Sunday, November 26, 2017

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा -32) नासमझ

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा -32)  नासमझ
देहली के रहने वाले दुर्गा प्रसाद गुप्ता ने अपनी आजिविका चलाने के लिए अपना बसेरा उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर शामली में बना लिया था | उस समय शामली इतना बड़ा भी नहीं था परंतु आसपास के गाँवों से आने वाले खरीदारों की वजह से यह एक खास महत्त्व रखता था | हालाँकि प्रत्येक दिन सुबह से शाम तक यहाँ के बाजारों में खरीदार टूटता नहीं था | परंतु गन्ने की फसल जब पक कर तैयार हो जाती थी तो शामली में इतनी भीड़ हो जाती थी कि चलते हुए लोगों के कंधे से कंधे टकराने लगते थे क्योंकि शामली में तीन चीनी मिलों के होने के कारण आसपास के गाँव के किसान अपनी अपनी बुग्गियों में गन्ना भरकर उन्हें मिलों में पहुंचाना शुरू कर देते थे | वापिस जाने के समय किसान अपनी बुग्गियों में घर की जरूरतों का सामान भरकर ले जाते थे | अतः शामली छोटा होने पर भी व्यापारियों का गढ बनता जा रहा था |
दुर्गा प्रसाद जी की दुकान शामली के मुख्य चौराहे पर थी | उन्होने अपनी रिहाईश भी दुकान के उपर पहली मंजिल पर बना रखी थी | उनकी दुकान इतने मौके की जगह पर थी कि अगर वे अपने आप कुछ भी काम न करते तो भी उनकी दुकान के आगे फड़ लगाने वालों से उन्हें इतना मिल जाता कि उन दो प्राणियों की रोटी पानी का खर्चा आराम से चल सकता था |     
दूर्गा प्रसाद तथा उनकी पत्नि वे केवल दो ही प्राणी थे क्योंकि उनके कोई संतान न थी | जब संतान होने की आशाएँ समाप्त हो गई तो दूर्गा प्रसाद ने अपने छोटे भाई का लड़का देवी चरण गोद ले लिया था |
जवान होने पर गोरा चिट्टा देवी चरण काफी सुन्दर दिखता था | वह बहुत भोला एवं सज्जन किस्म का लड़का था | मैं बहुत छोटा था जब मेरी बड़ी बहन इंद्रा की शादी देवी चरण के साथ सम्पन्न हुई | इसलिए मेरे जहन में उस समय की केवल कुछ धुंधली सी यादें हैं | शादी के लगभग पंद्रह वर्ष तक मेरी बहन माँ न बन सकी परंतु भगवान की असीम कृपा से उसके बाद उन्होने तीन लड़कियों तथा एक लड़के को जन्म दिया |
जब मैनें होश सम्भाला तथा मैं अपनी बहन के यहाँ पहली बार गया तो उस समय दूर्गा प्रसाद जी गुजर चुके थे | मेरे जीजा जी पान, बीड़ी, सिगरेट तथा कैम्पा वगैरह की दुकान करते थे | हालाँकि मैं अभी इतना बड़ा तथा समझदार नहीं हुआ था कि अपने जीजा जी के काम के बारे में अन्दाजा लगा पाता कि वह कैसा चल रहा होगा परंतु मुझे इतना आश्चर्य जरूर हुआ था कि शामली के सबसे बड़े चौराहे पर इतनी बड़ी दुकान को देखते हुए उनका काम बहुत छोटा था
बाद में मुझे पता चला कि लगभग तीस वर्ष पहले शामली के एकमात्र सिनेमा हाल के मालिक आनन्द को देवी चरण की जमीन भा गई थी | उसने दुर्गा प्रसाद को उस जमीन की मुँह मांगी रकम अदा करने की पेशकश भी की थी परंतु दुर्गा प्रसाद जी ने उसकी पेशकश को ठुकरा दिया था | सिनेमा हाल के मालिक को, उनके अनुसार, एक अदना सी हैसियत रखने वाले व्यक्ति का उस जमीन के सौदे के लिए मना करना गंवारा न हुआ | अतः आनन्द ने दुर्गा प्रसाद के खिलाफ उस जमीन के बारे में एक झूठा मुकदमा दायर करवा दिया |
