चांडाल चौकड़ी (27)
जैसा कि नाना जी ने अंदाजा लगाया था एक दिन मदन के चाचा अर्जुन
का फोन आया, “नमस्ते जी” |
कौन?
मैं मदन का चाचा बोल रहा हूँ |
राम-राम जी, कहिये कैसे याद किया |
बच्चों के बारे में ही बात करनी थी |
बहुत अच्छे तथा शुभ विचार हैं |
मस्तानी को गए 18
महीने से ज्यादा हो गए है | इस बीच मदन और उसके बीच कोइ बात चीत नहीं हुई |
शायद आपको मालूम नहीं कि मस्तानी ने हर टेहले यहाँ तक कि जन्म
दिन इत्यादि पर भी सन्देश भेजे हैं |
परन्तु उनके घर वालों की तरफ से तो कभी कोइ संदेशा नहीं आया
|
इसके लिए भी मैं आपको जता दूं कि जितनी बार भी मेरे से मदन
जी की बात हुई है मैंने हर बार उनसे कहा था कि आओ और मस्तानी को लिवा ले जाओ |
जिस घर में मेहमानों की पिटाई हो भला वहां जाने की कौन
हिम्मत कर सकता है |
क्या मतलब ?
क्या आपको नहीं पता कि मदन के साथ उसकी ससुराल में क्या
सलूक किया गया था | उसकी वहां पिटाई की गई थी |
आपको किसने कहा ?
खुद मदन ने |
और आपने मान लिया | एक तरफ की बात सुनकर सच्चाई नहीं जानी
जा सकती |
मदन एक हीरा लड़का है | उस जैसा लड़का मिलना मुस्किल है |
अर्जुन जी, सभी को अपना बच्चा ऐसे ही दिखाई देता है |
मैं तो मोहन को बहुत अक्लमंद मानता था तथा उनकी बातों से
काफी प्रभावित भी था परन्तु अब उनका व्यवहार भी दिखावा सा ही नजर आता है |
अर्जुन जी, आप जो बात कर रहे हैं वह केवल एक तरफ से सुनी
बातों से प्रभावित होकर कर रहे हैं |
खैर ?
खैर की कोई बात नहीं है, मैं तो आप से भी कहता हूँ कि मदन
जी को भेज दो मस्तानी को लिवा ले जाएंगे |
डेढ़ साल हो गए हैं उसे आना होता तो वह अब तक आ चुकी होती |
अब उनके एक साथ रहने का कोइ औचित्य नहीं रह गया है |
माफ़ करना, इस बारे में क्या कभी आप की तरफ से इस दौरान कोई
विचार आया | मैनें तो आपके पिता जी का नंबर भी मांगा था परन्तु कह दिया गया कि
उनसे कोइ बात नहीं करनी | ऐसा लगता है आपके यहाँ बुजुर्गों को कोइ महत्त्व नहीं
दिया जाता |
अरे आप समझते नहीं | उनकी याददास्त बहुत कमजोर है | कभी कभी
तो वे मेरा नाम तक भूल जाते हैं फिर भला उनसे क्या बात करनी |
अर्जुन के बोलने के लहजे से ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि
उसे अपने बुजुर्गों का सम्मान करने का कितना कायदा है क्योंकि उसने अभी तक नाना जी
को भी मौसा जी शब्द से एक बार भी संबोधित नहीं किया था | यही नहीं अर्जुन ने
सम्बोधन करते हुए मोहन के नाम के बाद भी जी नहीं लगाया था | उनके कथन से साफ़ जाहिर
हो रहा था कि वे मदन को सुलह करने की बजाय मस्तानी से सम्बन्ध विच्छेद करने को
प्रोत्साहन दे रहे होंगे | फिर भी नाना जी ने पूछा, “अब आप क्या चाहते हैं ?
यही कि एक मीटिंग कर ली जाए |
ठीक है बताओ कब करनी है |
बातचीत के बाद तय हुआ कि मीटिंग अर्जुन के घर पर 19 नवम्बर
2021 को शाम दो बजे होगी | मस्तानी अपने माता-पिता, नाना जी, दोनों मामा जी,तथा
बड़ी मामी के साथ तय समय पर तय स्थान पर पहुँच गए | मदन की तरफ से उनके पिता जी, एक
फूफा, चाचा-चाची तथा एक दूर के मौसा जी ही थे | हमारे कहने के बावजूद मदन ने अपने
मामा जी तथा मम्मी जी को नहीं बुलाया था |
बात शुरू करते हुए करते हुए नाना जी ने कहा, “सभी सज्जन इस
बात का ध्यान रखें कि उनकी बात में किसी प्रकार की अपने की हिमायत के सुर नहीं
होने चाहिए अर्थात किसी को भी किसी भी सदस्य का बिना सत्य बात जानें पक्ष नहीं
लेना होगा “|
मौसा- बिलकुल ठीक कथन है |
नाना जी- मैंने यह इस लिए कहा है क्योंकि मेरी तथा अर्जुन जी
की बात के दौरान उन्होंने मदन जी तथा मोहन जी के बारे में कुछ ऐसा ही दर्शाया था |
अगर आप उचित समझो तो मैं वह बातें दोहराऊँ ?
