Wednesday, July 6, 2011

एहसान


"एहसान"
सर्दियों के दिन थे | शिमला तथा आसपास के इलाकों में बर्फ पड़ने के समाचार थे | देहली में भी थोड़ी बून्दा बान्दी हो गई थी | तीन चार दिनों से लगातार ठंडी हवा चलने के कारण ठंड  भी कुछ अधिक बढ् गई थी | आज रविवार का दिन था | अतः आफिस की छुट्टी थी | नहा धोकर धूप सेकने में बहुत आनन्द रहा था | चरण ने छ्त पर बैठे बैठे चारों ओर नजर घुमाई तो पाया कि अधिक तर लोग धूप का आनन्द ले रहे थे |
मेरे सामने वाली घर की छत पर मुझे दो लड़के दिखाई दिए | वे बड़ी तल्लीनता से कुछ पढ रहे थे | उनकी बगल में एक औरत चटाई पर लेटी थी | मैनें अन्दाजा लगाया कि शायद वे उस मकान में नए किराएदार आए होंगे | दो चार बार फिर उधर नजर उठी परंतु उन तीनों के अलावा वहाँ कोई ओर नजर नहीं आया | विचार आया कि शायद उन बच्चों के पिता जी कहीं गए होंगे |
मेरे घर के नीचे एक दुकान  थी | अगले दिन मैं कुछ सामान खरीदने के लिए दुकान पर खड़ा था कि उनमें से एक लड़का भी वहाँ गया | उसे भी कुछ सामान खरीदना था | मुझे देखकर वह दोनों हाथ जोड़ते हुए बोला, अंकल जी नमस्ते !”
मैंने देखा वह गोरे बदन वाला , अच्छे स्वास्थ्य का , कोई पंद्र्ह वर्ष का सुन्दर  एंव मन मोहक लड़का था | उसे जवाब देते हुए मैनें कहा, “नमस्ते ! क्या यहाँ नए आए हो ?
हाँ अंकल जी हम परसों ही आए हैं |
कहाँ के रहने वाले हो ?
जम्मू के |
खास जम्मू शहर के ?
नहीं,जम्मू से 25 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गाँव है वहाँ के रहने वाले हैं |
मैं और भी कुछ पूछ्ने वाला था परंतु शायद उस लड़के को कुछ जल्दी थी अतः मेरा आशय समझ कर वह बोला, अच्छा अंकल जी अब मुझे काम पर जाना है, बाकी बातों का जवाब फिर कभी मिले तो बताऊँगा |नमस्ते कहता हुआ वह चला गया | मैनें भी अपनी जरूरत का सामान लिया और उपर चढ गया |
मै तैयार होकर आफिस जाने के लिए नीचे आया | अभी अपने स्कूटर को स्टार्ट करने वाला ही था कि वे दोनों भाई मुस्कराते हुए मेरे बराबर से निकले | मैनें देखा दोनों भाईयों ने धुले धुलाए कपडे पहन रखे थे | हालाँकि उन पर प्रैस ना के बराबर थी फिर भी वे साफ सुथरे होने की वजह से अच्छे लग रहे थे |उनके कपड़े देख कर मुझे अपने बचपन की याद गई जब हम भी धुले कपड़ों को रात में तह करके प्रैस के लिए अपने तकिए के नीचे रख कर सो जाया करते थे | दोनों भाईयों के हाथ में एक एक प्लास्टिक में लिपटा छोटा पैकिट था | मेरे अनुमान से उन पैकिटों में उनका दोपहर का भोजन रहा होगा | उस दिन के बाद लगभग प्रत्येक दिन हमारी मुलाकात होने लगी | मैं ज्यों ही आफिस जाने के लिए नीचे आता वे दोनों भी घर से निकलते तथा मुस्कराकर नमस्ते अंकल जी’ कहते हुए आगे निकल जाते |
