Sunday, July 10, 2011

पराकाष्ठा

पराकाष्ठा
देश अराजकता के दौर से गुजर रहा था | चारों दिशाएँ असंतुष्टता से पीड़ित जान पड़ती थी | पूर्व में नक्सलवादियों ने सिर उठाया हुआ था | उत्तर में उग्रवादी अपनी क्रूरता की धाक जमाने में तुले थे | पश्चिम में धर्म के नाम पर लोग बंट गये थे तथा प्रत्येक दिन कहीं कहीं दो गुट आपस में उलझे रहते थे | दक्षिण में लिट्टे ग्रुप अपनी पहचान बनाने को आतुर था |
प्रत्येक दिन समाचार पत्र आगजनी, लूटपाट, बम विस्फोट इत्यादि खबरों से भरे रहते थे | आहिस्ता आहिस्ता लोगों में धार्मिक विचारों के साथ साथ जात पात की आस्था भी प्रबल होती जा रही थी | तभी तो झारखंड मुक्ति मोर्चा, बोदोलैंड खलिस्तान तथा गौरखालैंड आदि बनाने की मांगे जोर पकड़ती जा रही थी | देश का प्रशासनिक ढांचा चरमरा सा गया था | आम जनता बढती महंगाई से परेशान थी | राशन गोदामों पर राशन के बराबर था और जो था भी वह ब्लैक में बिक रहा था | नौकरी पेशे वाले भी परेशान थे | उनकी कोई कोई संस्था हर रोज हड़ताल पर रहती | देश की आमदनी दिन पर दिन घटती जा रही थी क्योंकि काम करने के नाम पर औहदेदार देश की बजाय अपनी जेब का अधिक ख्याल रखने लगे थे |   
विरोधी राजनितिक दल सत्तारूढ दल को किसी प्रकार की कोई सहायता देने को तैयार थे | इसके विपरित वे सत्तारूढ दल के हर उन्नति की तरफ बढाए कदमों में रोड़ा अटका रहे थे और जनता को गुमराह करके खुद सत्ता सम्भालना चाहते थे | इस प्रकार चारों और अराजकता का राज्य स्थापित था |
देश की आंतरिक स्थिति को भाँप कर पड़ौसी देश भी अपना उल्लू सीधा करने की तैयारी में लग गए थे | देश की सीमा पर उनका आना जाना तथा जमाव शुरू हो गया था | समय की नजाकता को देखते हुए वे किसी भी दिन अपनी सीमा लांघकर अपने देश की सीमा बढा सकते थे |
इन सभी समस्याओं से निबटने का केवल एक ही विक्लप था और वह थी देश में आंतरिक इमैरजैंसी | अतः देश के प्रधान मंत्री ने जरूरी समझते हुए यह कदम उठा भी लिया | इमरजैंसी की घोषणा से पहले सभी सेनाओं की छुट्टियाँ रद्द कर दी गई तथा सभी फौजियों को अपनी अपनी यूनिटों में शिघ्रातिशिघ्र पहुँचने की ताकिद दे दी गई |
आंतरिक इमैरजैंसी के तहत देखते ही  देखते  एक ही रात में हजारों लोगों को बन्दी बना लिया गया | यहाँ तक कि कई घरों की औरतों एवं बच्चों को तो पता ही चला कि कब उनके पिता या पति को पकड़ लिया गया तथा जेल में डाल दिया गया अधिकतर ऐसा ही पाया गया कि जब घर के सद्स्य सुबह सोकर उठे तो उनके बड़े आदमी घर से नदारद पाए गये | कुछ लोग जिन्हें पहले से ही ऐसी भनक लग गई थी वे पकड़े जाने के डर से कहीं छुप गये थे | चारों और आशचर्य एवं भय का वातावरण बन गया था | विरोधी दलों का ऐसा मुश्किल से ही कोई नेता बचा होगा जो जेल में डाल दिया गया था | यहाँ तक कि पार्टियों के छोटे मोटे कार्यकर्ताओं को भी नहीं बक्शा गया था | जो थोड़ा सा भी विरोधी पार्टी के किसी भी नेता के साथ देखा गया था वह भी जेल में बन्द कर दिया गया था |
जेल के अधिकारियों को खास हिदायत दे दी गई थी कि वह जेल में बन्द व्यक्तियों को इमरजैंसी कानून के तहत किसी भी कीमत पर रिहा नहीं किया जाएगा | जब तक कि देश की आंतरिक स्थिति सुधर नहीं जाती |          
इन्हीं दिनों चरण एयरफोर्स में कार्यरत होने के कारण जोधपुर में नौकरी कर रहा था | उसे घर से एक पत्र मिला |   
चिरंजीव चरण ,
