Wednesday, January 31, 2024

उपन्यास - भगवती (36)

 

चाँदनी उपन्यास पढकर आई और अपने सास ससुर के चरण पकड़ कर फफक फफक कर रो पड़ी | उसकी समझ में आ गया था कि उसका भ्रम उस कहानी के सामने क्षण भंगुर है |

उसके आसुओं के साथ उसके दिल के अविश्वास का मैल, जो उसके दिल में अपने पति के प्रति पैदा हो गया था, घुलकर बह गया था तभी तो वह मूक दृष्टि लिए हाथ जोड़कर, माफी माँगने की मुद्रा में अपने पति के सामने खड़ी हो गई थी |

इसके कुछ दिनों बाद तक तो चाँदनी के जीवन में खुशहाली रही परन्तु प्रभात की तरफ से फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहानी बनने लगी |

एक दिन प्रभात बाथरूम में नहाने गया था | उसका फोन बाहर रखा था | इतने में उस पर एक मैसेज आया | लिखा था, .................|

मैसेज पढकर चाँदनीका रोम रोम जल उठा | उसकी अंतरात्मा से निकला की उसके पति नम्रता तथा समझाने से सत्य एवम कुलीन रास्ते पर चलने वाले नहीं हैं | उनकी शिकायत अपने सास-ससुर से करने में भी अब कोई औचित्य नहीं रह गया था क्योंकि एक तो वे अपनी ऐसी उम्र के पड़ाव पर थे जहां कोई शख्त कदम उठाने में असमर्थ थे दूसरे वे अपने लड़के को अब भी अपनी तरह शुद्ध विचारों वाला व्यक्ति समझते थे जो समझाने से समझ जाएगा |  

चाँदनी असमंजस में थी कि अपने पति की बार बार अपने सास-ससुर से शिकायत करना कहाँ तक जायज है | उसे अपना तथा अपने बच्चों का भविष्य कालिमा से भरा दिखाई देने लगा | वह सोचने लगी कि अगर इसका इलाज जल्दी नहीं किया गया तो इसका माहामारी बन जाने का अंदेशा है | और अगर इस महामारी पर अंकुश जल्दी नहीं लगा तो यह पूरे परिवार को निगल लेगी | उसके सास ससुर असमर्थ थे और कोई घर में ऐसा था नहीं जिसकी सहायता ली जा सकती थी | अत: यह सोचकर उसके शरीर में कम्पन्न समा गई कि अपने पति को सही रास्ते पर लाने का सारा भार उसे ही उठाना पड़ेगा |

अचानक उसकी मुट्ठी बंद हो गई तथा नशें तन गई | उसने सोचा यदि मैं शुरू से ही द्रद्द निश्चय एवम कड़ा प्रतिरोध जताती तो आज मेरी यह दशा न होती | मैं समर्पण करती रही, झुकती रही, टूटती रही क्यों | मेरी दोष क्या है | अब तो झुकते झुकते मैं जमीन में लगने के कगार पर आ गई हूँ | अब यह तिरस्कार और नहीं सहा जाता | अब तो यह घर मुझे एक मतकल (जहां लाकर मूक मवेशियों का वध किया जाता है ) की तरह लगने लगा है जहां मुझे ब्याह कर लाए जाने के बाद तिल तिल मारा जा रहा है | मेरे पति जैसा पाषाण ह्रदय इनसान कोई बिरला ही होगा | अब मुझे कुछ करना ही होगा | चाँदनी ने आरती के आले में रखी माँ भगवती के सामने हाथ जोड़कर विनती की , हे देवी माँ मुझे हिम्मत दे और कोई रास्ता दिखा |  

यही सोचते सोचते कि वह अकेली कैसे कर पाएगी उसे निंद्रा ने अपने आगोश में समा लिया | नींद में चाँदनी को एक सपना दिखाई दिया | 

