Monday, October 30, 2017

मेरी आत्मकथा- 24 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू


पवन का रिश्ता पक्का होने के बाद तो मनोज जी के परिवार का अधिकतर समय ससुराल में ही व्यतीत होने लगा | रोजाना रात के डेढ़ दो बजे तक अगले दिन के कार्यक्रम का प्रोग्राम बनाया जाता | उसी अनुसार अगला सारा दिन बाजार में बितता | इससे सबसे ज्यादा थकावट पवन एवं प्रवीण को होती थी क्योंकि उनका काम ही ऐसा था कि सुबह जल्दी उठना पड़ता था | केवल मनोज जी सुबह आराम से उठते थे क्योंकि उन्हें अपने स्कूल जाने की कोई जल्दी नहीं होती थी | मेरा आफिस भी देर से खुलता था | अत:मनोज जी के सुबह उठने के बाद मेरे तथा उनके बीच कुछ इस तरह की बातें होती थी |
(क) “पिता जी, हमने प्रवीण की शादी के लिए जहां से कपड़ा खरीदा था अबकी बार भी वहीं से खरीद लेंगे |”
“चांदनी चौक बाजार के मेन रोड़ पर ही तो था ?”
“नहीं नहीं परांठे वाली गली के अंदर था |”
“हाँ याद आया साडियां-ब्लाऊज वगैरह सारा वहीं से खरीदा था | बाकी पैंट-कमीज इत्यादि का कहीं और से लिया था |”
“बिल्कुल ठीक |”
मनोज जी को जैसे अपने मन की सी बात सुनने को मिल गई अत: वे तपाक से बोले, “चांदनी चौक की परांठे वाली गली में वह महावीर मल-संत राम की फर्म है | मेरी जान पहचान वाला एक व्यक्ति उसमें काम करता है | १५-२०% तो हम अपनी तरफ से कम करा लेंगे बाकी ५-७% उससे कहकर कम करा लेंगे |”
हाँ में हाँ मिलाते हुए मैंने  ने भी कह दिया, “ठीक है बाजार जाएंगे तो देख लेंगे | जहां से अच्छा लगेगा वहीं से खरीदेंगे |”
अचानक जैसे मुझे कुछ याद आया | मैं उठा और मनोज से कहा, “आप शादी के कार्ड का मजबून बना लो तब तक मैं अपने पंडित जी से शादी की तिथियाँ सुजवा लाता हूँ |
(ख) मनोज:पिताजी चीज-बस्त गहने खरीदने के लिए मैंने एक बहुत बढ़िया थोक की दुकान ढूंढ ली है |
“कैसे तथा कहाँ ?”
“मेरी बहन महरौली वाली के लड़के की जब शादी थी तो उनको वहीं से सारे गहने दिलवाए थे |”
“ठीक है पर यह दुकान है कहाँ ?”
“मालिक का शोरूम चांदनी चौक की मुख्य सड़क पर स्थित है | आपने हल्दी राम वाले की दुकान तो देखी होगी ? बस उससे तीन चार दुकाने छोड़कर घंटा घर की तरफ है |”
संतोष:अगर सामान सही रेट तथा मन पसंद मिलता है तो हमें वहाँ से खरीदने में क्या एतराज हो सकता है | वहीं से ले लेंगे |    
मैंने भी अपनी पत्नी की हाँ में हाँ मिलाई, “ठीक है वहीं से ले लेंगे |”
मनोज : सबसे बड़ी बात है कि वह हमें ७% स्पेशल छूट देगा जो किसी को नहीं मिलती |
संतोष:गहनों पर ७% तो काफी है |
(ग) “पिता जी अब हमें लेने देने के लिए जोड़े, साडियां तथा सूट आदि के कपड़े भी तो चाहिएँगे ?”
“बिलकुल ये सब भी जरूरी हैं |”
“चांदनी चौक में घंटा घर का जो चौक है वहाँ मेरा एक रिश्तेदार श्याम लाल जी का रेडीमेट गारमेंट का काम है | उनकी अंदर कटरे वालों से, जहां जोड़े वगैरह के कपड़े मिलते हैं, अच्छी जान पहचान है | उससे पूछकर उसकी बताई दुकान से ही खरीदारी कर लेंगे | १०-१२% का फ़ायदा हो जाएगा |”
मैंने सलाह दी, “देख लो अगर बात बनती है तो कोई बुराई नहीं है |”
(घ) मनोज:पिता जी बैंड बाजे में क्या क्या करना है ?
“बैंड-बाजा तो होना ही है | बाकी आप बच्चों से सलाह करलो कि और क्या करना है | क्योंकि उछल कूद तो उन्हें तथा आप जैसों को ही करनी है |”
“आपकी और का क्या मतलब है ?”
“अजी जैसे शहनाई, नपीरी, ढोल, ताशे इत्यादि |”
“पिता जी शहनाई तो केवल लग्न पर ही ठीक रहेगी |” इसके बाद जैसे अचानक मनोज जी को कुछ याद आया हो वे बोले, “और हाँ लग्न का प्रोग्राम भी तो बनाना है ?”
“हाँ उसके लिए रिंग रोड़ पर शिव मंदिर वाली धर्मशाला बुक करा देंगे |”
शायद मनोज जी अभी लग्न की जगह के बारे में बात करने के मूढ़ में नहीं थे अत:इस बात की तरफ ध्यान न देकर वे बोले, “पिता जी, भोगल में श्याम बैंड एक अच्छा बैंड वाला है | वह बनिया है | उसके पास, नपीरी, ताशे, शहनाई, डंडे वाले, लेजियम वाले तथा घोड़ी-बग्गी का भी प्रबंध है |”
“आप तो जानते हैं कि एक मेरे बैंक के कर्मचारी का भी डूंडाहेड़ा में स्याम बैंड है | वह आश लगाए बैठा है | फिर भी अगर उसके पास सारा इंतजाम न हुआ तो भोगल वाले को ही देख लेंगे |”
“परन्तु पहले यह तो सोच लो कि करना क्या क्या है |”
“मैनें पहले ही कह दिया है कि यह काम नौजवानों का है जो कूदते फांदते हैं |”
(ड़) मनोज:पिता जी शादी के कार्ड नई सडक से खरीद लेंगे |
“हाँ शादी वगैरह के कार्डों की वही थोक मंडी है |”
“वो तो है ही इसके अलावा वहाँ मैंने  एक दोस्त का इनका ही थोक का काम है | वहीं से जुगाड़ बिठाएंगे |”
“मनोज  जी इस छोटे से काम के लिए क्या जुगाड़ बिठाना | कहीं से भी खरीद लेंगे |”
“क्यों पिता जी आपके इस छोटे से काम में अगर ६००-७०० रूपये का फ़ायदा हो जाए तो क्यों नहीं किया जाए | फिर छपाई भी सस्ते रेट में वहीं हो जाएगी |”
“वैसे पिता जी इस बार कार्ड कैसे छपवाओगे ?”