ज्यों ज्यों दिन बीतते रहे मेरे मन में उनके लिए श्रद्धा भाव बढता रहा | जाने क्यों अगर वे मुझे एक दिन भी दिखाई नहीं देते तो मेरे मन में एक अजीब व्यथा सी घर कर जाती | उस व्यथा को मिटाने के लिए मैं शाम को आफिस से घर आकर अपनी छत पर चढ जाता तथा मुझे संतुष्टि तब होती जब वे दोनों भाई मुझे वहाँ दिखाई दे जाते | तीन चार महिनों में ही मैने उनके बारे में काफी जानकारी हासिल कर ली थी | उनके पिता जी को उग्रवादियों ने मौत के घाट उतार दिया था | माँ इस सदमे को सह सकी तथा बीमार रहने लगी  थी | माँ की जिद के कारण या कहो माँ की ममता के कारण विवश हो बच्चों को अपना गाँव छोड दिल्ली में आकर बसना पडा था | क्योकि माँ को डर था कि कहीं अपने पति की तरह वह अपने बच्चों को भी खो बैठे |
समाचार पत्रों में आजकल प्रत्येक दिन बाल श्रमिकों को लेकर कोई कोई लेख प्रकाशित हो रहा था | देश के हर कौने से खबरें रही थी कि नाबालिग बच्चों को खतरनाक उद्योगों में काम करने के लिए विवश किया जाता है तथा बड़ी मात्रा में बच्चों को बंधुआ मजदूर रखा जा रहा है, जो कानूनी जुर्म है | यह आन्दोलन दिन प्रतिदिन जोर पकड़ता जा रहा था तथा बड़ी -2 फैक्ट्रियों पर छापे मारे जा रहे थे | इन दोनों भाईयों की फैक्ट्री के मालिक भी यह सोचकर कि उनके उपर कोई आँच जाए, नाबालिग श्रमिकों को नौकरी से निकाल रहे थे | उन दोनों लड़कों के साथ भी ऐसा ही हुआ | उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया |
सरकार के आदेश कभी कभी दलितों, दुखियारों, गरीब एवं शोषित लोगों को सुख  देने के विपरीत उनको कष्ट अधिक पहूँचाते हैं | ऐसा ही कुछ उन दोनों लड़कों के साथ हुआ | आकड़ों के अनुसार पूरे देश में लगभग 20 लाख नाबालिग बच्चे खतरनाक उद्योगों में कार्यरत थे | जिनमें से केवल 45 प्रतिशत बच्चों को ही सरकार की तरफ से राहत प्रदान करनी थी | उपर से यह राशि इतनी कम थी कि उससे एक बच्चे का खर्चा केवल एक सप्ताह का मुश्किल से चल सकता था | ऐसे में नाबालिग एवं अनाथ बच्चे अपना निर्वाह कैसे कर सकते थे | इसकी परवाह किसी को थी |
तीन चार दिनों बाद चरण को बडा लड़का दिखाई दिया | उसका चेहरा बुझा बुझा सा लग रहा था | शरीर पर जो कपड़े थे वे भी ऐसे लग रहे थे जैसे चार पाँच दिनों से धोए हों | उसने अपने दोनों हाथ उठा कर नमस्ते करने के लिए जोड़े तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उनमें जान के बराबर हो | उसकी हालत देख कर मेरे दिल को बहुत ठेस लगी | लड़के ने नमस्ते करते करते जब अपनी नजर उपर उठाई तो पाया कि जैसे अंकल की आखें पूछ रही हो  कि क्यों बेटा यह क्या माजरा है ? ऐसी हालत क्यों बना रखी है ? अंकल के भावों का आशय समझ लड़का खुद ही बोल उठा |
अंकल जी हम दोनों भाईयों  की नौकरी छूट गई है |
चरण ने बहुत आश्चर्य करते हुए पूछा,क्यों ?
