Tuesday, August 16, 2011

जूतियाँ (पार्ट-१)


जूतियाँ
चरण का परिवार छोटा सा ही था | एक लड़की तथा दो लड़के | लड़की, प्रभा की शादी श्री भजन लाल जी के सुपुत्र मनोज कुमार गुप्ता के साथ हुई थी | उसके पास तीन बच्चे, मैत्री, गोपिका एवं भावेश थे | चरण के बडे लड़के प्रवीन की शादी, ढांसे के रहने वाले श्री कृष्ण लाल गुप्ता की सुपुत्री चेतना के साथ सम्पन्न हुई थी | उसके पास दो बच्चे थे, चक्षु तथा नयन | छोटे लड़के पवन की, कासन के रहने वाले श्री चुन्नी लाल जी की लड़की अंजु से, अभी नई नई शादी हुई थी | शायद प्रभा ने अपने भाई पवन की शादी की कुछ मन्नत मांगी हुई थी | वैसे भी चरण के दामाद मनोज जी की हनुमान जी के मन्दिर पाण्डुपोल’ में बहुत आस्था थी | अतः जब भी उन्हें समय मिलता वे वहाँ अक्सर हनुमान जी के दर्शनों को जाया करते थे | सन 2002 के अप्रैल का महीना था | बच्चो के स्कूलों की छुट्टियाँ चल रही था | खुद मनोज जी की भी आफिस की छुट्टियाँ थी क्योंकि वे एक स्कूल मास्टर थे |
चरण की छोटी साली कृष्णा दुर्भाग्य से विधवा हो चुकी थी | उनका इकलौता लड़का, प्रशांत, राजस्थान के पिलानी इंजिनियरिंग कालेज में बी की डिग्री कर रहा था | शायद उन्होने भी खाटू शयाम जी के मन्दिर में पूजा अर्चना करने का मन बना रखा था | एक दिन शाम को चरण जब आफिस से घर पहुंचा तो उनकी  पत्नि बोली,जी ! कृष्णा का फोन आया था |
चरण ने अपनी कमीज उतारते हुए पूछा,क्या कोई खास बात ?
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है |
फिर क्या कह रही थी ?
वह तीन चार दिनों बाद रही है |
ठीक है , जब ही रही है तो आने दो |
नहीं ! वह कह रही थी कि अगर खाटू श्याम जी जाने का प्रोग्राम बन जाता तो अच्छा रहता |
तुमने क्या कहा ?
मैं क्या कहती | वह तो रही है आप से खुद ही बात कर लेगी |
अगर मेरे से बात करनी होती तो घर से प्रोग्राम बना कर ही वहाँ से चलती |
संतोष थोड़ा झेंपकर बोली, क्या मतलब ?
मतलब तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुम्हारा प्रोग्राम पहले से ही पूरा बन चुका है |
संतोष कुछ गुस्सा दिखाकर, देखो जी मुझे कुछ मत कहना तथा ही मेरे पर कोई शक करने की जरूरत है | आज ही प्रभा का  फोन आया था कि वे सरिसका (पांडुपोल), मेहंदी पुर बाला जी, खाटू श्याम जी, तथा सालासर का प्रोग्राम बना रहे हैं ओर हम दोनों को भी साथ ले जाने की जिद कर रहे हैं |
चरण हाथ का पंखा झलते हुए, देख रही हो , कितनी गरमी पड़ रही है | अभी से लू चलनी शुरू हो गई हैं | एक हफ्ते बाद क्या हाल होगा | उपर से राजस्थान का सफर, वैसे ही वहाँ आग बरसती है | तौबा-तौबा |
साली के नाम से भी नहीं पसीजोगे क्या ?संतोष ने चुटकी ली |
चरण हाजिर जवाबी झाड्ते हुए, तुम पसीजने की बात कर रही हो मैं तो पसीने से नहा गया हूँ उसके नाम से |
संतोष ने जोर देकर कहा, देखो जी मजाक छोड़ो | अब टूर पर जाना ही है |
चरण मरता क्या करता | जब सभी ने प्रोग्राम बना ही लिया था तो उसे भी जाने की हामी भरनी पड़ी | ओर अब जब उसने पाया कि जाने के अलावा कोई चारा नहीं है तो चरण ने अपने मन में दबी एक चाहत को पूरा करने का यह एक अच्छा मौका मात्र समझा |
