Tuesday, April 1, 2025

मस्तानी भाग-20

 

धीरता

एक दिन अचानक मस्तानी जब स्कूल जाने के लिए सलवार-जम्फर पहन कर तैयार हुई तो सभी की आँखे फटी की फटी रह गई | उसकी पौशाक देखकर ससुर चिल्लाया, “यह क्या पहन लिया, बदलो इसे “|

मस्तानी ने अपने को ऊपर से नीचे तक निहारा और पास खड़े अपने पति की तरफ देखकर पूछा, “इस पौशाक में आपको क्या बुराई दिख रही है?”

जब मदन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला तो  घर वालों के विरोध के बावजूद मस्तानी स्कूल के लिए निकल गई |

ससुर ने मस्तानी के इस व्यवहार को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया तथा उसे अपने असूलों पर चलाने की जुगत भिडाने लगा | जब मस्तानी स्कूल से वापिस आ गई तो ससुर ने कहा, “वह अपनी तनखा उसे (ससुर को) लाकर दे क्योंकि वह घर का खर्च खुद चलाएगा”|

मस्तानी ने साफ़ मना कर दिया तथा तर्क दिया, वह उसके पति की तनखा तो सारी खर्च कर देते हैं और उन्हें क्या चाहिए |

जब पिता पुत्र की जोड़ी ने मस्तानी को नौकरी छोड़ने का दबाव दिया तो उसने साफ़ शब्दों में जता दिया कि वह नौकरी तो किसी हालत में नहीं छोड़ेगी तथा न ही तनखा उनके हवाले करेगी |

अब मस्तानी का ससुर उसके बनाए खाने में बहुत सी कमियाँ निकाल कर बेकार की नोक-झोंक करने लगता था परन्तु फिर चटकारे ले कर खा भी लिया करता था | एक दिन जब वह बेतुकी बातें करने लगा तो मस्तानी से सहन न हुआ और उसने साफ़ कह दिया, “मेरे से तो ऐसा ही बनाना आता है अगर आपको पसंद नहीं आता तो किसी और से बनवा लिया करो”|  

मस्तानी को समय नहीं मिलता था कि वह घर के कपड़े प्रेस कर सके तो उसने जो धोबी हटाया गया था उसको घर के छज्जे पर से आवाज लगाकर प्रेस के कपड़े पकडाने शुरू कर दिए थे | इस पर जब पुत्र वधू को घर की मान मर्यादा का हवाला देकर उल्टी-सीधी सुनाई जाने लगी तो मस्तानी ने कपड़ों की गठड़ी मदन पर फैंकते हुए कहा, “खुद तो घर में चूड़ियाँ पहन कर बैठे रहते हैं और अगर घर का कोइ सदस्य काम करे तो उस पर इल्जाम थोपते हैं”|    

इसी प्रकार मस्तानी एक दिन स्कूल से लौटकर मकान के नीचे से ही जब दादा जी से कहकर अपनी एक सह-अध्यापिका के घर से कुछ लेने चली गयी तो घर में कोहराम मचा दिया गया | सास,ससुर यहाँ तक कि उसके पति मदन ने भी उसे बुरा-भला कहने से गुरेज न किया और यहाँ तक इल्जाम लगा दिया कि पता नहीं बाहर किस-किस से मिलती है | | मस्तानी की कोई सुनने को राजी नहीं था फिर भी मस्तानी ने अपना धैर्य नहीं खोया क्योंकि वह जानती थी कि उसने कोई गलत काम नहीं किया था |  

मस्तानी ने मदन को समझाने की बहुत कोशिश की कि उसके नौकरी छोड़ने से आगे चलकर उन्हें आर्थिक समस्याओं से झूझना पड सकता है | क्योंकि उनका खुद का पैसा तो घर खर्च में ही पूरा ख़त्म हो जाता है | जब मदन को इस बात का अहसास हुआ तो वह मस्तानी का समर्थन करने लगा | परन्तु उसके ऐसा करने से ससुर भड़क गया और चिल्लाया, “अरे ये कैसी लडकी आई है इसने तो हमारे से हमारा लड़का ही छीन लिया | अब तो वह उसके रंग में रंग गया है इत्यादि |”

मस्तानी की धीरता देख ससुर को अंदाजा लग गया था कि वह दबने वाली लडकी नहीं है तथा उसके मन में शंका उपजी कि वह यहाँ रहकर मदन की बहन के नाजायज रिश्ते का भंडाफोड़ कर सकती है तो यह सोचकर कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरीउसे अलग कर दिया जाए |

मदन मस्तानी को लेकर अलग तो रहने लगा परन्तु अपने घर वालों के बहकाए से अछूता न रह सका | इसी कारण पति-पत्नी में विशवास पैदा न हो सका और उनमें पुलिस थाने की नौबत आने से कुछ दिनों के लिए बिछोह हो गया |

