Wednesday, June 11, 2025

मस्तानी -28

 

धैर्य परिक्षा

मदन के चाचा, अर्जुन के यहाँ से वापिस आकर अपने को बातचीत में व्यवधान डालने का कसूरवार मानते हुए नाना जी ने सभी के सामने कहा, “शायद मेरी वजह से आपसी मनमुटाव सुलझ न सका |”

पूजा:- पापा जी आप ऐसा क्यों सोच रहे हो | आपने, क्या हम में से किसी ने भी कोई गलत बात नहीं कही | वे तो अपने झूठे फैलाए जाल में खुद ही फंसते चले गए |

मोहन:- पापा जी आप अपने मन में किसी प्रकार की कोई गिलानी महसूस न करें | आप ने जिस प्रकार गर्मी दिखाकर मदन की चाची का मुंह बंद करने का प्रयास किया था वह बहुत जरूरी था |

मस्तानी:- ‘सांच को आंच नहीं’ जब चाची के नापाक इरादे धूल फांकने लगे तो वह तिलमिला गई | आपने बिलकुल सही किया अन्यथा वह तो सिर पर चढ़ जाती |

मोहन :- पापा जी अब उनको पता चल गया है कि हम उनकी बन्दर की सी घुड़कियों से डरने वाले नहीं है | आप देखना, अब उनकी तरफ से ही सुलह मशवरा का प्रस्ताव आएगा |

पूजा, मस्तानी तथा मोहन जी के आश्वासन से नाना जी को बहुत राहत मिली परन्तु फिर भी उनके दिल के एक कौने में मस्तानी के भविष्य को लेकर चिंता ने घर बना ही लिया था |

पता चला कि मदन की नानी जी बहुत बीमार हैं तो नाना जी ने वहां  के हालात जानने तथा चतर के यहाँ मीटिंग का हाल बताने हेतु मदन के मामा जी को फोन मिलाया, “नमस्ते जी | आपको सूचना मिल गयी होगी कि हम अर्जुन जी के यहाँ हो आए थे |”

हाँ जी, हाँ जी |

हमने आपको बुलाने की भी कही थी परन्तु न वहां आप थे न मदन जी की मम्मीजी |

फिर कौन -कौन थे ?

मदन के पापा जी, फूफा जी, मौसा जी, चतर जी, उनकी पत्नी त्तथा मदन जी |

मामा असमंजस से,”मदन के मौसा जी?” ठहरो मैं अभी आपको फोन करता हूँ |

थोड़ी देर बाद मामा जी बताते हैं कि मदन के मौसा जी तो थे नहीं |

हमें तो यही बताया गया था | खैर छोडो, आपकी मम्मी जी का स्वास्थ्य कैसा है ?

मामा जी ने अपनी मम्मी जी के बारे में बताने की बजाय केवल इतना ही कहा कि मैं आपको बाद में फोन करता हूँ और सम्बन्ध विच्छेद कर दिया |

उनके व्यवहार से नाना जी ने समझ लिया कि दाल में जरूर कुछ काला है  परन्तु क्या वे इस समय कुछ अंदाजा न लगा सके |

तीन –चार दिनों बाद मस्तानी, मदन की नानी जी से मिलने अस्पताल गई तो वहां आए सभी व्यक्तियों ने नानी जी का ख्याल छोड़ मस्तानी पर सवालों की झड़ी लगा दी | इसी तरह जब मस्तानी नानी जी के स्वर्गवास पर उनके घर गयी तब भी वही हाल रहा | सारांश रहा कि सभी के जवाब संतुष्टि के साथ देकर उसने यह दर्शा दिया कि वह मदन की तरह तलाक देने में विश्वास नहीं रखती | इसी दौरान यह भी महसूस किया गया कि मदन के मामा जी भी कान के कच्चे तथा बिना असलियत जाने भांजे की बातों की हिमायत लेने वाले हैं | अर्थात एक ही थैली के चट्टे-बट्टे | क्योंकि शायद अर्जुन के यहां हुई बातचीत उनके  सामने झूठी तथा गलत ढंग से प्रस्तुत की गयी थी | यही कारण रहा होगा कि उन्होंने नानाजी के खिलाफ “टैटू” दबाने जैसे शब्द का प्रयोग कर दिया था | इसी से अंदाजा लगाया गया कि मामा जी ने नाना जी से बात करने में क्यों रूखापन दिखाया था |   