समय की नाजुकता को देखते हुए बुद्धिमानी इसी में थी कि दुर्गा प्रसाद वह जमीन आनन्द को दे देते तथा उसके बिलकुल साथ सटी हुई जमीन को या बाजार में कोई और दुकान ले लेते क्योंकि उस समय शामली में तथा उसके बाजार में बहुत सी जमीनों के टुकड़े बिकाऊ थे | शायद उनको भड़काने वाले तो बहुत मिल गए होंगे परंतु यह समझाने वाला कोई नहीं मिला होगा कि ऊंट अगर पहाड़ से टकराएगा तो अपना सिर फुड़वा बैठेगा | न जाने क्यों दुर्गा प्रसाद ने अडियल तथा जिद्दिपन का रवैया अपना लिया तथा कसम खा ली कि वह उस जमीन को किसी भी हालत में आनन्द को नहीं देगा |    
दुर्गा प्रसाद तीस साल तक अपनी जमीन के मुकदमें में फसें रहे | कोर्ट कचहरी के चक्कर काटते रहे | जो कमाई करते वकीलों की फीस के रूप में चढावा दे देते | अपने व्यापार में ध्यान न दे सकने के कारण वह भी चौपट सा हो गया अतः पान बीड़ी सिगरेट बेचने की नौबत आ गई | इसके बावजूद अपने मन में जमीन की हसरत लिए ही वह स्वर्ग सिधार गए | दुर्गा प्रसाद तो चले गए परंतु अपनी जिद पूरी करवाने का कार्यभार अपने गोद लिए हुए लड़के देवी चरण के कंधों पर ड़ाल गए |
देवी चरण को उनके रिस्तेदारों ने बहुत समझाया कि वे उस जमीन को आनन्द के अलावा किसी और को बेच दे जिससे उसकी मर्यादा को कोई ठेस भी नहीं पहुंचेगी तथा मुकदमे की उलझनों से सदा के लिए छुटकारा भी मिल जाएगा | इसके साथ साथ वह अपनी आगे की जिन्दगी सुचारू रूप से खुशी खुशी व्यतीत कर सकेगा | परंतु शायद उसके पिता जी ने देवी चरण के मन में कूट कूट कर भर दिया था कि किसी प्रकार भी पीछे न हटते हुए आनन्द को सबक सिखाना ही है | अतः देवी चरण भी 25 साल तक इस जमीन के मुकदमें में लिप्त रहे | दुकान का काम देखने वाला कोई था नहीं | देवी चरण तो मुकदमे की पैरवी ही करता रहता था अतः उसे दुकान पर बैठने का समय ही नहीं मिल पाता था तो कमाई होती कहाँ से | जो थोड़ी बहुत आमदनी होती थी वह वकीलों को भेंट चढ जाती थी | यही कारण था कि इतनी बड़ी और मौके की जगह दुकान होते हुए भी मेरे जीजा जी का कारोबार हल्का ही था
समय अपनी गती से चलता रहा | देवी चरण चार बच्चों का बाप बन गया | तीन लड़कियाँ तथा एक लड़का | चारों एक से बढ कर एक सुन्दर था | पैसों की कमी के कारण बच्चे अधिक तो न पढ सके परंतु अपने वर्तमान समय के और सभी गुण उन चारों में पूरी तरह व्याप्त थे | जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जा रहे थे मेरी बहन को उनकी शादी की चिंता सताती जा रही थी | दुकान की कमाई न के बराबर थी | दुकान के सामने फड़ लगाने वालों से इतना ही मिलता था कि घर का खर्चा भी मुश्किल से ही चल पाता था |
देवी चरण भी अब उमर पर आते जा रहे थे इसलिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना उनके लिए दुस्वार होता जा रहा था | उनकी इस मजबूरी का फायदा उठते हुए देवी चरण के एक धूर्त रिस्तेदार ने उनकी जमीन की पावर आफ अटार्नी अपने नाम करा ली | उस रिस्तेदार ने दलील यह दी थी कि वह उनकी (देवी चरण की) निस्वार्थ सेवा करके उनकी जमीन  का मुकदमा खत्म  करा देगा जिसके लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर भी वह खुद ही लगा लिया करेगा | रिस्तेदार, गरीब दास, देवी चरण का विशवास पात्र बन चुका था अतः देवी चरण ने भी किसी प्रकार का कोई सन्देह न करते हुए अपनी जमीन की पावर आफ एटार्नी उसके नाम कर दी |
