Tuesday, August 16, 2011

जूतियाँ (पार्ट-२)


चरण मनोज जी के साथ उनकी वैन में आगे की सीट पर बैठा था | संतोष एवं कृष्णा पीछे बैठी थी | खाने पीने का सामान हालाँकि दोनों गाड़ियों में था परंतु कुछ फालतू सामान मनोज जी की गाड़ी में ही था | दूसरी गाड़ी जो पवन चला रहा था उसमें खाने का कुछ सामान खत्म हो गया |
प्रभा ने पवन की गाड़ी की खिड़की से एक मूली दिखाकर इशारे से कहा,खत्म हो गई हैं, दे दो |
संतोष ने कृष्णा को जो खिड्की के पास बैठी थी मूली देकर कहा, ले ये बेबी(प्रभा) को पकड़ा देना |
 कृष्णा ने प्रभा की ओर इशारा करते हुए कहा,पवन से कह वह अपनी गाड़ी हमारी गाड़ी के समीप ले आएगा |
पवन गाड़ी को तेज स्पीड से मनोज जी की गाड़ी के साथ ले आता है तथा कृष्णा उसे मूली पकड़ा देती है | मनोज जी अपनी गाड़ी के शीशे में यह सब कुछ देख रहे होते हैं | वैसे तो जब से घर से चले थे रास्ते में कई बार चीजों का एक गाड़ी से दूसरी गाड़ी में आदान प्रदान होता रहा था परंतु उनमें मनोज जी को पहले सूचित कर दिया गया था या फिर कहें ऐसा करने के लिए उनकी आज्ञा ले ली गई थी | इस बार उनकी बिना अनुमति के अथवा उनको बिना बताए ऐसा किया गया था | मनोज जी को शायद यह गवाँरा हुआ तभी तो बिना सोचे समझे कि यह किसने किया है तथा उन्हें क्या कहना उचित होगा वे बिफर पड़े | तुम्हें अक्ल नहीं है | चलती गाड़ी से हाथ बाहर निकाल रही हो | दोनों के हाथ कट जाएँगें | गाडियों का एक्सीडैंट करवाओगी क्या ? बुद्धि से कोई काम ही नहीं किया जाता | क्या जल्दी पड़ रही थी सामान पकड़ाने की | सारा रास्ते तो खाते रहे हैं | क्या वे भूखे मर रहे थे जो थोड़ा सब्र भी किया गया | इत्यादि | 
थोड़ी देर पहले मनोज जी की गाड़ी में जहाँ  खुशी का माहौल था वहाँ एक दम सन्नाटा सा छा गया | संतोष एवं कृष्णा एक दूसरे का मुहँ ताकने लगी | दोनों के चेहरों पर मुर्दानगी छा गई | दोनों की आखों में पानी तैरता महसूस हुआ परंतु शुक्र है अश्रु ढलके नहीं | चरण भी सकते में गया तथा जान पाया कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या कर दिया था कि मनोज जी ने इतने कठोर शब्दों का इस्तेमाल किया था |
इसके साथ ही साथ एक और वाक्या घटित हुआ | जब सब घर से चले थे तो मनोज जी ने पवन को हिदायत दी थी कि वह उसके पीछे पीछे चले | पवन अब तक उनका अनुशरण करता चला रहा था | अब जब प्रभा ने कृष्णा के हाथ से मूली पकड़ी तो पवन तेजी के कारण मनोज जी से आगे निकल गया | खाटू जी भी नजदीक ही थे | इसलिए शायद पवन गाड़ी को तेजी से ही चलाता रहा | मनोज जी ने भी अपनी गाड़ी की रफ्तार बढाई परंतु वे पवन से आगे निकल पाए | इस दौरान चरण मनोज जी के चेहरे पर बदलते भावों को निहार रहा था | मनोज जी को शायद अपनी कही किसी भी बात को दूसरे द्वारा अमल में लाने का तनाव ज्यादा दुख देता है | तभी तो पवन के आगे निकलने पर उनके मुख से ये शब्द निकले थे, “जाने दो आगे मैं भी रास्ता बदल कर उससे पहले धर्मशाला पहुंच जाऊँगा | फिर ढूढते फिरेंगे |   
मनोज जी के भावों से चरण को उस फिल्म की याद गई जिसमें दिलीप कुमार (एक राजा) एव मनोज कुमार(दिलीप का एक गरीब दोस्त ) एक कार रैली में हिस्सा ले रहे थे | कार दौड़ में मनोज कुमार दिलीप कुमार से आगे निकलने लगता है तो अचानक उसकी निगाह दिलीप कुमार के चेहरे पर पड़ जाती है | दिलीप कुमार का चेहरा जो अपने दोस्त मनोज को देखकर हमेशा खिला रहता था उसे आगे निकलता देख एक दम तमतमा जाता है तथा वह मनोज को गिद्ध की तरह घूरता नजर आता है | यह देखकर तथा महसूस करके ओर कुछ सोचकर मनोज अपनी गाड़ी की रफ्तार जान कर कुछ धीमी कर लेता है | इस प्रकार जानबूझ कर वह दिलीप कुमार को जिता देता है | यह बात दिलीप भी महसूस करता है कि मनोज जीत सकता था परंतु जाने क्यों उसने जानबूझ कर मुझे  जिताया है | अतः दौड़ के बाद दिलीप कुमार मनोज से पूछ ही लेता है कि उसने जीती हुई रेस क्यों हारी ?