आज की इस भागदौड़ वाले जीवन में हर व्यक्ति जल्दी से जल्दी सफल होना चाहता है आजकल किसी को भी धैर्य नहीं हैं जिस प्रकार कोई बीज सबसे पहले पौधा बनता है उसके कुछ सालों बाद वह फल देने लायक बनता है उसी प्रकार कामयाबी को प्राप्त करने में समय जरूर लगता है। परन्तु हम कई बार सब्र, धैर्य खो देते हैं जिससे फिर कार्य का सफल होना असंभव हो जाता है।

जीवन मे किसी भी क्षेत्र में कामयाबी प्राप्त करने के लिए सब्र, धैर्य का होना बहुत जरूरी है बिना धैर्य वाला व्यक्ति हमेशा कमजोर होता है स्टॉक मार्केट क्रियाशील से सहनशील के पास पैसे स्थानांतरित करने की क्रिया है। अर्थात जो कर्मपथ पर धैर्य से कार्य करते हैं सफलता उनके कदम चूमती है।

मोहन स्टाक मार्केट के पक्के खिलाड़ी हैं | शायद यही कारण रहा होगा की उनमें धैर्य कूट-कूट कर भरा है | मस्तानी की ससुराल वालों से इतनी कहा सुनी हो गई थी परन्तु उनके चहरे पर एक शिकन भी नहीं दिखाई दी | हालांकि उनकी पत्नी पूजा ने तो एक बार पूछा भी कि ‘अब क्या होगा ?’ मोहन जैसे बिलकुल आश्वस्त थे, शांत स्वभाव बोले, “होना क्या है वही होगा जो मंजूरे खुदा होगा |” और जोर से हंस दिए |

धैर्य कड़वा है, लेकिन इसका फल मीठा है। धैर्य प्रतीक्षा करने की क्षमता नहीं है, बल्कि प्रतीक्षा करते समय एक अच्छा रवैया रखने की क्षमता है। जैसे स्वर्ण आग में चमकता है उसी प्रकार धैर्यवान कठिनाई में दमकता है क्योंकि धैर्य, मन की शक्तियों का मूल है।

धीरे- धीरे मोहन ने पूजा तथा मस्तानी को भी अपने रंग में रंग लिया | कहा भी गया है कि भाग्य से ज्यादा और समय से पहले कभी कुछ नहीं मिलता इसलिए सब्र करना सीखिए और बाकी सब वक्त पर छोड़ दीजिए यकीन मानिए वक्त खुद जवाब देगा । कहा भी गया है कि दस वर्ष बाद तो कूडी के दिन भी बदलते हैं |

समय ने करवट ली | मदन के मौसा जी, मौसी जी और मामा जी मस्तानी के मन की बात जानने मोहन के घर आ पहुंचे | सभी बातों की असलियत जानकार वे भी आश्वस्त हो गए कि मस्तानी या उसके परिवार वालों की तरफ से ऐसी कोइ बात नहीं कही गयी जो रिश्ते में कडवाहट पैदा करने का सबब बनती हो | इसलिए सब ठीक ही होगा का आश्वाशन देकर वे विदा हो गए |

कहा नहीं जा सकता कि मौसा जी वगैरह ने मदन या उसके घर वालों से इस बाबत कुछ बातें की या नहीं अगर की भी होंगी तो अहंकार से लबरेज अपने को एक बहुत बड़ा ज्ञानी, रावण के परिवार की तरह , समझने वाले ने उन्हें ग्रहण भी किया होगा यह विशवास भी नहीं किया जा सकता |

समय ने एक बार फिर करवट ली और लगभग दो महीने बाद मदन ने मस्तानी को फोन किया, “मैं मिलना चाहता हूँ |” और दोनों का आपस में फोन पर बातचीत करने तथा मिलने का सिलसिला शुरू हो गया | फिर भी जाट भाषा में उनके लिए यह कहावत सटीक बैठती है कि “जाट मरा तब जानिए जब उसकी कब्र पर घास उग आए “| अर्थात अहंकार का नाश | कहने का तात्पर्य यह है कि मस्तानी को लिवा ले  जाने की बात तो मदन द्वारा कबूल ली गयी है परन्तु छह महीनो से हर बार एक-एक महीना आगे बढाया जा रहा है फिर भी धैर्य के साथ घास उगने का अर्थात अहंकार के दमन का इंतज़ार किया जा रहा है |  

 

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