Thursday, November 30, 2023

उपन्यास - भगवती (20)

 

 

जब राकेश पढ़ता था तो उनके कोर्स में अंग्रेजी की एक कहानी होम कमिंगपढाई जाती थी | उसमें दर्शाया गया था कि बच्चों को कितनी भी सुख सुविधा में रखा जाए परन्तु वे अपने मम्मी पापा से, अपने घर से अधिक दिन दूर नहीं रह सकते | यही चाँदनी के बच्चों के साथ हुआ | हर प्रकार की रहने की सुख सुविधा, अच्छा खाना पीना और खेलने के लिए बच्चों का साथ होते हुए भी पन्द्रह बीस दिनों में ही उनका मन अपनी बुआ के यहाँ रहने से ऊब गया | उन्हें अपने घर की याद सताने लगी | अत: चाँदनी के अस्पताल से छुट्टी मिलते ही बच्चों को भी ले आया गया |

स्वस्थ होकर घर आने के बाद चाँदनी की सास ने उसकी बीमारी की वजह जानने के लिए पूछा, चाँदनी, मैंने कई बार कहा था कि तुम दिन पर दिन कमजोर होती जा रही हो कारण क्या था ?

माता जी पता नहीं मैं तो खूब खाती पीती थी फिर भी अंग नहीं लगता था |

परन्तु जहां तक मैं जानती हूँ तुमने कभी डाक्टर को भी नहीं दिखाया फिर किसको दिखाया था ?

दिल्ली कैंट में दिखाया था |

सास ने आश्चर्य से पूछा, दिल्ली कैंट ! क्यों वहाँ कोई खास डाक्टर है क्या ?

नहीं माता जी जब मैं अपनी बहन से मिलने गई थी तो वहीं दिखा दिया था |

कोई बात नहीं मैनें सोचा कि वैसे तो यहाँ सुखबीर अच्छा डाक्टर है और तुम हमेशा यहीं दिखाती थी तो इस बार वहाँ क्यों दिखाया ?

माता जी कोई खास कारण नहीं है बस यूं ही दवाई ले आई थी |

चाँदनी की सास ने अपने बाल धूप में सफ़ेद नहीं किए थे | चाँदनी जब बता रही थी तो सास ने समझ लिया था कि चाँदनी की झुकी नजरें, उसका कांपता शरीर तथा चेहरे की उड़ी रंगत कुछ और ही बयान कर रही थी | वह असलियत को छुपा रही थी |

बिना किसी को बताए शाम को संतोष ने चाँदनी की बड़ी बहन को फोन मिलाया, शीला मैं चाँदनी की सास बोल रही हूँ |

नमस्ते मौसी जी |

संतोष ने बिना नमस्ते का जवाब दिए सीधा प्रश्न दागा, चाँदनी ने तुम्हारे यहाँ डाक्टर से किस बीमारी का इलाज कराया था ?

शीला को एकदम ऐसे प्रशन की उम्मीद न थी, वह हकबका गई और एकबार को ठीक से जवाब न दे पाई |

क्यों क्या हुआ ?

मौ..सी...जी आपको क्या बताऊँ |

क्या बताऊँ, क्या मतलब | मेरी बहू की दिमागी बीमारी का मुझे भी तो पता होना चाहिए |

मौसी जी उसको दिमागी बीमारी कुछ नहीं थी..............|

शीला चुप क्यों हो गई पूरी बात बताओ कि अगर दिमागी बीमारी नहीं थी तो क्या थी ?

मौसी जी मैंने  अपने को बड़ी समझ कर बहुत बड़ी गल्ती कर दी थी |

हर बात से अनभिज्ञ संतोष ने जानना चाहा, कैसी गल्ती, कौन सी गल्ती |

मौसी जी मुझ माफ कर देना बिना किसी की सलाह लिए चाँदनी के तीन महीने के गर्भ की सफाई.........|

हाय राम, इतनी बड़ी बात कर दी और तुम दोनों में से किसी ने कानों कान खबर भी नहीं होने दी |

..................................

