Saturday, April 16, 2011

अतिथि देवो भव:

अतिथि देवो भवः
हम हिंदुस्तानियों को मेहमान नवाजी की महान परम्परा विरासत में मिली है | यहाँ मेहमान को भगवान का दर्जा दिया जाता है | हमारे पूर्वजों का मानना था कि वे लोग बहुत भाग्यवान होते हैं जिनके घर मेहमान आते हैं | तभी तो यहाँ की संस्कृति में लिखा गया है कि ‘अतिथि देवो भवः’|
यह केवल अपने खुद के मेहमानों के बारे में लागू नहीं होता बल्कि इस संसार के प्रत्येक व्यक्ति का हिदुस्तान में इतना भावभीना स्वागत किया जाता है कि यहाँ आने वाला हमारी मेहमान नवाजी पर अभिभूत होकर रह जाता है | हाल ही में इसका उदहारण अमेरिका के राष्ट्रपति बैरक ओबामा के शब्दों में साफ़ झलकता है जबकि उन्होंने कहा था, भारतीयों की आँखों से उनका दिल नजर आता है |
वैसे तो मेरी पत्नी संतोष भी मेहमान नवाजी में अति उत्तम हैं | मैं पिछले ४२ वर्षों से, जब मेरी शादी हुई थी, देख रहा हूँ कि वे प्रत्येक मेहमान पर, बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार रहती हैं |कभी कभी तो मुझे उनकी मेहमान नवाजी पर खीज सी भी आने लगती है परन्तु उनके हाथ के इशारे को समझकर, कि कुछ नहीं होता, मुझे संभलना पडता है | अपनी पत्नी द्वारा की गई मेहमान नवाजी को देखकर, मेहमान के चले जाने के बाद, कभी कभी मैं उन पर टोंट भी कस देता हूँ कि भला आजकल ऐसा कहाँ होता है | परन्तु मेरा यह भ्रम हाल ही में टूट गया |
साल का आख़िरी महीना था | स्कूलों में बड़े दिनों की छुट्टियाँ हो गयी थी | पहाड़ों पर बर्फ गिरने के कारण देहली में बर्फीली हवा ने कहर बरसाना शुरू कर दिया था | जिससे देहली का मौसम बहुत ठंडा हो गया था | मेरे दामाद मनोज कुमार एवं उनके बच्चों ने बैद्यनाथ, बौद्ध गया, पटना, इलाहाबाद, अयोध्या, काशी तथा लखनऊ इत्यादी स्थानों का घूमने का प्रोग्राम बना लिया | जब उन्होंने मेरे से पूछा तो मैनें भी उनके साथ जाने की हामी भर दी | क्योंकि देहली की सर्दी ठिठुरन भरी थी जबकि भ्रमण वाले स्थानों पर, समाचार पत्रों के अनुसार, काफी गर्म वातावरण बताया जा रहा था |
रेलवे के नारे, हल्का सफर करो, के तहत हमने गर्म कपडे भी बहुत कम लिए तथा सफर में सर्दी से बचने के लिए रेल के एयरकंडीशन डब्बों में ही जाना उचित समझा | आजकल की सुविधाओं के चलते हमने सफर पर चलने से पहले ही सभी जगह से आने जाने की रेलगाड़ी की रिजर्वेशन के साथ साथ ठहरने की जगह भी सुनिशचित कर ली थी | मुझे देहली रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर पता चला कि हम सब मिलकर कुल तेरह यात्री हो गए थे | जिसमें दो बच्चे तथा बाकी सभी तेरह वर्ष से अधिक उम्र के थे |
हंसते-खेलते, खाते-पीते, गाड़ी से बाहर के दृशयों का नजारा देखते हम सबसे पहले बैद्यनाथ पहुँच गए | इस स्थान पर महादेव शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक यहाँ पर स्थित है | इसके बारे में कहा जाता है कि लंकापति रावण ने एकबार शिव की घोर तपस्या की थी |
शिव जी ने खुश होकर रावण से कहा, मांग तुझे क्या वरदान चाहिए ?
