Sunday, December 31, 2023

उपन्यास - भगवती (28)

 

कमान्डेंट के कमरे में थोड़ी देर के लिए मौत जैसा सन्नाटा व्याप्त हो गया | फिर मैने अपनी जेब से दो कागज निकालकर एडजूटैंट की तरफ बढ़ाकर मौन तोड़ते हुए कहा, "साहब ये हैं मेरे अस्पताल में भर्ती होने तथा अस्पताल से छुट्टी मिलने के प्रमाण पत्र |"

मरे हाथों से, जैसे उनमें थोड़ी देर पहले दिखाई देने वाला जोश समाप्त हो चुका था, आफिसर ने दोनों कागजों को लेकर पढ़ा |

पढ़कर थोड़ी देर के लिए तीनों आफिसर किंकर्तव्यमूढ़ होकर रह गए | परंतु बाद में माथुर ने कुछ सोचकर पूछा, "हाँ, तो तुम अपनी परिक्षाएँ कैसे दे पाए क्योंकि अभी तुमने बताया था कि तुमने अपनी एम.. की परिक्षाएँ दी हैं ?" वह बोलता गया,  जब तुम अस्पताल में भर्ती थे तो .......?

जब मुझे लगा कि माथुर आगे नहीं बोलेगा तो मैनें बड़ी बेतकुल्लफी से बताया, "साहब शक्कर खोरे को शक्कर मिल ही जाती है | मैं नहीं जानता कि मैनें परिक्षाएँ कैसे दी, बस दे दी |"     

मेरे कहने का अन्दाज देखकर तीनों आफिसर जलभुन कर रह गए और आपस में मंत्रणा करने लगे | इसके बाद माथुर गुस्से में आग बबूला होकर चिल्लाया, "आई विल गेट यौवर एगजाम कैंसल्ड (मैं तुम्हारी दी हुई परीक्षा को रद्द घोषित करवा दूगाँ)|”

मैं अपने कमांडिंग आफिसर के गुस्से में अनाप-सनाप बिना सोचे कहने की मूर्खता पर मन ही मन बिना हँसे रह सका | फिर अपना संयम बरतते हुए बड़ी नर्मी से निवेदन किया, "साहब जोधपुर यूनिवर्सिटी आपका महकमा नहीं है जहाँ आप जो चाहें कर सकते हैं | मैनें खुद परीक्षा दी हैं चाहे जैसे भी दी हों | आप मेरी परीक्षा को किसी हालत में भी रद्द नहीं करा सकते अन्यथा कोशिश करके देख लो |"

मेरी ऐसी वाणी सुनकर माथुर आपे से बाहर हो गया | वह अपनी कुर्सी से ऐसे उठा जैसे किसी ने नीचे से कील चुभा दी हो तथा दहाड़ा, "यू गेट आउट(तुम बाहर निकल जाओ) |" 

जैसे एक शेर जंगल का राजा कहलाता है उसी तरह एक आफिसर कमांडिंग अपनी यूनिट का राजा माना जाता है | जैसे जंगल में शेर की दहाड़ सुनकर कुछ देर के लिए और जानवरों में भगदड़ जाती है तथा फिर खामोशी छा जाती है | उसी प्रकार माथुर की चिल्लाहट सुनकर उसकी पूरी यूनिट में सन्नाटा व्याप्त हो गया | जैसे एक शेर के शिकार को खाना तो दूर उसकी और कोई जानवर आँख उठाकर भी नहीं देख पाता उसी प्रकार माथुर के प्रकोप के डर के कारण यूनिट के मेरे सभी साथियों ने मुझ से बात करना तो दूर मेरे नजदीक आने में भी अपनी भलाई समझी | मैं अपनी यूनिट में एक अकेला अलग-थलग पड़ गया था |         

यह धारणा है कि जिस साँप का फन पीट दिया गया हो वह उस व्यक्ति की तस्वीर अपनी आँखों में बसा लेता है तथा फन पीटने वाले से हमेशा बदला लेने की फिराक में रहता है | वह व्यक्ति चाहे कितनी भी दूर जाकर छिप जाए साँप उसे ढ़ूंढ़ ही निकालता है और मौका मिलते ही  उस व्यक्ति को डस लेता है | माथुर के लिए तो यह बहुत आसान था |

एक दिन माथुर ने बड़े खुशी मन से चपरासी के हाथ सन्देशा भिजवाया कि मैं उसके आफिस में अभी हाजिर हो जाऊँ |

मैं बिना देर लगाए माथुर के आफिस में जा पहूँचा, "साहब जी आपने मुझे बुलाया है |"

"हाँ |"

जब मैनें माथुर के चेहरे पर नजर डाली तो वह सुबह के सूरज की तरह खिला हुआ दिखाई दिया |उसके चेहरे की प्रत्येक झुर्री मुस्कराती महसूस हो रही थी | ऐसा लगता था जैसे अपने मन की खुशी अन्दर रखने में वह नाकामयाब नजर रहा था | तभी तो वह आभा उसके चेहरे पर झलक आई थी | मुझे अन्देशा तो हो गया था कि जरूर माथुर के शैतानी दिमाग में कुछ् चल रहा है | फिर भी पूछना तो था ही, "साहब कहिए क्या काम है ?"