गरीब दास ने कुछ ही महीनों में आनन्द से साँठ गाँठ कर ली | सौदे के अनुसार आनन्द को आधी जमीन का मालिकाना हक मिलना था जिसके एवज में गरीब दास को आठ लाख रूपया मिलना तय हुआ | अंधे को क्या चाहिए दो आंखें , आनन्द इस सौदे के लिए एकदम तैयार हो गया क्योंकि 50 सालों से मुकदमा लड़ते लड़ते वह भी तंग आ चुका था तथा कैसे भी हो इसका अंत करने का इच्छुक था | दूसरे जमीन पाकर चाहे वह आधी ही थी, वह अपने को विजेता समझ रहा था |
देवी चरण ने गरीब दास के नाम पावर आफ अटार्नी करके अपने पाँवों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार लेने का काम किया था | गरीब दास ने सरासर विशवास घात किया था परंतु अब देवी चरण कुछ नहीं कर सकता था क्योंकि वह जमीन के बारे में सारे अधिकार गरीब दास को  दे चुका था | अपने दिल पर पत्थर रख कर देवी चरण को सब शर्तें माननी पड़ी | बहर हाल देवी चरण के पल्ले तीन लाख रूपये पड़े |
कहते हैं भगवान जो करता है अच्छे के लिए ही करता है | आधी जमीन के चले जाने से देवी चरण के सिर से मुकदमें का झंझट हमेशा के लिए समाप्त हो गया | अब वह अपने कारोबार और अपने बच्चों की तरफ ध्यान दे सकता था | तीन लाख रूपये मिलने से वह इस स्थिति में हो गया था कि कम से कम अपने दो बच्चों की शादी, जो अब शादी लायक हो गए थे, किसी मध्यवर्गिय परिवार में आराम से कर सकता था |
देवी चरण की बड़ी लड़की बबली के विवाह का आयोजन था | श्री गिरवर दयाल जी के सुपुत्र श्री बृज मोहन की बारात सीताराम बाजार-देहली से आई थी | सब कार्य रस्मों रिवाज के अनुसार सुचारू एवं विधि पूर्वक निबट रहा था | उस बारात में श्री दिवान चन्द नामक एक बाराती भी आया था | दिवान चन्द की पारखी नजर शादी के पंडाल में बड़ी    व्यस्तता से घुमती एक लड़की पर टीक गई | जब वे उस लड़की को हर दृष्टि से जाँच परख चुके तो उन्होने देवी चरण के साडू तथा अपने पक्के मित्र कृष्ण कुमार से उस लड़की के बारे में दरियाफ्त करने हेतू उस बैठी हुई लड़की की और इशारा करते हुए पूछा ," वह लड़की कौन है ?”
वह मेरे साडू की लड़की है |”
कौन से साडू की ?”
जिस लड़की की शादी में आप शरीक होने आए हैं यह उसकी छोटी बहन है |”
दिवान चन्द अपना मत प्रकट करते हुए, “अच्छा, अच्छा अपनी बहन की तरह लड़की सुन्दर है |”
ये चारों भाई बहन सुन्दर हैं |”
पढ रही है क्या ?”
इसी वर्ष हायर सैकडरी पास की है |”
दिवान चन्द अधिक देर तक अपने मन का उतावलापन रोक न पाए अतः फटाफट कह दिया, "अपने लड़के अमित के लिए मुझे यह लड़की पसन्द है |”
कृष्ण कुमार आश्चर्य से अपने मित्र दिवान चन्द के मुहँ को ताकते हुए परंतु मन में दिवान चन्द एवं अपने साडू देवी चरण की आर्थिक स्थिति तथा हैसियत के बीच बहुत बड़े अंतर को जानते हुए थोड़े बुझे मन से, "परंतु भाई साहब एक लड़की की तो यह शादी हो रही है फिर अभी से दूसरी लड़की की शादी का ब्योंत भला एक मध्यवर्गीय आदमी कहाँ से जुटा पाएगा ?”