क्योंकि हम दोनों नाबालिग हैं |  
तो अब क्या विचार है ?
किसी तरह माँ को मनाकर वापिस अपने गाँव चले जाएँगे |
वहाँ क्या करोगे ?
वहाँ करने को बहुत कुछ तो नहीं है परंतु फिर भी यहाँ की तरह फाके की नौबत तो नहीं आएगी |
लड़के के मुँह से फाके का नाम सुनकर जाने क्यों चरण का पूरा शरीर एक बार को काँप गया | उसने पिछ्ले कुछ दिनों में इतना तो अन्दाजा लगा लिया था कि इन दोनों बच्चों को अगर थोडा सा सहारा मिल जाए तो वह दिन दूर नहीं जब वे ऊचाईयाँ छूने लगेगें | यही विचार मन में दृड़ करके वह बोला, “अगर तुम्हें यहीं काम दिला दिया जाए तब ?
अब हमें कौन काम देगा ?
मैं तुम्हे काम दिलाने का प्रयास करूँगा |
लड़का, चरण की बात सुनकर जिसके चेहरे पर खुशी के चिन्ह उभरे, हाथ जोड्कर, आपकी बहुत बहुत मेहरबानी होगी | हम आपका यह एहसान जिन्दगी भर नहीं भूल पाएँगे |
चरण ने अधिक देर करते हुए उन लड़कों को साथ लिया और उसी फैकट्री के मालिक के पास गया जहाँ वे लड़के पहले काम करते थे |
मालिक  लड़कों की और देख कर, अरे धीरज कैसे हो ? और यह तुम्हारा भाई विज्य कैसा है ?
इससे पहले कि लड़के कुछ बताते चरण ने ही कह दिया, भाई साहब इनकी हालत देखकर आप खुद ही अन्दाजा लगा सकते हैं कि ये कैसे होंगे |
चरण की कही बातों का आशय समझकर मालिक नेबहुत ही मार्मिक शब्द कहे, बाबू जी मैं मजबूर था वर्ना ऐसे होनहार, ईमानदार एवं मेहनती बच्चों को कौन अपने पास नहीं रखना चाहेगा |
अब भी आप इन्हें अपने पास रख सकते हैं |
वह कैसे ?
आप इनको ऐसा काम दे दें जो ये यहाँ से लेजाकर घर बैठकर पूरा कर सकते हों |
परंतु फैक्ट्री से इनके हाथ में काम नहीं सौंपा जा सकता | उसमें खतरा है | हमारी फैक्ट्री पर छापा पड़ जाने का भय रहेगा |
चरण थोडी देर सोचकर,अगर मैं खुद आकर इनके लिए काम ले जाऊँ तब  ?
मालिक तथा धीरज एक साथ आशचर्य से, “आप ?
हाँ मै !चरण सिहँ मंगल |
ये बच्चे आपके क्या लगते हैं तथा आपका इनसे क्या रिस्ता है ?
केवल इंसानियत का रिस्ता |”
चरण का उत्तर एवं दृड निशचय सुनकर मालिक ने कोई हुज्जत नहीं की तथा चरण को बच्चों के लिये काम देना मंजूर कर लिया | समय व्यतीत होने लगा | दिनों के बाद महिने, महिनों के बाद कुछ साल कब व्यतीत हो गए, पता ही चला | चरण बच्चों के लिये काम लाता, ले जाता रहा | बच्चे भी होनहार तथा मेहनती थे | काम करने के साथ साथ बडे लड़के ने बी-कोम भी अच्छे नम्बरों से पास कर ली तथा छोटा लड्का विज्य बी फाईनल में गया | एक दिन सुबह सुबह चरण के घर की घंटी बजी | चरण ने दर्वाजा खोला तो धीरज को बाहर खडे पाया |                            
धीरज को खड़ा देख चरण आश्चर्य से बोला,क्या बात है धीरज ? आज सुबह सुबह कैसे आना हुआ ?
