Thursday, January 30, 2025

मस्तानी - भाग-12

 

पक्का इरादा

देवेन्द्र की माँ को सामने देख मस्तानी ने झुक कर चरण छू लिए | माँ ने ममतामयी हो उसे उठाकर गले से लगाते हुए हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया और पूछा, “हमारे यहाँ हमेशा के लिए कब आ रही हो ?”

मस्तानी ने शर्म से गर्दन झुकाकर , “यह तो आप लोगों के ऊपर है ?”

“हमारे ऊपर !”

“हाँ |”

“वो कैसे ?”

“आपके बड़ों को मेरे मम्मी-पापा से मिलकर बात आगे बढानी होगी |”

देवेन्द्र के पिता, “तुम तो अपनी तरफ से पक्की हो ?”

मस्तानी ने बारी –बारी से तीनों की तरफ देखते हुए हामी भर दी | एक बार फिर उन तीनों की नजरों ने मस्तानी के अंतर्मन में एक ऐसी ऊर्जा का संचार किया कि उसको उनका पक्का स्वामी भक्त बना दिया |

समय देखकर एक दिन देवेन्द्र के पापा (कबीर )मस्तानी के घर आ धमके | अपने सामने एक अजनबी को देख मस्तानी के पापा (मोहन) ने पूछा, “कहिए किस से मिलना है ?”

“क्या आपका नाम मोहन है ?”

“हाँ, मैं ही मोहन हूँ |”

“तो आप ही से बात करनी थी |”

“कहिए क्या बात करनी है ?”

“बात इत्मीनान से बैठकर करने की है |”

मोहन असमंजस में पड़ गया कि एक अजनबी मेरे से इत्मिनान से क्या बात करना चाहता था | खैर उसने अजनबी को अन्दर बुलाकर बैठाया | अजनबी ने घर में चारों तरफ नजर घुमाई और बोला, “घर तो काफी सुन्दर तथा सलीके से बना रखा है |

“जी |”

“आप क्या करते हो ?”

मोहन:- पहले आप यह बताओ कि आप हो कौन और मेरे से मिलने का आपका क्या  उद्देश्य है ?”

“मेरा नाम कबीर  है और मैं देवेन्द्र का पिता हूँ |”

“ठीक है |”

“अपना आने का उद्देश्य साफ़-साफ़ कहूं तो मैं आपकी लडकी मस्तानी का हाथ अपने लड़के देवेन्द्र के लिए माँगने की इच्छा से आया हूँ |”

आगंतुक की बात सुनकर एक बार तो मोहन का सारा शरीर सुन्न हो गया जैसे काटो तो उसमें खून नहीं | उनकी जुबान जैसे गले में ही अटक गई हो | उनसे कुछ जवाब देते न बना | फिर उन्होंने अपने आप को सम्भाला और थोड़ा उत्तेजित होकर बोले, “मान न मान मैं तेरा मेहमान | जान न पहचान चलें हैं रिश्ता जोड़ने |”

कबीर :-भाई साहब जान पहचान तो बहुत पुरानी है |

“हम कब मिले ?”

“यह बात सत्य है कि हम पहली बार मुलाकात कर रहे हैं परन्तु हमारे बच्चे तो आपस में बहुत बार मिल चुके हैं |”

कबीर की दलील सुनकर मोहन के ज्ञान चक्षु खुले और वह अन्दर तक काँप गया | उसे समझ आ गया कि सामने बैठा व्यक्ति उसका बाप है जिसके प्रभाव में उसकी लडकी पहले आ चुकी थी | परन्तु उसकी समझ में यह नहीं आया कि आखिर इतने दिनों बाद यह मसला फिर उसके सामने कैसे खडा हो गया | मोहन ने संयम रखते हुए कबीर को दो टूक कह दिया कि उन्हें यह रिश्ता मंजूर नहीं |

कबीर :- मेरी सलाह है कि आप दो प्रेमियों के बीच रोड़ा न बनो |

मोहन:- यह मेरी प्रतिष्ठा का सवाल है और मैं इससे कभी समझौता नहीं करूंगा |

कबीर:-तुम्हारी प्रतिष्ठा धरी की धरी रह जाएगी अगर दोनों ने भागकर शादी कर ली तो |

मोहन:-अब मैं यह मौक़ा आने ही नहीं दूंगा |

कबीर :-बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि आप रोक नहीं पाओगे |

मोहन :- क्या बढ़ चुकी है ?