परिस्थितियों ने इस बिछोह को बहुत लम्बी अवधी में परिवर्तित कर दिया | और इस लम्बी अवधी ने धीरे-धीरे पति-पत्नी के बीच प्रतिष्ठा एवं सम्मान का बीज अंकुरित कर दिया | कहावत प्रचलित है कि दो सांडों की लड़ाई में झुंडों का विनाश

इसी को चरितार्थ करते हुए प्रतिष्ठा का बीज बोने का श्रेय मस्तानी के ससुर तथा मस्तानी के पिता को जाता है | क्योंकि जहां ससुर १०० प्रतिशत रूढ़िवादी तथा अहंकारी है तो पिता भी जिद में कोई कम नहीं है |

अब आगे-आगे देखिए होता है क्या ?

 

 

Tuesday, March 25, 2025

मस्तानी भाग-19

 

रूढीवादी सोच

शास्त्र कहते हैं कि एक आदर्श विद्यार्थी में पांच लक्ष्ण होने चाहिए |(1) कव्वे जैसा दृढ प्रयास(2) बगुले जैसी तल्लीनता(3) कुत्ते के सामान हलकी नीद(4) कम भोजन करना (5) घर से दूर रहने जैसे पांच लक्षण होने चाहिएजैसे शास्त्र विद्यार्थी के पांच लक्ष्ण बताता है वैसी ही अनुभव के आधार पर अहंकारी व्यक्ति में भी पांच  लक्ष्ण पाए जाते हैं |

1. दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों पर भड़कता है व अपने बड़े-बड़े दोषों को भी स्वीकार नहीं करता।

2. अपने से योग्य व्यक्तियों को उभरते देख परेशान हो उठता है। यह जानते हुए भी कि महिला सश्क्तिकर्ण से उनमें भी नेतृत्व करने की क्षमता आ गई है ।

3. सदा विफलताओं का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ता है व सफलताओं का श्रेय स्वयं लेता है क्योंकि वह अपने को सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझता है |

4. अपनी प्रशंसा तथा चापलूसी पसन्द करता है व जो उसको सचेत करे चाहे उसकी पत्नी ही क्यों न हो उसको लात मारने में भी संकोच नहीं करता।

5. परिवारवाद से जुड़े रूढ़ीवादी संस्कारों को बढ़ावा देकर घर की औरतों को पैर की जूती समझना या उसके साथ दासी जैसा व्यवहार करना तथा सदैव अपने विचारों को सर्वोपरीय मानता है ।

            एक बार की बात है कि एक वृक्ष पर एक बन्दर व चिडि़या रहते थे। वर्षा ऋतु आई। चिडि़या सुरक्षित अपने घोंसले में रहती व बन्दर भीग-भीग कर परेशान हो इधर-उधर मारा-मारा फिरता। एक बार चिडि़या ने प्रेमपूर्वक तरस खा कर आग्रह किया - ‘‘बन्दर मामा,वर्षा ऋतु बीतने पर आप भी प्रयत्न कर मेरी तरह एक सुरक्षित कवच बना लीजिए जिससे भविष्य में आपको कष्ट न हो।’’ बन्दर को क्रोध आया-‘‘मुर्ख तू मुझे शिक्षा देती है अभी तूझे बताता हू । उसने तुरन्त चिडि़या का घोंसला तोड़ दिया। इसलिए अहंकारी को कभी सीख नहीं देनी चाहिए तथा अहंकारी व्यक्ति से सदा सावधान रहना चाहिए।

डाक्टर बताते हैं कि कई रोग पुश्तैनी होते हैं | जैसे शुगर (डाईब्टीज), अस्थमा, बल्ड प्रेशर इत्यादी | इसी प्रकार माना जा सकता है कि बच्चे के ऊपर घर से मिले संस्कार तथा आदतों  पर भी पुश्तैनी असर अवश्य पड़ता होगा | वर्तमान समय के प्रचलन में पला बढ़ा मदन भी अपने घर में प्रचलित रूढ़िवादी विचार, संस्कार तथा आदतों से उभर न सका |

अपने हनीमून पर उसने मस्तानी को वर्तमान युग की वेशभूषा, टी-शर्ट और नेक्कर, बड़े चाव से खुद खरीद कर पहनाई परन्तु वापिस आकर घर वालों को उसके सलवार-जम्फर पहनने पर भी राजी न कर सका था | मस्तानी की सास अपने पति दिनेश की ताकीद की अवहेलना कभी न कर सकी और पूरी उम्र साड़ी के अलावा कुछ और न पहन सकी | घर में अब मदन भी अपने पिता जी के नक़्शे कदम पर चलना चाहता था और उनके दवाब में आकर मस्तानी से भी अपनी माँ की तरह का व्यवहार चाहता था |