धीरज ने चरण के  चरण छूते हुए कहा.अंकल आज से हमारे लिये फैकट्री से काम मत लाना |
क्यों भाई क्यों ! कुछ सोचकर | अच्छा -2 अब तुम बालिग हो गए हो |(जोर का ठहाका लगाता है )
नहीं अंकल ऐसी बात नहीं है |
तो फिर कैसी बात है ?
क्योंकि अब हमें यहाँ से जाना पडेगा |
चरण को जैसे अपने कानों पर विशवास ही हुआ हो,क्या ? क्या कहा तुमने ? तुम यहाँ से जा रहे हो ?
हाँ अंकल | देखो  (जेब से एक लिफाफा निकाल कर चरण की ओर बढाता है ) मेरी एस्कार्ट फैक्ट्री में सहायक एकाउंट आफिसर के पद पर नियुक्ति हो गई है | मुझे वहाँ कम्पनी की तरफ से रहने के लिए एक क्वार्टर भी मिल रहा है | हो सकता है कि इसके बाद विज्य की नौकरी भी वहाँ लग जाए |
चरण, पत्र पढकर, भगवान का शुक्र है | देखो अब तुम कर्तव्य निष्ठा से, जैसे आज तक करते आए हो, काम करते रहना | मुझे यकीन है कि एक दिन तुम बुलन्दियों को छू जाओगे | परंतु यह सब धीरे धीरे होगा |
अच्छा अंकल अब हम यहाँ से जाएंगे | आपका भी आफिस जाने का समय हो रहा है | (चरण के पैर छूता है )
चरण धीरज को कंधों से पकड़ कर उठाता है और अपने सीने से लगा कर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए, भगवान तुम्हे जिवन में बहुत बहुत तरक्की दे | खुश रहना | कभी कभी अपने अंकल को भी याद कर लेना | (भरे मन से) भविष्य में कभी किसी प्रकार की कोई भी जरूरत आन पड़े तो बे झिझक बता देना | अब  जाओ बेटा जाओ |
                             आठ वर्ष बाद
आज चरण के छोटे बेटे पवन का पुलिस में सब इन्सपैक्टर के पद के लिए साक्षात्कार होना था | सुबह से ही घर में चहल पहल हो रही थी | सभी घर के सद्स्य अपनी अपनी राय तथा हिदायतें दे रहे थे कि पवन को साक्षात्कार के दौरान कैसा रहना चाहिए तथा कैसे क्या करना चाहिए |
चरण,बेटा ,पवन , तुम्हारे जाने का समय हो गया है | जाओ भगवान से आशीर्वाद ले कर जाओ कि वे तुम्हे सफलता प्रदान करे |
अच्छा पापा जी |कहता हुआ पवन भगवान जी का आशीर्वाद लेने चला जाता है | इतनें में  पवन के दोस्त अमित का प्रवेश|
अमित पवन को हाथ जोड्कर प्रार्थना करते हुए देखकर, अरे भई पवन, तुम वर्तमान युग में रह रहे हो और इस जमाने में इनकी पूजा काम नहीं करती |
पवन असमंजस से, “क्या मतलब ?
यार तुम भी अपने पापा जी की तरह इस जमाने के लोगों के बारे में कुछ नहीं जानते |
पवन अपने पापा के बारे में सुनकर थोड़ा खिन्न होकर, क्या बकवास करता है |
यार देख तु गुस्सा हो परंतु वास्तविक्ता यह है कि आजकल इनकी पूजा (भगवान के मन्दिर की ओर इशारा करते हुए ) से कोई बात नहीं बनती | इस जमाने में सफलता पाने के लिए तो उनकी पूजा बहुत आवशयक है | चढावा ''वहीं'' चढाना जरूरी है |  
पवन अमित की बातों का सिर पैर समझते हुए बोला, उनकी पूजा ! किन की पूजा ? कैसा चढावा ?