दिवान चन्द अपने मित्र कृष्ण कुमार का आशय समझते हुए परंतु जैसे उन्होने दृड़  निशचय कर लिया हो तपाक से बोले,"भाई साहब मुझे लड़की वालों से केवल लड़की चाहिए | उनसे किसी और वस्तु की मेरे मन में कोई लालसा या चाहत नहीं है |”
फिर भी सामाजिक रीति रिवाज तो निभाने ही पड़ते हैं |”
तो जैसा आप उचित समझें करा देना | मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी |”
और बबली की शादी के कुछ ही महीनों बाद देखते ही देखते, जिसकी कभी किसी ने सपने में भी उम्मीद न की थी, रूबी एक सम्पन्न घर में बहू बन कर चली गई | गृहस्थी के हर काम में निपुण तथा सभी के प्रति यथा योग्य अपना सेवाभाव एवं आदर सत्कार दिखाने से रूबी ने अपनी ससुराल में सबकी चहेती बनने में अधिक समय नहीं लिया | एक तरह से उसकी गुणवत्ता ने उसके बड़े भाई मनीष की किस्मत के द्वार खोल दिए |
मनीष हालाँकि अधिक पढा लिखा न था परंतु वह एक सज्जन्, सुन्दर, मृदुभाषी एवं सभी को सम्मान देने वाला लड़का था | जब से उसने होश सम्भाला था उसके मन में शामली से बाहर जाकर उन्नति करने का जज्बा पनप रहा था परंतु अपने पिता जी की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह कदम आगे बढाने में असमर्थ तथा मजबूर था | रूबी के रौब से प्रभावित उसके ससुर तथा पति अमित ने मनीष के जज्बे को समझते हुए उसे हवा दे दी | अमित के पास बहुत से काम थे | उसने मनीष को अपने पास देहली सदर में एक छोटी सी दुकान दिलवाकर बिजली की प्रैस के स्पेयर पार्टस का थोक का काम उसके जुम्मे कर दिया | जैसे रूबी ने कुछ ही समय में अपने पैर अपनी ससुराल में जमा लिए थे उसी प्रकार मनीष भी बाजार में ख्याति पा गया | उसकी ख्याति के चलते मनीष की शादी भी एक सम्पन्न परिवार में हो गई |  
बचपन से अपने पिताजी को जमीन के मुकदमें की पैरवी में उलझे रहने की वजह से गरीबी की सी मार सहते तीनों बच्चों, बबली, रूबी तथा मनीष, जो अब हर प्रकार से सम्पन्न एवं समर्थ थे कभी भी, कहीं भी, किसी को भी अपना बड़प्प्न, अपने पैसों का अहंकार या ऐसा कुछ दिखावा नहीं किया जिससे उनका बड़बोलापन झलकता हो | वे तीनों अब भी अपने माता पिता की तरह सुशील्, सज्जन एवं मृदुभाषी थे | सेवा सत्कार तथा आदरभाव प्रदर्शित करने में कोई कमी न करते थे |  
बच्चों की इस तिकड़ी ने देहली के वैश्य समाज में इतना रंग जमाया कि खारी बावली के एक धनाढय व्यापारी श्री लक्ष्मण दास ने उनकी छोटी बहन मनु का हाथ्, रूबी की तर्ज पर, अपने लड़के ललित सिंघल के लिए माँग लिया |
अपनी तीसरी लड़की को भी एक सम्पन्न परिवार में जाते देखकर माता पिता को अपार खुशी  हुई | शादी की तैयारियाँ जोर शोर से होने लगी | ज्यों ज्यों शादी के दिन नजदीक आ रहे थे, माँ का मन खुशी से दुगना फूलता जा रहा था | हर टेहले को वे पूरे रंग चाव से निबटा रही थी | परंतु न जाने क्यों अन्दर से वे कुछ कमजोर होती जा रही थीं | अपनी खुशी का इजहार तो उन्होने आँसू बहाकर कर दिया परंतु गमी के दर्द को वे अन्दर ही अन्दर पीती रही | शायद उन्हें गम था मनु के चले जाने के बाद शामली में अकेले रह जाने का | क्योंकि उनका लड़का मनीष तो अपने व्यापार की वजह से देहली में बस गया था अतः शामली में मनु ही उनका सहारा रह गई थी जो अब शादी के बाद जाने वाली थी |
अपार खुशी और दिल के एक कौने में उभरते गम ने मेरी बहन जी को धीरे से ऐसा झटका दिया कि मनु की शादी के तीन दिन पहले ही उनकी ईहलीला समाप्त हो गई | एकबार को खुशी का माहौल रंज में बदल गया | परंतु समय किस के रोके रुकता है | मनुष्य भी समय के साथ चलने में ही अपनी भलाई समझता है | अतः सभी ने यह सोचकर कि समय कहीं आगे मनु की शादी में कोई रोड़ा न अटका दे उसकी मम्मी जी का दाह संस्कार गंगा जी के किनारे बृजघाट पर करने के उपरांत आनन फानन में उनकी बर्षी तक की सारी रस्में एक ही दिन में वहीं पूरी कर दी गई |
