Friday, August 13, 2021

 

 

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा – 45) चिंतन मनन-इति  

कोई भी परिवर्तन या तूफ़ान अचानक नहीं आता उसके पीछे कुछ न कुछ कारण अवश्य होता है | माना गया है कि तूफ़ान दो प्रकार के होते हैं | पहला दैविक और दूसरा दैहिक | दैविक तूफ़ान जल, थल व् नभ को प्रभावित करता है तो दैहिक हमारे मन को दूषित करके परिवार और समाज पर असर डालता है |

संयुक्त परिवारों के टूटने के मुख्य कारण, अपरिपक्वता, व्यक्तिगत आकांक्षा, स्वकेंद्रित विचार, व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्धि, लोभी मानसिकता, आपसी मनमुटाव, अपने परिवार में मिले संस्कार और आपसी सामंजस्व की कमी इत्यादी होते हैं | इनसे परिवार के सदस्यों में संवादहीनता एवं अविश्वास का माहौल बनने लगता है | यही अविश्वास आगे चलकर धीरे-धीरे संशय एवं क्लेश में परिवर्तित होता है| जब परिवार में क्लेश बढ़ने लगता है तब संयुक्त परिवार में बिखराव आना शुरू हो जाता है| संयुक्त परिवार को संयुक्त रखने में आपसी प्रेम का भाव होना बहुत जरूरी है इसके लिए जरूरी है कि छोटी छोटी बातों को भूल कर आगे बढ़ा जाये क्योंकि ये छोटी छोटी बाते दिल में घर कर जाती है फिर प्रेम को द्वेष में बदलने का काम करने लगती है फिर टूटता है संयुक्त परिवार

वैसे तो बचपन में घर का वातावरण वहां पल रहे लड़का और लडकी दोनों के संस्कारों पर एक जैसा असर डालता है परन्तु इनका परिणाम आगे चलकर औरत को अधिक झेलना पड़ता है जब वह दूसरे घर जाती है और पुराने मिले संस्कारों में वर्त्तमान समय के अनुसार बदलाव लाने की कोशिश नहीं करती | अगर वह बदलाव लाने की सोचती भी है तो उसकी शिक्षा उसके आड़े आ जाती है | शिक्षा का तर्क देकर वे यह प्रमाणित करने का प्रयास करती हैं कि वर्तमान युग की चाल देखकर उन्हें बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि उसके ससुराल वालों अर्थात घर के बुजर्गों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है | साक्षरता ने लड़कियों की सोच में एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है | वे महसूस करने लगी हैं कि शादी तो जीवन की एक रस्म है, जैसे तैसे निभा ली जाएगी किन्तु वर्तमान परिवेश में रोजगार महत्त्व पूर्ण है |

शिक्षा रोजगार के ऊपर ज्यादा आधारित है | आज बेटी हो या बेटा सबको स्वालंबन बनने की शिक्षा दी जाती है | लड़कों की शिक्षा पहले से ही समाज में महत्त्व पूर्ण रही है लेकिन लड़कियों की शिक्षा में भी परिवर्तन हुआ है | पहले माता पिता की सोच रहती थी कि शिक्षा बेटियों के लिए हथियार है जिसके माध्यम से वे जीवन में आने वाले विपरीत परिस्थिति का सामना कर सकेंगी | लेकिन इस हथियार का प्रयोग वे विपत्ति का समय आने पर ही करेंगी | बेटियों को घरेलू ज्ञान और संस्कार दिया जाता था जिससे वे अपनी गृहस्थी को सुचारू रूप से चला सकें | किन्तु स्थिति आज बदल चुकी है | घरेलू ज्ञान तो सामान्य ज्ञान सा बन गया है | लेकिन आजीविका चलाने के लिए शिक्षा महत्त्व पूर्ण हो गयी है | आज की बेटियों की सोच में भी फरक आया है | नई पीढी में सम्मान, धैर्य, और समन्वय की कमी होती जा रही है |