                   प्रसन्न रहो ! अत्र कुशलम तत्रास्तु | आगामी समाचार यह है कि आपके बड़े भाई ज्ञान चन्द को जेल में बन्द कर दिया गया है | उस पर इल्जाम है कि वह जनसंघ का कैशियर है | आप तो इतनी दूर जाकर देश सेवा करने में तत्पर हो परंतु अब मुझे तथा तुम्हारे बच्चों को सम्भालने वाला कोई नहीं है क्योंकि औम प्रकाश भी सिविल डिफैंस की डयूटी पर अधिकतर बाहर ही रहता है उसके बच्चे भी अब अकेले से ही रहते हैं | अतः जानना |
                                                                                                                    आपकी माता
                                                                                                                        सरबती
पत्र पढकर चरण सन्न रह गया | उसने थोड़ी देर सोचा फिर वर्दी पहन कर सीधा अपने कमांडिंग आफिसर के पास पहुंचा | चरण की पूरी व्यथा सुनने के बाद उसके कमांडिंग आफिसर ने अपने स्टेशन कमांडर से स्पेशल आज्ञा लेकर चरण को पाँच दिनों की छुट्टी मंजूर कर दी | जब चरण घर पहुंचा तो घर में मुर्दानगी छाई हुई थी | उसने सभी को ढांढस बंधाया | फिर अपने से बडे भाई औम प्रकाश से, जो सिविल डिफैंस में भी थे, सलाह मसवरा करने बैठ गया  |
भाई साहब ,ज्ञान चन्द जी को जेल में गए कितने दिन हो गये है ?”
आज शायद पाँचवा दिन है |”
वे किस इल्जाम में जेल भेजे गए हैं ?”
वैसे तो पूरा पता मुझे भी नहीं है | मैं भी कल शाम को ही आया हूँ | जब तुम्हारी छुट्टियाँ रद्द कर दी गई थी तथा तुम चले गये थे तो उसके अगले दिन ही मुझे भी सिविल डिफैंस की तरफ से देहली की सीमाओं पर तैनात कर दिया गया था |”
चरण भावुक होते हुए बोला, भाई साहब हम दोनों तो देश सेवा में लगे हैं | अपने बाल बच्चों की परवाह कर उनसे हजारों मील दूर अपने देश की  स्थिति सुदृड बनाने में सहयोग दे रहे हैं | दूसरी तरफ हमारी गैर हाजिरी में हमारी फैमिली की देखभाल करने वाले हमारे भाई को ही झूठी खबर के मातहत जेल में डाल दिया गया है |
औम ने चरण को ढांढस देकर बताया, मैनें अपने ब्लाक वार्डन से यह बात करी थी | आज हम सब हरी नगर  सैंट्रल जेल चलेंगे जहाँ हमारा भाई ज्ञान चन्द बन्द है | देखते हैं वहाँ क्या बात बनती है |
सैंट्रल जेल देहली के बाहरी इलाके में स्थित थी | चरण अपने भाई औम प्रक| एवं सिविल डिफैंस के नारायणा क्षेत्र के वार्डन के साथ वहाँ पहुंचा | वहाँ जन समूह की अपार भीड़ थी | ऐसा लगता था जैसे देहली के सभी रास्ते यहीं आकर खत्म हो रहे थे | लोगों की भीड़ पलपल और भी बढती जा रही थी |
चरण ने देखा कि सैंट्रल जेल का काले रंग का दानव सा दिखने वाला दरवाजा बन्द था | दरवाजे के एक पाट में छोटा सा एक दरवाजा दिखाई देता था | परंतु यह आम घरों में लगने वाले दरवाजों से किसी प्रकार भी छोटा नहीं था | दरवाजे के दूसरे पाट में एक छोटी सी खिड़की लगी थी |
सैंट्रल जेल के दरवाजे के बाहर एक संतरी बन्दूक लिये पहरा दे रहा था | उसकी बगल में  ड्रम जैसी कोई वस्तु रखी थी | जनता जनार्दन एवं सैंट्रल जेल के उस भीमकाय दरवाजे के बीच लगभग 500 गज का फासला था परंतु इस फासले को मनुष्यों की एक सर्पाकार पंक्ति ने आपस में जोड़  रखा था | कतार का सबसे आगे वाला व्यक्ति गेट पर  खड़े संतरी के हाथ पर कुछ रखता तथा सैंट्रल जेल के दरवाजे पर लगी खिड़की की ओर बढ जाता | फिर वह खिड़की के अन्दर एक दो बार इधर उधर झाँकता इतने में ही संतरी की जोरदार आवाज "अगला आदमी" सुनकर वह व्यक्ति खिड़की के सामने से हट जाता | संतरी उस वस्तु को जो आने वाले लोग उसके हाथ पर रखते थे ड्रम में डालता जाता था | यह सब देख चरण की उत्सुकता बढी तथा वह नारायणा क्षेत्र के वार्डन श्री हरग्यान सिहं से पूछे बिना रह सका |
भाई साहब, यह क्या हो रहा है ?