चरण को जूतियाँ पहनने का सदा से ही शौक रहा था | जब भी मौका मिलता वह जूतियाँ बेचने वालों से जूती का जोड़ा जरूर खरीदता था | अतः अब जब उसे राजस्थान जाना ही पड़ रहा है तो उसने अपने मन में पक्की इच्छा एवं इरादा कर लिया कि वह राजस्थान से जूतियाँ अवश्य खरीद कर लाएगा | चरण अपनी एयरफोर्स की नौकरी के दौरान जोधपुर में रह चुका था और वह जानता था कि राजस्थान जूतियों का गढ है तथा वहाँ हर प्रकार की जूतियाँ मिल जाती हैं |
घर से दो गाड़ियां चली | एक मनोज जी चला रहे थे तो दूसरी पवन | सबसे पहले सरिसका में पांडूपोल जाने का प्रोग्राम बना | दोनों गाड़ियों में खाने पीने का पूरा प्रबंध था | अतः रास्ते में ज्यादा रूकने की भी जरूरत नहीं थी | हम घर से चल कर सीधे पंडूपोल के गेट पर ही जाकर रूके | गेट से ही वहाँ का वन विभाग शुरू  हो जाता है |
वन विभाग के गेट के अंदर जाने से पहले मनोज जी ने हिदायतें देते हुए कहा, देखो बच्चो कोई भी अपना हाथ या मुहँ गाड़ी की खिड़की से बाहर नहीं निकालेगा |
मैत्री एकदम बोली, क्यों भई क्यों ?
प्रभा ने बच्चों को समझाने के लहजे में कहा, अब हम जिस रास्ते पर जाएँगे उस पर सभी प्रकार के जंगली जानवर मिल सकते हैं |
भावेश भावेश में बोला, तो क्या हुआ |
अगर तुम्हारे शरीर का कोई हिस्सा बाहर हुआ तो जंगली जानवर तुम्हे नुकसान पहुंचा सकते है” ,मनोज ने समझाया |
गोपिका अपनी सलाह देकर बोली, तो पापा जी सभी से खिड़की के शीशे बन्द करने की कह दो | जब शीशे ही बन्द होंगे तो कोई अपना हाथ या सिर बाहर कैसे निकालेगा |(सभी हँसते हैं )
चरण ने अपनी सहमति जताई, हाँ भई यह बिल्कुल ठीक रहेगा |
गाड़ियां एक के पीछे एक चल दी | गर्मियों का मौसम होने की वजह से जंगल भी सूखा पड़ा था | जहाँ थोड़ा झरने का पानी था वहीं बस आस पास थोड़ी हरियाली नजर आती थी | गर्मी एवं सूखे की वजह से जंगली जानवर भी रास्ते भर दिखाई नहीं दिए | कहीं कहीं एक दो नील गाय तथा हिरणों के अलावा कुछ नहीं मिला | एक दो स्थानों पर लंगूरों के झुण्ड अवश्य मिले जिनको केले वगैरह खिलाकर बच्चों ने पूरा आन्नद लिया | रास्ते में भावेश ने यह कह कर सभी बच्चों को अचम्भीत कर दिया कि उसने एक भालू देखा था | सभी बच्चे अपनी अपनी सीटों से उठ उठ कर  जिज्ञासा वश चारों ओर देखने लगे परंतु भालू होता तो दिखता | चरण भावेश की इस चालाकी को समझ गया | उसने धीरे से नयन के कान में कह दिया कि शोर मचा दे कि देखो शेर शेर | सारे बच्चे उधर देखने लगे जिधर नयन इशारा कर रहा था | भावेश को जब कुछ दिखाई दिया तो वह हसँ पड़ा | इससे उसकी पोल खुल गई कि उसने भालू भी नहीं देखा था | परंतु उसके बाद सभी बच्चे भावेश को भालू कह कर बुलाने लगे | इस तरह हँसते खेलते हम भगवान हनुमान जी के मन्दिर पांडूपोल पहूँच गये |
कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ श्री हनुमान जी ने पांडव भाई भीम का अहंकार तोड़ने के लिए अपनी पूँछ उसके जाने के रास्ते में फैला दी थी तथा भीम इतना बलशाली होते हुए भी हनुमान जी की उस पूँछ को हटा सका था | इस मन्दिर में हनुमान जी की पवित्र मूर्ति लेटी हुई मुद्रा में ही स्थापित है | 