कबीर:- आपकी लडकी हमारे घर जाकर आशीर्वाद प्राप्त कर चुकी है |

हालांकि कबीर की बात सुनकर एक बार को मोहन बेदम सा हो गया परन्तु जल्दी ही उसने अपने को अपने इरादों में मजबूत व्यक्ति साबित करने के लिए बुलंद आवाज में चिल्लाया कि तुम मेरी बेटी को सम्मोहित करके उसे जबरन फ़साने की कोशिश कर रहे हो | खबरदार ऐसा किया तो | अब आप यहाँ से जाओ और फिर कभी अपनी शक्ल मत दिखाना |

कबीर उठ खडा तो हुआ परन्तु मोहन के दूसरे बच्चों पर इल्जाम लगाता सा बोला कि अपनी बड़ी बेटी के साथ-साथ अपने दूसरे बच्चों को भी संभाल लो क्यों कि उनके भी नयन-मूटटके चल रहे हैं | और फिर चलते-चलते कह गया कि मस्तानी तो हमारी होकर ही रहेगी |  

 

 

Friday, January 24, 2025

मस्तानी भाग-11

 

बदलाव

मस्तानी के माता-पिता कुछ दिनों से अपनी बेटी के व्यवहार में कुछ परिवर्तन महसूस कर रहे थे | हमेशा शांत स्वभाव रहने वाली उनकी लडकी आजकल घर में चलते फिरते कभी-कभी गुनगुनाने लगती है | अगर घर में टेलीविजन पर कोई गाना चल रहा हो और कोई उस पर नाच रहा हो तो उसके पैर क्या पूरा शरीर हरकत में आ जाता है | पिता ने उसकी माँ के सामने जब अपने मन की शंका जाहिर की तो जवाब मिला कि अब हमारी लडकी के हाथ पीले करने का समय आ गया है | इसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दो |

मस्तानी अपने माता-पिता का वार्तालाप सुनकर सामने आई और निर्भीकता से कहा, “मैनें अपने लिए लड़का ढूंढ लिया है |”

माता – पिता अपनी बेटी की निर्भीकता देखकर दंग रह गए और ठगे से सन्न हो एक दूसरे को देखने लगे | थोड़ी चेतना आने पर माँ ने पूछा, “यह तुम क्या कह रही हो बेटी ?”

बिना किसी झिझक के मस्तानी ने जवाब दिया, “मम्मी जी मैं वही कह रही हूँ जो आपने सुना |”

अपने पति की आँखों में गुस्सा भांप माँ  ने बेटी का बाजू पकड उसे झक्झोड़ा, “तू पागल हो गई है क्या ?” 

‘कल तक तो आप मुझे एक समझदार और गुनवंती बेटी कह रही थी फिर आज अचानक मुझे पागल की उपाधि से क्यों नवाज रही हो’ ?

मम्मी झुंझलाकर बोली, “अरे कुछ तो शर्म कर तेरा बाप खडा है |”

“इसमें शर्म काहे की, आप दोनों भी तो मेरी शादी करना चाहते हैं ?“

“सो तो है |”

“फिर जब मैंने अपनी पसंद का लड़का चुन लिया है तो इसमें हर्ज क्या है | आप दोनों की मेरे लिए लड़का ढूढने की परेशानी भी खत्म “ यह सब कहते हुए मस्तानी को किसी प्रकार की कोई झिझक या शर्म महसूस नहीं हो रही थी जो अमूमन ऐसे संवेदनशील मामलों में एक लडकी महसूस करती है |

माँ का रो-रोकर बुरा हाल था | उसका पूरा शरीर काँप रहा था | उसने सवालों की झड़ी लगा दी |

वह कौन है ?