जो हो रहा है वह तुम्हारे सामने हो रहा है |
परंतु मेरी तो कुछ समझ नहीं रहा कि यह लाईन क्यों है ?
यह इस लिये है कि उस खिड़की के अन्दर वे व्यक्ति बैठे होंगे जो आज रिहा होने वाले हैं |
चरण जो ऐसे वातावरण से बिलकुल अनभिज्ञ था जानना चाहा, तो फिर ?
हरग्यान ने चरण को समझाने की कोशिश की, लोग उस खिड़की में झाँककर अपने प्रियजन को देखकर संतुष्टि प्राप्त करना चाहते हैं कि वह रिहा हो रहा है |
परंतु वह संतरी हर व्यक्ति को क्या दे रहा है ? उस खिड़की में झांकने के लिये  क्या कोई टोकन मिलता है? जो हमें संतरी को देना पड्ता है |
हरग्यान ने चरण की मासूमियत पर मुस्कराते हुए कहा, भाई जी वह लोगों को कुछ दे नहीं रहा परंतु उनसे ले रहा है |
क्या मतलब ?
मतलब साफ है ! जो व्यक्ति अपने प्रियजन का दिदार करने को उत्सुक हो उसे कुछ तो खर्च करना ही  पड़ेगा |
चरण ने बड़े ही आश्चर्य पूछा, क्या ?
हाँ अब तुम समझे | फिर भी बता देता हूँ कि हर व्यक्ति संतरी के हाथ पर दो रूपये रख रहा है और वह तुम्हें भी रखने पड़ेंगे |
दो रूपये ! दो रूपये क्यों ? क्या यह यहाँ की फीस है ?
हरग्यान हँसे बिना न रह सका तथा कहा, मेरे भोले भाई तुम फौज में हो | बाहर कैसे क्या होता है तुम नहीं जानते | यह फीस है, जूर्माना, कानून इसे यहाँ का कायदा कहते हैं | और यहाँ के कायदे के अनुसार यह जमा राशी यहाँ की पुलिस के कर्मियों में इनके निर्धारित अनुपात के अनुसार शाम को इनमें बाँट दी  जाएगी |
क्या यह हमारे देश के खाते की जमा राशी समझी जाती है ?           
हरग्यान एक बार फिर चरण की ना समझी पर मुस्कराया, देश की आमदनी तो तब होती  जब तुम्हें इसकी रसीद मिलती |
ऐसी सब बातें करते करते इनका नम्बर भी गया | सबसे पहले औम प्रकाश था उसके बाद हरग्यान तथा सबसे पीछे चरण था | औम प्रकाश तथा हरग्यान ने तो दो दो रूपये दिये और खिडकी की तरफ बढ गये परंतु चरण संतरी की हथेली पर  बिना पैसे टिकाए ही आगे बढ गया |
चरण को आगे बढता देख संतरी जोर से चिल्लाया, अबे, ओए जंगली है क्या ?
कभी था | अब तो एक देश सेवक हूँ | 
कहाँ जा रहा है ?
जहाँ सब जा रहे है |
क्या करने जा रहा है ?
जो सब करने जा रहे हैं |
सब तो कुछ और भी कर रहे हैं |
वैसा करने के लिये मेरे पास हराम के पैसे नहीं हैं |
बडा बदतमीज है |
बदतमीज तो तू है जो बोलने की तमीज नहीं रखता |
वापिस आता है कि नहीं ? 