चरण यहाँ पहली बार ही आया था | यह एक रमणीक स्थान था | मन्दिर के बाहर सामने थोड़ी गहराई पर  एक नाला नूमा जल की धारा बह रही थी | चरण ने झाँक कर देखा तो पाया कि उसमें स्वच्छ एवं साफ जल बह रहा था | यह शायद उपर पहाड़ी से निकलने वाले किसी झरने का पानी था | बहुत से लोग उसमें नहा रहे थे | तो कुछ् युगल जोड़े किनारों के पत्थरों पर बैठ्कर अपने पावों को उस झरने के जल में डालकर शीतल जल के स्पर्श का आनन्द ले रहे जान प्रतीत होते थे | झरने के उपर घने छाँवदार एवं लम्बे पेड़ों ने सुरज की किरणों को पूरी तरह से ढाँप रखा था | वे लाख कोशिशों के बावजूद भी अपने को नीचे जमीन पर उतारने में असमर्थ पा रही थी | शायद इसी कारण जून महीने की इतनी भयंकर गर्मी एवं चिलचिलाती  धूप होने पर भी मन्दिर पर आने वाला हर श्रद्धालु यहाँ आकर राहत महसूस कर रहा था |
हालाँकि कुछ लोग पैदल भी रहे थे परंतु उनकी तादाद बहुत कम थी क्योंकि जंगल का इलाका होने की वजह से वहाँ पैदल चलने वालों को खतरा हो सकता था | मन्दिर के बाहर खड़ी गाड़ियों से पता चलता था कि इस मन्दिर में कितने लोगों की श्रद्धा है | भीड़ काफी थी | हनूमान जी के मन्दिर पर, जैसा कि अमूमन पाया जाता है, बन्दरों की तादाद बहुत थी | इसी कारण वहाँ अधिकतर लोग अपने जूती चप्पलों को अपनी गाड़ियों में ही निकाल कर बाहर रहे थे अतः हमने भी ऐसा ही किया |
हमने मन्दिर के बाहर स्थित दूकानों से पूजा के लिए प्रसाद एवं फूल इत्यादि लिये ओर मन्दिर में प्रवेश किया | मन्दिर के प्रवेश द्वार में घुसते ही बाएँ हाथ को एक नंगाड़ा रखा था जिसे आरती के समय बजाया जाता था | द्वार के ठीक सामने महावीर हनूमान जी का प्रमुख मन्दिर था | इस समय मन्दिर में श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ थी फिर भी भगवान के दर्शन करने के लिए एक लाईन लगी थी | थोड़ी देर में ही दर्शनों के लिए हमारा भी नम्बर गया | हम सभी को भगवान के दरबार में बिछे एक कालीन पर बैठा दिया गया | जैसा सुना गया था भगवान हनुमान जी की प्रतिमा लेटी हुई मुद्रा में थी | हम सबने मिलकर पूजा अर्चना की तथा हनुमान जी की प्रतिमा पर चोला एवं छतर चढाए | इसके पश्चात आरती करने के बाद प्रसाद पाकर मुख्य मन्दिर से बाहर चौक में गए | वहाँ एक बरामदे में टेलिविजन के कलाकारों द्वारा भजन एवं कीर्तन का प्रोग्राम किया जा रहा था | और लोगों के साथ हम सभी ने वहाँ बैठ कर भगवान की स्तूति का भरपूर आन्नद उठाया | इसके बाद वहीं खाना वगैरह खाकर मन्दिर से बाहर गए | मन्दिर से बाहर आकर जिस बच्चे ने जो भी चीज खाने की इच्छा व्यक्त की चरण ने वही उसे दिला दी |
संतोष ने खिलौने वगैरह की  दुकान देखकर कुछ खरीदने की इच्छा जाहिर करते हुए चरण से कहा, जी! देख लो अगर घर के लिए यहाँ से कुछ सामान खरीदना हो तो ले लो |
मनोज ने यह कहते हुए कि मम्मी जी यहाँ कुछ नहीं मिलता | अब यहाँ से बाला जी वगैरह जाएँगे वहीं से जो चाहिए ले लेना | वहाँ सब कुछ मिलता है तथा अच्छा भी मिल जाएगा | पांडूपोल से कुछ भी खरीदने को मनाकर दिया |
इस पर वापिस जाने की जल्दी मचाते हुए प्रभा ने अपने बच्चों से कहा, मैत्री, गोपिका चलो पहले अपनी चप्प्लें पहनो |
