Sunday, June 26, 2011

बराबरी


बराबरी

एक बार एक व्यक्ति नौकरी के लिए एक कम्पनी में साक्षात्कार के लिए गया | कम्पनी के मालिक ने अपने सामने रखी अर्जी में उसका विवरण बहुत ही बारीकी से जांच कर प्रत्याशी से सवाल किया, आपके पिता जी का स्वर्गवास हो गया है |
व्यक्ति ने बहुत ही मायूस होकर जवाब दिया, हाँ जी |
कब ?
जब मैं दसवीं में पढ़ रहा था |
उनको गुजरे कितने वर्ष बीत गए |
सात वर्ष |
पिताजी की मृत्यु के बाद खर्चा कैसे चलता रहा ?
पिता जी के बाद फैमिली पेंशन से |
क्या आपको वजीफा मिलता था ?
केवल बारहवी कक्षा तक मिला था |
उसके बाद तो आपने इंजीनियरिंग की है |
हाँ जी |
इसमें तो बहुत खर्चा बैठता है ?
हाँ जी |
इतना पैसा कहाँ से आया होगा ?
थोड़ी देर के लिए लड़का किंकर्तव्यमूढ़ हो गया | उसने आज तक यह सोचा ही नहीं था कि माँ ने उसकी सफलता के लिए क्या, कुछ, और कैसे किया होगा | उससे जवाब बनते न देख मालिक ने फिर प्रशन किया, आपकी इंजीनियरिंग की पढाई के दौरान वे किसके पास और कहाँ रही ?
लड़के ने दबी आवाज में बताया, अकेले, किराए के मकान में |
मतलब किराया भी भरना पड़ता था, कहकर मालिक ने लड़के के चेहरे की तरफ निहारा |
कंपनी के मालिक की बात सुनकर लड़का बेजान सा हो गया था | उसका शरीर थर थर कांपने लगा था | उसने आज तक इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया था कि उसकी माँ ने अकेले रहकर किराए के मकान में अपने दिन कैसे काटे होंगे तथा उसकी पढाई पर होने वाले खर्चे का भार कैसे उठाया होगा | लड़का भाव विभोर हो गया तथा उसकी आँखें छलछला आई |
कंपनी के मालिक ने लड़के के कंधे पर हाथ रखकर उसे सांत्वना देते हुए पूछा, आपकी शादी हो गई ?
हाँ जी |
आपकी पत्नी क्या करती है ?
बैंक में नौकरी |
इसका मतलब पढ़ी लिखी है ?
हाँ जी, स्नातकोत्तर है |
आपकी तरह वह भी घर से सुबह सवेरे निकल जाती होगी और रात को ही घर पहुँचती होगी ?
हाँ जी |
गृहस्थ जीवन कैसा कट रहा है ?
सु-ख-म-य चल रहा है |
कैसे ? सुबह, शाम का खाना तथा घर के और काम कौन करता है ?
लड़का धीरे से बोला, मेरी माँ |
अपनी माँ से कब तक कराओगे कभी उन्हें चैन दोगे ?
लड़का निरूत्तर हो गया था | उसने अपनी निगाह नीचे झुका ली | उसका दिल रोने को कर रहा था | उसकी स्थिति भांपकर मालिक ने कहा, देखो कल माँ दिवस है | मैं जानता हूँ कि आप की माता जी इस उम्र में आपकी तथा आपकी बहू के बराबर शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकती, आप जैसा खा नहीं सकती, आप जैसा पहन नहीं सकती, आप जैसा सैर सपाटा नहीं कर सकती, परन्तु एक चीज है जो आप अपने अथक प्रयासों से उनको अपने बराबर ला सकते हो |
लड़का कंपनी के मालिक की बातें ध्यान पूर्वक सुन रहा था परन्तु उसके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उसे उन बातों का कुछ सिर पैर समझ नहीं आया था | उसकी दशा देखकर मालिक ने फिर कहा, आज घर जाकर आप तीनों अपने अपने हाथ मेज पर ऐसे रखना कि सभी की हथेलियाँ आसमान को देख रही हों | अगर किसी के हाथों की कोमलता कम नजर आए तो भविष्य में उन्हें सभी की बराबरी पर लाने की चेष्टा करना |
अबकी बार लड़के का चेहरा सुबह के ताजा फूल की तरह खिल उठा | उसमें उगते सूरज की तरह चमक पैदा हो गई | उसने उठकर अपने मालिक के चरण छू लिए तथा गदगद होकर बोला, आप मेरे मालिक ही नहीं मेरे तारण हार हो | आज आपने मेरे बंद चक्षु खोलकर मुझे मेरी अज्ञानता के दर्शन करा दिए | आपने कितनी सरलता एवं  सहजता से मुझे माँ की महिमा के साथ सुखी गृहस्थ जीवन का मूल मन्त्र समझा दिया है |               

Monday, June 20, 2011

गरीबी-अमीरी


                                             गरीबी-अमीरी
भाई ! भाई !
