बढ़ती उलझन (2)
मोहन एक धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था | हर रविवार या मंगल वार को तो वह मंदिर अवश्य
जाता था और बीच-बीच में जब भी मौक़ा मिलता
वह दर्शन कर लेता था | उसकी ईश्वर में पक्की
आस्था थी | उसे विशवास था कि ऊपरवाला
समाज में उसकी जग हसाई कदापि नहीं होने देगा | फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिए कि बात कहीं मुलाकातों से आगे तो नहीं बढ़ गयी, जब लाख समझाने के बावजूद
मस्तानी देवेन्द्र के साथ ही शादी करने की जिद पर अड़ी रही, तो अपने दिल पर पत्थर रखकर मोहन ने एक अप्रत्यासित निर्णय ले लिया |
मोहन ने घर वालों से मस्तानी का सारा सामान
अटैचियों में भर देने को कहा | सब अचरज में थे कि वे ऐसा
क्यों कह रहे थे परन्तु उनके चेहरे पर दृड निश्चय भांप कर किसी में
कुछ पूछने की हिम्मत न हुई | जब सारा सामान बन्ध गया
तो मोहन ने अंतर्मन में रोते हुए मस्तानी से कहा, “आज तुम हमें आख़िरी बार देख लो | फिर हमारा तेरा रिश्ता खत्म | तुम्हारी जिद के सामने हार मानकर चलो मैं तुम्हें उसके घर पहुंचा आता हूँ |”
मोहन का निर्णय सुनकर मस्तानी रोकर बोली, “पापा जी मैं आप लोगों के बिना नहीं रह सकती | और फिर अभी ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे मैं वहां जाकर रहूँ |”
“क्यों. क्या तुमने अभी शादी नहीं की ?”
“नहीं पापा नहीं, मैं आपकी रजामंदी के बगैर ऐसा करूंगी भी नहीं |”
मस्तानी के वचन सुनकर मोहन को अपार शकून महसूस
हुआ | फिर भी अपने को पक्का आश्वस्त करने हेतू वह
बंधा हुआ सामान लेकर देवेन्द्र के घर पहुँच गया | और वहां जब मोहन ने कहा कि सामान
उतार लो तो सभी अचरज में पड़ गए |
देवी :- कैसा सामान |
मोहन :- आपके लड़के की बहू का |
देवी:- हैरानी से, अभी वह हमारी बहू बनी कहाँ है |
इतना सुनना था कि मोहन वहां से एकदम वापिस चल
दिया | अब वह आश्वस्त हो चुका था कि मेरी बेटी अभी तक
किसी बंधन में नहीं बंधी है | इसके बाद मस्तानी की जिद
को ख़त्म करवाने के लिए मोहन ने अपने नजदीकी रिश्तेदारों का, जो मस्तानी पर उसकी जिद छोड़ने के लिए प्रभाव डाल सकते थे, सहारा लिया |
अपने तजुर्बे के अनुसार रिश्तेदारों ने तरह-तरह के प्रशन किए मसलन:
तुम्हें कैसे पता है कि वह पंडित है ?
वह तुम्हें मजार तो ले गया परन्तु क्या कभी तुम
दोनों साथ मंदिर भी गए ?
उसके दोस्तों की लिस्ट में अधिकतर मुसलिम नाम
हैं यह क्यों ? इत्यादि |
जब भी कोई सवाल पूछता मस्तानी उसे घूरने के साथ
चुप्पी साध लेती थी | कभी-कभी वह रोकर बीच-बीच में कहती कि उसे
देवेन्द्र से ही शादी करनी है | सभी ने यही सारांश निकाल
कर कि मस्तानी को समझाना व्यर्थ है अपनी असमर्थता में हाथ खड़े कर दिए |
समय व्यतीत होने लगा | मस्तानी का बाहर जाना बंद सा हो गया | धीरे-धीरे लगा जैसे अपने परिवार वालों के प्रति उसका स्वाभाव कुछ
नरमी पर आ रहा है | मोहन ने मस्तानी की
रजामंदी से एक अच्छा सा रिश्ता ढूंढकर बात आगे बढाई | लडकी देखने का प्रोग्राम तय हो गया | दोनों तरफ के रिश्तेदार खुशनुमा माहौल में आपस में मिले | लड़के वालों ने मस्तानी को देखते ही अपनी सहमती जता दी कि उन्हें लड़की पसंद है
फिर भी थोड़ी देर के लिए लड़के और लडकी को आपस में समझ लेने के लिए अकेला छोड़ दिया
गया | वापिस आने पर अचानक लड़के वाले खड़े हुए और हाथ
जोड़कर बोले, “अच्छा जी हम चलते हैं |”
सभी आश्चर्य चकित थे कि ऐसा क्या हो गया जो बात
बनते-बनते बिगड़ गई | पूछने पर जवाब मिला कि हम तो मस्तानी को अपनाने की पूरी
तैयारी के साथ आए थे परन्तु आपकी लडकी ही नहीं चाहती तो हम क्या कर सकते हैं |
साथ आए रिश्तेदारों ने जब कारण जानना चाहा तो सुनने
को मिला कि आप खुद ही अपनी लडकी से जान लेना और विदा ले ली |
पता चला कि मस्तानी ने लड़के से कहा था कि वह
किसी और लड़के से प्रेम करती है और उसी से शादी करना चाहती है | उसने डर की वजह से यह बात अभी तक
अपने घर नहीं बताई है अत: आप ही उनसे कह देना | घर के प्रत्येक सदस्य का पारा सातवें आसमान पर था परन्तु
मस्तानी उस माहौल में शांत स्वभाव अपनी सफलता पर खुशनुमा नजर आ रही थी |
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