चरण निर्भय आगे बढते हुए, औरों को भी बुला ले मैं भी जाऊँगा |
संतरी चरण की ढीटथा पर झुंझलाकर उसे चेतावनी देते हुए,अच्छा तो तू ऐसे नहीं मानेगा |
चरण बेपरवाह आगे बढता गया तथा खिड़की के पास पहूँच गया | संतरी की ऊंची आवाज सुनकर गेट के दूसरे छोटे दरवाजे से दो तीन संतरी और निकल आए तथा चरण को धकेल कर गेट के अन्दर कर दिया
चरण को बहुत आश्चर्य हुआ जब गेट के अन्दर वे संतरी उसे यूं ही अकेला छोड्कर एक कमरे में चले गये | चरण ने गेट के अन्दर का जायजा लिया | वहाँ बहुत से व्यक्ति पंक्ति बध बैठे थे | एक तरफ बिना दरवाजे के कमरे नूमा जगह में एक मजिस्ट्रेट बैठा था जो एक एक करके बैठे हुए उन कैदियों के पेपर चैक कर रहा था जिन्हें आज जेल से छुट्टी मिलने वाली थी | इस गेट के अन्दर जहाँ वह अब खड़ा था एक और बड़ा गेट था जो इस समय बन्द था | चरण ने देखा कि उसका भाई ज्ञान चन्द उनमे नहीं था जो लोग वहाँ बैठे थे | वह मौका पाकर मजिस्ट्रेट के सामने जाकर खड़ा हो गया |   
चरण को खड़ा देखकर अर्दली ने पूछा, क्या बात है, तुम कौन हो ?
मजिस्ट्रेट साहब से बात करनी है |
पहले यह बताओ कि तुम कौन हो और यहाँ कैसे आए ?
मैं एक फौजी हूँ | इमरजैंसी के दौरान मेरे भाई को बन्दी बना लिया गया है | उसके बारे में ...........|”
चरण अपना वाक्य पूरा भी कर पाया था कि चार संतरी अन्दर आए | एक ने चरण की बाँह पकड़ी और जोर देकर कहा, "आजा जरा तुझे तमीज सिखा दें कि वह क्या होती है |" चरण ने भाँप लिया कि अब वे संतरी उसको अपने कमरे में ले जाकर उसकी धुनाई करेंगे |
अत: चरण अपनी बाँह  छुड़ाते हुए जोर से चिल्लाया, नहीं आता | तुम होते कौन हो मुझे छूने वाले ?
यह आराम से नहीं मानेगा | इसे तो उठाकर ही ले जाना पड़ेगा,कहते हुए चारों संतरी चरण की और बढने लगते हैं |
चरण ने मौके की नजाकता समझते हुए एक लम्बी छलाँग लगाई तथा मजिस्ट्रेट के कमरे के दरवाजे पर पहरा दे रहे संतरी की आटोमैटिक स्टेनगन फुर्ती से झपट कर वापिस अन्दर कमरे में घुस गया | जब तक चारों संतरी उसे पकड़ते चरण ने स्टेनगन मजिस्ट्रेट की कनपटी पर लगा दी तथा जोर से चिल्लाया, "खबरदार जो किसी ने आगे बढने की कोशिश की, मैं सबको भूनकर अपने को भी खत्म कर दूंगा |
 कुछ देर के लिये सन्नाटा छा गया |
मजिस्ट्रेट ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, क्या बात है, तुम कौन हो ?
साहब मैं एक फौजी हूँ |
तुम क्या चाहते हो ?
अपने भाई की रिहाई |
मजिस्ट्रेट ने बड़ी असमंजसता दिखाते हुए पूछा, अपने भाई की रिहाई ! वह कहाँ है ?
इसी जेल में बन्द है |
मजिस्ट्रेट ने चरण को समझाया, यहाँ से रिहाई बिना कोर्ट के आर्डर के भला कैसे मुमकिन है |
साहब जी मेरा भाई कोई मुजरिम नहीं है |
मुजरिम नहीं है तो फिर यहाँ जेल में बन्द कैसे है ?