मामा जी आए हैं |
छोटी बहन शांति की आवाज पवन के कानों में पड़ी | सहसा मामा जी के आने का समाचार जानकर पवन का मन एक अंजान घृणा तथा द्वेष से भर गया | उसने बहन शांति की आवाज को अनसुना करते हुए अपने को खेल में व्यस्त रखने की चेष्टा की | पवन को उठता देख उसकी छोटी बहन ने पास आकर कहा " भाई माँ बुला रही है | उन्होंने आपको जल्दी बुलाया है" | अब  पवन और रूक सका तथा अपना खेल अधूरा छोड्कर उसे घर की तरफ प्रस्थान करना पड़ा |
पवन ने घर के दरवाजे में प्रवेश करते हुए अन्दर देखा | सामने उसके मामा जी कलेवा करने में व्यस्त थे | बीच बीच में वे घर को चारों तरफ से एक अजनबी की तरह निहार लेते थे | इस बार  उन्हें घर के रख रखाव में शायद बहुत कुछ परिवर्तन नजर रहा था | घर के हर नए सामान को देखकर तथा कलेवा करने के बाद जब वे तृप्त हो गये तो बहुत खुश नजर रहे थे | अचानक मामा जी से नजरें मिलने पर पवन ने अनमने मन से उन्हें प्रणाम किया | मामा जी ने आशिर्वाद देते हुए कहा, " जीते रहो बेटा |
क्या स्कूल की छुट्टियाँ हो गई ?मामा जी ने पूछा |
हाँ, पवन का छोटा सा उत्तर था |
अब स्कूल कब खुलेंगे ?
15 जुलाई को |
ठीक है, तब मेरे साथ चलो | एक महीना कुल्लू की पहाडियों में बिता आना | यहाँ की झुलसती गर्मी एवं लू से बच जाओगे |
मामा जी के विचार जानकर पवन एकदम काँप गया | उसे अपने शरीर में खून का संचार एकदम बढता महसूस हुआ | हालाँकि बाहर का वातावरण अत्यधिक गर्म था तथा लू का प्रकोप भी अपनी चर्म सीमा पर था | परंतु इस समय पवन को बाहर से कहीं अधिक गर्मी अपने अन्दर मालूम पड़ रही थी | उसे अपने अन्दर लू का तूफान उठता प्रतीत हो रहा था | चेहरा तमतमा गया था तथा शरीर की सारी नशें फूलकर फटती महसूस हो रही थी |  
उसके मामा जी उसे तैयार होने की कहकर कब बाहर चले गए थे उसे पता ही चला | पवन अपने विचारों में खोया खड़ा हुआ अब दूर कुल्लू की घाटियों में बिताए पुराने दिनों का आभास करने लगा | चलचित्र की भाँति एक-एक दृश्य तथा एक-एक वाक्य जो उसके साथ वहाँ घटित हुआ था उसके ख्यालों में आने लगा था | पिछली छुट्टियों में जब वह मामा जी के यहाँ गया था तो वहाँ उसने अपने आप को कितना अकेला, बिसराया हुआ तथा असहाय महसूस किया था | उस बार पवन के ताऊ जी के लड्के भी मामा जी के यहाँ गये थे | उन दिनों पवन के ताऊ जी हर प्रकार से सम्पन्न थे | उनके घर जरूरत का हर सामान मौजूद था | जैसे रंगीन टेलिविजन, वी.सी.आर, एयर कंडीशनर. अलमारी, टेलीफोन तथा आने जाने के लिये एक गाड़ी इत्यादि |