“शादी के कार्ड तो पहले जैसे ही छपवा लेंगे |”
“पिता जी, प्रवीण की शादी में हमने लम्बे कार्ड छपवाए थे परन्तु अब तो चौड़े कार्डों का ज़माना है |”
“क्या फर्क पड़ता है चौड़े ही छपवा लेना परन्तु मजबून वही प्रवीण की शादी वाला रखना |”
“हाँ ठीक है, पिता जी, उसमें नाम तथा तारीख बदल देंगे |”
“वह तो करना ही पडेगा |”, कहकर मैंने अपने बेटे प्रवीण  से उसकी शादी का एक कार्ड लाने को कहा | और जब प्रवीण निमंत्रण कार्ड ले आया तो उसे मनोज जी को देकर कहा, “लो मनोज जी इसमें नाम और तिथि वगैरह बदल दो |”    
कार्ड हाथ में लेकर मनोज जी ने एक अजीब ही प्रश्न किया, “पिता जी क्या ‘बाबा जी’ का नाम भी आना चाहिए ?”
मैंने मनोज जी की तरफ ऐसे देखा जैसे कह रहे हो कि यह कैसा बेहूदा सवाल है | यह भी कोई पूछने की बात है | फिर अपने को संयम में रखते हुए केवल इतना ही कहा, “बिलकुल उनका नाम तो आना चाहिए और जरूर  आएगा |”
 मनोज जी कुछ सकुचाकर धीरे से बोले, “परन्तु...?” और उनकी जबान अटक गई |
मैं उनके परन्तु के कारण से अनभिज्ञ, “परन्तु क्या, मनोज जी ?”
“प्रवीण की शादी के कार्ड में तो उनका नाम ही नहीं था |”,मनोज  ने फ़टाफ़ट ऐसे कहा जैसे धीरे धीरे कहने से उनसे पूरा वाक्य कहा नहीं जाएगा और मैं सुन नहीं पाऊंगा |
मुझे मनोज की इस बात पर विश्वास न होना लाजमी था | अत: कहा, “आप क्या बात करते हो मनोज जी | मेरे    लड़के की शादी के कार्ड में उसके पिता जी का नाम न हो यह हो ही नहीं सकता |”
“आपको पक्का विशवास है कि कार्ड में बाबा जी का नाम है ?”
“विशवास हो भी क्यों न | देखो न इस डायरी में उस कार्ड का मजबून लिखा है जो हमने छपवाए थे |”
“पिता जी इसमें तो बाबा जी का नाम लिखा है परन्तु छपे हुए कार्डों में नहीं था |”
मुझे मनोज जी की बात पर अभी भी विशवास नहीं हुआ, “क्यों मजाक करते हो ?”
मनोज इस बार थोड़ा सीरियस होकर, “पिता जी यह मजाक नहीं हकीकत है कि प्रवीण की शादी के निमंत्रण कार्ड में आपके पिता जी का नाम नहीं था |”
इस बार मनोज जी की बातों का असर मेरे चेहरे पर साफ़ दिखाई दिया | मैंने जल्दी से अपने लड़के प्रवीण को कहा, “प्रवीण लाना तो अपनी शादी का कार्ड |”
प्रवीण ने अपनी शादी का एक कार्ड लाकर मुझे पकड़ा दिया | मैं जल्दी से उसे खोलने की चेष्टा करने लगा | मुझे  अपने शरीर में कुछ अजीब सी कम्पन्न महसूस हो रही थी | कार्ड को खोलते हुए मेरे हाथ भी काँप रहे थे | हालाँकि मुझे पक्का विश्वास था कि प्रवीण की शादी के कार्ड में मेरे पिता जी का नाम अवश्य होगा परन्तु मनोज   जी के कहने ने मेरे मन में आशंका ने घर कर लिया था | मैंने कार्ड खोलकर ऊपर से नीचे तथा फिर नीचे से ऊपर पूरा देखा परन्तु मुझे वह नाम कहीं लिखा हुआ नहीं दिखाई दिया जो मेरी नजरें खोज रहीं थी | मेरा सारा शरीर सुन्न सा हो गया | मैं मूक नज़रों से मनोज जी की तरफ एकटक देखने लगा | मनोज जी के चेहरे पर धीमी मुस्कान जो कभी मेरे ह्रदय को मन्त्र मुग्ध करके खुशियों से भर देती थी आज बहुत कटु प्रतीत हो रही थी | मुझे  ऐसा लग रहा था कि मेरे ऊपर व्रजपात किया जा रहा है | मेरे मुहं से केवल इतना निकला कि यह कैसे हो गया और अपना माथा पकड़ कर बैठ गया |
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मनोज ने कहा, “देख लिया | कार्ड में आपके पिता जी का नाम नहीं है |”
“परन्तु कार्ड का जो मजबून हमने बनाया था उसमें तो पिता जी का नाम था फिर उनका नाम क्योंकर छपाई में नहीं आया ?”