चरण जो अभी तक दोनों दोस्तों का वार्तालाप सुन रहे थे बाहर आकर इस बारे में अपनी राय इस प्रकार प्रकट करते हैं | बेटा , अमित तुम ठीक कह रहे हो आजकल इनकी पूजा के बजाय उनकी पूजा का बोलबाला है | यह भी सत्य है कि पवन मेरे ही नक्शे कदम पर चल रहा है | परंतु तुम्हारा यह विशवास कि उनकी पूजा के बिना कोई काम नही बनता बिल्कुल निराधार है | मैं व्यक्ति की योग्यता को सबसे अधिक महत्व देता हूँ | अगर किसी पद के लिए तुम अपने को पूर्णरूप से योग्य समझते हो तथा निष्ठा, मेहनत, एवं सच्ची लगन से उसे पाना चाहते हो तो कोई मजाल नहीं कि तुम उसे पाने से वचित रह जाओ | तुमने यह तो मुहावरा पढा ही होगा कि जहाँ चाह् वहाँ राह | अतः तुम्हे वह मंजिल अवश्य मिलेगी जिसे तुम पाना चाहते हो, यह मेरा दृड विश्वास है | और यही सच्चाई भी है | (अचानक घड़ी की ओर देखकर )
चलो बेटा पवन, चलो | समय हो गया है |पवन झुककर अपने पापा जी के चरण छूता है | चरण उसे आशीर्वाद देता है कि भगवान उसे सफल बनाए |
साक्षात्कार के लिए आए सभी युवक बैठे हैं | कोई अपने को डी आई जी का रिस्तेदार बता रहा है तो कोई सेना के उच्च आफिसर का लड़का | कोई नेता जी का जानकार है तो कोई बहुत बडे उद्योगपति का भेजा हुआ | इन सभी के बीच में पवन अपने को बौना सा महसूस कर रहा था | उसके मन में यह बात घर करती जा रही थी कि शायद अमित ठीक ही कह रहा था | पवन अभी इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था कि साक्षात्कार के लिये आवाजें लगनी शुरू हो गई | एक के बाद एक युवक अन्दर जाता तथा थोड़ी देर बाद बाहर जाता | पवन का नाम भी पुकारा गया | अन्दर जाकर उसने देखा कि कमरे में सात व्यक्ति बैठे थे | मध्य में बैठे व्यक्ति ने अपने सामने रखी फाइल में झांका | उसके माथे पर कुछ लाईने उभरी | उसने अपने सीधे हाथ की एक उंगली अपने माथे पर लगाई तथा कुछ सोचने लगा | फिर अचानक उसने अपनी गर्दन उपर उठाई | पवन को उसकी निगाहें अपने को कुछ घूरती महसूस हुई | फिर उस व्यक्ति ने सामने पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा बैठो | पवन उसका धन्यवाद करता हुआ उसके सामने रखी खाली कुर्सी पर बैठ गया |
पहला, तुम्हारा नाम क्या है ?
सर, पवन कुमार मंगल |” 
दूसरा-“परंतु आपके पिता जी तो गुप्ता लगाते हैं ?
जी, सर |
यह क्यों ?
सर, "मंगल" गुप्ताओं का एक गोत्र है | जैसे सिंघल, बंसल इत्यादि |
तीसरा- “कहाँ के रहने वाले हो ?
सर , नारायणा का |
पाँचवा- “नारायणा में किस जगह, वह तो बहुत बडा इलाका है ?