मनु की बारात आने का इंतजार था | सभी रिस्तेदार बैठे हुए थे इधर उधर की बातें चल रही थी | इस बीच मेरे जीजा जी कृष्ण कुमार जी ने मनु के ससुराल वालों की तारीफ करते हुए कहा, " मनु की ससुराल वाले तो हैं ही परंतु इसके ममिया ससुर भी करोडों की आसामी हैं |”
बैठे हुए एक व्यक्ति ने अचरज दिखाते हुए, "अच्छा जी |”
कृष्ण कुमार जी उसी लहजे में बात आगे बढाते हुए, "आज तो मेरा साला (मैं) उस आसामी से गले मिलेगा |”
एक व्यक्ति ताली बजाते हुए, " भाई वाह क्या बात है |”
कृष्ण कुमार जी जैसे और भी उत्साहित हो गए अतः बोले, "उनसे मिलने को लोग लालायित रहते हैं |”
अपने जीजा जी की बात का जायजा लेकर मजाक करते हुए मैनें बहुत ही सरलता एवं शालिनता से कहा, "जीजा जी एक बात बता देना चाहता हूँ कि हालाँकि मैं उनसे मिलने को लालायित तो जरूर हूँ परंतु इसलिए नहीं कि वे एक करोड़पति हैं बल्कि इसलिए कि जैसे मैं मनु का मामा हूँ उसी प्रकार वे भी दुल्हे के मामा जी हैं | मैं उनको अपने नाते की वजह से इज्जत दूंगा न कि उनके मालदार आसामी होने की वजह से |”
पहले तो सभी बैठे तथा खड़े व्यक्ति मुझे देखते रहे फिर कृष्ण कुमार जी के ठीक है-ठीक है कहने के साथ साथ सब इधर उधर बिखर गए क्योंकि बारात के बैंड की आवाज नजदीक आती सुनाई देने लगी थी | मनु की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई तथा वह ससुराल के लिए विदा हो गई |  
अब देवी चरण अर्थात मेरे जीजा जी शामली में अकेले रह गए थे | अपनी जीवन संगिनी को खोने के बाद उन्हें ऐसा लगने लगा था जैसे अब उनके जिवित रहने का भी कोई मकसद नहीं है | वे बहुत उदास एवं गुमसुम रहने लगे थे | उनकी हालत देखकर उनका लड़का मनीष अपने पिता जी को अपने पास देहली ले आया | देवी चरण अपने मन को आशवासन देने ले लिए महीने में एक दो चक्कर शामली के लगा लिया करते थे | परंतु यह अधिक देर न चल सका | मनीष ने शामली वाला मकान बेच दिया | देवी चरण जिसको पाने के लिए जिवन भर प्रयत्नशील रहे शायद उसके गवाँ देने से इतने हतोत्साहित हुए कि छः महीने भी पूरे न कर सके तथा उनका स्वर्गवास हो गया |
त्यौहारों के दिन चल रहे थे | दिपावली का शुभ पर्व नजदीक था | सभी रिस्तेदारों की मंत्रणा के बाद उनके दाह संस्कार के बाद की सभी रस्में भी मेरी बहन जी की तर्ज पर करने का फैसला हुआ |
देवी चरण जी की अस्थियाँ गंगा जी में प्रवाह करके हम बृजघाट से वापिस आ रहे थे | मैं मनु के जेठ राकेश की गाड़ी में पिछली सीट पर बैठा था | सड़क उबड़ खाबड़  थी | गड्ढों के कारण गाड़ी चलाना दुशवार हो रहा था | उपर से यह कि गाड़ी के शाकर बिलकुल भी काम नहीं कर रहे थे | सड़क पर छोटे से गड्ढे में भी गाड़ी ढक-ढक बोलती और उसका असर हमारी हड्डियों पर पड़ता था | जितने भी व्यक्ति गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे थे उनकी हड्डियाँ किर्तन सी करती  नजर आ रही थी | फिर भी मजबूरन बैठना पड़ रहा था |
राकेश कुछ बड़ बोला किस्म का लड़का था | वैसे तो रास्ते भर उसने कई ऐसी बातें कही थी जो उसका बड़ बोलापन साबित करती थी परंतु जब उसने कहा कि वह प्राईमिनिस्टर गुजराल के लड़के का दोस्त है तथा अगर उसके दोस्त को कभी देहली से फरीदाबाद भी जाना पड़ता है तो वह हेलिकोप्टर से ही जाता है | उसके सारे दोस्त एक से बढकर एक पैसे वाले हैं तो एक ने चुटकी लेते हुए कहा, "फिर तो तुमने हेलिकोपटरों की खूब सैर की होगी ?”