“अब जब मैंने देखा तो मैं हैरत में आ गया था परन्तु तब तक ठीक कराने के लिए देरी हो चुकी थी |”
“आपको यह कब पता चल गया था |”
“पिता जी अब छोड़ो इन बातों की चिंता और लग जाओ नए विवाह की तैयारियों में |”
मुझे मनोज जी का ऐसा कहना कुछ अटपटा सा लगा | वे तो ऐसे कह गए जैसे नाम से कुछ नहीं होता | परन्तु मेरा दिल रो रहा था | लाला नारायण का नाम नजफगढ में बड़े से बड़े आढती से लेकर छोटे से छोटा मजदूर भी जानता था और आज जब उनके पोते की शादी नजफगढ में हो रही है तो कोई नहीं जानता कि दुल्हे से लाला राम नारायण का कोई रिश्ता है |
आज छ: वर्ष बाद हालाँकि यह ‘अब पछताय क्या होत है जब चिड़िया चुग गई खेत’ की कहावत को चरितार्थ करने वाली बात थी फिर भी मेरे मन में कई प्रश्न घुमने लगे कि आखिर यह हुआ कैसे |
यहाँ तक कि मेरी इस त्रुटि के बारे में न तो मेरे किसी भाई ने टोका और न ही किसी रिश्तेदार ने | मैं जितना सोच रहा था उतना ही उलझ रहा था | मैं किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाया कि किसी का क्या मकसद हो सकता था तथा यह त्रुटि कैसे हो गई |
इस त्रुटि को मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल मानता हूँ | जो त्रुटि मुझे छ: वर्ष बाद पता चली | मैंने प्रवीण  की शादी के समय हुई इस भूल को अपने छोटे बेटे पवन की शादी के कार्ड में ठीक करके अपने स्वर्गीय पिता जी से माफी मांगकर प्रायश्चित पूरा किया | 
शादी के लिए खरीद फरोक्त के सारे कार्यक्रम लगभग इसी प्रकार के वार्तालापों के बीच बने तथा मनोज जी की देख रेख में पूरे भी हो गए | मैं शादी की तिथियाँ सुजवा लाया | ६ फरवरी का लग्न तथा १० मार्च २००२  की शादी तय कर दी गई |
शादी के कार्ड का मजबून सभी को पसंद आया तथा वह छपाई के लिए भेज दिया गया | जब कार्ड छपकर आए तो इस बार मैंने अच्छी तरह मुआईना करके उन्हें अपने बच्चों से कह दिया कि मेरे द्वारा बनाई गयी मेहमानों की सूची के अनुसार सभी को निमंत्रण कार्ड भेज दें | कुछ ही दिनों में शादी के सारे कार्ड बाँट दिए गए |
पवन  की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई और अंजना/अंजू दुल्हन बनकर ससुराल आ गई | अगले दो साल का समय गुजर तो गया परन्तु घर में सौहार्द वातावरण का हमेशा अभाव ही रहा |
30 जुलाई, गर्मी पूरे जोरों पर थी | 973 गुडगांवा पर मेरा परिवार एयर कंड़ीशनर चला कर सुख की नीन्द सो रहा था | सोते सोते पहले थोड़ी गर्मी महसूस हुई फिर पसीने आने शुरू हुए तो नींद खुल गयी | सुबह के तीन बजे थे | घर की बिजली गुम हो गई थी | काफी लम्बे इंतजार के बाद भी जब बिजली नहीं आई तो मैंने बाहर जाकर देखा तो केवल उसके घर की बिजली ही नदारद थी |
रात के सन्नाटे में मैं  बिजली घर से लाईन मैन को बुलाकर लाया तो पता चला कि बिजली की अंडर ग्राऊंड तार कहीं से कट गई थी | एक छोर से दूसरे छोर तक सड़क खुदवाकर नई तार डलवाई गई | इस काम को पूरा होते होते शाम के चार बज गए थे | इसी बीच महावीर एनकलेव से चुन्नी लाल जी का फोन आया, "मुझे आप से मिलना  है |"
एक तो मैं पूरा थक चुका था दूसरे मुझे अपनी बहन जी के यहाँ एक समारोह में जाना था इसलिए मैंने  चुन्नी लाल को कह दिया, "आप किसी और दिन का प्रोग्राम बना लो |"
पूरे दिन की भाग दौड की थकावट के कारण मैंने अपनी कमर सीधी करने के लिए थोड़ा आराम करना उचित समझा तथा बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा | मेरी  झपकी लग गई | अभी मुझे सोते हुए लगभग आधा घंटा ही हुआ होगा कि साथ वाले कमरे में उठते शोर के कारण मेरी  निंद्रा भंग हो गई | चिल्लाती हुई आवाजों को पहचानकर पता चला कि पवन तथा उसकी पत्नि अंजू आपस में झगड़ रहे थे | यह जानने के लिए कि माजरा क्या है मैं  अपने बिस्तर से उठकर साथ वाले कमरे में गया तो वहाँ का नजारा देखकर दंग रह गया तथा बोला, "पवन नहीं हाथ नहीं उठाते |"
अंजू सिर उघाडे, बाल बखेरे तथा बिना किसी शर्म लिहाज के चिल्लाते हुए कह रही थी, "हाँ हाँ मारो, और मारो |"
वहाँ का दृश्य देखकर मैंने वहाँ खड़ा रहना मुनासिब नहीं समझा तथा पवन को यह कहता हुआ वापिस लौट आया, "चल रे पवन बाहर आकर मुझे बता कि क्या बात है ?"
हमारे बुजुर्ग लोग अपने बच्चों को, जब वे घर से बाहर जाते हैं तो यही सलाह देते हैं कि आराम तथा सावधानी से जाना | बच्चे अधिकतर अपने बुजुर्गों के कहे का पालन भी करते हैं परन्तु दूसरे चलने वालों की आप कैसे कह सकते हैं कि वह सावधानी बरतेगा ही | दूसरे की असावधानी और ना-समझी आपके लिए जी का जंजाल बन सकती है |
मैंने भी अपने लड़के की बहू को शर्म हया त्यागते पाया तो खुद ही शर्म महसूस करते हुए तथा अंजू की नासमझी को भांपते हुए अपने आप को ही उसके सामने से हटाना उचित समझा |
पवन तो बाहर नहीं आया अपितू अंजू उसी हालत में दाँत किटकिटाती हुई मेरी चारपाई के पास खड़ी होकर तथा अपनी ऊंगली को हिलाते हुए चिल्लाई, "तुम मुझे पिटवा रहे हो | यहाँ चुपचाप पड़े हो | मैं अब इस घर में नहीं रहूँगी | मैं जा रही हूँ |"
फिर अपनी सास संतोष की तरफ मुड़कर उसी अन्दाज में, "तूने मुझे अपने भाई की शादी में नहीं जाने दिया | अब मैं तुझे देखूंगी तथा दिखाऊँगी और मजा चखाऊँगी |" इसके बाद पैर पटकते हुए तथा अनाप सनाप बकते हुए घर से बाहर निकल गई |
अंजूँ को वास्तव में ही बाहर निकलते देख मैंने अपने लड़के पवन को कहा, "देख अंजूँ बाहर चली गई हैं तू जा और समझा बुझा कर ले आ |"
मुझे यकीन था कि उन दोनों की थोड़ी देर में ही सुलह हो जाएगी तथा दोनों वापिस आ जाएँगे |  
अचानक पचास साल पहले मेरे फूफा जी द्वारा कासन की लड़कियों के बारे में दी टिप्पणी की बातों का ध्यान आने से मेरे मन के एक कोने में एक शंका ने घर कर लिया | वैसे घर में रोजमर्रा के व्यवहार से मैं  कई बार महसूस कर चुका था कि अंजूँ का रहन सहन कुछ ठीक नहीं है | सभी का ध्यान अपनी और आकर्षित करने के लिए वह उल्टे सीधे ड्रामें करने में भी नहीं चूकती थी | कभी अपनी जबाड़ी भीच लेती थी तो कभी गश खाकर गिरने का नाटक करने लगती थी | उसकी ऐसी हालत देखकर घर की बाकी औरतों के हाथ पैर फूल जाते थे तथा वे उसकी सेवा सुश्रा में लग जाती थी |
इसी तरह एक बार जब अंजूँ ने दाँत भीच कर गिरने का नाटक किया तो मैं  घर पर ही था | उसके गिरते ही घर की औरतों की भाग दौड़ शुरू हो गई | मैंने सबको शांत रहने के लिए कहकर एक बच्चे को सम्बोधित करते हुए कहा, "जाओ जल्दी से बाहर कूड़ी से एक टूटी चप्पल या टूटा जूता उठा ला |"
सभी औरतें जो अंजूँ को घेरे खड़ी थी एक साथ बोल उठी, "टूटी चप्पल या टूटा जूता क्यों ?"
