धीरता
एक दिन अचानक मस्तानी जब स्कूल जाने के लिए सलवार-जम्फर पहन कर तैयार हुई तो सभी की आँखे फटी की
फटी रह गई | उसकी पौशाक देखकर
ससुर चिल्लाया, “यह क्या पहन लिया, बदलो इसे “|
मस्तानी ने अपने को ऊपर से नीचे तक निहारा और
पास खड़े अपने पति की तरफ देखकर पूछा, “इस पौशाक में आपको क्या बुराई दिख रही है?”
जब मदन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला तो घर वालों के विरोध के बावजूद मस्तानी स्कूल के
लिए निकल गई |
ससुर ने मस्तानी के इस व्यवहार को अपनी प्रतिष्ठा का
सवाल बना लिया तथा उसे अपने असूलों पर चलाने की जुगत भिडाने लगा | जब मस्तानी स्कूल से
वापिस आ गई तो ससुर ने कहा, “वह अपनी तनखा उसे (ससुर को) लाकर दे क्योंकि वह घर का खर्च
खुद चलाएगा”|
मस्तानी ने साफ़ मना कर दिया तथा तर्क दिया, “वह उसके पति की तनखा तो सारी खर्च कर देते हैं और उन्हें क्या चाहिए |”
जब पिता पुत्र की जोड़ी ने मस्तानी को नौकरी छोड़ने का दबाव दिया तो उसने साफ़
शब्दों में जता दिया कि वह नौकरी तो किसी हालत में नहीं छोड़ेगी तथा न ही तनखा उनके
हवाले करेगी |
अब मस्तानी का ससुर उसके बनाए खाने में बहुत सी कमियाँ
निकाल कर बेकार की नोक-झोंक करने लगता था परन्तु फिर
चटकारे ले कर खा भी लिया करता था | एक दिन जब वह
बेतुकी बातें करने लगा तो मस्तानी से सहन न हुआ और
उसने साफ़ कह दिया, “मेरे से तो ऐसा
ही बनाना आता है अगर आपको पसंद नहीं आता तो किसी और से बनवा लिया करो”|
मस्तानी को समय नहीं
मिलता था कि वह घर के कपड़े प्रेस कर सके तो उसने जो धोबी हटाया गया था उसको घर के
छज्जे पर से आवाज लगाकर प्रेस के कपड़े पकडाने शुरू कर दिए थे | इस पर जब पुत्र वधू को घर की मान मर्यादा का
हवाला देकर उल्टी-सीधी सुनाई जाने लगी तो मस्तानी ने कपड़ों की गठड़ी मदन पर फैंकते
हुए कहा, “खुद तो घर में चूड़ियाँ पहन कर बैठे रहते हैं और अगर घर का कोइ सदस्य काम
करे तो उस पर इल्जाम थोपते हैं”|
इसी प्रकार मस्तानी एक दिन स्कूल से लौटकर मकान के नीचे से
ही जब दादा जी से कहकर अपनी एक सह-अध्यापिका के घर
से कुछ लेने चली गयी तो घर में कोहराम मचा दिया गया | सास,ससुर यहाँ तक कि
उसके पति मदन ने भी उसे बुरा-भला कहने से
गुरेज न किया और यहाँ तक इल्जाम लगा दिया कि पता नहीं बाहर
किस-किस से मिलती है | | मस्तानी की कोई
सुनने को राजी नहीं था फिर भी मस्तानी ने अपना धैर्य नहीं खोया क्योंकि वह जानती
थी कि उसने कोई गलत काम नहीं किया था |
मस्तानी ने मदन को समझाने की बहुत कोशिश की कि उसके नौकरी छोड़ने से आगे चलकर
उन्हें आर्थिक समस्याओं से झूझना पड सकता है | क्योंकि उनका खुद का पैसा तो घर खर्च में ही
पूरा ख़त्म हो जाता है | जब मदन को इस बात
का अहसास हुआ तो वह मस्तानी का
समर्थन करने लगा | परन्तु उसके ऐसा
करने से ससुर भड़क गया और चिल्लाया, “अरे ये कैसी लडकी
आई है इसने तो हमारे से हमारा लड़का ही छीन लिया | अब तो वह उसके रंग में रंग गया है इत्यादि |”
मस्तानी की धीरता देख ससुर को अंदाजा लग गया था कि वह दबने वाली लडकी नहीं है
तथा उसके मन में शंका उपजी कि वह यहाँ रहकर मदन की बहन के नाजायज रिश्ते का
भंडाफोड़ कर सकती है तो यह सोचकर कि ‘न रहेगा बांस न
बजेगी बांसुरी’ उसे अलग कर दिया
जाए |
मदन मस्तानी को लेकर अलग तो रहने लगा परन्तु अपने घर वालों के बहकाए से अछूता
न रह सका | इसी कारण पति-पत्नी में विशवास पैदा न हो सका और उनमें पुलिस
थाने की नौबत आने से कुछ दिनों के लिए बिछोह हो गया |
परिस्थितियों ने इस बिछोह को बहुत लम्बी अवधी में परिवर्तित कर दिया | और इस लम्बी अवधी ने धीरे-धीरे पति-पत्नी के बीच प्रतिष्ठा एवं सम्मान का बीज
अंकुरित कर दिया | कहावत प्रचलित है
कि दो सांडों की लड़ाई में झुंडों का विनाश
इसी को चरितार्थ करते हुए प्रतिष्ठा का बीज बोने का श्रेय मस्तानी के ससुर तथा
मस्तानी के पिता को जाता है | क्योंकि जहां
ससुर १०० प्रतिशत रूढ़िवादी तथा अहंकारी है तो पिता भी जिद में कोई कम नहीं है |
अब आगे-आगे देखिए होता
है क्या ?