नारायणा गावँ ,सर |
पवन के कहने से कि वह नारायणा का रहने वाला है, पवन ने महसूस किया कि चौथे नम्बर पर बैठे व्यक्ति ने एक लम्बी ठंडी सी साँस भरी और कुछ विचारों में खो सा  गया |
छ्ठा- “पुलिस में क्यों भर्ती होना चाहते हो ?आवाज सुनकर पवन की तंद्रा टूटी |
सर वैसे तो हर व्यक्ति को अपनी जीविका चलाने के लिए कुछ कुछ करना ही पड़ता है परंतु मैं सोचता हूँ कि पुलिस में रहकर मैं मनुष्य मात्र की सेवा कुछ बेहतर ढंग से कर सकता हूँ |”
सातवाँ- “तुम्हारा ओर कोई रिश्तेदार पुलिस में है ?
सर, मेरा कोई भी रिश्तेदार या निकट सम्बंधी पुलिस में नहीं है |
चौथा जो अब अपने ख्यालों से बाहर आया प्रतीत हुआ तथा उसके चेहरे पर एक प्रकार की संतुष्टि झलकने लगी थी अपने मुख पर एक मधुर मुस्कान लाकर बोला, आपके पिताजी का नाम चरण सिहँ गुप्ता उर्फ 'मंगल' है ? (बिना पवन के उत्तर की प्रतिक्षा किए ही उसने कहना आरम्भ रखा) बहुत बहुत धन्यवाद मंगल जी | भगवान आपको सफलता दे | अब आप जा सकते हैं | आपका परिणाम ठीक एक सप्ताह बाद बाहर नोटिस बोर्ड पर लगा दिया जाएगा | पवन भी धन्यवाद कहता हुआ कमरे से बाहर निकल गया |
पवन का पुलिस में इंटरव्यूह होने के तीन दिनों बाद आसमान में बादलों का धुंधलका छाया हुआ था | सुबह से सफर कर रहा सूर्य थका मादा सा शायद सोना चाहता था | उपर आकाश में पक्षियों की चहचाहट सुनाई पड़ रही थी | वे भी रात्रि विश्राम के लिए अपने घरों की तरफ लौट रहे थे | नारायणा गाँव की गलियों में भी चहल कदमी बढ गई थी क्योंकि वहाँ के वाशिन्दे भी, जो अधिकतर नौकरी पेशा वाले थे, अपने अपने कार्यों से वापिस लौट रहे थे | इसी वातावरण में एक पुलिस जीप ने गावँ में प्रवेश किया | पुलिस की जीप देखकर लोग छोटे छोटे झुंडों में बटं गए तथा विभिन्न प्रकार के विचारों का बाजार गर्म होने लगा | सभी अपने अपने अन्दाजों से पुलिस आने की अटकलें लगाने लगे थे | पुलिस की जीप चरण सिहँ गुप्ता के दरवाजे पर आकर रूक गई | उसमें से अगली सीट पर बैठा व्यक्ति उतर कर घर में प्रवेश कर गया | बाकी के दो सिपाही ओर ड्राईवर उतर कर बाहर ही जीप के पास खड़े रहे | लोग दूर खड़े होकर माहौल का जायजा लेने लगे |
आगंतुक ने चरण को देखकर, नमस्ते जी |
चरण जो बे-खबर अखबार पढ़ रहा था, अपना सिर उपर उठाकर तथा चश्मा ठीक करते हुए पूछा, नमस्ते, नमस्ते आपको किस से मिलना है ?
आप से |
चरण आश्चर्य से, मेरे से ! किस सिलसिले में ? पर मैनें आपको पहचाना नहीं | बैठो ! आप कौन हैं ?
आगंतुक ने बैठते हुए बताया, मैं एक पुलिस कमिशनर हूँ |
चरण को जैसे अचानक कोई बिच्छू काट गया हो, पुलिस कमिशनर !”फिर साहस बटोरते हुए, कहिए एक पुलिस कमिशनर का मेरे यहाँ आने का क्या प्रयोजन है ?
केवल एक मुलाकात |
चरण जो अपने को सम्भाल चुके थे, मुलाकात ओर मेरे से एक पुलिस कमिशनर की ?
