Friday, June 10, 2011

आज का मसीहा


आज का मसीहा
पटरियों पर बसर करने वाले लोग अब प्रत्येक सुबह उस नौजवान का इंतजार सा करने लगे थे | क्योंकि उसके आने का यह सिलसिला कोई सात वर्ष पहले शुरू हुआ था जब उसने अपनी जवानी की दहलीज पर कदम ही रखा होगा | अब यह पूरा नौजवान हो गया था और एक सुन्दर सुडौल शरीर का मालिक बन चुका था | अभी तक वह निर्विघ्न, चाहे आंधी हो या तूफान, बारिश हो या चिलचिलाती धूप, गर्मी हो या सर्दी ,प्रत्येक दिन आता था | हाँ इतना अवश्य था कि बदलते समय के साथ साथ उसके पहनावे में भी कुछ अंतर गया था | पहले वह फुटपाथ पर गुजर करने वाले लोगों की तरह फटे-पुराने एवं गन्दे से कपड़े पहने रहता था परंतु अब वह नहाया धोया तथा साफ सुथरे कपड़े पहने दिखाई देता था | सुबह सुबह दूर से ही उसकी आवाज सुनाई देने लगती थी |
चाचा, राम-राम |
बापू, प्रणाम |
खाँ साहब, सलाम |
ताई पाँ लागूं |
बहना कैसी हो | इत्यादि-इत्यादि |
हालाँकि सभी सुनने वाले उसे अपनी-अपनी तरह से आशिर्वाद देते थे परंतु कौन उसे क्या आशिर्वाद दे रहा था, सुनने के लिये वह रूकता नहीं था | हाँ इतना अवशय था कि जिस बुजूर्ग की आवाज उसे कुछ थकी सी मालूम पड़ती थी तो वह वहाँ अवश्य रूकता | पूछताछ करता, वहाँ के माहौल का जायजा लेता ओर आगे बढ जाता |
इस प्रकार अब तक वह पटरियों पर रहने वाले सभी लोगों के बारे में सब कुछ जान गया था कि कौन कहाँ का रहने वाला है, अकेला है या उसका कोई साथी है, कौन क्या काम करता है, किस के घर में कब क्या होने वाला है, अन्दाजन कब किसकी ईहलीला समाप्त होने वाली है इत्यादि | परंतु आश्चर्य जनक बात यह थी कि उसके बारे में यह कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ का रहने वाला है, कहाँ रहता है, उसका कौन-कौन है तथा वह क्या करता है | क्योंकि वह तो एक तरफ से आता तथा गली के दूसरे छोर से, सभी की कुशल क्षेम पूछता हुआ, बाहर निकल जाता था | अगर उससे कोई पूछता भी तो  कुछ इस प्रकार का वार्तालाप होता |
नौजवान तुम्हारा नाम क्या है ?
नाम में क्या रखा है आप कुछ भी रख लो |
आप रहते कहाँ हो ?
सारे गरीब लोगों की संगत में |
तुम्हारा और कौन-कौन है ?
आप सभी मेरे अपने हो |
नौजवान तुम करते क्या हो ?
दीन दुखियों को पार लगाना ही मेरा काम है |
वास्तव में वह नौजवान करता भी कुछ ऐसा ही काम था | अगर कोई भिखारी मर जाता तथा उसका कोई नहीं होता या उसकी अंतिम क्रिया करने को कोई आगे नहीं आता तो वह नौजवान उस मृत शरीर से लिपट कर जोर जोर से रोने लगता | मृत व्यक्ति की आयु के अनुसार वह उससे नाता जोड़ता और अपनापन जताता |
चाचा, हाय चाचा तुम मुझे छोड़कर चले गये |
बापू बापू तुम कहाँ चले गए मुझे अकेला छोड़कर ?
खाँ साहब तुम्हें आखिरी सलाम |
ताई अरी ताई अब मेरे सिर पर प्यार का हाथ कौन फेरेगा ?
इत्यादि-इत्यादि |
इसके बाद वह नौजवान लावारिश लाश को अपने कंधे पर लादता और धीरे-धीरे सबकी नजरों से औझल हो जाता |