शीला तुम तीन बच्चों की माँ होकर इतनी ना समझ कैसे हो सकती हो |

मौसी जी मैं आपकी बहुत बड़ी गुनाहगार हूँ | मुझे बताते में अपने ऊपर गलानी एवम शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि मैनें यह जन्घय काम अपने यहाँ चाँदनी पर तीन बार करवाया है |

संतोष अपना सिर पकड़ कर बैठ गई और चिल्लाई, हे भगवान तुम ने तो मेरी बहू को मारने की पूरी तैयारी कर रखी थी | औरत एक गर्भपात को तो सहन कर नहीं पाती और तुमने उसके तीन तीन ...............हे भगवान | तुम औरत हो या जल्लाद |    

मौसी जी शायद मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गए थे जो मुझे मेरे कृत्य से किसी अनहोनी होने का सपनों में भी ख्याल नहीं आया, मुझे माफ कर दो,और वह अपनी मौसी जी के पैरों में पड़ गई |

जब राकेश को इस बात का पता लगा तो राकेश इसके विशलेषण में तल्लीन हो गया कि आखिर चाँदनी जैसी समझदार लड़की ऐसा कदम कैसे उठा सकती है | क्या वह अपने पुराने नाम के स्वरूप जो द्रड़ता, शक्ति, मनोबल, पक्का ध्येय को दर्शाता था अपने नए नाम चाँदनी को पाकर बेबस, निढाल, उदासीन और समर्पण प्रवर्ति वाली हो गई है | या फिर अपने पति की काम पिपासा को भांपकर कि कहीं उनकी मनोपूर्ती न करने से उनके कदम बहक न जाएँ उसने सब कुछ खुद भोगने की ठान ली और इस स्थिति में पहुँच गई | परन्तु गर्भावस्था से बचने के वर्तमान समय में तो बहुत से विकल्प खुले हैं तो फिर ऐसा क्या था जो चाँदनी इतनी मजबूर हो गई थी |

शायद चाँदनी ने लोक लाज की वजह से अपनी ससुराल में इसके बारे में किसी को बताया नहीं तथा न ही उस कमजोरी की भरपाई के लिए कुछ खाया पीया | उसकी सेहत कमजोर हो रही थी ऊपर से मकान बनवाने का पूरा भार तथा खँडहर में रहने के भय ने उसकी मनोदशा पर भारी प्रहार किया जिससे वह उल्टा सीधा बड़बड़ाने जैसी हरकत करने लगी थी | 

हालाँकि चाँदनी का स्वास्थ्य तो ठीक हो गया परन्तु उसके मन में अपने भविष्य के जीवन के प्रति कुछ ऐसे विचारों ने जन्म ले लिया जो उसके गृहस्थ जीवन में कलह का कारण बन सकते थे | शायद इसी वजह से चाँदनी ने अपने आपको स्वावलंबी बनाने  के लिए कदम बढ़ाना शुरू कर दिया |

Sunday, November 26, 2023

उपन्यास - भगवती (19)

 

समय निर्बाध गती से चला जा रहा था | चाँदनी की लड़की अब छठी कक्षा में पढ़ रही थी तथा लड़का चौथी में था | संसार में चहूँ और उन्नती हो रही थी | मोबाईल फोन के जरिए एक स्थान पर बैठे बैठे एक सेकेंड में विश्व के किसी भी कौने में बैठे इंसान से बात की जा सकती थी | चंद घंटों में ही भारत से अमेरिका पहुंचा जा सकता था अर्थात नाश्ता देहली में तो दोपहर का खाना अमरीका में लिया जा सकता था | छोटे कच्चे पक्के मकानों की जगह ऊंची ऊंची इमारतें ले रही थी | शिक्षा के साथ नौकरियों की भी बाढ़ सी आ गई थी | इसके साथ ही लोगों के रहन सहन, खाने-पीने, पहनने और विचारों में बहुत बड़ा बदलाव नजर आने लगा था | पुराने जमाने के लोगों की तरह अधिक से अधिक रूपया बचाकर रखने की प्रवर्ति अपना वर्चस्व खोती जा रही थी | इन्हीं विचारों के चलते प्रभात ने अपना पैतृक मकान जिसमें वह रह रहा था एक किस्म से नए सिरे से बनवाने का विचार बना लिया | काम  शुरू करने से पहले उसने राकेश से पूछा, पापा जी मैं मकान में कुछ तबदीली करवाना चाहता हूँ |

