पक्का इरादा
देवेन्द्र की माँ को सामने देख मस्तानी ने झुक कर चरण छू
लिए | माँ ने ममतामयी हो उसे उठाकर गले से लगाते हुए
हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया और पूछा, “हमारे यहाँ हमेशा के लिए
कब आ रही हो ?”
मस्तानी ने शर्म से गर्दन झुकाकर , “यह तो आप लोगों के ऊपर है
?”
“हमारे ऊपर !”
“हाँ |”
“वो कैसे ?”
“आपके बड़ों को मेरे मम्मी-पापा से मिलकर बात आगे बढानी होगी
|”
देवेन्द्र के पिता, “तुम तो अपनी तरफ से पक्की
हो ?”
मस्तानी ने बारी –बारी से तीनों की तरफ देखते हुए हामी भर
दी | एक बार फिर उन तीनों की नजरों ने मस्तानी के अंतर्मन में एक
ऐसी ऊर्जा का संचार किया कि उसको उनका पक्का स्वामी भक्त बना दिया |
समय देखकर एक दिन देवेन्द्र के पापा (कबीर )मस्तानी के घर आ
धमके | अपने सामने एक अजनबी को देख मस्तानी के पापा (मोहन)
ने पूछा, “कहिए किस से मिलना है ?”
“क्या आपका नाम मोहन है ?”
“हाँ, मैं ही मोहन हूँ |”
“तो आप ही से बात करनी थी |”
“कहिए क्या बात करनी है ?”
“बात इत्मीनान से बैठकर करने की है |”
मोहन असमंजस में पड़ गया कि एक अजनबी मेरे से इत्मिनान से
क्या बात करना चाहता था | खैर उसने अजनबी को अन्दर
बुलाकर बैठाया | अजनबी ने घर में चारों तरफ नजर घुमाई और बोला, “घर तो काफी सुन्दर तथा
सलीके से बना रखा है |
“जी |”
“आप क्या करते हो ?”
मोहन:- पहले आप यह बताओ कि आप हो कौन और मेरे से मिलने का
आपका क्या उद्देश्य है ?”
“मेरा नाम कबीर है
और मैं देवेन्द्र का पिता हूँ |”
“ठीक है |”
“अपना आने का उद्देश्य साफ़-साफ़ कहूं तो मैं आपकी लडकी
मस्तानी का हाथ अपने लड़के देवेन्द्र के लिए माँगने की इच्छा से आया हूँ |”
आगंतुक की बात सुनकर एक बार तो मोहन का सारा शरीर सुन्न हो
गया जैसे काटो तो उसमें खून नहीं | उनकी जुबान जैसे गले में
ही अटक गई हो | उनसे कुछ जवाब देते न बना | फिर उन्होंने अपने आप को
सम्भाला और थोड़ा उत्तेजित होकर बोले, “मान न मान मैं तेरा
मेहमान | जान न पहचान चलें हैं रिश्ता जोड़ने |”
कबीर :-भाई साहब जान पहचान तो बहुत पुरानी है |
“हम कब मिले ?”
“यह बात सत्य है कि हम पहली बार मुलाकात कर रहे हैं परन्तु
हमारे बच्चे तो आपस में बहुत बार मिल चुके हैं |”
कबीर की दलील सुनकर मोहन के ज्ञान चक्षु खुले और वह अन्दर
तक काँप गया | उसे समझ आ गया कि सामने बैठा व्यक्ति उसका बाप
है जिसके प्रभाव में उसकी लडकी पहले आ चुकी थी | परन्तु उसकी समझ में यह
नहीं आया कि आखिर इतने दिनों बाद यह मसला फिर उसके सामने कैसे खडा हो गया | मोहन ने संयम रखते हुए कबीर
को दो टूक कह दिया कि उन्हें यह रिश्ता मंजूर नहीं |
कबीर :- मेरी सलाह है कि आप दो प्रेमियों के बीच रोड़ा न बनो
|
मोहन:- यह मेरी प्रतिष्ठा का सवाल है और मैं इससे कभी
समझौता नहीं करूंगा |
कबीर:-तुम्हारी प्रतिष्ठा धरी की धरी रह जाएगी अगर दोनों ने
भागकर शादी कर ली तो |
मोहन:-अब मैं यह मौक़ा आने ही नहीं दूंगा |
कबीर :-बात इतनी आगे बढ़ चुकी है कि आप रोक नहीं पाओगे |
मोहन :- क्या बढ़ चुकी है ?
कबीर:- आपकी लडकी हमारे घर जाकर आशीर्वाद प्राप्त कर चुकी
है |
हालांकि कबीर की बात सुनकर एक बार को मोहन बेदम सा हो गया
परन्तु जल्दी ही उसने अपने को अपने इरादों में मजबूत व्यक्ति साबित करने के लिए
बुलंद आवाज में चिल्लाया कि तुम मेरी बेटी को सम्मोहित करके उसे जबरन फ़साने की
कोशिश कर रहे हो | खबरदार ऐसा किया तो | अब आप यहाँ से जाओ और फिर
कभी अपनी शक्ल मत दिखाना |
कबीर उठ खडा तो हुआ परन्तु मोहन के दूसरे बच्चों पर इल्जाम
लगाता सा बोला कि अपनी बड़ी बेटी के साथ-साथ अपने दूसरे बच्चों को भी संभाल लो
क्यों कि उनके भी नयन-मूटटके चल रहे हैं | और फिर चलते-चलते कह गया
कि मस्तानी तो हमारी होकर ही रहेगी |