आहिस्ता-आहिस्ता उसने भिखमंगों, पटरीवासियों तथा गरीब तबके के लोगों के दिलों में एक खास जगह बना ली और सब लोग उसे मसीहा के नाम से पुकारने लगे | समय के साथ साथ उस युवक ने अपना दायरा बढा लिया तथा कई और झुग्गी झोंपड़ियों की कालोनियों का भी मसीहा बन गया | अब अपने इलाके में कहीं भी कोई हादसा होता तो मसीहा वहाँ अवशय पहुंचता | हिन्दू हो या मुस्लिम, सिख हो या ईसाई वह हर एक जनाजे के साथ देखा जा सकता था | अपने दायरे के लोगों की खुशियों में भी अब उसे निमंत्रण मिलने शुरू हो गये थे | निम्न वर्ग के लोगों के दुख-दर्द में सम्मिलित होकर वह अस्पतालों में उनका मुफ्त इलाज कराने में कोई कसर छोड़ता था | लोगों को अपनी समस्याओं का अंत होते देखकर बहुत खुशी होती थी तथा वे आगे कुछ नहीं जानना चाहते थे कि आखिर वह कैसे इन डाक्टरों से काम करवाता है | उसकी ख्याति दिन प्रतिदिन बढती जा रही थी अतः मध्य वर्ग के लोग भी उसे जानने लगे थे | 
देश में चुनाव कराने की घोषणा कर दी गई थी | नामांकन पत्र भरे जा रहे थे | सभी झुग्गी झोंपड़ी एवं पटरीवासियों ने एकमत होकर अपने मसीहा को चुनाव लड़ने के लिये राजी कर लिया | ईशवर की कृपा एवं दलित लोगों के सहयोग से उनका मसीहा भारी मतों से चुनाव जीत गया | भारी बहुमतों की जीत को देखते हुए मसीहा को नई सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी मनोनीत कर दिया गया | इसके साथ ही उसे सरकारी बंगला, गाडी, नौकर-चाकर इत्यादी सभी मिल गए |
चारों ओर से मसीहा को बधाईयाँ पहुँच रही थी | बहुत सी संस्थाएं टोलियाँ बनाकर उनके निवास स्थान पर आती, अपना काम कराती और चली जाती |  ऐसी ही टोलियों में एक टोली जो मैडिकल कालिज के डाक्टरों की थी, वह भी आई | बधाईयों की औपचारिकता के बाद |
एक डाक्टर,मसीहा जी अब हमारा क्या होगा ?
मसीहा अपने चेहरे पर कटु मुस्कान लाते हुए,होना क्या है, वही होगा जो पहले होता आया है |  
परंतु अब तो आप .........भला वह सब अब आप कैसे कर पाएंगे ?
मसीहा जोर का ठहाका लगाता है जैसे डाक्टरों की मुर्खता पर उसे हँसी आई हो, अरे अब तो मेरे लिये यह काम और भी आसान हो गया है |
सभी डाक्टर एक साथ अस्मंजसता से, “ वह कैसे ?
मसीहा डाक्टरों को समझाते हुए बोला,अब मुझे कुछ करने की जरूरत ही कहाँ रहेगी | अब तो मैं सरकारी मशीनरी इस्तेमाल कर सकता हूँ |
मसीहा की बात न समझकर सभी डाक्टर, अर्थात ?
मसीहा अपने चेहरे पर ऐसे भाव लाते हुए जैसे कह रहे हों कि आप सब कितने ना समझ हो,अब मुझे कोई लाश अपने कंधे पर लादकर तथा लुकछिप कर आपके पास तक नहीं आना पड़ेगा | लावारिश लाश अब मेरे आदेशानुसार बिना किसी डर के आपके पास खुद ही पहुँच जाया करेगी |
एक डाक्टर,परंतु कब्रिस्तान ...........?”
इस पर मसीहा ने अपने होठों पर उंगली रखकर कहा, “..हिश....श..ऐसी बातें खुले में इतनी ऊंची आवाज में तथा खुलकर नहीं की जाती |
फिर मसीहा ने एक मंजे हुए नेता की तरह डाक्टरों के एक साथी को अलग बुलाकर समझाते हुए हिदायत दी,सभी से कहना कि वे किसी प्रकार की चिंता करें | मैनें सब प्रबंध कर दिये हैं | अपने एक विशवस्त मित्र से मैं आपको मिलवा दूंगा | वह आपकी सारी जरूरतों को पूरा करता रहेगा | परंतु अब एक बात का और ख्याल रखना कि इस सौदे में अब एक हिस्सेदार ओर बढ गया है | अतः ....... |
सभी डाक्टर विदा लेते हुए एक साथ,आप इस बात से बेफिक्र रहिए | हमें इसका आभास हो गया है |
मसीहा दोनों हाथ जोड़कर विदा लेते हुए बोला, ठीक है, भगवान हमारे सम्बंधों को मधुर बनाए रखे |
इसके पश्चात डाक्टरों की टोली मसीहा की जय जयकार करते हुए बाहर निकल गई | मसीहा के चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान के साथ ऐसे भाव उभरे जैसे वह महसूस कर रहा हो कि वास्तव में ही वह बन गया था  आज "मसीहा "

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