दूसरे ने बात आगे बढाते हुए टोंट कसी, " उसने भी तो इसकी इस अम्पाला गाड़ी में खूब सैर करी होगी |” 
अपनी खटारा गाड़ी को एम्पाला गाड़ी के ब्रांड से सम्बोधित करते सुनकर शायद राकेश समझ गया कि उसका मजाक उड़ाया जा रहा है | अतः इसके बाद पूरे रास्ते  वह बहुत कम बोला | परंतु बड़ बोलेपन की आदत कुछ सहज थोड़े ही जाती है |
बृजघाट से देहली पहुंचते पहुंचते अंधेरा घिर आया था | रिंग रोड़ के ऊपर इंद्रप्रस्थ पर आकर मैने वहाँ से अपने घर नारायणा जाने के लिए बस लेना उचित समझा | मेरे कहने पर राकेश ने गाड़ी रोक दी | मैने अपने साथ बैठे सज्जन से कहा ही था कि कृप्या गाड़ी का दरवाजा खोल दे क्योंकि मेरे से खुल नहीं रहा | इतने में राकेश जो बहुत देर से चुप्पी साधे था तथा शायद अन्दर से भरा बैठा हुआ था, अचानक अपनी आदत अनुसार ,मेरे लिए ऐसे अपमान जनक शब्द इस्तेमाल करते हुए जो मेरे दिल के अन्दर तक गहरी चोट कर गए, अपना हाथ बढाकर गाड़ी का दरवाजा खोल दिया | एक बार तो मैनें सोचा कि उसका जवाब उसी समय दे दूँ परंतु यह सोचकर कि समय ज्यादा हो गया है क्योंकि रात घिर आई थी, सभी व्यक्ति थके हुए थे, समय अभाव के कारण पूरा जवाब भी न दे पाऊँगा, फुर्सत में बैठकर ही बात करने पर उसे उसकी गल्ती का एहसास करा पाऊंगा तथा समय की नाजुकता और गमी के वातावरण को भाँपते हुए मैनें उस समय चुप रहना ही उचित समझा
मैं राकेश को उसके अहंकार भरे रवैये के प्रति जागरूक करने के लिए माकूल अवसर का इंतजार करने लगा जो मुझे जल्दी ही मिल गया | मनीष के लड़के का कुआँ पूजन था | यह जानकर कि राकेश वहाँ अवशय आएगा मैं कुछ जल्दी ही समारोह स्थल पर पहुंच गया | मुझे वहाँ जो भी मिला सभी को कह दिया कि जब राकेश आए तो मुझे बता देना क्योंकि वह बहुत दिलचस्प आदमी है तथा उससे मिलने की मेरी बहुत तमन्ना है | जिनको भी मैनें ऐसा कहा सभी आश्चर्य चकित थे कि आखिर राकेश ने मुझ पर ऐसा क्या जादू कर दिया है जो मैं इतनी बेताबी से उसका इंतजार कर रहा हूँ |
राकेश के समारोह के पंडाल में घुसते ही एक एक करके सभी ने मुझे सूचना दे दी कि वह आ गया है | वैसे राकेश को भी खबर दी जा चुकी थी कि मैं उससे मिलने के लिए बेसब्री से इंतजार कर रहा हूँ परंतु अपने अन्दर अहम के कारण, वह गर्दन झटकते हुए एक तरफ पड़े सोफे में धंस गया | मैं अपने स्थान से उठकर राकेश की ओर अग्रसर हुआ | मुझे राकेश की और जाता देख, बात जानने को उत्सुक, और भी बहुत से लोगों ने मेरा अनुशरण किया तथा राकेश के समीप पहुंच गए |  
मैनें राकेश के पास जाकर अपनी और से शिष्टाचार दिखाते हुए दोनों हाथ जोड़कर कहा," नमस्ते ,राकेश जी |”
नमस्ते का जवाब देते हुए उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे किसी अजनबी को देख रहा हो
उसे ऐसे देखते हुए देखकर मैनें पूछा, "मुझे पहचाना ?”