आजकल बहु नये जमाने की नए आवो हवा की बेटियां होती हैं और बहुत हद तक हर एक का अपना ध्येय और मान्यता होती है जिसे वे किसी भी शर्त पर नही बदलतीं और अन्ततः झगड़ा हो ही जाता है | वास्तविकता में ये सास -बहु के बीच झगड़ा होकर दो अलग-अलग समय की विचारधाराओं का मतभेद होता है जो बढक़र झगड़े का रूप ले लेता है।

माना गया है कि एक जैसी विचार धारा रखने वाले दो व्यक्तियों में दोस्ती बहुत जल्दी हो जाती है और गाढ़ी हो जाती है परन्तु यह धारणा दो औरतों के बीच शायद संभव नहीं है | एक जैसी विचारधारा रखने वाली दो औरतों का मिजाज या स्वभाव मखनातीस के एक जैसे दो पोल जैसा देखने को मिलता है ? अर्थात वे एक जुट न होकर एक दूसरे से दूर भागने का प्रयास करती नजर आती हैं | ऐसी औरतें अमूमन अपना हुनर दूसरी औरत के साथ साझा करने में कतराती हैं और अगर किसी कारण वश एक औरत साझा करने को राजी भी हो जाए तो दूसरी अपनी तौहीन समझकर उस हुनर को ग्रहण करने में आनाकानी करने में प्रयासरत रहती है |

अधिकतर जो लोग अकेले रहते हैं वह बहुत जल्दी 22https://www.nayichetana.com/201602/how-to-remove-study-stress-in-hindi-%e%a%95%e%a%88%e%a%b%e%a%87-%e%a%95%e%a%b%e%a%87-%e%a%aa%e%a%a%e%a%be%e%a%88-%e%a%95%e%a%87-%e%a%a%e%a%a%e%a%be%e%a%b.html%22,"तनावHYPERLINK ".html%22तनावHYPERLINK%20%22https://www.nayichetana.com/2016/02/how-to-remove-study-stress-in-hindi-%e0%a4%95%e0%a5%88%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a4%a2%e0%a4%be%e0%a4%88-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%a4%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%b5.html%22,", चिंता, अवसाद और मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं परन्तु जो लोग अपने परिवार, दोस्तों, यारों, रिश्तेदारों के साथ समय बिताते हैं, वह ज्यादा खुश रहते हैं । इसके विपरीत, जीवन साथी के रहते हुए भी, यह भी पाया गया है कि बहुत से लोग अपने संयुक्त परिवार में रहते हुए भी तनाव, चिंता, अवसाद, और मानसिक समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं | इसका सबसे बड़ा कारण बनता हैं आपसी विचारों से सहमत होना, परिवार के दूसरे सदस्यों को अहमियत देना, खुद को बुद्धिमान समझना, इत्यादि | परिणाम स्वरूप घर में कलह का साम्राज्य हो जाता है और खुशियाँ किनारा कर लेती हैं |

पारिवारिक विघटन का सबसे बड़ा नुक्सान परिवार के बुजुर्गों को होता है | विघटन फलस्वरूप उनकी दशा अधिक संवेदनशील स्थिति में हो जाती है | साक्षरता बढ़ने से युवा दम्पति रोजगार के प्रति इतने निर्भर तथा उतावले रहने लगे हैं कि उन्हें अपने बच्चों का बचपन आया के सुपुर्द करने पर मजबूर होना पड़ता है | इस स्थिति में युवापीढी अपने माँ –बाप की जिम्मेदारी लेने से पीछे हट रहे हैं | अधिकतर इसका कारण ‘जेनेरेशन गैप’ के कारण विचारों में सहमति न बनना बताया जाता है | यह बहुत ही कष्टदायक तथा करूणामयी स्थिति बन जाती है जब पश्चिमी देशों की तरह बूजुर्गों को वृद्धाआश्रम का रूख करने की नौबत आ जाती है |