राकेश के विचार में मकान बिल्कुल ठीक बना था इसलिए जानना चाहा, मसलन |”

संगमरमर के दानों के फर्श की बजाय पत्थर लगवाना, बिजली के तारों तथा पानी के पाईपों को दीवारों में लेना, छतों तथा दीवारों पर प्लास्टर आफ पेरिस लगवाना इत्यादि |

राकेश  ने अंदाजा लगाते हुए बताया, इस काम को पूरा होने में लगभग छह: महीने तो लग जाएंगे |

प्रभात ने हामी भरी, हाँ पापा जी सो तो है |
अपनी दुकान का सामान कहाँ रखेगा ?

मैंने साथ वाले मकान मालिक से बात कर ली है वह अपनी नीचे वाली बैठक मुझे किराए पर दे देगा |

घर का सामान कहाँ रखेगा तथा बच्चे कहाँ रहेंगे ?

मैं एक एक मंजिल ठीक कराऊंगा अत: जो मंजिल ठीक रहेगी उसमें रह लेंगे |

मकान की रूप रेखा सवारने का काम शुरू कर दिया गया परन्तु प्रभात के ख्यालो के अनुसार कुछ न हो सका | मकान का पिछला हिस्सा पूरा गिराना पड़ा | सारा मकान खंडहर सा प्रतीत होते हुए भी प्रभात ने उसमें रहना न छोड़ा |राकेश सुबह से शाम तक वहाँ की देखभाल करता और शाम को वापिस गुडगांवा आ जाता था | चाँदनी को हर दिन अपनी रसोई का स्थान बदलना पड़ता था | न नहाने का स्थान था न सोने का | दिन भर धूल मिट्टी से जूझना पडता था | रात को तो वह भूतिया महल सा प्रतीत होता था | उस खँडहर में रहते रहते चाँदनी के व्यवहार में कुछ तबदीली दिखाई देने लगी | चाँदनी की सेहत पहले से ही कमजोर रहती थी अब जब से मकान बनना शुरू हुआ था वह दिन प्रतिदिन और भी कमजोर होने लगी थी | एक दिन उसे तेज बुखार आया और कुछ से कुछ बड़बबड़ाने लगी |

चाँदनी की स्थिति को देखते हुए उसे कल्याणी अस्पताल-गुड़गावां में भर्ती करा दिया गया | बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी उनकी बुआ को संभालनी पड़ी | चाँदनी को अपना कुछ होश न था | वह घर वालों को भी ठीक से नहीं पहचान पाती थी | किसी से कुछ भी बातें करने लगती थी | वह मुहं फट हो गई थी | वैसे तो घर में वह घूंघट जैसी प्रथा निभाती थी परन्तु एक दिन उसने राकेश को अस्पताल के कमरे के दरवाजे पर खड़ा देखकर हाथ के इशारे से अपने पास आने को कहा |राकेश ज्योंही उसके नजदीक गया उसने दोनों हाथ राकेश की गर्दन में डालकर पूछा, पापा जी आपने मुझे यहाँ क्यों डाल रखा है |

राकेश ने उसके हाथों की पकड़ छुड़ाकर कहा, आपकी सेहत ठीक नहीं है इसलिए |

क्यों मुझे क्या हो गया है ?

कुछ नहीं थोड़ा बुखार हो गया था |

पापा जी आपको एक बात बताऊँ, आप की आँखे बड़ी अच्छी लगती हैं, बड़ी बड़ी और सुरमेंदार |

इससे पहले की चाँदनी कुछ और बेतुकी बातें करती राकेश कमरे से बाहर आ गया | उसको स्वस्थ होने में लगभग एक महीना लग गया |