इस पर मनोज का उत्तर था, "यार, जीत हमेशा से ही बडों की बपौती रही है |
दिलीप के मतलब पूछने पर मनोज ने बहुत ही सरल एवं दिल को छू देने वाला जवाब दिया तथा कहा, | जब मैं आप से आगे निकल रहा था तो मैनें आपके चेहरे के भाव पढ लिए थे | उससे मुझे अपनी दोस्ती खंडित होती नजर रही थी | इसलिए मैं जीत कर आपके मन को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था | गरीब हार जाए तो उसे कोई दुख या गम नहीं होता | उसके दिल को कोई ठेस नहीं पहूँचती क्योंकि जिसे भगवान ने ही खुद हराया हुआ हो वह तो हार का आदी हो चुका होता है | परंतु आप जैसों को तो हार के मुहँ को झेलना आता ही नहीं | यही वजह थी कि मै आपसे आगे निकलने में असमर्थ रहा |
परंतु शायद खाटू श्याम जी ने मनोज जी की मनोदशा को पवन तक पहुंचा दिया | उसने आगे जाकर अपनी गाड़ी रोक ली तथा जब मनोज जी आगे निकल गए तो उनका अनुसरण करते हुए चलने लगा | सूरज ढ्ल चुका था | राजस्थान मे जैसा अमूमन होता है, शाम का मौसम सुहावना हो गया था | धर्मशाला में ठहरने का इंतजाम करने के बाद सभी श्याम बाबा के दर्शन हेतु निकल पड़े | बताना होगा कि चरण नगें पैरों ही घूम रहा था |     
अगली सुबह नहा धोकर नाशता पानी करके, खाटू जी के रिवाज के अनुसार, हम सब श्याम बाबा के दर्शन हेतू धर्मशाला से निकले | सुबह के दस बजे होंगे | राजस्थान की दस बजे की गर्मी दिल्ली की 12 बजे की गर्मी को भी मात देने वाली होती है |
दूसरे वहाँ का बालू ( रेत ) इतनी जल्दी गर्म हो जाता है कि जैसे नीचे भट्टी सुलगा दी हो | खाटू श्याम जी में सबसे पहले बाबा के कुंड मे स्नान करने को पवित्र माना जाता है | यह कुंड मुख्य मन्दिर से लगभग आधा किलोमीटर पर स्थित है | इसलिये हम सभी कुंड पर पहुंच गए | किसी ने अच्छी तरह स्नान किया तो किसी ने हाथ मुहँ ही धोए तो किसी ने अपने उपर कुंड के जल का छिंटा मार कर ही संतुष्टि प्राप्त कर ली | चरण किसी तरह नगें पैर कुंड तक तो पहुंच गया परंतु स्नान करने के बाद वहाँ से खाटू श्याम जी के मुख्य मन्दिर तक जाने के लिए दुविधा में पड़ गया | अगर वह इस चिलचिलाती धूप में नगें पैरों जाता तो निश्चय ही उसके पैर गर्म बालू में भुने मक्के की तरह फूल जाते | उसकी पत्नि, साली, दामाद, लड़की, लड़का, बहू एवं बच्चे अपनी मंजिल की ओर बढ चुके थे | किसी को चरण का ख्याल भी नहीं आया कि वह वहाँ से मन्दिर तक का जलता रेगिस्थान नगें पैर कैसे पार करेगा | चरण का मन, उन सबकी इस अनभिज्ञता पर, कुंठित हो गया | वह सोचने लगा कि इस संसार में रिस्ते-नाते सिर्फ दिखावे के होते हैं | क्या उसके साथ वाले उसे एक जोड़ी जूतियाँ भी नहीं दिला सकते जबकि राजस्थान जूतियों के लिए प्रसिद्ध गढ माना जाता है | किसी के दिल में इतना भी दर्द पैदा नहीं हुआ कि उनका सबसे बुजूर्ग आदमी राजस्थान की गर्मी में नगें पैर चलना कैसे बर्दास्त कर रहा होगा | चरण मरता क्या करता | उसे मन्दिर तक जाने की यकायक एक युक्ति सूझी  | उसने अपने गीले तौलिए तथा