उसे गरम करके ऐसे मरीज को सुंघाने से वह ठीक हो जाता है |
मेरे ऐसे वचन सुनकर अंजूँ में एकदम चेतना आनी शुरू हो गई तथा चप्पल आने से पहले ही वह उठ कर ऐसे बैठ गई जैसे उसे कुछ हुआ ही न था | इसके बाद अंजूँ की कभी जबाड़ी न भींची न उसे गश आया | वह हमेशा के लिए इस रोग से मुक्ति पा गयी थी | 
इन सभी बातों को अंजाम देने के लिए उसके पीहर वालों का बहुत बड़ा योग दान था | उनमें अंजूँ की माँ, मौसी तथा दादी जी तो माशा अल्लाह उसको गल्त शिक्षा देने में सबसे आगे प्रतीत होती थी | एक दिन संतोष ने अंजू की मौसी को तो फोन पर अच्छी तरह सुना कर उसका मुहँ हमेशा के लिए बन्द करवा दिया था |
आज अंजूँ के घर से बाहर निकल जाने से मैं सोचने पर मजबूर हो गया था कि हो सकता है कि उसे डराने का कासन वालों की लड़की अंजूँ का यह एक और पैंतरा है |
रात के आठ बजे होंगे कि अंजूँ तथा पवन दोनों वापिस घर आ गए | परंतु मुझे बहुत आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा कि उनके पीछे पीछे अंजूँ के पिता जी, भाई हेमंत, ताऊ महेश, चाचा, मामा बबले तथा वेद, नरेश(दूर का चाचा) तथा तीन चार जवान लड़के भी घर में घुसते चले आए | बुजूर्ग लोग तो बैठ गए तथा जवान चारों और ऐसे खड़े हो गए जैसे फौजी लोग दुशमन को चारों और से घेर कर उसे समर्पण कराने को मजबूर करने की कोशिश करते हैं | जवान लोगों के हाथों की माश पेशियाँ पानी से बाहर निकाली गई मछली की तरह फड़फड़ाती नजर आ रही थी | उन सबकी घूरती आँखो का एकमात्र केन्द्र बिंदु मैं ही था |
उनकी तरफ से मैंने नजरें घुमाई तो अपने दामाद मनोज जी तथा बेटी प्रभा को एक कोने में खड़ा देख कर दंग रह गया | उन दोनों के उदास चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था कि उनके मन में कोई भारी कसक है | मैंने उन दोनों को बैठने का स्थान दिया तथा खुद अपने समधी के पास बैठने की सोच उसकी तरफ बढ गया |
मैं तो अपने मन में श्रद्धा भाव लेकर ऐसा कर रहा था परंतु ज्यों ही मैं चुन्नी लाल के पास पहुँचा तो उसने अपनी कड़वी जबान से मेरा स्वागत करते हुए कहा, "अब तो पड़ गई तेरे दिल में ठंडक ?"
मुझे चुन्नी लाल जी से ऐसी आशा न थी अत: एकदम सकते में आ गया तथा पूछा, "आपका ऐसा कहने का मतलब क्या है ?"
चुन्नी लाल उसी अन्दाज में बोला, "अंजूँ को पिटवा कर अब तो दिल खुश हो गया होगा तेरा ?"
मैं सभी के तेवर भाँप कर समझ गया कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला है |    
मैंने समझ लिया कि समय एवं स्थिति की नाजुकता को देखते हुए अपने को निडर साबित करना जरूरी था अतः थोड़ा रौब दिखाते हुए अपने संबंधी को उसी की जबान में जवाब दिया, "तमीज से बात करो |"
इस पर सामने से नरेश उठ्ते हुए गुर्राया, "तमीज तो हम तुझे सिखाएँगे |"
इतने में हेमंत भी अपनी खाल में से बाहर आते हुए, जैसे एक कुत्ता अपने मालिक की शय पाकर किसी आदमी पर झपटने में देर नहीं लगाता, कमीने पन की हद को पार करते हुए बोला, "बूढे, अब थोड़े ही बोला जाएगा तेरे से |"
मुझे इन दोनों की बातें सहन न हुई अतः उठकर गुस्से में कहने लगा, तुम सब इस भूल में मत रहना कि मैं तुम सबको एक साथ देखकर डर गया हूँ | अगर कुछ करने की नौबत आई तो वैसे तो मैं अकेला ही बहुत हूँ फिर भी बताए देता हूँ कि मेरी एक आवाज से तुम सब इस कालोनी से बाहर अपने पैरों पर चलकर जाने लायक नहीं रहोगे | और आप सबके बीच अपने को सुरक्षित समझ ये जो जनानिया, हेमंत, अपनी औकात भूल कर ज्यादा बोल रहा है इस जैसे दो को तो अब भी मैं अपनी काँख में दबाकर, जैसे बाली ने रावण के साथ किया था, भागता रहूँ और किसी को पता भी न चले | फिर नरेश की तरफ देखकर, "और तुम कौन हो ?"
"यही तो हम तुझे बताने आए हैं कि हम हैं कौन" ,इसके बाद वह अपनी कुर्सी से उठकर बोला, "हम फैसला करने आए हैं |"
"और फैसला अभी चाहते हैं, चुन्नी लाल ने बात को पूरा करते हुए कहा |
मुझे किसी बात का कोई ज्ञान नहीं था इसलिए मैंने दंग होकर पूछा, "फैसला करने आए हो ! फैसला अभी चाहते हो ! परंतु किस चीज का फैसला चाहते हो यह भी तो पता चले ?"
