Wednesday, June 8, 2011

सांत्वना


                                                          सांत्वना
सुधीर जब भी घर छुट्टी आता था तो उसके तीनों भाई उसको सलाह देते थे कि उसकी भारतीय वायु सेना की नौकरी में क्या रखा है, छोड़कर घर जाए तो अच्छा रहेगा | यहाँ वे उसे कुछ कुछ काम करवा ही देगें | अतः सुधीर अपनी एयरफोर्स की नौकरी छोड़कर गया था | अब वह अपने ओर तीनों भाईयों की तरह सिविल की जिन्दगी जीना चाहता था | घर आने पर वह अपने भाईयों से सलाह लेने लगा कि अब उसे क्या करना चाहिए |
सुधीर ने अपनी नौकरी छोड़ने से पहले अपने तीनो भाईयो से सलाह की जरूर थी परन्तु उनके रवैये से पता चलता था कि वे उसकी किसी प्रकार की सहायता नहीं करेंगे | फ़िर भी अपने बड़ों का सम्मान करते हुए सुधीर ने पहले एक बार फ़िर उनसे ही सलाह लेना उचित समझा |
सुधीर ने अपने बड़े भाई शिवचरण से पूछा, भाई साहब आप को पता तो चल ही गया होगा की मै एयरफोर्स की नौकरी छोड़ आया हूं | अब आप मुझे नेक सलाह दे कि आगे मुझे क्या करना उचित रहेगा |
शिव चरण ने अपना पल्ला छुडाने के लिहाज से सुधीर को समझाया, भाई देख, मै भी जब एयर फोर्स छोड़कर आया था तो कुछ दिन तो बहुत तकलीफ उठानी पड़ी थी | काम की तलाश में मुझे दिन भर, भूखा-प्यासा दर दर भटकना पड़ता था | बहुत कोशिशों के बाद मुझे यह छोटी सी नौकरी मिली | तनखा जो मिलती है वह बच्चों का पेट पालने के लिए भी पूरी नहीं होती अतः आफिस से आकर इधर उधर हाथ पैर मारने पड़ते हैं | वैसे तू तो बेकार ही इतनी अच्छी नौकरी को इस्तीफा दे आया | वहां तो सारी सुविधाएं मिलती थी | खाने की, रहने की, आने-जाने की, बच्चों की पढाई की इत्यादि | अब यहाँ कोई धन्ना सेठ तो है नहीं जो पैसा लगाकर तुझे कोई बड़ा काम करा देगा | तुझे भी ख़ुद ही मेरी तरह हाथ पैर मारकर कुछ करना होगा |अब तक सुधीर को अपने बड़े भाई साहब की मंशा, जो वह पहले से ही जानता था, का पूरा जायजा मिल चुका था | अतः अपने बड़े भाई साहब का धन्यवाद कहते हुए वापिस अपने घर आ गया |
फिर सुधीर ने अपने मंझले भाई ज्ञान चंद की मंशा जानने के लिए उनके पास जाकर कहा, भाई साहब आप हमेशा, जब भी मैं घर छुट्टियाँ आता था, यही कहते थे कि बेकार में ही घर से इतनी दूर पड़ा है यहाँ क्या कम काम हैं | लो अब मैं आ गया हूँ तथा काम भी करना चाहता हूँ | कोई सलाह दो कि क्या ठीक रहेगा ?
ज्ञान चंद ने बिना किसी लाग लपेट के अपनी हकीकत ब्यान करते हुए कहा, देख भाई ! मेरे पास तो ये दूकान है | संभाल इसे | जैसे हमारे खाने पीने को दे रही है वैसे तुझे भी मिल जाएगा | इतना अंदाजा तो तू ख़ुद भी लगा सकता है कि यह इतना तो नहीं दे सकती कि बच्चों के खर्चे भी इससे पूरे किए जा सकें |
अपने भाई ज्ञान चंद की बातों से यह तो साफ़ जाहीर हो गया था कि वे सुधीर को काम कराने के बदले खाना भर दे सकते है जो उसके परिवार का पेट पालने में पूरक हो सकता था इसके अलावा वे और कुछ देने की स्थिति में नहीं थे | इस बारे में गहन विचार करने के बाद सुधीर इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि अगर वह अपने भाई के साथ काम करने लगा  तो वह, अपना भाग्य आजमाने के लिए, कहीं आने जाने का भी नहीं रहेगा | यही सोचकर उसने अपने भाई से इतना ही कहा कि वह सोचकर बता देगा, तथा  वापिस अपने घर आ गया |
आखिर में, सुधीर जिसने भारतीय वायुसेना की नौकरी छोडने से पहले अपने भाई औम प्रकाश से काफी चर्चा की थी बताया, भाई साहब, मैनें  एयरफोर्स की नौकरी छोड्ने से पहले आपको कई पत्र लिखे तथा आपसे बातें भी की | अब मैं गया हूँ इसलिए जो आपने मेरे बारे में सोचा है वह बताइए |
औम प्रकाश, “हाँ--------सोचा---बहुत सोचा |
फिर मुझे क्या करना चाहिए ?