दिनेश अपनी पत्नी के हर काम में कुछ न कुछ कमी निकालकर उसे डांटता रहता था | उसने मस्तानी के साथ भी वैसा ही सलूक करना शुरू कर दिया था | कभी सब्जी में मसालों के खातिर, कभी दाल या कढी की पतली-गाढ़ी होने के कारण उसे ससुर के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था और उस समय मदन अपनी बाहों को बांधे एक कौने में बेबस खडा मुस्कराता नजर आता था |

मस्तानी के घर में आने से धीरे-धीरे काम वाली बाई जो झाडू-पौछा और बर्तन साफ़ करने को आती थी हटा दी गई | फिर धोबी को प्रैस के कपडे देने बंद कर दिए गए | और इन सभी कामों का बोझ मस्तानी पर लाद दिया गया |

मस्तानी स्कूल में एक अध्यापिका थी | इन कामों के बोझ से उसे अपने तथा स्कूल के कार्यों के लिए समय मिलना मुश्किल हो गया | उसने जब अपनी समस्या अपने पति मदन को बताई तो उसका सीधा जवाब था कि नौकरी छोड़ दो | मदन ने दलील दी कि उसकी नौकरी का पैसा तो उसके पीहर वालों पर ही खर्च होता है | ऐसे में उसकी नौकरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती |

मदन मस्तानी और उसके घर वालों की  दो-चार झूठी रिकार्डिंग करके यह पहले ही दर्शाने की कोशिश कर चुका था कि वह कितना बुद्धिमान तथा जासूस है |  उससे कुछ छिपा नहीं रह सकता तथा वह बाल की खाल निकालने में माहिर है | परन्तु अपनी बुद्धिमता से वह अपनी बहन को ही दलदल में गिरने से न बचा सका |

मस्तानी ने थोड़े दिनों में ही जान लिया कि उसकी ससुराल में उसका ससुर ही पूर्णता सुपर पावर है और उसके मन में रूढ़िवादी विचारों के कारण औरतों के लिए कोई इज्जत नहीं है | उसके अनुसार महिला कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ होती है | वह तो केवल घर की चार दिवारी में रखने, चौका-चुल्हा संभालने, संतान बढाने तथा भोगने की वस्तु मात्र है |

घर के ऐसे वातावरण से नीजात पाने के लिए मस्तानी ने निश्चय कर लिया कि उसे उस घर की रूढ़िवादी सोच का डटकर मुकाबला करना होगा अन्यथा उसे भी अपनी सास की तरह घर के मर्दों के रहमों कर्म पर जीवन निर्वाह करने पर मजबूर होना पड़ेगा |

 

Wednesday, March 19, 2025

मस्तानी भाग-18

 शादी 

दिनेश अपने छोटे भाई की बात पर भड़क गया | अरे झूठी थाली में भी कोई दूसरा खाना कैसे खा सकता है | क्या मेरे लड़के के रिश्ते आने बंद हो गए हैं जो हम नए रिश्ता आने का इंतज़ार नहीं कर सकते | अभी उसकी उम्र भी तो नहीं निकली जा रही |

इस पर पास बैठी दिनेश की पत्नी बोल पडी, जी पहले छोटे भाई की पूरी बात तो सुन लो कि वह ऐसा प्रस्ताव क्यों लाया है |

अर्जुन का कुछ ढाढस बढ़ा और उसने बताया कि उस दिन लडकी शादी के नाम पर डरी हुई थी इसलिए उसने बचने के लिए मन मनघडंत कहानी बना दी थी |

दिनेश झल्लाया, “नहीं-नहीं मैं इस कहानी को नहीं मानता |”

दिनेश की माँ जो अभी तक सभी का वार्तालाप सुन रही थी ने अपने मन की बात बताई, “देखो बेटा ऐसे समय में लडकी का मन बहुत डरा हुआ होता है | वह सोचती है न जाने दूसरे घर जाकर उस पर क्या बीतेगी | वैसे उससे गलती तो हुई थी परन्तु  यह लडकी सुन्दर, पढी-लिखी, नौकरी लगी हुई, नजदीक की रहने वाली, खानदानी है | मुझे तो वह देखते ही पसंद आ गयी थी और अब भी पसंद है |”     

आखिर में माँ-बाप, दादा-दादी, चाचा-चाची तथा लड़के ने भी रिश्ता जोड़ने की हामी भर ली | देखने-दिखाने का दौर चला | एक तरफ लड़के वालों ने कुछ शर्ते रखी तो दूसरी तरफ लड़के वालों लडकी वालों को भी कुछ शर्तें माननी पड़ी | इसी तरह कुछ बातों में लड़के ने भी अपनी मनमानी चाही तो लडकी कहाँ पीछे रहने वाली थी | उसने साफ़ कर दिया कि वह घूंघट नहीं करेगी, नौकरी नहीं छोड़ेगी, आगे पढाई भी करेगी, सलवार कुर्ता पहनने की मनाई नहीं होगी, यदा-कड़ा पीहर जाने की मनाही नहीं होगी इत्यादि  और रिश्ता पक्का हो गया | 