नव सवंत्सर एवम चैत्र के आगमन पर जन जीवन के माहौल को, व्यापारियों ने, भक्तिमय बनाने का पूरा इंतजाम कर लिया था | दुकानें पूजा पाठ की सामग्री, चन्दन, धूप, अगरबती, सामग्री, कपूर, सुपारी, काजू , बादाम, किशामिस, छुआरे, देवी माँ की तस्वीर, चुनरी, नारियल, श्रंगार का सामान, कुट्टू का आटा, सामक्या के चावल तथा सिंघाड़े इत्यादि से, जो चीजें नवरात्रों के दौरान इस्तेमाल होती हैं, लबालब हो चुकी थी | गलियों में ठेली वाले गुलाब, गेंदे, कनेर तथा मोगरा इत्यादि के फूलों से बनी मालाएं बेचने को आवाजें लगाने लगे थे | इन फूलों की मिली जुली सुगंध वातावरण को बहुत ही सुगन्धित एवम भक्तिमय बनाने में पूरा योगदान दे रही थी |

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड सूर्य, गृह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधे, पर्वत, सागर, पशु-पक्षी, देव, दनुज, मनुज, नाग, किन्नर, गन्धर्व, सदैव प्राण शक्ति व् रक्षा शक्ति की इच्छा से चलायमान है | मानव सभ्यता का उदय भी शक्ति की इच्छा से हुआ है | मनुष्य को कहीं न कहीं प्राण व रक्षा शक्ति के अस्तित्व का अहसास होता रहता है | जब महिषासुरादी दैत्यों के अत्याचार से भू व देवलोक व्याकुल हो उठे तो ईशवर ने आदि शक्ति माँ जगदम्बा को विश्व कल्याण के लिए प्रेरित किया था |  

वैसे तो महाकाली, महालक्ष्मी व महा सरस्वती देवियों के तीन प्रमुख रूप हैं | एक मतानुसार नवरात्री के पहले तीन दिन तमोगुण कम करने हेतू महाकाली की, अगले तीन दिन रजोगुण बढाने हेतू महालक्ष्मी की तथा अंतिम तीन दिन साधना तीव्र होने हेतू महा सरस्वती की पूजा करते हैं | माँ बहुत से दूसरे नामों से भी जानी जाती हैं, दुर्गा, अम्बा, पार्वती, भद्रकाली, जगदम्बा, अन्नपूर्णा, सर्व मंगला, भैरवी, चंडी, ललीता, भवानी, मुक्मबिका और भगवती इत्यादी |

नवरात्रों के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है |

.शैलपुत्री .ब्रह्मचारिणी  .चन्द्रघण्टा   .कूष्मांडा ५.स्कन्दमाता  .कात्यायनी  .कालरात्री  .महागौरी

.सिद्धीदात्री  

.नवरात्र का श्री गणेश शैलपुत्री की उपासना से शुरू होता है | माता का शवेत स्वरूप हमें कलुषित जीवन से मुक्ति प्रदान करते हुए पवित्र जीवन जीने की कला सिखाता है | उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल हमारे दैहिक, दैविक तथा भौतिक ताप के नाश का द्योतक है | बांये हाथ में कमल का फूल हमें काम, क्रोध, मद, लोभ इत्यादि दुर्गणों से छुटकारा पाने की प्रेरणा देता है | माँ वृषभ(धर्म) पर आरूढ़ होकर यह दर्शाती है कि कर्तव्यों को पूरा करना ही हमारा धर्म है |

माँ शैलपुत्री को गिरीराज हिमालय की पुत्री माना जाता है | अपने पूर्व जन्म में ये दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थी, जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था | एक यज्ञ में दक्ष द्वारा शिव को आमंत्रित न करने पर क्षुब्ध होकर सती ने अग्नि कुंड में प्रवेश करके अपनी जान दे दी थी | अगले जन्म में सती शैलपुत्री के रूप में जन्मी और फिर से शिव की अर्धांगिनी(पार्वती) बनी |

.मान्यता है कि ब्रह्म में लीन होकर, शिव को प्राप्त करने के लिए, घोर तप करने के कारण माँ को ब्रह्मचारिणी की उपाधी मिली | इस रूप में माँ के दाएँ हाथ में जप-माला तथा बाएँ हाथ में कमंडल दर्शाता है कि हमें स्वंम पर नियंत्रण रखना चाहिए | 