भगवान मैं आपके इस शिवलिंग को लंका ले जाकर स्थापित करना चाहता हूँ |
शिव ने तथास्तु कहकर रावण को एक चेतावनी दी, अगर तूने रास्ते में इसे कहीं जमीन पर रख दिया तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा | ,
रावण शिवलिंग को लेकर अपनी राजधानी लंका की और चल दिया | रास्ते में उसे लघु शंका लगी | उसने एक गडरिये को शिवलिंग थमाते हुए हिदायत दी, इस शिवलिंग को किसी हालत में भी नीचे जमीन पर मत रखना |
परन्तु रावण के जाते ही शिवलिंग इतना भारी हो गया कि गडरिये को उसे उठाए रखना मुश्किल हो गया और उसने शिवलिंग को नीचे रख दिया | रावण ने आकर शिवलिंग को उठाने का भरसक प्रयास किया परन्तु वह अपनी जगह से टस से मस न हुआ | गुस्से में आकर रावण ने अपने अंगूठे के जोर से शिवलिंग की पिंडी को जमीन में धकेल दिया और पछताता हुआ अपनी राजधानी लौट गया | अत: यहाँ के ज्योतिर्लिंग की पिंडी दिखाई नहीं देती है |इसके बाद हम बोधगया, पटना, इलाहाबाद इत्यादि होते हुए बनारस पहुँच गए |
एक गुलशन नाम का व्यक्ति है जो हरी नगर में मनोज के घर के पास ही रहता है | दोनों में अच्छी जान पहचान है क्योंकि दोनों ही हरी नगर में होने वाली रामलीला कमेटी के कार्यकारी सदस्य हैं | जब गुलशन को पता चला कि मनोज अपने परिवार के साथ काशी भ्रमण को जा रहा है तो उसने काशी में रह रहे अपने भांजे का पूरा पता तथा टेलीफोन नंबर देते हुए कहा कि आप उससे बात कर लेना वह उनके ठहराने का पूरा प्रबंध करा देगा | साथ ही गुलशन ने अपने भांजे को भी सूचित करते हुए कहा, काकू, मामा जी सह परिवार, काशी की यात्रा पर आ रहे हैं उनका ख्याल रखना |
काकू के दो मामा जी हैं और दोनों ने उसका घर देखा हुआ था | हालांकि काकू को अपने मामा जी का ऐसे कहना कुछ अटपटा सा लगा परन्तु वह यह सोचकर चुप रहा कि उसके मामा जी ने अपनी आदत अनुसार मजाक किया होगा | वाराणसी पहुँच कर मनोज ने काकू से फोन पर पूछा, काकू आप कहाँ हो |
काकू ने किसी अनजान व्यक्ति को अपना नाम लेते सुनकर अचंभित होकर प्रशन किया, माफ करना मैनें आपको पहचाना नहीं, आप कौन हैं ?
मैं मामा जी |
काकू को घोर आशचर्य तो होना ही था अत: पूछा, कौन से मामा जी ?