दोनों ओर शादी की तैयारियां पूरे जोरशोर से प्रारंभ होने लगी | जल्दी ही बाजे, ताशे, नपीरी, ढोल, घोड़ी-बग्गी, कपड़े-लत्ते, चीज-बस्त, विवाह स्थल सब बुक कर दिए गए |

शादी वैसे तो सुचारू रूप से संपन्न हो गई परन्तु जैसा अमूमन होता है रूसा रूसवाई, छोटा – मोटा कहन सुनन, नुक्ता-चीनी से यह शादी भी अछूती न रह सकी | लडकी सही समय पर विदा हो गई और सभी ने सुखचैन की सांस ली |

ससुराल में नव नवेली दुल्हन का भावभीना स्वागत तो हुआ परन्तु मस्तानी को वहां अपनापन महसूस नहीं हुआ | घर के सभी सदस्यों का एक साथ बैठना तो दूर कोई किसी से बात करने को राजी ही नहीं दिखाई देता था | एक-एक करके खाने के समय तो दर्शन हो जाते थे जैसे ईद का चाँद दिखाई देता है वरना कोई अपने कमरे से बाहर ही नहीं निकलता था | घर में किसी की हंसी तो गूंजती सुनाई ही नहीं पड़ती थी बल्कि हमेशा मुर्दानगी का आभाष होता था |

स्वछंद वातावरण और हंसी खुशी के माहौल में पली बढ़ी मस्तानी का तीन दिनों में ही ससुराल में दम सा घुटने लगा | परन्तु उसने चुपचाप यह सहन कर लिया क्योंकि इसके बाद उन्हें हनीमून के लिए बाली (आस्ट्रेलिया) जाना था और वह इसकी तैयारी में लगी हुई थी |

मस्तानी :- क्यों जी कितने दिन का प्रोग्राम है ?”

“एक हफ्ते का |”

“यहाँ तो गर्मी का मौसम है क्या वहां भी गर्मी होगी ?”

मदन :- हाँ गर्मी के कपड़े ही रखना |

“ठीक है |”

“क्या ठीक है, हम वहां हनीमून के लिए जा रहे हैं | ऐसे यादगार पलों के लिए तुम्हारे पास पहनने के लिए कपड़े है भी |”

मस्तानी :- हाँ-हाँ कई नए बढ़िया सूट व साड़ियाँ हैं |

मदन थोड़ा रोमांचित होकर अरे भई ऐसे मौके पर रोमांस भरा माहौल तो बनना चाहिए |

मस्तानी :- तो फिर क्या करूँ ?”

मदन ने सलाह दी कि तेरे घर चलते हैं | वहां के बाजार से हनीमून के दौरान पहनने लायक कपड़े खरीद कर ले आएँगे | उन्होंने मस्तानी एवं खुद के लिए निक्कर, टी-शर्ट, जूते, बनियान इत्यादि अपनी पसंद का सामान खरीद लिया | मस्तानी ने उसके लिए खरीदी गई निक्कर पहनने पर एतराज भी उठाया परन्तु मदन के आगे उसकी एक न चली |

दोनों बाली में हनीमून मनाकर खुशी-खुशी घर लौट आए | घर में पैर रखते ही मस्तानी की सारी खुशी काफूर हो गई जब उसने देखा कि घर में उपस्थित देवर, नन्द, दादी जी और पापा जी अपने-अपने कमरों की खिडकियों से झांककर उनको आया तो देख रहे है परन्तु कोई भी बाहर आकर उनके आने की खुशी जाहिर नहीं कर रहा | मस्तानी ने भी अपना सामान समेटा और एक अनजान बस्ती की तरह बूझे मन से अपने कमरे में समा गई |

अकेली बैठी मस्तानी चिंतन करने लगी कि आज अगर वह कहीं से भी अपने पीहर आती तो घर के सभी सदस्य उसे घेर कर प्रश्नों की झड़ी लगा देते और बीच –बीच में ऐसे मजाक करते कि हसीं के फव्वारे बंद ही न होते | आया जान आस पडौस के हम उम्र भी अपनी भागीदारी अवश्य निभाते | परन्तु यहाँ तो अपने घर में ही वे अनजान से बनकर रह गए थे | उसका मन विषाद से भर गया | फिर भी थकी हारी होने की वजह से वह जल्दी ही निंद्रा की आगोस में चली गई |