हाँ, हाँ क्यों नहीं | आप मनु के मामा जी ही तो हैं |”
हाँ बिलकुल ठीक | वैसे मैनें सोचा था कि आप मुझे पहचानोगे नहीं |”
आपने ऐसा क्यों सोचा ?”
क्योंकि धनाढय एवं ऊँचे लोगों को अक्सर गरीब लोगों की याद नहीं रहती |”
आप ऐसा क्यों कह रहे हो ?”
आप जैसे जमीन पर एम्पाला गाड़ी में सफर करने वाले तथा अधिकतर हेलिकोप्टरों में उड़ने वाले लोग भला जमीन पर रेंगने वाले मेरे जैसे कितनों की पहचान रखोगे | यही सोचकर मैनें ऐसा कहा था |”
राकेश एम्पाला तथा हेलिकोप्टर का नाम सुनकर कुछ झेंपते हुए, "अपने तो याद रहते ही हैं |”
आपने मुझे अपना समझा उसके लिए धन्यवाद | फिर बिना समय खोए मैं अपने मुद्दे पर आते हुए, "आप अभी ना समझ हैं |”
राकेश को अचानक एक झटका सा लगा | वह समझ नहीं पाया कि मेरे कहने का तात्पर्य क्या था अतः पूछा, "क्या मतलब ?”  
मतलब यह कि आप अहंकार वशीभूत अपने सामने वाले की हैसियत पहचानने में असमर्थ हो |”
वह कैसे ?”, राकेश के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने का आभाष होने लगा था |
यह तो मैं आपको बाद में बताऊंगा कि कैसे | पहले मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूँ | आशा है आप मुझे अपना कुछ कीमती वक्त दे सकेंगे |”
आज तो हम दोनों ही फुर्सत में हैं | पूछिए क्या पूछना है |”
मैनें राकेश से सीधा सवाल किया, “आपने कभी हेलिकोप्टर में बैठ कर सैर की है ?”
नहीं |”
आप डकोटा जहाज में बैठे हैं ?”
नहीं |”
आप ने पैकेट जहाज अन्दर से देखा है ?”
नहीं |”
आपको कभी फोकर फ्रैंडशिप, टी.यू., पुष्पक, केनबरा या ए.एन-12 जहाज को हाथ लगाने का मौका मिला है ?”
नहीं |”
आपने लड़ाकू जहाजों को कभी करीब से देखा है ?”
नहीं |”
आप कभी एम्पाला गाड़ी में बैठे हैं ?”
नहीं |”
आपने कभी मर्सड़ीज बैंज गाड़ी चलाई है ?”
नही |”
अरे आप तो किसी में भी नहीं बैठे | फिर तो लगता है आपके फरिशतों तथा बुजूर्गों ने भी आज तक इनके दर्शन भी नहीं किए होंगे ?”
राकेश थोड़ा तैश में आते हुए, “आप कहना क्या चाहते हैं ?”
राकेश की तरह जोश में न आकर बड़े संयम से, मैनें कुछ गल्त तो नहीं कहा | शायद आप को सच का सामना करने की आदत नहीं है | हवाई किले बनाना आपको ज्यादा पसन्द है | इसीलिए आप मेरी बात सुनकर आपे से बाहर होने लगे हो |
आप बात ही ऐसी कर रहे हो जिसे सुनकर सामने वाला तैश में आए बिना न रह सके |”
कभी कभी सत्य बहुत कड़वा लगता है | जैसा इस समय आपको लग रहा है | परंतु आदमी की जबान ऐसे सत्य की कड़वाहट को मात दे देती है |”
राकेश मेरी बात का कोई सिर पैर न समझकर झुंझला कर बोला, “आप क्या पहेलियाँ बुझा रहे हैं मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा ?”
