Monday, October 30, 2023

उपन्यास - भगवती (13)

 

राकेश अगले एक दो दिन इस उधेड़ बुन में लगा रहा कि आखिर चाँदनी के मम्मी पापा का ऐसा व्यवहार करने का क्या कारण रहा होगा परन्तु राकेश किसी ठोस निष्कर्ष पर न पहुँच सका | अंत में राकेश ने सोचा कि क्यों न चाँदनी के नजदीकी रिश्तेदारों से मालूम किया जाए की नजफगढ वालों के दुःख का कारण क्या हो सकता है |

इस कड़ी में सबसे पहले राकेश ने चाँदनी की बहन जो कैंट सदर में ब्याही थी को फोन किया, मैं, राकेश प्रभात  का पापा बोल रहा हूँ |

मैं अनीता, मौसा जी नमस्ते |

नमस्ते बिटिया नमस्ते |कहो सब कुशल है?

अनीता आश्चर्य से, हाँ मौसा जी सब ठीक है परन्तु आपने कैसे याद किया ?

कल आपके मम्मी पापा यहाँ आए थे |

अनीता उनके आने के कारण से अनभिज्ञय खुश होकर बोली, अच्छा मम्मी पापा आए थे ? कैसे आए थे ?

उनके मन में एक दुविधा थी उसका निवारण करने आए थे |

अनीता की खुशी की आवाज आश्चर्य में बदल गई, दुविधा, कैसी दुविधा मौसा जी ?

चाँदनी के यहाँ रहन सहन के बारे में उन्हें कुछ शिकायत थी |

बात को जानने का उतावलापन दिखाकर अनीता बोली, मौसा जी आप तो पहेलियाँ बुझा रहे हैं | साफ़ साफ़ कहो  न कि क्या बात है |

अच्छा पहले यह बात बताओ कि जब तीन चार दिनों पहले तुम चाँदनी से मिलने यहाँ आई थी तो उसने अपने बारे में कुछ बताया था |

किस बारे में मौसा जी ?

यही कि उसे अपनी ससुराल में कुछ दुःख या तकलीफ है ?

नहीं मौसा जी अबकी बार क्या उसने तो कभी भी ऐसा कुछ दर्शाया भी नहीं |

अनीता हो सकता है तुम्हें कभी कुछ अपने आप महसूस हुआ हो और तुमने अपने मन का भ्रम अपनी मम्मी या पापा के सामने रख दिया हो |

नहीं मौसा जी मैनें चाँदनी बारे में उनसे कभी कोई बात नहीं की |
क्या चाँदनी ने कभी तुम से यह कहा है कि हम उसे बाध्य करते हैं कि वह उन सभी के पैर पड़े जो हमारे घर आते हैं ?

अनीता थोड़ा हंसकर, मौसा जी यह तो भारतीय संस्कृति है तथा औरतों का तो यह अपने आप ही फर्ज बनता है कि वह अपने बड़ों के पैर छुए फिर इसमें बाध्य करने वाली बात कहाँ से आ गई ?       

अच्छा यह बताओ कि क्या तुम्हें अपने आप कभी ऐसा महसूस हुआ है कि चाँदनी को यहाँ किसी प्रकार की कोई कमी है या फिर हमारे व्यवहार से कुछ तकलीफ तथा दुःख का अनुभव करती है ?

मौसा जी आप कैसी बात कर रहे हो ? मैं तो चाँदनी की किस्मत को धन्य समझती हूँ कि उसे आपका घर मिला | मैं तो ऐसा अनुभव करती हूँ कि अगर चाँदनी आपके यहाँ दुखी है तो संसार की कोई औरत सुखी नहीं होगी |

बस बेटी बस तुमने मेरे मन को बहुत बड़ी सांत्वना दी है | अच्छा खुश रहो, कहकर राकेश ने फोन का चोगा रख दिया |

हालाँकि चाँदनी एवम अनिता के कथनों से राकेश काफी हद तक शास्वत हो गया था परन्तु फिर भी मन के एक कौने में अभी भी बैचैनी अनुभव कर रहा था | राकेश को अभी तक इस बात का समाधान नहीं मिला था कि आखिर चाँदनी के मम्मी पापा ने यह सब करने को किसने उकसाया था | इसलिए यह जानने के लिए कि वास्तव में ही राकेश पुत्र वधू को किसी प्रकार की कोई परेशानी तो नहीं है राकेश  एक बार फिर उससे पूछा, चाँदनी तुम्हारे एवम तुम्हारी बहन अनीता के बताए अनुसार तुम्हें हमारे घर कोई तकलीफ या दुःख नहीं है ?

हाँ पापा जी | 

परन्तु राकेश को यह बात पच नहीं रही कि जब तुम दोनों में से उन्हें कुछ नहीं कहा तो किसके उकसाने पर उन्होंने हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया |

पापा जी मेरी खुद समझ नहीं आ रहा कि उनके मन में क्या था ?

हो सकता है तुमने हमारी कुछ कमियां वहाँ बताई हों ?

नहीं पापा जी मैनें कभी ऐसा कुछ कहा ही नहीं |

एक बार फिर सोच लो | हो सकता है कभी भूले भटके उन्होंने तुम्हारी किसी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो और प्रवाह में बहकर तुम कुछ कह गई हो ?

पापा जी मेरी कोई रग दुखती हो तभी तो कोई हाथ रख पाएगा | जब कोई दुखती ही न हो तो उसका क्या ?