हाँ अंकल, शायद आपने अभी भी मुझे पहचाना नहीं | (चरण कमिशनर की तरफ टुकर टुकुर निगाहों से देखता है ) मैं आपका धीरज हूँ अंकल | धीरज अग्निहोत्री |
चरण खड़े होते हुए तथा दिमाग पर कुछ जोर सा देकर ) धीरज, धीरज अग्निहोत्री | (फिर अचानक जैसे सब कुछ याद गया हो ) “अरे बेटा तू ! तू इतना बडा आफिसर बन गया है ?”
यह सब आपकी कृपा और एहसान का फल है अंकल |
नहीं बेटा नहीं | यह सब उसकी कृपा (आसमान की और इशारा करते हुए ) एवं उसकी इच्छा का दिया है | मैं भला कृपा करने वाला कौन होता हूँ |
नहीं अकल नहीं | अगर बुरे दिनों मे आप हमारी सहायता नहीं करते तो पता नहीं हम इस दुनिया में अब होते भी या नहीं |
ऐसा कुछ नहीं है, बेटा | जो होता है हरिकृपा से ही होता है | तू बैठ तो सही |”अपनी पत्नि को आवाज देता है, “अजी सुनती हो | देखो कौन आया है |”
चरण की भार्या एवं लड्का पवन बाहर आते हैं चरण की पत्नि तो आगंतुक को पहचान पाई तथा पवन कुछ असमंजस में पड गया | इससे पहले कि पवन कुछ बोलता |
धीरज बोल पड़ा, कहो मंगल जी क्या हो रहा है ?
पवन असमंजसता से बाहर निकलते हुए, नमस्ते, सर |
धीरज अपनी गर्दन ना के अंदाज में हिलाकर, यहाँ मैं आपका सर नहीं, भाई हूँ | समझे |
चरण पवन से, क्या तू इन्हे जानता है ?
हाँ पापा जी, परसों पुलिस इंसपैक्ट्रों की भर्ती के लिए साक्षात्कार लेने वाले दल के ये मुखिया थे |
चरण बहुत ही आश्चर्य से, क्या !!”
इसके बाद धीरज ने अपने घर की तरह वहाँ खाना खाया | अपनी आप बीती सुनाई तथा चरण से उसके परिवार की जानकारी ली और फिर खडे होकर  जाने की विदा मांगी |
धीरज को उठता देख चरण ने निवेदन के रूप में उससे याचना की, बेटा, अब तो आते रहना |
नहीं अंकल अब मैं नहीं पाऊगाँ | मैं तो यहाँ केवल इस इन्टरव्यू के लिए ही आया था | जब से आप से बिछडा था मन में एक लालसा थी कि जिसने मुझ अंजान के लिए इतने कष्ट उठाए, हमें सहारा दिया, मैं भी उनके कुछ काम सकूँ तो अपने को धन्य समझूँ | परसों भगवान ने अचानक मेरे मन की यह इच्छा भी पूरी कर दी | स्पष्ट तो मैं आपको बताऊगाँ नहीं परंतु इतना कह देता हूँ कि पांच दिनों बाद नोटिस बोर्ड पर लगी लिस्ट में पवन का भी नाम होगा |
इसके बाद धीरज ने झट से चरण तथा उसकी पत्नि के चरण छुए और बाहर निकल गया | चरण को जैसे काठ मार गया हो | वह बुत बना धीरज को जाते हुए देखता रह गया | पुराने ख्याल एवं यादें उसके दिमाग में चलचित्र की भाँति एक एक करके पूरी घूम गई | चरण ने धीरज के द्वारा कहे आखिरी वाक्य "भगवान ने परसों अचानक मेरे मन की यह इच्छा भी पूरी कर दी " का निष्कर्ष निकालने की कोशिश की | उसकी यही समझ आया कि जैसे धीरज ने कह दिया हो कि अंकल, मैनें बदला चुकता कर दिया है आपके "एहसान" का |      

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