साहब उसे शक की बिना पर कि वह भारतीय जन संघ का कैशियर है, इमरजैंसी के तहत बन्द करवा दिया गया है |
अच्छा यह बात है |
हाँ साहब मैं एक फौजी हूँ | घर से अधिकतर बाहर ही रहता हूँ | मेरा एक भाई सिविल डिफैंस में डिप्टी वार्डन है | उसकी ड्यूटी भी आजकल देहली बार्डर पर लगी हुई है | अतः केवल यही भाई जिसे लोगों ने बन्द करवा दिया है, हम दोनों भाईयों की फैमिली की देखभाल करता था | साहब अब आप खुद ही निर्णय करो कि जिसके दो दो भाई देश की सेवा में तत्परता से लगे हों वे अपनी ड्यूटी पूरी लगन से कैसे निभा पाएंगे अगर उनके बच्चों की देखभाल एवं परवरिश ठीक से हो रही हो | इसके साथ साथ अगर उनके बच्चों की देखभाल करने वाले को ही झूठी बातों के आधार पर जेल में डाल दिया गया हो तो हमारा  देश सेवा में रूची दिखाना कैसे सम्भव होगा |   
आप कैसे कहते हैं कि आपके भाई के खिलाफ झूठा आरोप लगाया गया है ? क्या कोई मौजिज व्यक्ति इस बात की गवाही दे सकता है |
हाँ दे सकता है, साहब | बाहर मेरे भाई औम प्रकाश एवं हमारे ब्लाक के सिविल डिफैंस के वार्डन श्री हरग्यान सिहं जी भी आए हैं |
पहले तो  मजिस्ट्रेट ने, संतरी, जो चरण के लिये घात लगाए खड़े थे की तरफ इशारा किया कि वे चले जाएँ | फिर उसने अपने गार्ड को बुलाकर आदेश दिया कि चरण के भाई औम प्रकाश तथा वार्डन हरग्यान सिहं को बाहर से बुला लाए |
थोडी देर में दोनों मजिस्ट्रेट के सामने खड़े थे | वार्डन हरग्यान ने चरण को जब मजिस्ट्रेट पर स्टेनगन ताने देखा तो अचरज में पड़ गया |
हरग्यान गुस्से में बोला, यह क्या कर रहे हो ?
कुछ नहीं इंसाफ मांग रहा था |
यह कौन सा तरीका है इंसाफ मांगने का | तुम तो देश के रक्षक हो | ऐसे इंसाफ मांगना तुम्हे शोभा नहीं देता |
ऐसा मैनें मजबूर होकर किया है | अगर मैं ऐसा करता तो यहाँ के संतरी मेरा कचूमर निकाल देते तथा मजिस्ट्रेट साहब को मेरी दास्तान पता भी चलती |
ठीक है ठीक है | अब यह खत्म करो और मजिस्ट्रेट साहब से माफी मांगो |
चरण असमंजसता के वातावरण में स्टेनगन मजिस्ट्रेट की कनपटी से हटा कर थोड़ा दूर खड़ा हो जाता है |
मजिस्ट्रेट ने दरियाफ्त करने के लिए हरज्ञान से पूछा, अच्छा  चौधरी साहब क्या आप चरण के भाई ज्ञान चन्द को जानते हैं ?
हाँ साहब इनकी पूरी फैमिली को खूब अच्छी तरह से जानता हूँ |
तो क्या ज्ञान चन्द जन संघ से सम्पर्क नहीं रखता ? क्या वह उस पार्टी का कैशियर नहीं है ?
साहब ये बनिया आदमी हैं | खजांची तो ये जन्म से होते हैं | परंतु ये खजांची "धरोड़" के होते है |
मजिस्ट्रेट कुछ सोचते हुए, धरोड़ के ! यह धरोड़ क्या होती है ?
साहब ये लोग ब्याज बट्टे का काम करते हैं | कुछ रखकर रूपया ब्याज पर दे देते हैं | उसे ही धरोड़ कहते हैं | आजकल के जमाने में धरोड़ रखने वाले को अनपढ लोग भी कैशियर का नाम देने लगे हैं |
तो क्या ज्ञान चन्द का जन संघ से कोई वास्ता नहीं है ?