मौसा :-नहीं –नहीं कहने वाले को पता है कि उसने क्या कहा था
|
मौसा जी के इस कथन से नाना जी को ऐसा लगा जैसे मौसा खुद भी
उनके पक्ष में ही हैं | और उनके बात शुरू करने के लहजे से जब उन्होंने कहा, “देखो
जी अठारह महीने से मदन तथा मस्तानी अलग रह रहे हैं तथा उनके बीच कोइ बातचीत भी
नहीं हुई तो अब उनके साथ रहने का तो कोइ औचित्य नहीं बनता | तो बताओ अब आगे क्या
करना है उनके मौसा जी की विचार धारा को साबित कर दिया था |
नाना जी:- आपने तथ्यों को जाने बिना यह कैसे मान लिया कि ये
दोनों एक साथ नहीं रहना चाहते ?
मौसा :-मदन तथा इनके घर वालों ने तो यही बयाँ दिया है |
नाना जी:- अगर आप फैसला करने बैठे हैं तो पहले पूरी स्थिति
को अच्छी तरह समझिए फिर अपना मत दीजिए | आप बिना कुछ समझे जाने ऐसा कैसे कह सकते
हैं कि इनके साथ रहने का कोइ औचित्य नहीं है | आप भी अर्जुन जी की बातों को दोहरा
रहे हैं |
मौसा माफी माँगते हुए बोले, ठीक है आप बताईये कि आपको इस
बारे में क्या कहना है |
चंडाल चौकड़ी (27)
नाना जी:- मैं मदन जी के संपर्क में हमेशा रहा हूँ | मैंने
जब भी उनसे बात की थी, हर बार मैंने उन्हें आकर मस्तानी को लिवा ले जाने की बात
दोहराई थी |
मौसा:-परन्तु मस्तानी के माता पिता या मस्तानी ने कभी
संपर्क करने की कोशिश नहीं की ?
मोहन:- संपर्क कहाँ तथा कैसे करते जब इन सभी ने हमें ब्लाक
कर रखा था |
मस्तानी : क्या मैं कुछ कह सकती हूँ ?
मौसा : हाँ, हाँ कहो क्या कहना है |
जब से मैं मामा जी के कहने से अपने पीहर गयी हूँ ऐसा कोइ त्यौहार नहीं गया जब मैनें सभी को शुभ
कामनाओं का सन्देश न भेजा हो | यही नहीं घर के सभी सदस्यों के जन्मदिन पर भी मैं
सुभकामनाओं का सन्देश भेजना भी नहीं भूली | परन्तु किसी ने कभी भी मुझे उत्तर देने
का प्रयास नहीं किया | क्या केवल मेरा ही यह फर्ज बनता है और किसी का नहीं | पापा
जी की बीमारी की बात सुनकर मैं अपने पापा जी के साथ अस्पताल में मिलने गई परन्तु वहां
हमें कोइ नहीं मिला | फोन किया तो किसी ने उठाया नहीं | अब आप मुझे बताएं कि मेरी
कहाँ गलती रही | तथा जैसा आप कह रहे हैं कहाँ रिश्ता तोड़ने की कोशिश की |
मौसा : मुझे ये बातें पता नहीं हैं | इससे तो मालूम पड़ता है कि आपने निभाने की पूरी
कोशिश की |
नाना जी : आपको तो बहुत सी बातें बताई ही नहीं गई होंगी |
मौसा: मसलन?
