मैं आश्चर्य चकित था कि जाने किस कारण उस बिजली के खम्बे के नीचे बैठे  व्यक्ति के चेहरे की आभा में निखार आता जा रहा था | मैं अपनी इस जिज्ञासा को अधिक दिन रोक पाया | एक दिन मैने बूढे बाबा को सम्बोधित करते हुए कहा, बाबा राम राम |
बूढे बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा, "जीते रहो बेटा |"
मैने अपने मन की संतुष्टि के लिए बाबा से जानने के लिए पूछा, "बाबा, जब से चुनाव की घोषणा हुई है आप प्रतिदिन प्रातः इसी स्थान पर बैठे मिलते हैं  इसका क्या कारण है ?
बाबा थोड़ा मुस्कराया और मुस्करा कर बोला, "बेटा, जब से चुनाव की घोषणा हुई है, मेरी दबी इच्छाएँ जाग्रत हो गई हैं |"
कौन सी इच्छाएँ बाबा ?
बाबा ने अपने उपर बिजली के खम्बे पर लगे पोस्टर की और इशारा  करते हुए बताया, यही हैं मेरी इच्छाएँ | मेरे मन की मुराद |
मैने नजरें उठा कर देखा | पोस्टर पर लिखा था:
"हमारी पार्टी का पहला काम
सबको रोटी, कपड़ा और मकान "
मैं, बाबा के चेहरे की बढती रौनक का राज समझ गया था |
अगले दिन शाम को मैदान मे पार्टी के बहुत से नेताओं ने अपने -2 विचार प्रकट किए | अंत में सभी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आज समाज में भ्रष्टाचार, लूटपाट, हिंसा, चोरी-डकैती आदि की जो घटनाएँ घटित हो रही हैं इनका मुख्य कारण है कि लाखों लोग रोटी, कपड़ा ओर मकान से वंचित हैं | अतः हम आप लोगों से वचनबद्ध होते हैं कि चुनाव में जीत के बाद, जो कि आप सभी के सहयोग से निश्चित है, पार्टी के घोषणा पत्र के अनुसार अपना कार्य पूरा करेंगे |
26 अक्टूबर को प्रातः से ही सारे शहर में हलचल बहुत बढ गई थी | सभी दलों के कार्यकर्ता अपने अपने  प्रत्याशी को विजयी बनाने का निवेदन कर रहे थे | ओरों की तरह बूढे बाबा को लिवाकर ले जाने का प्रबंध किया गया जिससे वे अपने मत का प्रयोग कर सकें | आज बाबा शायद अपने आप में ऐसा मह्सूस कर रहे थे कि वे ही चुनाव प्रत्याशी के भाग्य विधाता हैं | साथ साथ, भविष्य में, अपनी दीन-दशा के सुधार की आशाएँ भी उनके मन में हिलोरें ले रही थी |
दल बहुमत से विजयी हुआ | इसकी खुशी के उपलक्ष्य में मैदान में एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया गया था | बड़ी सुन्दर सजावट  की गई थी | बड़े-बड़े नेतागण आए थे | अपने घोषणा पत्र के अनुरूप प्रीतिभोज के साथ साथ गरीब लोगों को कपड़ा ओर मकान वितरित किए गये | प्रत्येक व्यक्ति पार्टी की प्रशंसा करते थक रहा था | हर स्थान पर पार्टी ने लोगों की वाह वाह लूटी |
नियमित रूप से अगले दिन प्रातः जब मैं प्रातःकालीन परिभ्रमण से वापिस लौट रहा था तो बिजली के खम्बे के पास एकत्र भीड़ को देख कर ठिठक गया | आगे बढ कर देखा तो सन्न होकर रह गया | बूढे बाबा का पार्थिव शरीर बिजली के खम्बे के साथ लगा था | शायद रात में ठंड से ठिठुरने के कारण......|
अपनी चेतना जागृत होने पर मैनें देखा :-
बेशुमार खाना (रोटी) खम्बे के चारों और बिखरा पड़ा था | एक ओर फटे चिथडों (कपडों) का ढेर लगा था | कमेटी के कर्मचारी लावारीस लाश के अंतिम संस्कार के लिए नव-निर्मित शवदाह -गृह (मकान) में ले जाने का प्रबंध कर रहे थे | मेरा मन बहुत व्यथित था | अचानक निगाहें उपर आकाश की ओर उठ गई | दूर क्षितिज में एक प्रश्न चिन्ह उभरता दिखाई दिया |
क्या ऐसे भी पूरी होती हैं मन की मुराद ?