इस बार महेश बोला, "अंजू के बारे में |"
यह भी तो पता चले कि अंजूँ के बारे में किस चीज का फैसला चाहते हो ?
इस बार वेद ने कहा, "यही कि अंजूँ को आप ठीक से रखोगे |"
मैंने उल्टा प्रशन किया, "कौन कहता है कि तुम्हारी अंजूँ को हम ठीक से नहीं रख रहे ?"
चुन्नी लाल भी अपने बेटे हेमंत की तरह सभी रिस्ते नातों को ताक पर रखते हुए गुर्राया, "अगर तू ठीक से रखता तो इसे थाने जाने की नौबत नहीं आती ?"
थाने का नाम सुनकर मैं स्तब्ध रह गया | मेरे मुहँ से केवल इतना ही निकला, "थाने |"
हाँ थाने |
थाने का नाम सुनकर मैं सोच में पड़ गया | मैं अपने मन में स्थिति का जायजा लेते हुए समझ गया कि मामला कुछ ज्यादा ही गम्भीर हो गया लगता है |
मुझे अपने फूफा जी की कही बातें घटित होती नजर आने लगी | उनके अनुसार कासन की लड़कियाँ अपने ससुराल वालों की नाक में दम करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाती हैं तथा उसके पीहर वाले वैसे तो शादी के बाद अपनी लड़की की सुध नहीं लेते परंतु ऐसे कार्यों में वे उसका पूरा सहयोग देते हैं |
मैंने मामले की तह तक जाए बिना उनसे बात करना उचित नहीं समझा अतः कहा, "देखो आप सब अंजूँ के चाचा, ताऊ, मामा, भाई और जो भी हो मुझे पहले से बताकर तो आए नहीं कि आप कुछ फैसला करने आ रहे हो अन्यथा मैं भी अपने कुछ रिस्तेदारों को बुला लेता | अतः इस समय तो कोई फैसला हो नहीं सकता |
मैंने अभी अपना कथन पूरा किया भी नहीं था कि नरेश अपनी जगह से उठकर मेरी और आते हुए चेतावनी देते हुए बोला, "ये मत सोचना कि हम तूझे छोड़ देंगे | हम तो लड़की को भी अपने साथ लेजाकर उसके भरण पोषण का माद्दा भी रखते हैं |"
इसके बाद मेरे सामने रखी मेज को थपथपा कर तथा फिर पटक कर बोला, "बुला लेना जिसे बुलाना चाहता है | हम किसी से डरते नहीं |"
डरने की बात तो यह है कि तू तो अभी से डरा पड़ा है तभी तो अपने दस गुंडों के बीच घिरा हुआ भौंक रहा है | इस बात को भूल जा कि मैं डरने वालों में से हूँ | और सुन जब फैसले के लिए बैठेंगे जब तूझे सही जवाब दूंगा कि मेरे सामने इस मेज थपथपाने एवं पटकने का मतलब क्या होता है | आ जाना भूलना नहीं ,मैंने नरेश को न्यौता दिया|  

इसके बाद अंजूँ के सभी रिस्तेदार उठे और चले गए |

Saturday, October 28, 2017

मेरी आत्मकथा- 23 (जीवन के रंग मेरे संग) छोटी बहू

मैं अपने बच्चों को भी उच्च शिक्षा देने का पक्षधर था | मेरी लड़की केन्द्रीय विद्यालय में तो बड़ा लड़का भारतीय वायु सेना के सुब्रतो पार्क स्कूल में पढ़ रहा था | पहले तो मैंने अपने छोटे लड़के को एयर फ़ोर्स स्कूल पालम में दाखिला दिला दिया था परन्तु बाद में अपने छोटे लडके पवन को भी उसके बड़े भाई के स्कूल में ही दाखिला दिला दिया | मेरा बड़ा लड़का प्रवीण शांत स्वभाव का था जबकि पवन  साहसी और निडर था | बड़ा लड़का तो स्कूल से साधारण स्थिति में पास होकर निकल गया परन्तु छोटा लड़का एक अजीब स्थिति में फंस गया |
मेरे हिसाब से पवन  पढाई लिखाई में ठीक ही था परन्तु स्कूल की परीक्षाओं में उसके नंबर कम आते थे | इसका मलाल पवन  के चेहरे पर साफ़ दिखाई देता था | वह खीजकर रह जाता परन्तु किसी से कुछ कह नहीं पाता था | उसे आभाष था कि स्कूल में उसके साथ भेदभाव किया जा रहा था | वायु सेना का स्कूल होने की वजह से वहाँ के अध्यापक बड़े बड़े आफिसरों के बच्चों की तरफ ज्यादा तवज्जो देते थे तथा उन्हें ज्यादा अंक भी देते थे | ऐसे बच्चे अपने को बहुत होशियार तथा स्पेशल मानकर अपने सहपाठियों का तिरस्कार करने से भी नहीं चूकते थे | यह पवन को गवांरा नहीं होता था |
एक बार घर आते समय स्कूल की बस में किसी ने पवन  से कुछ गलत कह दिया | उसने गुस्से में उस लड़के को  मारना चाहा तो वह अचानक सामने से हट गया | पवन  का मुक्का एक ऐसे लड़के पर पड़ गया जो बड़े आफिसर का लड़का था | बात इतनी बढ़ गई कि मुझे उसके स्कूल में जाकर मामला सुलझाना पड़ा था | इसके बाद तो जैसे सारे अध्यापक तथा बड़े आफिसरों के लड़के पवन  के खिलाफ हो गए थे | उन सबने मिलकर पवन  के ऊपर एक झूटा आरोप मढ़कर उसे स्कूल से बर्खास्त कर दिया |
पवन  स्कूल तो जाता परन्तु उसकी भूख प्यास उड़ गई, वह उदास रहने लगा, गुमसुम रहनी की मुद्रा अख्तियार कर ली और हमेशा फूल से खिले रहने वाले चेहरे पर मुर्दानगी छा गई | मैंने  ने जब जानना चाहा तो पवन  ने डरते हुए स्कूल से मिला नोटिस मुझे पकड़ा दिया | लिखा था , पवन  को स्कूल से बर्खास्त किया जा रहा है क्योंकि इसने आफिसर के मकानों में पानी को बाधित करने का प्रयास किया है | मैंने नोटिस पढकर पवन  से पूछा, क्या तुम्हें लगता है कि तुम कसूरवार हो |
पापा जी मैं किसी प्रकार भी कसूरवार नहीं हूँ |
क्या स्कूल में तुमने अपना पक्ष रखा था ?