नाना जी: मस्तानी के पहनावे पर इनकी रूढ़िवादी सोच | जब मदन
जी हनीमून पर गए तो मस्तानी को टी-शर्ट तथा शोर्ट पहना दी परन्तु घर पर उसे सलवार
जम्फर पहनने पर भी रोक थी |
मदन : मैंने मस्तानी को कहा था कि कुछ दिनो बाद सब चालू हो
जाएगा |
नाना जी : मतलब रोक थी | अब आप ही बताओ कि बच्चे का सलवार
जम्फर पहनने में किस प्रकार का पारिवारिक उल्लंघन होता है | यही नहीं घर की बहु को उसकी नन्द की शादी में भी
शरीक नहीं किया गया |
मदन: वह तो मस्तानी ने अलग होते समय कहा था कि अब मैं इस घर
में कदम नहीं रखूँगी |
मौसा: यह बात तो
कुछ जंची नहीं | चाहे जितना भी मन मुटाव हो
नन्द की शादी पर भाभी का होना तो जरूर बनता है |
अर्जुन : भाभी अगर नन्द को बिना वजह पीट दे तब क्या होना
चाहिए ?
नाना जी : ऐसा कोइ पागल ही होगा जो बिना वजह किसी को पीट दे
| हाँ अगर किसी के ऐसे कर्म से जिससे परिवार का नाम बदनाम हो तो सबक सिखाने के लिए
हाथ उठाना जायज कहलाएगा |
मस्तानी: मैनें नन्द पर हाथ नहीं उठाया था केवल उसकी ठोड़ी
पर हाथ लगा कर यह कहा था कि आपने ऐसा क्यों किया | बल्कि एक दिन मैंने देखा था कि
इन्होने (मदन) उसे एक चपत लगाई थी |
फूफा :- मैंने कहा था कि ६ महीने के लिए इन्हें बिलकुल
अकेला छोड़ दो | न मदन अपने घर जाए और न मस्तानी अपने पीहर|
दिनेश: मैंने तो अपने दिल पर पत्थर रख कर इनको अलग कर दिया
था |
नाना :- दिखावे के लिए दिल पर पत्थर तो रख लिया था परन्तु बेटे
को दो-दो दिनों तक गोद में बैठाकर दूध पिलाना नहीं छोड़ा था |
मदन के कथित मौसा जी की भाव भंगिमा से यह साफ़ जाहिर हो रहा
था कि जो कहानियां उन्हें मदन के घर वालों द्वारा बताई गयी थी सब उसके विपरीत सामने
आ रहा था | वकील होने के नाते शायद उन्हें मस्तानी के घर वालों की कमियाँ जांच कर
केस फाईल करने को कहा गया होगा, तभी तो बात शुरू होने पर ही उन्होंने अपना मत रखा
था “देखो जी अठारह महीने से अधिक समय हो गया है इन दोनों को अलग हुए अब इनका एक
साथ रहने का कोइ औचित्य नहीं रहा” परन्तु सारी कमियाँ तो मदन के घर वालों की निकली
|
घर की असली कलई खुलते भांप मदन की चाची अपना आपा खो
बिलबिलाती ,चंडी का रूप धरे बाहर आई, “बहुत देर से मैं आप सब की बदतमीजी सुन रहीं
हूँ | ये होती कौन है अपनी नन्द को थप्पड़ मारने वाली |’
नाना : यह नन्द की बड़ी भाभी है | वैसे तो मस्तानी ने थप्पड़
मारा नहीं है परन्तु अगर कहीं घर की इज्जत का बचाव करने के लिए छोटे पर हाथ उठा
दिया जाए तो वह जायज ही कहलाएगा |
जब नाना ने पाया कि चाची बेवजह चीख-चीख कर माहौल बिगाड़ने की
कोशिश कर रही है तो उन्होने भी जोर देकर तथा तेज आवाज में चाची की आवाज दबाने के
लिहाज से अपना मत दोहराया | इस पर बैठक की शालीनता, जो अभी तक थोड़ी दिखाई पड रही
थी, भंग हो गई | इस दौरान नाना जी के उस मत का भी प्रमाण मिल गया कि मदन के घर का
आवा ही पूरा ऐसा था जहां बड़ों को कोंई इज्जत नहीं दी जाती क्योंकि गर्मागर्मी के
माहौल में अर्जुन ने भी नाना जी के लिए ‘ओएं’ शब्द का इस्तेमाल किया था |
खैर नाना जी को शांत करके बाहर बैठा दिया गया तथा मोहन सभी
अपनों के साथ बाहर आते हुए दृड शब्दों में दो टूक कह आए “मेरी लडकी न तलाक लेगी, न
दूसरी शादी करेगी तथा न मैं लड़के को दूसरी शादी करने दूंगा“ जो तुम्हें करना है कर
लो |
इस प्रकार चांडाल चौकड़ी के मंसूबे धरे के धरे रह गए |
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