 अपनी उष्णता गॅंवाता जा रहा है | अतः प्रातः कालीन परिभ्रमण का मौसम बहुत सुहावना बन गया था |
मैं प्रातः कालीन परिभ्रमण को नियमित रूप से जाता हूँ | मेरा आने -जाने का रास्ता भी निश्चित है | विशाल नगरों की तंग गलियों से बाहर निकलकर खुला वातावरण शरीर में नई स्फूर्ति भर देता है | एक दिन जब मैं प्रातः कालीन भ्रमण से वापिस लौट रहा था तब मैने सड़क के किनारे एक बिजली के खम्बे के नीचे एक निर्जीव से व्यक्ति को चिथड़ों में लिपटे बैठे देखा | जहां वह बैठा था ठीक उसके सामने सड़क के उस पार एक लम्बा चौड़ा मैदान था | मैदान को समतल करने में बहुत से मजदूर कार्यरत थे | उसी मैदान के एक कोने में विधुत चलित शवदाह गृह निर्माणाधीन था |
घर आकर समाचार पत्र पढ़ने से पता चला कि देश की संसद के चुनाव अक्टूबर माह की 26 तारीख को होने निश्चित हो गए  हैं | शाम होते होते नगर के सामान्य जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन चुका था | हर गली, चौराहे एवं खाली स्थानों पर लोगों ने छोटे छोटे गुट बनाकर चुनाव के बारे में अटकलबाजियाँ लगाना प्रारम्भ कर दिया था | तीन चार दिनों के अंतर काल में ही शहर का चप्पा-चप्पा चुनाव दलों के नारों से भरे पोस्टर एंव झंडियों से भर गया था | चुनाव के लिए खड़े होने वाले प्रत्याशी भी अपने अपने सहयोगियों के साथ घर घर जाकर प्रत्येक व्यक्ति से अपने लिए वोट माँगने की प्रार्थना करने लगे थे
 
पिछ्ले कुछ दिनों से मैं आश्चर्य चकित था कि जाने किस कारण उस बिजली के खम्बे के नीचे बैठे  व्यक्ति के चेहरे की आभा में निखार आता जा रहा था | मैं अपनी इस जिज्ञासा को अधिक दिन रोक पाया | एक दिन मैने बूढे बाबा को सम्बोधित करते हुए कहा, बाबा राम राम |
बूढे बाबा ने आशीर्वाद देते हुए कहा, "जीते रहो बेटा |"
मैने अपने मन की संतुष्टि के लिए बाबा से जानने के लिए पूछा, "बाबा, जब से चुनाव की घोषणा हुई है आप प्रतिदिन प्रातः इसी स्थान पर बैठे मिलते हैं  इसका क्या कारण है ?
बाबा थोड़ा मुस्कराया और मुस्करा कर बोला, "बेटा, जब से चुनाव की घोषणा हुई है, मेरी दबी इच्छाएँ जाग्रत हो गई हैं |"
कौन सी इच्छाएँ बाबा ?
बाबा ने अपने उपर बिजली के खम्बे पर लगे पोस्टर की और इशारा  करते हुए बताया, यही हैं मेरी इच्छाएँ | मेरे मन की मुराद |
मैने नजरें उठा कर देखा | पोस्टर पर लिखा था:
"हमारी पार्टी का पहला काम
सबको रोटी, कपड़ा और मकान "
मैं, बाबा के चेहरे की बढती रौनक का राज समझ गया था |
अगले दिन शाम को मैदान मे पार्टी के बहुत से नेताओं ने अपने -2 विचार प्रकट किए | अंत में सभी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आज समाज में भ्रष्टाचार, लूटपाट, हिंसा, चोरी-डकैती आदि की जो घटनाएँ घटित हो रही हैं इनका मुख्य कारण है कि लाखों लोग रोटी, कपड़ा ओर मकान से वंचित हैं | अतः हम आप लोगों से वचनबद्ध होते हैं कि चुनाव में जीत के बाद, जो कि आप सभी के सहयोग से निश्चित है, पार्टी के घोषणा पत्र के अनुसार अपना कार्य पूरा करेंगे |
26 अक्टूबर को प्रातः से ही सारे शहर में हलचल बहुत बढ गई थी | सभी दलों के कार्यकर्ता अपने अपने  प्रत्याशी को विजयी बनाने का निवेदन कर रहे थे | ओरों की तरह बूढे बाबा को लिवाकर ले जाने का प्रबंध किया गया जिससे वे अपने मत का प्रयोग कर सकें | आज बाबा शायद अपने आप में ऐसा मह्सूस कर रहे थे कि वे ही चुनाव प्रत्याशी के भाग्य विधाता हैं | साथ साथ, भविष्य में, अपनी दीन-दशा के सुधार की आशाएँ भी उनके मन में हिलोरें ले रही थी |
दल बहुमत से विजयी हुआ | इसकी खुशी के उपलक्ष्य में मैदान में एक विशाल सम्मेलन का आयोजन किया गया था | बड़ी सुन्दर सजावट  की गई थी | बड़े-बड़े नेतागण आए थे | अपने घोषणा पत्र के अनुरूप प्रीतिभोज के साथ साथ गरीब लोगों को कपड़ा ओर मकान वितरित किए गये | प्रत्येक व्यक्ति पार्टी की प्रशंसा करते थक रहा था | हर स्थान पर पार्टी ने लोगों की वाह वाह लूटी |
नियमित रूप से अगले दिन प्रातः जब मैं प्रातःकालीन परिभ्रमण से वापिस लौट रहा था तो बिजली के खम्बे के पास एकत्र भीड़ को देख कर ठिठक गया | आगे बढ कर देखा तो सन्न होकर रह गया | बूढे बाबा का पार्थिव शरीर बिजली के खम्बे के साथ लगा था | शायद रात में ठंड से ठिठुरने के कारण......|
अपनी चेतना जागृत होने पर मैनें देखा :-
बेशुमार खाना (रोटी) खम्बे के चारों और बिखरा पड़ा था | एक ओर फटे चिथडों (कपडों) का ढेर लगा था | कमेटी के कर्मचारी लावारीस लाश के अंतिम संस्कार के लिए नव-निर्मित शवदाह -गृह (मकान) में ले जाने का प्रबंध कर रहे थे | मेरा मन बहुत व्यथित था | अचानक निगाहें उपर आकाश की ओर उठ गई | दूर क्षितिज में एक प्रश्न चिन्ह उभरता दिखाई दिया |
क्या ऐसे भी पूरी होती हैं मन की मुराद ?