कच्छे को खूब अच्छी तरह पानी में भिगो लिया | फिर दोनों को एक एक पैर में बाधं लिया | बनियान को अच्छी तरह भिगो कर हाथ में लिया ओर सरपट मन्दिर की और लपका | रास्ते में लोगों ने चरण की इस हालत पर खुशी का खूब आनंद लिया होगा क्योंकि चरण महसूस कर रहा था कि जो भी उसकी तरफ देखता था मुस्कराए बिना नहीं रह पा रहा था | रास्ते में जब पैर पर बंधे कपडों का पानी सूख जाता तो चरण बनियान के पानी से उन्हें फिर तर कर लेता | इस तरह चरण की युक्ति काम कर गई और वह खाटू श्याम जी के दरबार में सकुशल पहुंच  गया | श्याम बाबा खाटू जी के दर्शन करने के पशचात चरण वहाँ के पूरे बाजार में घूम आया | उसने एक एक दूकान पर जूतियों के लिये पूछा परंतु उसे जूतियाँ कहीं नहीं मिली | वैसे बाजार से धर्मशाला लौटने के लिए चरण को कोई खास दिक्कत नहीं हुई क्योंकि दूकानों घरों के छज्जों की छावँ में पैर रखता हुआ वह धर्मशाला आराम से पहुंच गया |
अगले दिन खाटू श्याम जी से सालासर के लिए हमारा काफिला रवाना हुआ | दोपहर के बारह बजे होंगे | चिलचिलाती धूप के कारण गर्मी अपने शबाब पर थी | सड़कों पर मृग तृष्णा के नजारे उजागर हो रहे थे | इस समय हमारी गाडियाँ एक गावँ से गुजर रही थी | गावँ की सड़क टूटी फूटी थी | अचानक मनोज जी की गाड़ी रूक गई | उन्होने गाड़ी आगे बढाने की हर सम्भव कोशिश की परंतु सफल हो सके | असल में गाड़ी  सड़क पर जमा रेत के ढेर में धंस गई थी | और कोई चारा न देख गाड़ी को धक्का देकर रेट से बाहर निकालना ही उचित समझकर मनोज जी ने सभी को गाड़ी से बाहर निकालने को कहा |
एक एक करके सभी मनोज जी की गाड़ी के बाहर गए केवल चरण ही अन्दर रह गया | इस पर मनोज जी ने उन्हें भी बाहर आने को कहा |
चरण जानता था कि उसके पावँ बाहर जमीन पर रखते ही ऐसे भुन जाएँगे जैसे दबी हुई आग में शकरगन्दी भुन जाती है | फिर उसने विचार किया कि उसका अन्दर बैठे रहना भी अच्छा नहीं लगेगा जब गाँव के लोग मिल कर गाड़ी को धक्का लगा रहे होंगे | उसके साथ  साँप के मुह में छुछुन्दर वाली बात हो रही थी | वह अन्दर ही बैठे रह सकता था बाहर ही सकता था | उसे बाहर तो आना ही था | अतः उसने गाड़ी में से अपने चारों ओर का मुआवना किया | उसने देखा कि थोड़ी दूर पर एक पेड़ है | चरण ने अपने शरीर में स्फूर्ति का संचालन किया तथा एक ही छलांग में पेड़ के नीचे पहुंच गया |
उसको छलांग लगाता देख मनोज जी के सभी बच्चे जोर से हंसे कि देखो नाना जी ने हिरण की तरह कैसी अच्छी छलांग लगाई थी | पेड़ के नीचे पहुंच कर चरण ने अपने तलवों में दर्द महसूस किया | उसने पैर उठाकर देखा तो पाया कि उसके तलवों में काटें लगे थे | चरण ने उपर देखा तो पाया कि वह एक बबूल का पेड़ था जिसके नीचे उसने शरण ली थी और उसी बेवफा बबूल के काटेँ ही थे जो चरण के पैरों में चुभ कर उसे पीड़ा पहुँचा रहे थे | चरण को लगा जैसे पेड़ भी उसके बच्चों की तरह उसे पीड़ा पहूँचा कर प्रसन्नता महसूस कर रहा हो | खैर गावँ वालों की मदद से गाड़ी को धक्का देकर