पवन के पिता जी की स्थिति ऐसी थी | हालाँकि घर में खाने पीने की वस्तुओं की कोई कमी थी परंतु आजकल के रहन सहन के मुताबिक जरूरी समझी जाने वाली वस्तुओं का उनके यहाँ अभाव था | पवन के पिता जी बैंक में एक क्लर्क थे | उन्हें महीने का वेतन लगभग छः हजार रूपया ही मिलता था | इस थोड़ी सी राशी में उन्हें सात व्यक्तियों का पालन पोषण करना पड़ता था |  उनके दो लड़के तथा एक लडकी थी | पवन के बाबा-दादी जी भी साथ रहते थे | बाबा को दमे की शिकायत थी अतः उन्हें लगातार दवाईयों का सेवन करना पड़ता था | बच्चों की पढाई लिखाई, खाने पीने एवं पहनने औढने का पूरा खर्चा बैठता था | वर्ष के अंत में जब पवन के पिताजी को इंकमटैक्स भरना पड़ता था तो घर में रोटियों के भी लाले पड़ने लगते थे | फिर भी बेचारे किसी तरह अपनी गाड़ी खींच लेते थे | ऐसी स्थिति में रंगीन टेलिविजन टेलिफोन तथा गाड़ी इत्यादि रखने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था |
पवन को कल की सी घट्ना दिखाई दे रही थी कि जब वे एक दिन मामा जी के घर कुल्लू में सब खाना खाने बैठे थे | मामी जी ने घीया के कोफ्ते बनाए थे | पवन घीया के कोफ्ते बहुत स्वाद एवं रूची से खाता था | एक प्लेट कोफ्ते खाने के बाद जब पवन ने दोबारा कोफ्ते लेने के लिए हाथ बढाया था तो मामा जी ने कटाक्ष करते हुए कहा था, "ले लो बेटा और ले लो अपने घर फिर ऐसा खाने को कहाँ मिलेगा  |इसी प्रकार के व्यंग पवन को लगभग प्रत्येक दिन किसी किसी रूप में सुनने पड्ते थे | दूसरी तरफ उसके ताऊ जी के बच्चों की गल्तियों  को भी "बच्चा है" कहकर अनदेखी कर दिया जाता था | हालाँकि पवन उस समय इतना समझदार था कि वह इन सब बातों का विशलेषण कर सकता था फिर भी उसके कोमल एवं मासूम मन में एक वेदना का आभास जरूर होता था | यही महसूस करके उसने पिछ्ली बार अपने मामा जी के घर से लौटने के बाद एक प्रकार की कसम सी खाई थी कि वह फिर कभी मामा जी के घर रहने नहीं जाएगा |
अभी जाने कितनी देर और पवन इन्हीं ख्यालों में खोया रहता कि अचानक उसे अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श महसूस हुआ | इस स्पर्श से उसके निढाल शरीर में एकदम चेतना का संचार हुआ | पवन ने आँख उठाकर देखा तो पाया कि उसकी पूज्य माता जी थी | उनकी आँखों के देखने के अन्दाज से पता चलता था कि शायद वे अपने बेटे की दुविधा का कारण जानती हैं | वे, निशचल भाव से, अपने चेहरे पर एक तेज लिये, मन ही मन बुदबुदा रही थी कि बेटा पैसा ही वह चीज है जिसके बूते पर एक मनुष्य दूसरों को नीचा समझता है तथा इसी के बल पर वह अकड कर बात करता है | धन की कमी आदमी को अंधकार में धकेल देती है जिससे उस पर हमेशा शक की निगाहें रहती हैं तथा अगर थोड़ा उजाला हो भी जाए तो भी वह खड़ा हुआ किसी को नजर नहीं आता | मनुष्य के पास सारे गुण हों परंतु वह अपने धन को प्रदर्शित नहीं करता तो उसके गुणों का भी प्रकाशन नहीं होता | जैसे सूर्य विशव को रौशनी देकर प्रकाशित करता है उसी तरह लक्ष्मी मनुष्य के गुणों को रोशन करती है | परंतु तू अभी इन सब बातों को नहीं समझ पाएगा |    इसीलिए तो उन्होंने बड़े आत्मविशवास से कहा था कि बेटा इस बार कुल्लू में आपके साथ वैसा व्यवहार नहीं होगा |