मामा नंबर तीन |
काकू और भी असमंजस से बोला, मामा नंबर तीन |
अरे भाई हम देहली से आए हैं |
देहली के नाम से काकू को अपने मामा जी गुलशन द्वारा कही बात याद आ गयी | उसने बड़ी नम्रता से कहा, ओ हो मामा जी मुझ से बड़ी गलती हो गयी | अगर मुझे यह अंदाजा होता कि आप(मनोज मामा जी) आ रहे हैं तो मैं आपको स्टेशन पर लेने ही आ जाता | मैं तो गुलशन मामा जी की बातों को मजाक में ले गया था |
फिर काकू ने फोन पर मनोज जी को कहा, मामा जी आप गाड़ी वाले को फ़ोन दे दो मैं उसे समझा दूंगा कि यहाँ कैसे पहुंचेगा |
काकू बेहतर रहेगा कि हम पहले सीधे होटल ही चले जाएँ इसलिए आप अभी तो ड्राईवर को उसी होटल का नाम बता देना जहां हमें रूकना है |
हाँ मामा जी वह होटल हमारे घर के पास ही है | मैं आपको गली के बाहर ही खडा मिलूँगा |
मनोज अपने पूरे लाव-लशकर के साथ काकू के द्वारा बताए गए स्थान पर पहुंच गया | वहाँ काकू भी अपने कई साथियों के साथ हमारी प्रतीक्षा कर रहा था | मैं अभी इस असमंजसता से निकला भी नहीं था कि आखिर काकू है कौन कि वहाँ खड़े लोगों में से एक इकहरे बदन के लडके ने आगे बढकर, शायद यह देखकर कि मैं अपने ग्रुप में सबसे बुजुर्ग था, मेरे चरण छू लिए | मनोज ने काकू को पहले कभी नहीं देखा था अत: वह सोच रहा था कि उसे कैसे पहचाना जाए | इसी प्रकार काकू सोचा रहा था कि इनमें से मामा जी कौन से हैं |
काकू के चेहरे पर उसी प्रकार की भाव भंगिमा थी जैसे उस शिष्य द्वारा दर्शाई गयी थी जब वह आश्रम में पहुंचा था तथा गुरू और गोविन्द दोनों को सामने खडा पाया था | वह नहीं जानता था कि गुरू कौन है और गोविन्द कौन है | शिष्य की दुविधा को भांपकर गुरू ने इशारा कर दिया था कि दूसरा व्यक्ति ही गोविन्द है |
काकू के द्वारा मेरे चरण छूना यह तो दर्शा गया था कि काकू कौन है परन्तु काकू को पता नहीं चला था कि मामा जी कौन से हैं | मैनें काकू की मनोइच्छा को भांप कर उसकी दुविधा का अंत करते हुए मनोज जी की तरफ इशारा कर दिया | और जब काकू मनोज की तरफ बढ़ा तो उसके झुकने से पहले ही मनोज ने उसे गर्मजोशी के साथ अपने सीने से लगा लिया था |
इस बीच जब काकू के साथियों ने गाड़ी से हमारा सामान नीचे उतारना शुरू कर दिया तो मनोज इधर उधर देखकर विस्मय से बोला, यहाँ होटल कहाँ है, नजर नहीं आ रहा ?
अंदर गली में है,काकू का जवाब था |
काकू की बात सुनकर जब हम सभी अपना सामान उठाने लगे तो उसके साथियों ने ऐसा करने के लिए मना करते हुए कहा, आप सभी कमरों में जाकर तरोताजा हो जाओ तथा आराम करो | सामान की चिंता मत करो इसे हम आपके कमरे में पहुँचा देंगे |
काकू ने हम सभी को गली के एक मकान में ले जाकर एक बड़े से हाल में ठहरा दिया | यह चार मंजिला मकान था | यहाँ पहले से ही पूरा इंतजाम किया हुआ था | बिस्तर बिछे हुए थे | मकान में स्थित चारों गुसलखाने सभी जरूरी सामान जैसे साबुन, तेल, कंघा, शैम्पू, ठंडा-गरम पानी, बाल्टी तथा मग इत्यादि से लैस थे |सभी के साथ मनोज भी यह देखकर शायद आश्चर्य चकित था क्योंकि वह मकान किसी हालत में भी होटल नहीं लग रहा था | अपनी दुविधा का निवारण करने के लिए मनोज ने अपना मुहं खोला ही था कि उनके मन की बात भांपकर काकू खुद ही बोल उठा, मामा जी अपनों को होटल में नहीं घर में ठहरा कर सेवा की जाती है |
