सम्मोहन
सम्मोहन हमारी चेतना की ऐसी अवस्था है जिसमें सम्मोहित व्यक्ति का पूरा ध्यान एक जगह पर केंद्रित हो जाता है और अपने आसपास की गतिविधियों के प्रति उसकी जागरूकता कम हो जाती है। इस समय सम्मोहित व्यक्ति सम्मोहनकर्ता के प्रभाव में आ जाता है और उसके दिए निर्देशों का पालन करने लगता है।
सम्मोहन द्वारा मनुष्य उस अर्धचेतनावस्था में आ जाता है जो समाधि, या स्वप्नावस्था, से मिलती-जुलती होती है, किंतु सम्मोहित अवस्था में मनुष्य की कुछ या सब इंद्रियाँ उसके वश में रहती हैं। वह बोल, चाल और लिख सकता है; हिसाब लगा सकता है तथा जाग्रतावस्था में उसके लिए जो कुछ संभव है, वह सब कुछ कर सकता है, मनुष्य को सम्मोहित करने के लिए उसकी पाँचों इन्द्रियों के माध्यम से उसे सुझाव, वस्तु, आवाज, सुगंधी, खाने वाली वस्तु, स्पर्श आदि दिया जाता है |
पुराने जमाने में नटों, साधुओं तथा योगियों में इन क्रियाओं के जाननेवाले पाए जाते थे । इन विशिष्ट मंडलों के लोगों को छोड़कर अन्य मनुष्यों में इनका ज्ञान बहुत थोड़ा, या कुछ भी नहीं होता था |
कहते हैं करत-करत अभ्यास के जड़मत होय सुजान अर्थात बार-बार प्रयास करने से बुद्धिहीन मस्तिष्क भी काम करने लगता है | सम्मोहन में यही किया जाता है | विशेष सुझाव और बातों को बार-बार दोहराया जाता है | और फिर वह उन सुझाओं को सत्य मानने लगता है | इसके अलावा सम्मोहित व्यक्ति को सम्मोहन करने वाले की हर बात सत्य लगती है और वह उनसे बहुत प्रभावित हो जाता है |
ऐसा ही कुछ मस्तानी के साथ हुआ |
धीरे-धीरे रोजाना की मुलाक़ात ने दोनों के मध्य लड़के-लडकी की आपसी दोस्ती का स्थान ले लिया और एक दूसरे के अतीत के बारे में जानने का सिलसिला प्रारंभ हो गया |
देवेन्द्र :- मस्तानी आज शाम का आपका क्या प्रोग्राम है ?
मेरा तो र्रोज की तरह आफिस के बाद घर जाने का है |
देवेन्द्र :- मेरा मूढ़ तो काफी हाऊस में बैठकर काफी की चुस्की लेन का हो रहा है |
मस्तानी :- अभी लंच टाईम में चलते हैं |
देवेन्द्र बुरा सा मुंह बनाकर, "लंच में तो आप बार-बार घड़ी देखती रहोगी इसलिए बात भी ढंग से न हो पाएंगी |"
ऐसी कौन सी लम्बी-चौड़ी बात करनी है जो आधा घंटा भी कम पडेगा ?
उत्तर जानने के लिए मस्तानी ने जैसे ही देवेन्द्र की तरफ देखा उसे अपनी सुधबुध भूल गई |इस समय देवेन्द्र ने उसे हिदायत दी कि कल आपका आफिस आधे दिन का होगा | आप घर कहकर आना कि कल मेरा पूरा दिन लगेगा अत: र्रोज के समय पर ही घर पहुँच पाऊँगी | मस्तानी ने उसकी बात का कोई पर्तिरोध न कर सहमति में सिर हिला दिया | मस्तानी ने अगले दिन वैसा ही किया जैसा देवेन्द्र ने उससे करने को कहा था | लगता था अब मस्तानी सर्वस्व देवेन्द्र के आधीन हो गयी थी |
अब मस्तानी, देवेन्द्र के सुझाव को बखूबी मानने लगी थी | देवेन्द्र ने उसकी इस अवस्था का लाभ उठाकर अपने कदम आगे बढाने शुरू कर दिए | धीरे -धीरे देवेन्द्र ने मस्तानी के घर की सारी जानकारी इकट्ठी करनी शुरू कर दी | मसलन:-
"आप कितने भाई बहन हो ?"