नहीं साहब, इन्हें इतनी फुर्सत कहाँ कि किसी पार्टी वार्टी के चक्कर में पड़ें | ये लोग तो वैसे भी दिल के बड़े कमजोर और डरपोक होते हैं |
मजिस्ट्रेट मुस्कराते हुए, डरपोक | चौधरी साहब जब डरपोक का दिल (चरण की तरफ देख कर ) इतना निडर है तो फिर निडर का दिल कैसा होगा यह तो मैं सोच भी नहीं सकता |
मजिस्ट्रेट के कहने से एकबार माहौल खुशनुमा हो गया | सभी के चेहरों पर तनाव की जगह मुस्कान दिखाई देने लगी थी |
यह तो फौजी है साहब | अखड़ दिमाग जो ठहरा | इसकी तरफ से मैं आपसे माफी मांगता हूँ,कहकर हरज्ञान हाथ जोड़कर खड़ा हो गया |
मजिस्ट्रेट चरण को सम्बोधित करते हुए बोला, यह जो आज तुमने निडरता दिखाई है उससे मैं बहुत खुश हूँ परंतु तुमने जो किया है वह कानूनन अपराध है | तुम यह मत सोचना कि मैं तुम्हारे कारनामें से डरकर तुम्हारे भाई को छोड़ रहा हूँ | अगर मैं चाहता तो  तुम्हें कभी का बन्दी बनाकर जेल में डलवा देता | परंतु मैनें ऐसा किया नहीं क्योंकि मैने सोचा कि मेरे ऐसा करने से हमारे देश के दो सच्चे सेवकों का बागी हो जाने का खतरा पैदा होने का डर था (औम प्रकाश की तरफ देखता है )| फिर भी तुम्हें हिदायत देता हूँ कि आईन्दा कभी भी कानून को अपने हाथ में लेना अन्यथा तुम्हारे जैसा कोई अक्खड टकरा गया तो  जिन्दगी भर पछ्ताते रह जाओगे |
साहब मुझे  माफ कर दो | परंतु यहाँ की घुसखोरी एवं बेईमानी को देखकर जो आपकी नाक के नीचे हो रही है मैं अपने आप पर काबू रख पाया |
मजिस्ट्रेट को जैसे चरण की बात पर विश्वास ही न हुआ हो, घुसखोरी और बेईमानी यहाँ ! ?
हाँ साहब | अभी पिछले महीने ही हमारे माननीय प्रधान मंत्री जी ने हमारे देश की स्वर्ण जयंती पर ऐतिहासिक लालकिले की प्राचीर से घुसखोरी के खिलाफ जेहाद छेड़ने की घोषणा की थी उन्होने कहा था कि घुसखोरों को बड़े  अधिकारियों की जानकारी में जनता को लाना चाहिये तभी हम उनके खिलाफ कुछ कार्यवाही करने में समर्थ हो पाएंगे | परंतु यहाँ मुझे यह जानकर बहुत आश्चर्य एवं आघात लगा कि जिस जेल के दरवाजे के इस पार खून, चोरी, मारपीट, बेईमानी और घुसखोरी जैसे जूर्मों के कारण सैकडों लोग बन्दी हैं उसी दरवाजे के बाहर उस पार हजारों लोगों के सामने पुलिस वाला अपनी मुट्ठी गरम हुए बिना किसी को आगे बढने ही नहीं देता क्या कानून उसके लिये नहीं है | क्या घुसखोरी पुलिस वालों का जन्म सिद्ध अधिकार है ?
यहाँ ऐसा हो रहा है मुझे विशवास नहीं होता |
साहब, हाथ कंगन को आरसी क्या | खुद चलकर देख लिजिए |
सभी व्यक्ति जो वहाँ मौजूद थे उठ खड़े होते हैं | मजिस्ट्रेट साहब सबसे आगे थे | उनके कदम एक विजेता की तरह बढ रहे थे | वे आनन फानन में गेट के छोटे दरवाजे को लांघकर बाहर जा खड़े हुए | बाहर का दृश्य देखा तो उनकी आंखे फटी की फटी रह गई | अब उनमें इतनी भी हिम्मत रही कि चरण से आंख मिला सकें | मन पर एक बोझ लिये वे वापिस गेट की तरफ पल्टे | उनके चेहरे का तेज गायब हो चुका था | चेहरे का पीलापन ऐसा आभास देने लगा था जैसे उनके शरीर का सारा खून एकदम पानी बन गया हो | उन्होने अपनी बेजान सी उंगली के इशारे से संतरी को छोटा दरवाजा खोलने का इशारा किया तथा औम प्रकाश, हरग्यान, ज्ञान चन्द तथा चरण को बाहर छोड़कर खुद अन्दर चले गये |
मजिस्ट्रेट साहब के बढते कदम बोझल हो गए थे | चरण को ऐसा महसूस हुआ जैसे वे भी इस घुसखोरी को रोकने में असमर्थ थे क्योंकि तभी तो वे नीची गर्दन किये, एक मुजरिम की तरह, यह कहते हुए वापिस लौट गए,भगवान जाने इस देश का क्या होगा, यह तो घुसखोरी की पराकाष्ठा है |