काकू के ये शब्द मेरे जहन में समा गए | कहते हैं दिल का राज बता देता है असली नकली चेहरा | मैनें यही सोचते हुए काकू के चेहरे को निहारा तो पाया कि उसकी आँखों के रास्ते उसके दिल के निस्वार्थ भाव एवं हमारे प्रति मेहमान नवाजी की लालसा, निर्मल जल में सीप की तरह, साफ़ झलक रही थी | इतनी थोड़ी उम्र और कितने नेक, उच्च एवं सुलझे हुए विचार, मेरा मन गदगद हो उठा |
मैं अपने में ही खोया था कि काकू की आवाज कानों में पडी | वह हाथ जोड़े खडा कह रहा था, आप सभी लंबे सफर से थक गए होंगे | हाथ मुहं धोकर तरोताजा हो जाईये | मैं चाय नाश्ता भिजवाता हूँ |
बिना किसी की सुने वह झट से ऊपर की मंजिल पर चढ गया जहां उनकी रसोई थी | आधा घंटे बाद एक हाथ में चाय की केतली तथा दूसरे हाथ में कपों से भरी थाली लिए एक सुन्दर सी, सादा कपडे धारण किए, बिना किसी श्रृंगार के, इकहरे बदन की, चेहरे पर मंद मंद मुस्कान बिखेरती एक लडकी कमरे में दाखिल हुई |उसके पीछे काकू नाश्ते की प्लेट थामें अंदर आया | सभी सामान मेज पर रखने के बाद उस लडकी ने कपों में चाय भरकर तथा नाश्ता छोटी प्लेटों में रखकर सभी को पकडाना शुरू कर दिया | सभी यह अंदाजा लगाने में मशगूल थे कि वह लडकी कौन हो सकती है ? इस संशय का निवारण स्वंम काकू ने किया, यह मेरी पत्नी किरण है |
मैं तो अभी तक इसी भ्रम में रहता था कि मेरी बेटी प्रभा इतनी उम्र की नहीं लगती थी कि वह तीन बच्चों की माँ है जिनमें सबसे बड़ी लडकी उन्नीस वर्ष की हो गयी है | परन्तु मेरे क्या सभी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब हमें बताया गया कि किरण दो बच्चों की माँ है |क्योंकि वह अभी भी बिन ब्याही एक किशोरी की तरह नजर आ रही थी |
सफर की थकान के बाद प्रेमभाव से परोसी गयी घर में बनाई चाय व नाश्ता पाकर हमारे सभी के शरीर स्थिल से हो गए तथा नींद की झपकी ने अपने आगोश में ले लिया | इतना काम एवं सेवा करने के बाद भी शायद काकू और किरण पर थकावट अपना बर्चस्व स्थापित नहीं कर पाई थी तभी तो रात के आठ बजते बजते ही उन दोनों ने रात के खाने का सारा सामान लाकर मेज पर लगा दिया था |
खाना खाते हुए हमारे में से दो औरतों ने जब प्याज के छोंक से बनाई सबजी सेवन करने से इनकार कर दिया तो किरण अपने आप में शर्मिंदगी महसूस करते हुए कई प्रकार से माफी माँगने लगी | आनन फानन में उसने, उन औरतों के लिए जो प्याज का सेवन नहीं करती थी, के लिए दूसरे खाद्य पदार्थों का इंतजाम कर दिया | उस दिन के बाद जब तक हम उनके घर ठहरे उस घर में प्याज लहसून का इस्तेमाल नहीं किया गया | बल्कि, हो सकता है अपने मेहमानों का मन रखने के लिए, किरण यह कहते न थकती थी कि उसे नहीं पता था कि बिना प्याज के छोंक के भी सबजी इतनी स्वादिष्ट बन सकती है | जैसे वही गुरू वास्तव में गुरू कहलाने लायक होता है जो पहले अपने आप उन आदर्शों को अपनाए जिनको वह अपने शिष्यों द्वारा ग्रहण करने की इच्छा रखता है |