रेत से बाहर निकाल दिया गया | गाड़ी बबूल के पेड़ से लगभग 40 मिटर दूर खड़ी कर दी गई | चरण को छोड्कर सभी गाड़ी के अन्दर बैठ गए | चरण अभी भी बबूल के पेड़ की  डाल पर ऐसे लटका था जैसे कोई लंगूर लटक रहा हो | उसकी स्थिति देख कर सभी को हँसी रही थी | आखिर कृष्णा ने पवन को एक जोड़ी चप्पल लेकर भेजा जिसे पहन कर चरण गाड़ी तक सकुशल गया | सालासर में नगें पैरों घूमने में चरण को कोई समस्या रही | क्योंकि एक तो उनकी धर्मशाला मन्दिर के पास थी दूसरे बाजार में सड्कों पर छाँव थी | परंतु हैरत की बात थी कि पूरे बाजार में वहाँ भी चरण के पाँव के नाप की जूतियाँ कहीं नहीं मिली |  
सालासर से वापिसी पर अधिकतर हम मुख्य बाजार होकर बाईपास से ही आए | रास्ते मे चरण ने एक दो जगहों पर गाड़ी रूकवा कर पता भी किया परंतु कहीं भी उसके नाप की जूतियाँ मिल पाई | आखिर चरण अपनी यात्रा पूरी करके नगें पैर ही अपने घर लौट आया |
घर पहुँच कर चरण के मन में तरह तरह के विचार आने लगे | मसलन, क्या उसके बच्चे उसके लिए इतना भी करने लायक नहीं हैं कि उसे एक जोड़ी जूती का दिलवा सकें | अगर उनके मन में थोड़ी भी दया होती तो बाईपास से आने की बजाय वे मुख्य बाजार से सकते थे | उसने यह भी सोचा कि शायद आजकल के जमाने की रफ्तार को देखते हुए उनके बच्चे भी यह समझने लगे हों कि बूढा सठिया गया है | परंतु चरण का मन यह भी मानने को तैयार नहीं था कि उसके बच्चों ने जान बूझ कर उसे जूतियाँ नहीं दिलवाई | क्योंकि घर पर वे हमेशा अपने मां-बाप की सेवा के लिए तत्पर रहते थे | चरण ने बहुत माथा पच्ची की, यह जानने के लिए, कि आखिर यह क्या राज रहा कि पहले तो उसकी चप्पलें गुम हो गई फिर पूरे राजस्थान के दौरे पर भी उसे उसके नाप की जूतियाँ नहीं मिल पाई |
दौरे से आने के दो दिनों बाद ही उसके घर पर एक जूती बेचने वाला आया | चरण का मन खिल उठा | उसने  बड़े चाव से एक जोड़ी जूती खरीद कर पहन ली | उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसे मन की मुराद मिल गई हो | उसने भगवान का लाख लाख शुक्र करने की मनसा बनाई ही थी कि वह एकदम कुछ सोचकर अचम्भित हो उठा | उसके मन में ख्याल आया कि आखिर यह क्या रहस्य है कि जूतियों के गढ कहे जाने वाले राजस्थान में पूरी तत्परता से खोजने पर भी जूतियाँ नहीं मिली तथा यहाँ घर बैठे बिठाए जूतियाँ मिल गई |
चरण ने पूरे घटनाक्रम का बारीकी से मुआवना किया | वह इस  निष्कर्ष पर पहुँचा कि शायद यह सब प्रभु की माया का ही एक बुना हुआ जाल था | क्योंकि संतोष के कहने पर चरण ने एक बार दौरे पर जाने के लिए मना कर दिया था | परंतु अपनी जूतियों के शौक की चाहत को पूरा करने के कारण जाने की हामी भर ली थी | शायद भगवान ने यही सोच कर कि चरण को मेरे से ज्यादा जूतियों से लगाव है, चरण को उसकी गल्ती का अहसास दिलाने के लिए, उसने पूरे दौरे के दौरान चरण को नगें पैर घुमाया तथा घर आते ही उसके लिये जूतियाँ भेज दी |  

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