हो सकता है तुमने अपनी बहन से कह दिया हो और उसने आगे बता दिया हो ?” ,मैंने आशवस्त होना चाहा |

नहीं पापा जी मैनें अपनी बहन से भी यहाँ के बारे में कुछ नहीं कहा |

Wednesday, October 25, 2023

उपन्यास - भगवती (12)

 

राकेश की माँ तुल्य बड़ी बहन इन्द्रा जो सब कुछ देख और सुन रही थी कमला एवम श्याम लाल के कटु वचनों को पचा नहीं पाई और बड़े सयम से उन दोनों को लताड़ा, देखो जी आपकी यह भाषा एवम बोलने का तरीका बिलकुल गलत है |  लड़के ने आपसे ऐसे शब्द कहे तो हैं नहीं | मान लो अगर कहे भी हैं तब भी आपका यह फर्ज नहीं बनाता कि आप इतनी बेहूदगी से पेश आओ | आप सुनी हुई बातों पर इतना तैश दिखा रही हो क्या यह जायज है | आप पहले चाँदनी को बुलाते तो सही | अगर वह बाद में लिवालाने में आनाकानी करता तब भी आपको थोड़ा नरमी से पेश आना बनता है | आप ने तो सूत न कपास कोरिया से लठा लठी वाली कहावत चरितार्थ कर दी |

राकेश की बड़ी बहन की बात सुनकर दोनों बगलें झाकने लगे | परन्तु कमला को अपने दामाद तथा अपने लड़के प्रभात के लिए बेकार में तू-तड़ाक के शब्दों का इस्तेमाल सुन राकेश का पारा चढ गया और कहा, अरे बेशर्मों कुछ तो शर्म करो | सीख लो कुछ मेरी बहन जी के शब्दों से कि व्यवहार व इंसानियत क्या होती है |

राकेश ने कमला की और इशारा करके कहना आरम्भ रखा, इस औरत ने अपनी तीसरी लड़की की शादी की है और इसे इतनी तमीज नहीं है कि अपने दामाद के लिए कैसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है | ऊपर से दादागिरी सी दिखा रही है कि हम भी देखते हैं कि लिवाने कैसे नहीं आएगा | लो अब मुझे भी इसकी दादागिरी ही देखनी है | यह अपने पूरे घोड़े दौडाले देखें हमारा क्या बिगाड़ती है |

फिर राकेश  अपने लड़के प्रभात की तरफ देखकर कहा, अरे तू देखता नहीं बेबी की शादी को 5-6 साल बीत गए हैं हम मुकेश जी को कैसे संबोधित करते हैं | इसने औरों से भी बदतमीजी की होगी करती रहे परन्तु हम बर्दास्त नहीं करेंगे | हम इनकी दबेल में नहीं बसते | अगर मेरे साथ मेरी ससुराल वालों की तरफ से ऐसा व्यवहार हो जाता तो मैं जीवन भर उनकी दहलीज...........|

इतने में ही श्याम लाल जो शायद राकेश की बातों का आशय समझ गए थे कि वह क्या कहने वाला था, उठ कर राकेश को रोकते हुए हाथ जोड़कर बोले, बस बस अब आगे कुछ न कहना |      

चाँदनी भी रोकर बोली , पापा जी शांत हो जाईये |

राकेश ने अपने गुस्से को बरकरार रखकर कहा, शांत, यह तुम्हारी मम्मी जी इतनी बदतमीजी कैसे दिखा रही हैं | क्या तुमने इनसे कहा है कि तुम यहाँ किसी प्रकार से भी दुखी हो ?

पापा जी मेरी भी कुछ समझ नहीं आ रहा कि ये किस बिना पर ऐसा कह रहे हैं | आज आप सबके सामने मैं  अपने मन की बात बताना चाहती हूँ | मैं बचपन से अपनी शादी तक अपने मम्मी पापा के मुहं से अपने लिए अपने नाम चाँदनीके अलावा बेटा या बेटी का शब्द कभी नहीं सुना | मैं इन शब्दों को सुनने के लिए तरस गई थी | परन्तु यहाँ आपने जब मुझे बेटा कहकर बुलाया तो मेरा मन गदगद हो उठा था | मैं खुशी के कारण इतनी भाव विभोर हो उठी थी कि बहुत देर तक मैं अपनी आंखों के अश्रु थाम नहीं पाई थी | आप सब इसी से अंदाजा लगा लो कि मैं यहाँ दुखी हूँ या सुखी |

चाँदनी का यह तर्क एवम गूढ़ वाक्य राकेश के मन के उमड़ते उफान को रोकने के लिए एक रामबाण की दवा बन गया |राकेश एकदम शांत हो गया | चाँदनी के मम्मी पापा पर भी मानो घडों पानी पड़ गया था | अपनी बेटी के शब्द सुनकर वे कुछ बोलने लायक नहीं रहे तथा उनकी गर्दन जो अभी तक अकड़ी हुई थी, झुक गई | उनका अब वहाँ बैठना दुशवार होने लगा था इसलिए वे दोनों, बिना चाँदनी को ले जाने की कहे, चुपचाप उठे और वापिस चल दिए | हालाँकि राकेश का मन उनके व्यवहार से घृणा का एहसास करने लगा था फिर भी उनका उसके घर से अकेले तनहा जाना राकेश को कुछ जंचा नहीं | अत: राकेश ने अपने लड़के प्रभात को उन्हें बस स्टैंड तक विदा करने के लिए साथ भेज दिया |