हर रोज किरण सुबह के उगते सूरज की तरह अपने मुख मंडल पर मुस्कान की किरण बखेरती हुई चाय के साथ आती थी और डूबते सूरज की तरह हमारी सेवा करते करते रात को थककर सोती थी | काकू ने भी अपना काम धंधा भुलाकर हमारे घूमने, नहाने, खाने, गंगा घाट पर आरती दर्शन यहाँ तक की काशी विशवनाथ मंदिर में भगवान ज्योतिर्लिंग शिव के दर्शन कराने के लिए अति विशिष्ट व्यक्तियों के गेट से अंदर जाने का भी इंतजाम किया जिससे हमें किसी प्रकार की कोई असुविधा न हो |
काकू ने बनारस के आसपास ऐसा कोई स्थान नहीं छोड़ा जो हमें दिखाया न हो तथा ऐसा कोई खाद्य पदार्थ, जो काशी में नामी माना जाता था, खिलाया न हो | यहाँ तक कि वह हमें बनारस के प्रसिद्ध पान का स्वाद भी कराना नहीं भूला |हम काकू के परिवार के द्वारा प्रदर्शित, चेहरे पर बिना किसी शिकन लाए, सेवा भाव के कायल से हो गए थे |
तीन दिनों बाद काकू और किरण से बिछोह को सोचकर मेरे शरीर में सिरहन सी दौड रही थी | सोच नहीं पा रहा था कि उनकी मेहमान नवाजी के एवज में उन्हें क्या तोहफा दिया जाए जिससे मैं कुछ ॠण मुक्त हो सकूं | मुझे संसार की हर वस्तु उनके द्वारा किए आदर सत्कार के सामने तुच्छ नजर आ रही थी | यहाँ तक की आसमान के चाँद सितारे भी काकू-किरण के श्रद्धा भाव की चमक के सामने फीके महसूस हो रहे थे |
फिर भी कुछ तो करना था | हमने, जबरदस्ती काकू और किरण की मर्जी के खिलाफ, किया तो जरूर परन्तु यह सोचकर अपने मन में अब भी ग्लानि हो रही है कि उन्होंने कहीं हमारी करनी को अन्यथा न ले लिया हो |
वर्त्तमान युग के प्रचलन को देखते हुए मेरा जो विचार बनाता जा रहा था कि भारत देश, जो अपनी मेहमान नवाजी और अतिथि सेवा के लिए एक समय विश्वभर में प्रसिद्ध था, आज अपनी यह खूबी खोता जा रहा है | मेहमानों का आदर सत्कार करना तो दूर आज हम अपने पवित्र संस्कारों को भूलकर अपने अतिथियों से कन्नी काटने की जुगत भिड़ाना शुरू कर देते हैं | परन्तु काकू और किरण के व्यवहार से मेरा यह मत खंडित होकर धराशाही हो गया था |मुझे गर्व महसूस होने लगा था कि आज भी हमारे देश भारतवर्ष में ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपने देश की परम्पराओं एवं संस्कारों को जीवन्तता प्रदान करने के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को उतारू हैं और मौक़ा मिलने पर वे चूकते नहीं | इन्हीं विचारों के चलते मेरी अंतरात्मा से काकू और किरण के लिए शत शत प्रणाम का उद्धघोष निकलता महसूस हुआ |
चरण सिंह गुप्ता
WZ.653-नारायणा
नई देहली-110028
Mb.9313984463

1 comment:

  1. Vartman paripekshya me atyant avashyak vishay 'atithi devo bhav' ke upar ek bahut hi umda lekh. Vakai ye ek aisi parampara hai to paschim sanskrity me kahi khota sa ja raha hai.
    Atyant pravahit avam umda lekhan shaili ki jitni tareef ki jaye kam hai, bhavishya me aise aur bhi lekh prakashit karte rahen...

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