मुझे कोई मौक़ा ही नहीं दिया गया |
अगले दिन मैं पवन  को लेकर उसके स्कूल गया | वहाँ स्कूल के वाईस प्रिंसिपल के सामने अपने लड़के को पूरा किस्सा बयान करने को कहा | उसकी बात सुनकर वाईस प्रिंसिपल भडक उठे तथा ऊंची आवाज में मेरे पर  ही इल्जाम लगाने लगे कि उसने ही अपने लड़के को वह कहानी गढ़ कर दी है जो वह बयाँ कर रहा है |
वाईस प्रिंसिपल के झूठे आरोप से मैं अंदर तक आहत हो गया | मैंने समझ लिया कि इस स्कूल का ढांचा ही ऐसा है जो एक सिपाही के बच्चे को वह अहमियत नहीं देगा जो एक आफिसर के बच्चे को दी जाती है | यहाँ का पूरा स्टाफ दास्ता की बेड़ी में जकडा हुआ गुलाम है | अपने अहम को बरकरार रखने के लिए मैंने अपने मन की भडांस निकालते हुए कहा, आप अपनी जबान पर काबू रखिये | आपके सामने आपका शिष्य नहीं बल्कि उसका बाप बैठा है | अगर उसके सामने मैं भी आपको आपकी जबान में जबाब दे दूं तो आप को जिंदगी भर उसे देख कर मेरा भूत नजर आएगा |
वाईस प्रिंसिपल कुछ संभला और कोमल शब्दों में बोला, परन्तु इसने पहले तो मुझे ये बातें बताई ही नहीं जो यह अब बता रहा है |
मैं भी आज ही आपके सामने सुन रहा हूँ |
आपका मतलब आपने घर पर इससे कोई बात नहीं कही या पूछी ?
आप वजा फरमा रहे हैं |
माफ करना मैं समझा आप अपने लड़के को सिखा पढाकर लाए है.|
मैंने  ने धीरे से वार किया, ऐसी सोच आप के ओहदे को शोभा नहीं देती |
थोड़ी देर के लिए वाईस प्रिंसिपल किंकर्तव्यमूढ़ होने के बाद बोला, आप पवन  की स्कूल से बर्खासतगी का पत्र वापिस कर दीजिए मैं उसे बहाल करता हूँ |
मैंने जवाब में अपना फैसला सुनाया, सर आपका बहुत धन्यवाद परन्तु अब मैं पवन  को इस ऐसे स्कूल में नहीं पढ़ाना चाहता जहां बच्चों के साथ उसके माँ बाप के ओहदे के अनुसार वर्ताव किया जाता हो तथा परीक्षा में नंबर दिए जाते हों न कि बच्चे की अपनी काबलियत के अनुसार |
और मैंने पवन  को उस स्कूल से निकाल कर दूसरे स्कूल में करा दिया जहां वह अच्छे नंबरों से पास होने लगा |
१०+२ के बाद पवन न पढने वालों की संगत में पड़ने के कारण आगे पढाई न कर सका | मैंने भरसक प्रयत्न किया कि वह उच्च सिक्षा ग्रहण करले जिसके लिए मैंने उसे गुडगांवा में भी दाखिला दिलाया | गनीमत रही कि वह जल्दी संभल गया और मालचा मार्ग से हार्ड वेयर कम्पुटर कोर्स में डिप्लोमा करने के बाद अपना खुद का काम करने लग गया |
पवन सुन्दर, सुशील, स्वस्थ, आदर सत्कार करने वाला, नए नए तथा सुन्दर कपड़े पहनने का शौक़ीन तथा साफ़ सुथरा रहना पसंद करता था | वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जिसके करने से उसके हाथ या कपड़े गंदे होने का अंदेशा रहता हो | मेरा एक पार्ट टाईम जनरल स्टोर था | पवन को अपने साज श्रृंगार पर धब्बा लगने का इतना डर रहता था कि कभी अड़े भिडे में अगर उसे दुकान संभालने के लिए कह दिया जाता तो खुले आटा या तेल इत्यादि के ग्राहक को वह बहाना बना कर लौटा देता था | 
मेरी लड़की और बड़े लड़के प्रवीण की शादी हो चुकी थी | अब पवन के रिस्ते भी आने शुरू हो गए थे |
जब मेरी लड़की के रिस्ते की बात, शास्त्री नगर से मनोज  के साथ, चल रही थी तो मेरे जीजा जी श्री शिव शंकर  ने प्रीतमपुरा से अपनी बुआ के लड़के का सुझाव भी दिया था | लड़के दोनों ठीक थे | दोनों में से एक पसंद करना वाकई टेढी खीर था | मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या किया जाए | इतने में मुझे अपने मामा जी के लड़के विनोद की याद आई जो मेरी अपनी उम्र के समकक्ष था तथा मालवीय नगर और प्रीतमपुरा दोनों के घरों में सम्बन्ध रखता था | यह सोचकर कि वह दोनों लड़कों के बारे में बखूबी जानता होगा एक दिन उससे पूछा, भाई साहब शास्त्री नगर के घरों में आपकी बहन की शादी हुई है ?
हाँ भाई साहब, कहिए क्या बात है ?
मुझे मनोज  के बारे में जानना है |
क्या बिटिया का रिस्ता करने की सोच रहे हो ?
हाँ भाई जी |
भाई साहब, मेरे हिसाब से आज के जमाने में लड़के के तीन गुण देखने आवश्यक हैं ?
कौन कौन से ?
धीरज रखो बता रहा हूँ |
पहला-लड़का स्वस्थ, सुन्दर, और किसी ऐब वाला न हो |
दूसरा-अपनी कमाई कर रहा हो |
तीसरा-घर का मकान हो |
मैंने अपने भाई की हाँ में हाँ मिलाई, भाई साहब आपके विचार मेरे विचारों से मेल खाते हैं |
विनोद ने बताया भाई साहब ये तीनों गुण मनोज  के पास हैं |
मैंने दूसरे लड़के का पूछा, भाई साहब प्रीतम पूरा में आपके मामा जी का जो लड़का है वह कैसा है ?
विनोद झट से बोला, वह भी मेरी तीनों शर्तों पर खरा उतरता है |
तो फिर आपकी द्रष्टि में कौन सा उचित रहेगा ?
इस बार विनोद सोचने पर मजबूर हो गया था | वह थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला, आपके लिए दोनों लड़के ठीक हैं रही बात कौन सा बेहतर साबित होगा तो वह तो भविष्य ही बताएगा |
मैंने  ने जोर दिया, भाई साहब आपका तो दोनों के यहाँ आना जाना है | आप तो उनकी रग रग से वाकिफ होंगे |
वह तो है |
फिर आपका तजुर्बा किस को अहमियत देता है ?