"बहन क्या कर रही है"
"उसका नाम क्या है"
"बापू का नाम क्या है तथा वे क्या करते हैं"
"माँ का नाम क्या है तथा वे क्या करती हैं "
"भाई का नाम क्या है तथा क्या वह आपसे बड़ा है या छोटा"
"घर में कुल कितने सदस्य हैं " इत्यादि |
मस्तानी उसकी हर बात का जवाब सहज भाव से दे देती थी |
जब देवेन्द्र ने मस्तानी के घर की पूरी जानकारी इकट्ठी कर ली तो एक दिन उसने अपना पक्का प्रभाव मस्तानी के ऊपर डालने के लिए बचपन में अपनी बेबसी की मनघडंत भावनात्मक कहानी का सहारा लेना शुरू कर दिया |
"आप जानती हो मेरा बचपन कैसा बीता "
मस्तानी जो अब तक देवेन्द्र के सम्मोहन के जाल में पूरी तरह जकड चुकी थी बोली, "आप मुझे आज से 'आप' कहकर संबोधित न करें "
देवेन्द्र की तो बांछे खिल गई |उसने समझ लिया कि चिड़िया जाल में पूरी तरह जकड़ी जा चुकी है | उसके मन में
खुशियों के हिलोरे उठने लगे | बिना समय गंवाए उसने मस्तानी पर अपनी बचपन की बेबसी का राग अलापना शुरू कर दिया जिससे उसकी नजरों में वह एक बेचारा परन्तु हर परिस्थितियों
में अपना धैर्य बरकरार रखकर संयम से हर मुसीबत का सामना करने वाला (अपने को) एक कामयाब युवक साबित
कर सके |
मस्तानी, भारत के विभाजन
से पहले हम सियालकोट में रहते थे |
वह कहाँ है ?
अब वह पाकिस्तान
का हिस्सा है |
पाकिस्तान
का नाम सुनकर मस्तानी को कुछ असहज सा होते देख देवेन्द्र झट से बोला, "हम अकेले नहीं थी
हमारे साथ और बहुत से हिन्दू भी भारत आए थे |
अच्छा !
उस समय हमारे
पास न रहने का कोई ठिकाना था न खाने को कुछ सामान और न ही पैसा |
फिर !
वे दिन हमारे
लिए बहुत मुसीबत के दिन थे | कई बार तो भूखे ही सोना पड़ता था |
देवेन्द्र
की बातें सुनकर मस्तानी की उसके प्रति सहानुभूति बढ़ती जा रही थी |
देवेन्द्र
ने कहना आरम्भ रखा | जो थोड़ा बहुत
पैसा हमारे पास था वह ख़त्म हो गया था | मेरे बाबा तथा मेरे पापा हमारी दशा महसुश करके रात को छुपकर रोया करते थे |
ओ हो |
अचानक देवेन्द्र
के शरीर में एक ऐसी स्फूर्ति आई जैसे एक मिसाईल बटन दबाते ही आसमान छूने लगती है, वह उठा, अपने दोनों हाथ फैलाकर
तथा सीना चौड़ा करते हुए गर्व के साथ बोला, "परन्तु आज मेरे पास
किसी वस्तु की कोई कमी नहीं है |"
देवेन्द्र
की यह प्रतिकिर्या देखकर मस्तानी भौचक्की रह गई तथा पूछा, "क्या मतलब?"
मतलब, आज मैं मध्यवर्गीय
लोगों के जीवन की सुख सुविधा में काम आने वाली हर वस्तु का मालिक हूँ |
देवेन्द्र
की आख़िरी बात सुनकर मस्तानी बहुत प्रभावित हुई अत: उसके मुंह से निकला, "अरे वाह इतनी छोटी सी उम्र में आपने इतना कुछ पा लिया |"
मस्तानी के
मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर उसे यह अंदाजा लग गया था कि मस्तानी को अपने बस में करने
की वह एक और सीढी चढ़ गया था | इसलिए तपाक से बोला, "मस्तानी यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ कि मैं 'self made' इंसान हूँ |अर्थात अपने निजी
प्रयासों से ही मैंने यह सब कुछ हासिल किया है |
मस्तानी स्वंम
अपने पर भरोसा रखने वाली लडकी थी अत: देवेन्द्र की self made' की कहावत ने उसके दिल में देवेन्द्र के प्रति एक संजीवनी का काम किया |