मैत्री ओर गोपिका चली जाती हैं तथा सभी के जूते चप्पलें गाड़ी से बाहर सड़क पर डाल देती हैं  | सभी अपने जूते चप्प्ल पहन लेते हैं | चरण वहीं एक दूकान पर किसी चीज के बारे में पूछताछ करते रह जाता है अतः उसकी चप्प्लें गाड़ी के बाहर ही पड़ी रह जाती हैं | जब चरण वापिस गाड़ी के पास आया तो उसकी चप्प्लें वहाँ से नदारद थी | सब ने इधर उधर बहुत खोजा परंतु चप्प्लें कहीं नहीं मिली | चरण ने अपनी खोई चप्पलों को अधिक तवज्जो नहीं दी | बल्कि कुछ हद तक उसके मन में प्रसन्नता ही हुई कि चलो बिल्ली के भागों से छिका टूटा’ | क्योंकि चरण के मन में तो जूतियाँ खरीदने का भूत सवार था | उसने सोचा कि चलो अच्छा ही हुआ कि चप्प्लें खो गई तथा अब पैरों में पहनने के लिए कुछ तो खरीदना ही पड़ेगा | ओर उसे जूतियाँ खरीदने का अच्छा बहाना भी मिल गया था | अतः सब गाड़ियों में बैठे ओर बाला जी के लिए रवाना हो गए | बाला जी पर आने की हाजिरी तथा जाने की हाजिरी दोनों ही लगानी पड़ती हैं | आने की हाजिरी मन्दिर के बाहर सड़क पर खड़े होकर ही लगा दी जाती है | हम सब गाड़ियों से उतर कर सीधे मन्दिर के द्वार पर हाजिरी लगाने गए  | जाहिर है और सब तो चप्पल जूते पहने थे नंगे पावँ था तो केवल चरण | हालाँकि शाम के पाँच बज रहे थे परंतु गर्मी के मौसम के कारण सड़क अभी तक तप रही थी | चरण थोड़ी देर तक तो सड़क की गर्मी सहन करता रहा परंतु शिघ्र ही उसे ताप से बचने के लिए एक सैनिक की तरह लैफ्ट राईट करनी ही पड़ी | सब अपने में मस्त थे परंतु कृष्णा से चरण की हालत छिपी रह सकी | परंतु वह भी चरण की किसी प्रकार की सहायता करने में अपने को असमर्थ पा रही थी |
मंदिर के बाहर हाजिरी के बाद बाजार में से जाते हुए चरण की और इशारा करके कृष्णा अचानक बोली, अरी संतोष देख चप्पलों की दुकान | इनके लिए एक जोड़ी ले लो |
अपनी बहन की बात सुनकर संतोष ने चरण को उसकी बात दोहराई, जी, जी यहाँ से चप्प्लें ले लो |
मुझे चप्प्लें नहीं मुझे तो जूतियाँ खरीदनी हैं |
कृष्णा जो चरण को नंगे पैर चलते देखकर थोड़ी दुखी थी, अजी जब तक जूतियाँ नहीं मिलती तब तक एक जोड़ी चप्प्ल ही पहन लो | देखो कितनी गर्म सड़क है | नंगे पैरों चलने से कहीं छाले पड़ जाएँ |
 थोडी देर नगें पैर चलने से कुछ नहीं होगा | यह राजस्थान है , कहीं कहीं जूतियाँ मिल ही जाएँगीं |
अगले दिन शाम तक सभी लोग बाला जी के बाजारों में घूमते रहे | चरण अपनी जूतियों खरीदने  की आशा मे नगें पैर ही घूमता रहा | परंतु जानें क्यों, लाख कोशिश करने के बावजूद, पूरे बाजार में चरण के पावँ की साईज की जूतियाँ ही मिल पाई | हालाँकि चरण के साथ पूरा परिवार था परंतु किसी ने भी एक बार झूठे को  भी नहीं पूछा कि मैं नगें पैर क्यों घूम रहा हूँ, आप या तो उनकी चप्प्लें पहन लो या नई खरीद लो |  इन दो दिनों में कृष्णा ने जरूर एक दो बार अवशय कहा की नई चप्पलें खरीद लो |
इस पर चरण के मन में विचार आया कि उसका दामाद एवं लड़के कैसे हैं कि उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि मैं उनकी चप्पलें पहन लूँ या फिर जबरदस्ती एक जोड़ी चप्पल खरीद ही लेते | खैर पूरे दिन पूरे बाजार मॆं घूमने के बाद भी चरण शाम तक नगें पैर ही रहा ओर इसी तरह वह सब के साथ बाला जी से खाटू शयाम जी के लिए रवाना हो गया |