भूमिका
आत्म तृप्ति उपन्यास विश्वास पर आधारित उपन्यास है | विश्वास एक ऐसा शब्द है जिसमें सभी सम्बन्ध समाए हुए हैं अर्थात पिता-पुत्र, माँ-बेटी, शिक्षक-शिष्य, व्यापारी-ग्राहक, पति-पत्नी इत्यादि सभी एक दूसरे के साथ विश्वास रूपी डोर से बंधे रहते हैं | जहां ये डोर ज़रा कमजोर हुई नहीं कि आपसी संबंधों में शिथिलता और दरार आने लगती है |
एक मनुष्य के जन्म लेने से मृत्यु तक उसके जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव व बदलाव आते हैं | बचपन से जवानी तक उसका स्वजन प्रेम अपने उच्चतम शिखर पर होता है | इस अवस्था के चलते उसके मन में अपने माता-पिता, भाई-बहन एवं सगे सम्बन्धियों इत्यादि के प्रति प्रभावशाली प्रेम बना रहता है | व्यक्ति की शादी के बंधन में बंधने के साथ ही उसके मन में बसी स्वजन प्रेम की धुरी की दिशा में झुकाव दिखने लगता है | अब स्वजन प्रेम का बिंदु पहले उसकी पत्नी तथा फिर उसके बच्चे बन जाते हैं जो जीवन के अंत तक कायम रहता है | यह प्रेम एक देह का दूसरी देह में विश्वास के प्रतिरूप से पनपता है | पति का पत्नी के ऊपर विश्वास और पत्नी का पति के ऊपर विश्वास सबसे महत्त्व पूर्ण होता है जो न होने पर गृहस्थी में कलह का कारण बना रहता है |
जहां मनुष्य का शरीर पांच तत्वों से बना है तथा नश्वर है इसलिए उसका स्वजन प्रेम भी उसकी देह की समाप्ति के बाद समाप्त हो जाता है | वहीं मनुष्य के शरीर में बसी आत्मा एक अजर, अमर, अनंत, अनादि, अविनाशी, नित्य तथा देह को बदल बदल कर वास करने वाली होती है |
मनुष्य का मन एवं उसकी इन्द्रियाँ अस्थिर, चंचल और चलायमान होती हैं | कभी कभी उनके इन्हीं गुणों के कारण मनुष्य वासना वशीभूत कलंक व चरित्रहीनता इत्यादि का भागीदार बन जाता है | अत: यह जरूरी रहता है कि मन की चंचलता को निर्विकार आत्मा के वश में रखा जाए |
सामाजिक बंधन एवं सृष्टि के अनुसार पति पत्नी का आपसी प्रेम वासना रहित नहीं रह सकता इसलिए उन्हें जीवात्मा कहा गया है | परन्तु दो शुद्ध आत्माओं का प्रेम मिलन निश्छल, नि:स्वार्थ, निष्कपट, एवं वासना रहित रहता है | उदहारण के तौर पर जैसा प्रेम सबरी और केवट का श्री राम चन्द्र के प्रति और गोपियों का श्री कृष्ण जी के प्रति था | ऐसा ही कुछ इस उपन्यास आत्मतृप्ति में दर्शाया गया है | जिसमें दो नश्वर देह का मिलन न होते हुए भी दो शुद्ध आत्माओं के प्रेम मिलन की चाहत अंत तक बरकरार रही |
लेखक
समीक्षा
आत्म तृप्ति उपन्यास की मूल कथा गुलाब-संतोष नामक मुख्य पात्रों के इर्द गिर्द बुनी गई है | लेखक ने गुलाब-संतोष के मध्य उनके वैवाहिक जीवन में आपसी अटूट विश्वास को दर्शाया है | संतोष के विश्वास को लेखक ने बढ़ा चढ़ा कर दिखाया है क्योंकि वह अपनी पूर्व सहेली तथा रिश्ते में अपनी बुआ माला के विवाह पूर्व अपने होने वाले पति के साथ संबंधों को जानते हुए भी उसके साथ अपने रिश्ते की बात को आसानी से मान जाती है | हो सकता है कहानीकार का यह तर्क हो कि १९६०-७० के दशक के माहौल में लड़की अपनी शादी के बारे में अपने परिवार वालों से बात करते हुए हिचकिचाती थी तथा अपने जीवन साथी के लिए उनके चुनाव पर कोई एतराज नहीं उठाती थी |
यह उपन्यास का कमजोर पक्ष हो सकता था अगर गुलाब अपने विवाह के पश्चात भी माला से सम्बन्ध बनाए रखता | परन्तु गुलाब के आचरण को परख कर संतोष के परिवार वालों को भी पूरा विश्वास था कि ऐसा नहीं होगा | क्योंकि माला एवं संतोष एक ही परिवार से थी | अत: यह बात दोनों घरों के किसी भी सदस्य से नहीं छिपी थी कि गुलाब एवं माला के एक दूसरे के प्रति झुकाव को भांपकर उनके रिश्ते की बात चली थी और संतोष यह बखूबी जानती थी कि गुलाब ने अपने ऊपर संयम रखते हुए माला को सही मार्ग समझाकर शादी से पहले चरित्रहीन होने से कैसे बचाया था | इसलिए संतोष को गुलाब पर पूर्ण विश्वास था कि वह अपने लंगोट का पक्का, भारतीय संस्कृति और जीवन के नैतिक मूल्यों को बखूबी जानता होगा |
गुलाब भी संतोष के विश्वास पर खरा उतरा | वह संतोष को एक पूरी तरह समर्पित पति के रूप में मिला तथा अपनी पूर्व प्रेमिका के लगाव को कभी अपने नए संबंधों पर हावी नहीं होने दिया | उसने निष्ठा पूर्वक अपनी पत्नी के साथ सभी कर्तव्यों को पूरा किया |
उपन्यास में दूसरी और एक फ़ौजी पति का अपनी पत्नी पर अगाध विश्वास भी प्रकट हुआ है | जब गुलाब अपनी फ़ौज की नौकरी पर रहते हुए, अपनी पत्नी को अपने घरवालों की छत्रछाया में छोड़कर चला जाता है तब संतोष जो कि घर के सदस्यों, रिश्तेदारों, तथा मिलने-जुलने वालों की हवस एवं कामवासना की दृष्टि से अपने आपको बचाकर रखती है तथा निडरता से सबका सामना करती है, पर पूरा विश्वास रखता है तथा अपनी ग्रहस्थी को सभी उतार चढ़ावों में पूर्णता प्रदान करता है |
माला की गहन बीमारी की बात सुनकर भी गुलाब अपने मनोभावों को प्रकट नहीं होने देता तथा पत्नी के द्वारा जोर देने पर ही वह माला की आत्मतृप्ति के लिए उसके घर जाता है | यह कहानी का सबसे अच्छा और मजबूत पक्ष है जो कि इस उपन्यास ‘आत्मतृप्ति’ के मूल तत्व ‘विश्वास’ में आधारशिला का काम करता है |
चेतना मंगल
स्नातकोत्तर (हिन्दी)
दिल्ली विश्वविद्यालय
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