 "तुम्हे अस्थाई डयूटी पर जाना है", कहते कहते माथुर ने अपनी नजरें मेरे चेहरे पर ऐसे गड़ा दी जैसे उस पर अपनी बात का असर देखना चाहता हो |    

मैनें उसकी चालाकी को अपने पर भारी नहीं पड़ने दिया और सहज स्वभाव पूछा, "साहब कहाँ जाना है और कब जाना है  ?"

माथुर लगातार मेरे चेहरे के भावों को परखना चाह रहा था | परंतु मेरे मुख मंडल पर रत्ती भर भी शिकन पा वह बोला, "राजा साँशी हवाई अड्डा अमृतसर और कल ही तीन महीनों के लिए |"

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ जब मैं निशचल भाव धन्यवाद कहकर बाहर आने के लिए मुड़ने लगा | मैं जानता था कि माथुर के सामने कुछ भी सफाई देने से खुद को अपमानित करवाने के अलावा कुछ हाथ नहीं लगेगा | क्योंकि माथुर हर हाल में 'अंधे के आगे रोए अपनी आँखें खोए' वाली कहावत ही चरितार्थ करके रहेगा |

लगभग दो महीनो तक तो सब कुछ ठीक चलता रहा | एक दिन पता चला कि माथुर अपनी पूरी यूनिट के साथ राजा सांसी हवाई अड्डे पर आ धमाका है | वह आते ही मेरे साथ फिर वैमनस्व वाला व्यवहार करने लगा था | और कोई  चारा न देख मैंने भी यही सोचकर कि ओखली में सर दिया तो धमाकों का क्या डरअपने कमांडिंग आफिसर को छकाने की सोच ली | मैनें उसकी मर्जी के विपरीत जाकर अपने परिवार के साथ रहना शुरू कर दिया |

माथुर अब बेबस हो चुका था | कहावत है कि खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचे उससे और तो कुछ बन नहीं पड़ा उसने मेरी पोस्टिंग सख्त एरिया समझे जाने वाले स्थान बागडोगरा में करवा दी |

बागडोगरा में जाना मेरे लिए कवि हरी ओम उपाध्याय की कविता एक बूँद में उस बूँद के सामान वरदान साबित हुआ | कवी ने वर्णन किया है कि एक वर्षा की बूँद जब आसमान से पृथ्वी की और चलती है तो उसके मन में हजारों विचार उठते हैं | नीचे आते आते वह सोचती रहती है कि न जाने उसके भाग्य में क्या बदा है, मैदान में गिरना लिखा है, आग में गिर कर जलना लिखा है, पहाड़ों की चोटी पर गिर कर बर्फ बनाना लिखा है या फिर समुन्द्र के अंदर समा जाना लिखा है | परन्तु ऐसा कुछ न होकर वह एक सीप के मुहं में गिरकर मोती बन जाती है | मेरे लिए भी बागडोगरा जाना एक वरदान साबित हुआ क्योंकि वहाँ जाकर मुझे मेरी मन की मुराद पूरी होने का रास्ता मिल गया था |

बागडोगरा पहुंचकर मुझे सूचना मिली की मैंने स्नातकोत्तर की डिग्री प्रथम श्रेणी से पास कर ली है और इस उपाधी के कारण एक नोटिस, A soldier who has the qualification required for a direct commission but is medically permanent unfit for the commission can seek discharge from service.” अर्थात जिस सैनिक की क्वालिफिकेशन इतनी है कि वह फ़ौज में कमीशन आफिसर की परिक्षा में बैठ सकता है परन्तु स्वास्थ्य के आधार पर यदि  वह ऐसा नहीं कर सकता तो वह नौकरी छोड़ सकता है, के तहत मुझे डिसचार्ज मिल गया |

१५ अगस्त १९७९ को, स्वतंत्रता दिवस के दिन मैं भी फ़ौज से स्वतन्त्र होकर, अपने घर आ गया | बाद में मेरी मेहनत रंग लाई और ३४ वर्ष की आयु में इसी डिग्री की बदौलत मैं भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी पाने में सफल रहा | तथा सिद्ध हो गया कि पढना-लिखना उम्र नहीं देखता तथा उच्च शिक्षा बेकार नहीं जाती |