विनोद खुला, ऐसा है दोनों में केवल एक फर्क है, प्रीतम पूरा वाले के पास पैसा ज्यादा है परन्तु वह पीने पिलाने का शौक़ीन है परन्तु शास्त्री नगर वाले के पास पैसा कम है तथा कोई ऐसी आदत नहीं है |
तो कौन सा ठीक रहेगा ?
देखो भाई साहब जितना मैं जानता था मैनें दोनों के बारे में आपको पूरी जानकारी दे दी है अब आप अपने घर में सलाह करके तय करलो कि किस्से बात आगे बढ़ानी है |
मेरे जीजा जी शिव शंकर को प्रीतम पूरा रिस्ता कराने की शायद ज्यादा ही जल्दी थी | उनका फोन आया, हाँ, चरण, क्या रहा ?
जीजा जी थोड़ा ठहरो मैं बता दूंगा |
दो दिन बाद मैंने फोन पर ही अपने जीजा जी को खबर कर दी कि उसने शास्त्री नगर से रिस्ता पक्का करने की ठान ली है | शिवशंकर जी ने कोई प्रशन नहीं किया तथा टेलीफोन को धम्म से नीचे रख दिया | शायद उनको मेरा  निर्णय पसंद नहीं आया था |     
अब जब मेरे छोटे लड़के पवन  के रिस्ते की बात चलने लगी थी तो शिवशंकर  जी का फोन आया, मेरे घर के पास एक सुन्दर, सुशील, पढ़ी लिखी, गृहस्थ कार्य एवम व्यवहार कुशल एक लड़की है | कहो तो रिस्ता भिजवाऊँ ?
जीजा जी कहीं न कहीं रिस्ता तो करना ही है | अगर आपकी देखी भाली लड़की है तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है ? 
और आनन् फानन में बिरला मंदिर पर देखा दिखाई का प्रोग्राम बन गया | नियत समय पर दोनों पक्ष निश्चित स्थान पर पहुँच गए | थोड़ी देर की इधर उधर की बातों के बाद अचानक शिवशंकर जी ने कहा, चलो भई चलो काम हो गया |
उनके कहने से लड़की वालों ने अपना सामान समेटा और नौ दो ग्यारह हो गए | साथ में शिवशंकर  भी बिना बताए नदारद हो गए | मेरे परिवार वालों को कुछ समझ नहीं आया कि क्या हुआ | जब सब चले ही गए थे तो हम रुक कर क्या करते |
घर जाकर मैंने शिवशंकरजी को फोन मिलाया, जीजा जी कल क्या हुआ था ?
कुछ नहीं |
तो फिर बिना बताए सब ऐसे क्यों भाग गए जैसे मधु मक्खियों ने आप पर हमला बोल दिया था ?
ऐसी तो कोई बात नहीं थी |
तब कैसी बात थी ?
शिवशंकर  ने थोड़ी हंसी के पुट में बताया, लडकी वालों को रिस्ता पसंद नहीं आया |
अपने जीजा जी की बात सुनकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि बिना कुछ मेरे से बात किये उन्होंने लडकी वालों की बात कैसे मान ली | मुझे तो लडकी के आते ही उसके व्यवहार से ही शंका हो गई थी कि वह असमंजसता की स्थिति में है तथा बात बननी मुश्किल है | मैंने अपना मन बना लिया था कि बात चलने पर वह इस बात का खुलासा करेगा तथा अपनी तरफ से रिस्ते को मंजूरी नहीं देगा | परन्तु यहाँ तो बात शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई थी | अब अपने जीजा जी के हंसी के पुट ने मेरे मन में संदेह उत्पन्न कर दिया था कि हो न हो शिवशंकर  जी ने अपनी उस बात की खुनस निकाली है जब उनके बताए हुए प्रीतम पूरा वाले लड़के को उसने नकार दिया था | खैर किसी की नियत कैसी भी हो भगवान का रहम होना चाहिए और वह मेरे पर था |
अबकी बार पवन का रिस्ता महावीर एन्कलेव से आया | लड़की बी.ए. पास थी | उनका घर मेरे कई रिश्तेदारियों से जुडा था | सभी ने लड़की वालों के घर को अच्छा ही बताया था | मेरा दामाद दूर के रिस्ते में लड़की के पिताजी के भाई लगते थे | उन्होंने भी लड़की की सिफारिस करने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी | लड़की को देखने दिखाने के बाद मैंन असमंजस में था अत: कहा, हम घर जाकर जवाब दे देंगे |
मेरे घर में वार्तालाप हो रहा था | घर में मेरे परिवार के सदस्यों के साथ मेरे दामाद और मेरी लड़की भी मौजूद थी | थोड़ी देर पहले ही वे पवन के लिए लड़की देखकर आए थे परन्तु किसी प्रकार की कोई सहमती प्रकट नहीं की थी | बैठते ही लड़की किस को कैसी लगी तथा आगे के क्या कार्यक्रम होगें पर वार्तालाप शुरू हो गया |
संतोष:-लड़की तो सुन्दर है |
प्रभा:-हाँ नयन नक्श के साथ रंग भी गोरा है |
मनोज :-पवन  के हिसाब से पढ़ी लिखी भी ठीक ही है |
मैंने अपना मत प्रकट किया, वैसे तो आप लोगों की बातें सही हैं परन्तु लड़की की चाल एवं बोल पर भी किसी ने ध्यान दिया या नहीं ?
संतोष:-चाल ढाल और बोली में अगर कुछ फर्क है भी तो वह हमारे यहाँ रहने से अपने आप सुधर जाएगा |
मेरा भी मत था कि कोई भी व्यक्ति हर प्रकार से दूसरे के लिए पूर्ण नहीं होता | यही वह कहलवाना चाहता था | फिर भी रिस्ता पक्का करने की हाँ भरने से पहले वह पवन से उसकी राय जानना चाहता था |
मनोज ने इस बार कटाक्ष करते हुए पूछा, पापा जी दस में से आप कितने नंबर देते हो ?