किसका लड़का है ?

किस जात का है ?

कितना पढ़ा लिखा है ?

क्या करता है ?

कहाँ रहता है ? इत्यादि |

मस्तानी ने सारे प्रश्नों का जवाब एक ही उत्तर में दे दिया | वह पंडित देवी लाल का लड़का देवेन्द्र है, बी.ए. पास, पहाडगंज में रहता है और बड़े –बड़े होटलों में डी.जे. का काम करता है | उसकी सबसे बड़ी खासियत है कि वह एक ‘सेल्फ मेड’ नोजवान व्यक्ति है |

मस्तानी की आँखे लाल अंगारे की तरह चमक रही थी | वह गर्दन ऊंची किए अपने माता-पिता की आँखों में आँखे डाल डटकर सामने खडी थी | उसका यह रूप देखकर माता-पिता असमंजस में थे कि जो लडकी कभी गर्दन उठाकर अपने पिता जी से बात नहीं कर पाती थी वह आज उसके सामने सीना तान ताल ठोक कर अपना पक्ष रख रही थी |

माँ से रहा न गया | उसने गुस्से में बेटी के गाल पर दो थप्पड़ रसीद कर दिए और हाथ पकड़कर खींच कर अन्दर ले गई | खुद रोते हुए मस्तानी को कमरे के अन्दर बंद करके चिल्लाई, आज से जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती तू यहीं बंद रहेगी | ऐसा करते हुए माँ-बाप का दिल दुःख रहा था परन्तु लोकलाज की वजह से बेटी पर अंकुश लगाना भी अनिवार्य था |

थोड़े दिनों में ही मस्तानी का व्यवहार कुछ पहले जैसा दिखने लगा | माँ-बाप ने समझा कि उनकी सख्ती रंग ला रही है | वे भी उसके साथ नरमाई से पेश आने लगे | उसके कहने पर उसे एम्.एस.सी की कक्षाओं में उपस्थित होना मंजूर कर लिया गया परन्तु कभी-कभी, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसकी लडकी के कदम फिर तो नहीं बहक रहे हैं, उसकी मम्मी जी उसके साथ कालेज जाती थी |

कभी-कभी के चक्कर में मस्तानी और देवेन्द्र समय निकालकर आपस में मिल ही लेते थे | एक दिन किसी कारण से जब मस्तानी की अचानक कालेज ने जल्दी छुट्टी घोषित कर दी तो देवेन्द्र को मौक़ा मिल गया और वह उसे अपने मम्मी-पापा से मिलवाने तथा दोनों की बात पक्की करवाने के लिए अपने घर ले गया |

 

Thursday, January 16, 2025

मस्तानी - भाग 11

 

बदलाव

मस्तानी के माता-पिता कुछ दिनों से अपनी बेटी के व्यवहार में कुछ परिवर्तन महसूस कर रहे थे | हमेशा शांत स्वभाव रहने वाली उनकी लडकी आजकल घर में चलते फिरते कभी-कभी गुनगुनाने लगती है | अगर घर में टेलीविजन पर कोई गाना चल रहा हो और कोई उस पर नाच रहा हो तो उसके पैर क्या पूरा शरीर हरकत में आ जाता है | पिता ने उसकी माँ के सामने जब अपने मन की शंका जाहिर की तो जवाब मिला कि अब हमारी लडकी के हाथ पीले करने का समय आ गया है | इसके लिए लड़का ढूंढना शुरू कर दो |

मस्तानी अपने माता=पिता का वार्तालाप सुनकर सामने आई और निर्भीकता से कहा, “मैनें अपने लिए लड़का ढूंढ लिया है |”

माता – पिता अपनी बेटी की निर्भीकता देखकर दंग रह गए और ठगे से सन्न हो एक दूसरे को देखने लगे | थोड़ी चेतना आने पर माँ ने पूछा, “यह तुम क्या कह रही हो बेटी ?”