चाह्ते हुए भी पवन अपनी माता जी का कहना टाल सका तथा एक बार फिर गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने कुल्लू पहुँच गया | पवन ने पाया कि वास्तव में ही इस बार उसके मामा जी के घर वालों का व्यवहार उसके प्रति बिल्कुल बदला हुआ था | घर में खाने पीने की चीजों पर अब कोई प्रतिबंध या छिंटाकशी नहीं होती थी | और किसी का व्यंग भी इस बार सुनने को नहीं मिला | और तो और मामा जी ने अपनी गाडी तथा ड्राईवर को पवन के रहमों करम पर छोड् दिया था | अर्थात पवन जहाँ जाना चाहे, जब जाना चाहे बे रोकटोक जा सकता था | इस बदलाव का करण पवन की समझ से बाहर था | खैर छुट्टियाँ बिताकर पवन जब वापिस घर आया तो वह बहुत खुश, संतुष्ट एवं खिला हुआ था | इस बार पहली बार उसने जी भरकर कुल्लू के वातावरण का लुत्फ उठाया था | वापिस घ्रर आकर जब उसने अपनी माताजी की आखों में निहारा तो पाया जैसे पूछ रही हों,क्यों? मैं कहती थी कि इस बार कुल्लू में तुम्हारे साथ पहले की तरह व्यवहार नहीं होगा |
पवन  मामा जी के व्यवहार में इतने बड़े परिवर्तन का कारण समझ सका | अतः जिज्ञासावश उसने अपनी माता जी से पूछ ही लिया | उसकी माता जी के दिल पर भी शायद इन बातों का बोझ बहुत दिनों से रखा था | बोझ को हल्का करने की इच्छा से उन्होने अपने बेटे को पास बिठाकर अपना दिल खोलकर रख दिया | 
माँ ने कहना प्रारम्भ किया :-
बेटा वास्तव में तेरे पिता गरीब नहीं थे | परंतु मजबूरन उन्हें एक गरीब की तरह जीना पड़ रहा था | वे आप सब लोगों का भविष्य सुखमय बनाने के लिये कुछ धन बचाकर रखना चाहते थे |अतः इंकमटैक्स बचाने के लिये वे 10000/-रूपये प्रति वर्ष सरकारी जमा खाते में जमा कराते थे | उन्होंने अपना जिवन बीमा भी करा रखा था | उनके स्वर्गवास के बाद उनके स्थान पर मुझे नौकरी मिल गई | अतः घर का खर्चा सुचारू रूप से चलता रहा | अब जैसे जैसे उनके जीवन बीमा, प्रोविडैंट फंड तथा भविष्य निधि इत्यादि के रूपये आते रहे मैनें एक एक करके रंगीन टेलिविजन, कूलर, फ्रिज, टेलिफोन एवम गाड़ी इत्यादि खरीद ली | इन्हीं सब दिखाई देने वाली बेजान वस्तुओं के होने के कारण ही जो कल तक अपनों से पराए जैसा व्यवहार कर रहे थे इन्हें देखकर आज अपने हो गये हैं | इतना कहने के बाद पवन की माता जी कुछ रूकी | उनका गला भर आया | वे विचारों में खो गई तथा थोड़ी देर बाद फफक-फफक कर रो पड़ी |
पवन का मृदुल-कोमल हृदय इन सब बातों का कुछ सिर पैर समझ सका | फिर भी कुछ हद तक उसने निष्कर्ष निकाला कि शायद उसकी माता जी के अनुसार उसके गरीब पिताजी का स्वर्गवास ही उनकी अमीरी का कारण है | यह माता जी अपने मुहँ से कह सकी थी तथा यही सोचकर थोड़ी देर पहले फफक-फफक कर रो पड़ी थी | फिर भी पवन अभी इस काबिल नहीं था कि वह गरीबी-अमीरी के पचडे को अच्छी तरह समझ सकता अतः अपनी माता जी को सुबकते हुए छोड्कर बाहर भाग गया तथा मिल गया अपने साथियों के उस झुंड में जहाँ कोई अस्तित्व ही था गरीबी-अमीरी का |