मैं मनोज जी के कटाक्ष को समझ कर हँसे बिना न रह सका | मेरी इस हंसी में मनोज को तो सम्मिलित होना ही था परन्तु और सब उन्हें हंसते देख भौचक्के से रह गए | शायद वे मनोज जी के इस कटाक्ष के कारण से अनजान थे | हुआ यूं था कि मेरी लड़की प्रभा की देखा दिखाई में उनकी ना-नुक्कड़ को भांपकर मेरे बड़े भाई साहब जी ने मनोज जी से यही प्रश्न पूछकर उन्हे निरूत्तर कर दिया था | फिर भी मैंने जवाब दिया, मनोज  जी आपने यह प्रश्न पूछने में बहुत देरी कर दी |
इतने में मेरी लड़की प्रभा ने अपने पति मनोज तथा चचिया ससुर से प्रभावित हो प्रश्नों की झड़ी लगा दी, पापा जी आपको लड़की पसंद नहीं आई क्या ?
ऐसी तो कोई बात नहीं है | लडकियां तो सब एक सी होती हैं |
तो फिर आपने वहाँ हाँ क्यों नहीं की ?
बस इस लिए कि सब अपनी पक्की राय बता दें |
राय किससे बनानी है | आप, मम्मी जी और पवन  |
क्यों आप भी तो हो |
मैं तो आप से पूछ ही रही हूँ इसका मतलब मैं तो राजी हूँ |
मनोज जी |
वे तो पहले से ही इस रिस्ते के पक्षधर हैं |
ठीक है बात करके बताता हूँ |
अचानक प्रभा कुछ नाराजगी भरे लहजे में बोली, दूसरों को रूलाना जरूरी है क्या ?
क्या मतलब ?
पापा जी महावीर एन्कलेव वालों को लग रहा है कि आप हाँ नहीं करोगे |
इसमें मेरी अकेले की मर्जी थोड़े ही चलेगी | जो सब को मंजूर होगा वही किया जाएगा |
पापा जी इस बारे में अधिक मत सोचो | पवन  की हालत तो आप देख ही रहे हो | शरीर बेडोल होता जा रहा है | ऐसा न हो .........| घर आती लक्ष्मी को मत रोको |
अपनी लड़की के ऐसे वचन सुनकर मैं कुछ असहज सा हो गया | मेरे लड़के की उम्र अभी कुछ ज्यादा तो नहीं हुई थी | उसके बड़े भाई का पवन से बड़ा लड़का भी अभी कवारा था | फिर प्रभा ऐसा क्यों कह रही थी | मुझे महसूस हुआ कि वह किसी दूसरे की जबान से प्रभावित बोल रही थी |
मैंने संयम रखकर कहा, बेटा पवन से पूछना तो जरूरी है ?
हालाँकि मेरी पत्नी ने अपना पूर्ण बहुमत नहीं दिया परन्तु पवन के कहने पर कि ठीक ही है, मैंने रिस्ते की हामी की खबर महावीर एन्कलेव पहुंचा दी |

महावीर एन्कलेव हामी की खबर जाते ही मनोज जी आश्वस्त होकर मेरी पत्नी संतोष की तरफ देखकर बोले, अब हाँ हो ही गई है | अब आगे का सोचो की शादी कब की रखनी है |
संतोष मेरी और निहार कर बोली, इसके बारे में तो ये ही जानें |
मनोज :-पिताजी शादी के लिए पंडित जी से दो तीन तिथियाँ निकलवा लेना | उनमें से जो हमें ठीक रहेगी उसे पक्का कर लेंगे |
मैंने सोच विचार कर पूछा, तारीखें तो निकलवा लूंगा परन्तु पहले इस बात का फैसला तो कर लो कि बिरादरी के लोगों को लग्न पर दावत देनी है या रिस्पशन का प्रोग्राम रखना है |
बिलकुल यह तो पहले तय करना पडेगा,  प्रभा ने अपनी राय दी |
पवन :-रिस्पशन का प्रोग्राम तो बहुत बेकार तथा उबाऊ लगता है | क्योकि दुल्हा दुल्हन को घंटो मूर्ति बनकर बैठना पड़ता है ऊपर से उठक बैठक अलग करनी पड़ती है |
संतोष ने चुटकी ली, सभी ध्यान से सुन लो पवन की शादी पर लग्न पर ही दावत देनी है |
मम्मी जी आपने बिलकुल ठीक फरमाया है | पवन ने अपनी इच्छा पहले ही जाहिर कर दी है | इसकी शादी पर हमें ध्यान रखना होगा कि लग्न ही हो रिस्पशन नहीं |
सब जोर से ठहाका लगाकर हंसते हैं और पवन कुछ झेंप जाता है | इसके बाद मनोज जी ने कहा, पिता जी, अब हमारे पास समय कम है और काम ज्यादा | क्योंकि शादी के साए केवल २९ फरवरी तक ही हैं | अत: जितना जल्दी हो सके आप पंडित जी से शादी की तिथियाँ सुजवा लाओ | जिससे हम आगे के प्रोग्राम बना सकें |
मैंने  घड़ी देखकर बोला, ठीक है अब तो देर हो गई है मैं सुबह ही पंडित जी से मिल लूंगा |
संतोष:-पहले सामने वाले इस मौहल्ले के मंदिर के पंडित जी से सुजवा लेना |
मैं सामने वाले मंदिर तथा अपने पंडित जी से पूछ आऊँगा तुम(संतोष) कृष्ण मंदिर में पूछ आना |
संतोष:-ठीक है |
मनोज :-सभी काम फ़टाफ़ट करने होंगे क्योंकि समय कम है | चीज-बस्त, कपड़े-लत्ते, कार्ड, खाना-पीना, बैंड-बाजा  इत्यादि बहुत सी वस्तुओं का इंतजाम करने में दिन यूं ही निकल जाएंगे पता भी नहीं चलेगा कि कब तय तिथि आ धमकी |
मैंने याद कराया, हाँ कार्ड का मजबून भी तो बनाना होगा |
मनोज :-कार्ड के तीन चार मजबून बनाकर आपको दिखा दूंगा | जो सभी को पसंद आएगा वह छपवा लेंगे |
मैंने ने हामी भरते बातों को विराम देने के लिए कहा, अब रात काफी हो गई है | सब सो जाओ | बाकी बातें सुबह करेंगे |
मनोज :-पिता जी अब सोने से काम नहीं चलेगा | अब तो हमारे पास केवल्र रात ही है विचार विमर्श करने के लिए क्योंकि दिन में तो हमें बाजार का काम निपटाने से ही फुर्सत नहीं मिलेगी |
मैंने अपना पक्ष रखा, देखो जी ‘साफ़ कहना सुखी रहना’ आप लोग जो ठीक समझो उतनी देर तक जागो | मुझे तो सुबह बता दिया करना कि दिन भर का क्या प्रोग्राम बनाया है मैं उसी अनुसार चला करूँगा | परन्तु मैं  समय पर सो जाना चाहता हूँ |