औम ने सीधा जवाब न देते हुए कहा, देख भाई | कुर्सी पर बैठना भी किस्मत वालों को नसीब होता है |
सुधीर अपने भाई की गूढ़ बातों का तात्पर्य न समझकर बोला,क्या मतलब ?
मतलब साफ है | तू तो भरी थाली में लात मार आया | अब भला मैं क्या बताऊँ ओर क्या सोचूँ |
परंतु आपने तो कभी भी मेरे लिए किसी भी पत्र में ऐसा कुछ नहीं लिखा | आपने हमेशा मेरे से यही कहा कि नौकरी छोड़ आओ यहाँ बहुत कुछ है करने को |
तू लिखने की बात करता है तो बता मैं क्या लिखता | तू खुद समझदार है | बाल बच्चों वाला है | पैसे पेड़ पर तो लगते नहीं कि उसका पेड़ लगा लिया जाए ओर जब मर्जी जितना चाहे तोड़ लिया जाए |
भाई साहब आप यह सब क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो मेरी तो कुछ समझ नहीं रहा |
समझ नहीं आता तो साफ-साफ सुन | आजकल नौकरी तो मिलती नहीं और खाने को सब को सब कुछ चाहिए |
यह तो सबको पता है |
पता है तो फिर पूछ्ता क्या है ? जो मन में आए कर | वैसे मेरी सलाह से, जब तक कोई काम ढंग का नहीं मिल जाता, सुबह अखबार बाँटने का काम कर ले | या फिर किसी एक्सपोर्टेर से कपड़े सिलाई का काम ले आया कर | तुम्हारी बहू तो सिलाई के काम में काफी चतुर है | वह सिलाई कर लिया करेगी |
सुधीर मन में समझ गया कि उसका भाई औम प्रकाश उसे कोई नेक सलाह देने वाला नहीं है अतः बात आगे बढानी उचित नहीं समझी | वह बुझे मन से अपने कमरे की ओर चल दिया | दरवाजे पर उसकी पत्नि संतोष खडी थी | सुधीर का चेहरा पढ्कर वह उसका ढांढस बंधाते हुए बोली, आप अधिक चिंता किया करें |
चिंता को गले लगाने का मुझे कोई शौक नहीं है | जब रोजी रोटी की बात सामने जाए तो यह् अपने आप ही लग जाती है |
संतोष जिसने दोनों भाईयों की बातें सुन ली थी, अखबार बेचने का काम तो ठीक नही है | हाँ अगर आप बुरा मानों तो एक्सपोर्ट के कपड़े की सिलाई का काम देख लो |
मेरे से कपड़ों की सिलाई कहाँ आती है |
संतोष बड़े आत्म विश्वास से बोली, मैं कर लिया करूंगी |
सुधीर ने आशंका जताते हुए कहा, घर की सिलाई में और एक्सपोर्ट की सिलाई में बहुत फर्क होता है | तुम्हारे से वह काम नहीं हो पाएगा |
कोशिश करने में हर्ज ही क्या है |
तोषी(संतोष) थोडा सब्र करो, मुझे कहीं कहीं काम मिल ही जाएगा |
संतोष अपने मन की दुविधा को उजागर करके बोली, घर से खाते-खाते पांच महीने बीत गये हैं | अब बच्चों के स्कूल भी खुल गए हैं | उनका खर्चा भी होगा |
सब हो जाएगा | देखो मैं रोज सुबह काम की तलाश में जाता हूँ | चार पाँच जगह बात चल रही है | कहीं कहीं काम बन ही जाएगा |
जब काम बन जाएगा तब देखी जाएगी | फिलहाल मैं भी चौका बर्तन निपटाने के बाद ठाली रहती हूँ | अगर उस समय का इस्तेमाल करने से थोडा सा पैसा बन जाएगा तो हमारे ही काम आएगा | मेरे विचार से आप सिलाई के कपड़े ले आओ |
सुधीर ने हथियार डालने की सी प्रतिक्रिया करके, अच्छा भई | अगर तुम आजमाना चाहती हो तो सिलाई के लिए एक्सपोर्ट के कपड़े ले ही आता हूँ |
                                           अगले दिन
सुबह ही सुबह घर के आँगन में एक आवाज गूंज गई, तोषी तोषी !”