.माँ चन्द्रघंटा का स्वरूप दस भुजाओं वाला है तथा मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्ध चंद्रमा सुशोभित होने के कारण इन्हें चन्द्र घंटा देवी कहा जाता है | अपने दस हाथों में अनेक प्रकार के अस्त्र शास्त्र लिए हुए माँ सिंह पर सवार रहती हैं | जिस प्रकार माँ का यह रूद्र रूप देखकर दैत्य व् राक्षश भयभीत होकर भाग जाते हैं उसी तरह यह हमें दस इन्द्रियों को काबू में रखकर अपने ध्येय की प्राप्ति में लगे रहने की प्ररेणा देती है |  

.कूष्मांडा देवी का आठ भुजाओं वाला तेजस्वी स्वरूप और चेहरे की मधुर मुस्कान सिखाती है कि कठिन मार्ग पर हंसते हुए अग्रसर होने से भी सफलता पाई जा सकती है | मान्यता है कि इन्हें कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है इसलिये कुष्मांडा देवी कहलाती हैं | वैसे ये अष्ट भुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं |

.भगवान स्कन्द बाल रूप में माता की गोदी में बैठे हैं जो दर्शाता है कि स्कन्द माता ममता की प्रतिमूर्ति हैं | जैसे शवेत रंग सभी रंगों के मेल से बनता है उसी प्रकार स्कन्द देवी का शुभ्र (शवेत) वर्ण इस बात का द्योतक है कि जीवन में हर प्रकार की चुनौती को कोमलता से मात देने में समर्थ हों | माँ का पदमासन की मुद्रा में शेर पर विराजमान स्वरूप हमारे आत्मबल को प्रेरित करता है |

.ऋषी कात्यायन ने देवी माँ को अपनी पुत्री के रूप में प्राप्त करने हेतू भगवती की कठोर तपस्या की थी | इसीलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा | वे हाथ में तेज धार की तलवार लिए सिंह पर आरूढ़ हैं | माँ का यह स्वरूप हमें उत्साह, सदगुण, और हमारी मेघा शक्ति को तीक्षण रखने की प्रेरणा देते हुए विपत्तियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करती है |

.कालरात्री माँ का स्वरूप भयानक, अंधकार की तरह काला डरावना तथा गधे पर सवार होते हुए भी इन्हें शुभंकरी अर्थात कल्याण करने वाली माना जाता है | इनके गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला तथा तीन नेत्रों से निकलती ज्योति दर्शाती है कि हमारे जीवन का अंधकार स्थायी न होकर प्रकाश के आगमन का द्योतक है | माँ के शवास-प्रश्वास से अग्नि की ज्वालाएं निकलती हैं जो दर्शाती है कि हमें अपने भीतर के काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और अहंकार जैसे दुर्गणों को भस्म कर देना ही श्रेयकर है |

.मान्यता है कि शंकर जी की प्राप्ति हेतू की गई कठोर तपस्या से देवी का शरीर मलिन हो गया था परन्तु शंकर जी द्वारा पवित्र गंगाजल का छींटा देने से उनका शरीर गौर हो गया तभी से उनको महागौरी के नाम से पुकारा जाने लगा | इनकी चार भुजाएं हैं तथा ये वृषभ वाहिनी हैं | इनका वर्ण शंख, चन्द्र तथा कुंद के फूल के सामान उज्जवल है जों हमें आस्था, श्रद्धा व् विश्वास को अपने जीवन में धारण करने का संकेत देता है | 

.मान्यता है कि शिव जी ने उपासना करके अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व की आठ सिद्धियाँ प्राप्त की थी | ये सिद्धियाँ प्रदान करने वाली माँ सिद्धिदात्री हैं और इनके प्रभाव से ही भगवान शिव का रूप अर्धनारीश्वर का हो गया था | माँ चतुर्भुजा, सिंह वाहिनी एवम प्रसन्नवदना हैं | माँ का यह स्वरूप हमें अज्ञान, तमस तथा असंतोष से निकलकर उद्यम, उत्साह, सिद्धस्त तथा कर्तव्यनिष्ठा के लिए प्रेरित करता है |