मैनें पहले ही कहा है कि आप बहुत बड़े ना-समझ हो | इसीलिए आपको समझाने की कोशिश कर रहा हूँ |”
तो समझाओ न,” राकेश का गुस्सा बढता जा रहा था |
तो सुनो और समझो | जिन वाहनों को मैनें आपको अभी गिनवाया है मैनें उन सब में बैठ कर सैर की है |”
तो मुझे इससे क्या,?” राकेश ने तपाक से कह तो दिया परंतु उसके दिल के चोर ने उसे बगलें झाकने पर मजबूर कर दिया |
वही तो समझाने का यत्न कर रहा हूँ कि आपका इससे बहुत बड़ा रिस्ता है |”
मे-रा,मे-रा भला इससे क्या रिस्ता हो सकता है |” राकेश की लड़खड़ाती जबान ने दर्शा दिया था कि उसे मालूम पड़ गया था कि मेरा आशय किस और था |
मैनें खुलाशा करते हुए कहा, “याद करो उस घड़ी को जब मेरे जीजा जी की अंत्येष्टि करने के बाद अपनी चलती का नाम गाड़ी उर्फ एम्पाला से आपने मुझे रिंग रोड़  पर उतारा था | वैसे तो गंगा जी जाते तथा वहाँ से वापिस आते हुए तुमने दूसरों के बारे में भी ऐसी कई आपत्तिजनक बातें कही थी जिनका जवाब देना बनता है परंतु इस समय उसी की याद दिला रहा हूं जो आपने मेरे बारे में कहा था |”    
अपनी गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए आपने बुरा सा मुहँ बनाते हुए कहा था, “पता नहीं पहले भी गाड़ी में बैठा है या नहीं |”
मैं जानता हूँ कि उस समय अपने बाप तथा मामा जी के पैसों के मद में चूर, जो तुम्हारा खुद का नहीं था, तुमने सामने वाले की हैसियत को न समझते हुए अपने श्ब्दों एवं जबान पर काबू न रखा | इतना तो तुम्हें ख्याल रखना चाहिए था कि तीन घंटे पहले ही जिस आदमी के सामने तुमने हाथ फैलाकर 51 रूपये मान के तौर पाए थे उसकी हैसियत को कम न समझूं | अपनी कड़वी जबान के साथ साथ आपने तो सभी रिस्ते नाते तथा मान मर्यादा को भी दरकिनार कर दिया था | उसी काँटे को निकालने तथा उसकी चुभन को सहलाने के लिए मैं आपको समझाना चाहता हूँ कि रूपया पैसा तो आनी जानी चीज है | इंसान को अपनी इंसानियत नहीं भूलनी चाहिए | और्.........|
अचानक राकेश के मुख से निकला, "मौसा जी",जिस शब्द का उसने मेरे लिए आज तक इस्तेमाल नहीं किया था, “मुझे माफ कर दो |”
न जाने क्यों तथा शायद पैसों के मद में चूर मैं आजतक अपने से बड़ा अपने किसी भी रिस्तदार को समझता ही न था |”   
मौसा जी मुझे याद आ रहा है कि आपने मुझे अपने अहंकार के प्रति सजग कराने हेतू गंगा जी से लौटते हुए एक बकरे की कहानी सुनाई थी | अब मेरी समझ में आया कि मेरी हालत भी उस बकरे के समान है जो एक बालू के पहाड़ की चोटी पर खड़ा है | वह मुड़कर पीछे देखता है तो उसे अपने दल का कोई भी नजर नहीं आता | फिर आगे नजर दौड़ाता है तो वहाँ भी दूर तक कोई नजर नहीं आता | अतः अपना सीना फुलाकर तथा मन में भरे अहंकार वश अति प्रसन्न होकर जोर से चिल्लाता है, "वाह मैं प्रथम हूँ |”
परंतु जब वास्तविक्ता सामने आई तो पता चला कि वह अपने दल के और बकरों से इतना पीछे रह गया था कि आगे जाने वाले बकरे उसे दिखाई देने बन्द हो गए थे | अतः अपने को सबसे आगे सोचने वाला बकरा सबसे पीछे था |
मौसा जी आज आपने मेरी आँखें खोल दी | वास्तव में ही मैं आज तक ना-समझ था |