संतोष रसोई से बाहर आते हुए, क्या बात है? आज सुबह सुबह कैसे चहक रहे हो |
कपड़ों का एक बण्डल अपनी पत्नी के हाथ में थमाकर सुधीर बोला,लो ये पाँच पीस लाया हूँ | इन्हें इस सैम्पल के अनुसार सिलना है |
संतोष ने खुशी जाहिर की, क्या बात है रात को नीदं भी ली या सारी रात सुबह का इंतजार ही करते रहे जो सुबह होने से पहले ही ये काम लेने पहूँच गये | खैर इन्हें रख दो | मैं दोपहर में यह काम करूँगी | अब आप नाशता कर लो क्योंकि फिर आपको अपने काम की तलाश में भी जाना होगा |
आज मैं काम की तलाश में नहीं जाऊँगा |
क्यों भला ?
क्योंकि आज काम घर पर ही गया है | अब ढूढ्ने की क्या जरूरत है |
संतोष मुस्कराते हुए,|अच्छा जी |और रसोई की तरफ चली जाती है |
दोपहर को संतोष सिलाई मशीन ले कर बैठ गई | वह सैम्पल के अनुसार सिलाई करने लगी | सुधीर भी उसको काम करते देखता रहा | जो सलाह वह माँगती वह उसे बताता रहा | संतोष ने अपनी पूरी लगन से कपडों की सिलाई की थी परंतु सुधीर को पक्का विशवास था कि संतोष की सिलाई एक्सपोर्ट के लिहाज से पास नहीं हो पाएगी | फिर भी उसने संतोष की काफी प्रशंसां की तथा तैयार पीस ले कर चला गया |
एक घंटा बाद वह वापिस लौटा तो हाथ खाली थे | संतोष उसका इंतजार कर रही थी कि सुधीर उन कपड़ों को देकर और काम ले आएगा |
संतोष सुधीर के खाली हाथ देखकर, क्या बात है , और कपड़े नहीं लाए ?
नहीं |
क्यों ?
मुझे यह काम पसन्द नहीं आया |
संतोष ने अचरज से सुधीर की तरफ देख कर पूछा, इस काम में ऐसा क्या है जो आपको पसन्द नहीं आया ?”
सुधीर ने श्न्यम से कहना शुरू किया,देखो तोषी | वहाँ कपड़े लेने वालों की लाईन लगी रहती है | धोबी, चमार, कहार, लुहार इत्यादि सभी वहाँ बैठ्कर उस एक्सपोर्टर का इंतजार करते रहते हैं |
इसमें क्या बुराई है ?
तुम इसको ध्यान से समझो | मुझे यह अच्छा नहीं लगता कि मैं भी उन सबकी तरह आखों एवं मन में एक प्रकार की निरीहता लिए वहाँ बैठ्कर उसका इंतजार करूँ |
संतोष ने अपने ऊपर जिम्मेवारी लेने के लिहाज से कहा, आप से अगर यह बर्दाश्त नहीं होता तो मैं खुद कपड़े लेने चली जाया करूँगी |
संतोष की बात सुनकर सुधीर थोडा बनावटी गुस्से में बोला, तोषी क्या तुम मुझे इतना कमजोर समझती हो कि मैं तुम्हारे लिए दो वक्त  की रोटी भी जुटा पाऊँगा | क्या तुम्हारे लिए पैसा कमाना ही सब कुछ है | अपनी इज्जत, मान-मर्यादा तथा अपना अहम कुछ मायने नहीं रखता | अभी हम इतने कमजोर तो नहीं | भगवान की दया से रोटी पानी का गुजारा तो मेरी पेंशन से ही हो जाएगा | फिर भी अगर तुम्हारी इच्छा है कि तुम खुद जाकर काम मागों तो तुम्हारी मर्जी |
संतोष झेंपते हुए,आप तो नाराज हो गए | मैं तो बस यूँ ही कह रही थी |
कह तो रही थी परंतु कुछ सोच समझ कर कहा करो |
संतोष ने अपनें कानों पर हाथ लगाकर कहा, अच्छा बाबा गल्ती हो गई अब कभी नहीं कहूँगी |
 सुधीर अपना तीर निशाने पर लगा जान झट से बोला, ठीक है! ठीक है ! लाओ एक गिलास पानी दो |
वास्तव में सुधीर संतोष का दिल नहीं दुखाना चाहता था उसे यह बताकर कि उसकी सिलाई पास नहीं हुई थी तथा एक्सपोर्ट्रर ने सिलाई के लिए कपड़े देने को मना कर दिया था | उसने अपनी तरफ से यह कहानी बनाई थी कि उसे यह सब पसन्द नही क्योंकि सुधीर का संतोष को "सांत्वना" देने का यही एक रास्ता नजर आया था


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