बिना किसी झिझक के मस्तानी ने जवाब दिया, “मम्मी जी मैं वही कह रही हूँ जो आपने सुना |”

अपने पति की आँखों में गुस्सा भांप माँ  ने बेटी का बाजू पकड उसे झक्झोड़ा, “तू पागल हो गई है क्या ?” 

‘कल तक तो आप मुझे एक समझदार और गुनवंती बेटी कह रही थी फिर आज अचानक मुझे पागल की उपाधि से क्यों नवाज रही हो’ ?

मम्मी झुंझलाकर बोली, “अरे कुछ तो शर्म कर तेरा बाप खडा है |”

“इसमें शर्म काहे की, आप दोनों भी तो मेरी शादी करना चाहते हैं ?“

“सो तो है |”

“फिर जब मैंने अपनी पसंद का लड़का चुन लिया है तो इसमें हर्ज क्या है | आप दोनों की मेरे लिए लड़का ढूढने की परेशानी भी खत्म “ यह सब कहते हुए मस्तानी को किसी प्रकार की कोई झिझक या शर्म महसूस नहीं हो रही थी जो अमूमन ऐसे संवेदनशील मामलों में एक लडकी महसूस करती है |

माँ का रो-रोकर बुरा हाल था | उसका पूरा शरीर काँप रहा था | उसने सवालों की झड़ी लगा दी |

वह कौन है ?

किसका लड़का है ?

किस जात का है ?

कितना पढ़ा लिखा है ?

क्या करता है ?

कहाँ रहता है ? इत्यादि |

मस्तानी ने सारे प्रश्नों का जवाब एक ही उत्तर में दे दिया | वह पंडित देवी लाल का लड़का देवेन्द्र है, बी.ए. पास, पहाडगंज में रहता है और बड़े –बड़े होटलों में डी.जे. का काम करता है | उसकी सबसे बड़ी खासियत है कि वह एक ‘सेल्फ मेड’ नोजवान व्यक्ति है |

मस्तानी की आँखे लाल अंगारे की तरह चमक रही थी | वह गर्दन ऊंची किए अपने माता-पिता की आँखों में आँखे डाल डटकर सामने खडी थी | उसका यह रूप देखकर माता-पिता असमंजस में थे कि जो लडकी कभी गर्दन उठाकर अपने पिता जी से बात नहीं कर पाती थी वह आज उसके सामने सीना तान ताल ठोक कर अपना पक्ष रख रही थी |

माँ से रहा न गया | उसने गुस्से में बेटी के गाल पर दो थप्पड़ रसीद कर दिए और हाथ पकड़कर खींच कर अन्दर ले गई | खुद रोते हुए मस्तानी को कमरे के अन्दर बंद करके चिल्लाई, आज से जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती तू यहीं बंद रहेगी | ऐसा करते हुए माँ-बाप का दिल दुःख रहा था परन्तु लोकलाज की वजह से बेटी पर अंकुश लगाना भी अनिवार्य था |

थोड़े दिनों में ही मस्तानी का व्यवहार कुछ पहले जैसा दिखने लगा | माँ-बाप ने समझा कि उनकी सख्ती रंग ला रही है | वे भी उसके साथ नरमाई से पेश आने लगे | उसके कहने पर उसे एम्.एस.सी की कक्षाओं में उपस्थित होना मंजूर कर लिया गया परन्तु कभी-कभी, यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसकी लडकी के कदम फिर तो नहीं बहक रहे हैं, उसकी मम्मी जी उसके साथ कालेज जाती थी |

कभी-कभी के चक्कर में मस्तानी और देवेन्द्र समय निकालकर आपस में मिल ही लेते थे | एक दिन किसी कारण से जब मस्तानी की अचानक कालेज ने जल्दी छुट्टी घोषित कर दी तो देवेन्द्र को मौक़ा मिल गया और वह उसे अपने मम्मी-पापा से मिलवाने तथा दोनों की बात पक्की करवाने के लिए अपने घर ले गया |