भारत तथा अन्य विकासशील देशों के लोग यह मानते हैं कि पश्चिमी संस्कृति के अनुकूल ढलने में कोई बुराई नहीं है लेकिन हमें अपनी जड़ों को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमें पश्चिमीकरण को सकारात्मक वृद्धि के लिए अपनाना चाहिए लेकिन अपने देश की नैतिकता और भारतीय संस्कृति को भी ताक पर नहीं रखना चाहिए | पाश्चात्य विचारों के प्रभाव से भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली विघटित होती जा रही है । संयुक्त परिवार के विघटन में पाश्चात्य व्यक्तिवादी भावनाओं का बड़ा हाथ है ।

इससे आधुनिक युवक-युवती अपने को परिवार के लिए बलिदान कर देना और बड़ों के नियन्त्रण में जीवन व्यतीत कर देना मूर्खता समझते हैं । आधुनिक नारी सास-सुसर आदि के साथ रहने को अपनी  दासता समझ उनसे से घृणा करने लगती है । संयुक्त परिवार में फैशन आदि की भी स्वतन्त्रता नहीं रहती; एकान्त मिलने में भी कठिनाई होती है । इन सब मनोवैज्ञानिक कारण के अतिरिक्त नगरीकरण, औद्योगीकरण आदि के कारण उत्पन्न हुई सामाजिक गतिशीलता का भी संयुक्त परिवार के विघटन में महत्वपूर्ण हाथ है । पश्चिम के प्रभाव से केवल संयुक्त परिवार का विघटन ही नहीं हुआ है बल्कि परिवार छोटे भी होने लगे है । विवाह का आधार परिवर्तित हो जाने के कारण अब परिवार में बच्चों की संख्या कम होने लगी है । रीति-रिवाजों खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा आदि पर पश्चिम का अत्यधिक प्रभाव पड़ा है ।

व्यवहारिक और सामाजिक परिवर्तन समाज के हर स्तर पर हो रहे हैं | होने भी चाहिए क्योंकि जब तक बदलाव नहीं होगा तब तक हम सामाजिक कुरूतियों और कुंठाओं से बाहर कैसे आएँगे | लेकिन समाज में परिवर्तन सकारात्मक दिशा में होने चाहिए | जहां तक शिक्षा ने एक तरफ समाज को बहुत सी महत्त्व पूर्ण धारणाएं दी हैं वहीं वे सामाजिक मूल्यों को मानव के भीतर बनाए रखने में कामयाब नहीं रह पाई है | शिक्षा ने लोगों की सोच बदली है किन्तु अपनी संस्कृति के साकारात्मक मूल्यों की बलि देकर | क्योंकि एक परिवार जो सामाजिक मूल्यों का धरोहर कहा जाता है आज उसका विघटन हो रहा है | और इस विघटन से कोई भी समाज या इंसान अछूता नहीं रह गया है | कुछ हद तक मेरा परिवार भी नहीं |

मुझे अब अकेले में बैठकर चिंतन मनन करने से एहसास होता है कि ईश्वर ने मुझे कई बार इशारा किया कि, तेरे बच्चे अब हर मायने में समर्थ हो चुके हैं अत: अब समय आ गया है कि बदलते परिवेश में मैं परिवार के प्रति अपनी मोह माया छोड़कर अपने साथ-साथ उनके लिए भी स्वछंद जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करूँ | जब मैं अपनी लिखी आत्म कथा के पन्नों पर ध्यान आकर्षित करता हूँ तो मुझे एहसास होता है कि मुझे बहुत पहले ही समझ जाना चाहिए था कि पश्चिमी देशों की संस्कृति का असर मेरे परिवार पर हावी होने लगा था | परन्तु मैं जनरेशन गैप को न समझ अपनी भारतीय संस्कृति की गौरव गाथा में ही उलझा रहा | मसलन :

मैंने दिल्ली की भीडभाड से दूर गुरूग्राम के स्वछंद खुले वातावरण में एक मकान बनवाया था | मेरा विचार था कि मेरे दो लड़के हैं, अगर उनमें संयुक्त परिवार न निभ सका तो दोनों ऊपर नीचे रह लेंगे | पवन की शादी के बाद एक दिन चेतना ने बड़े ही साफ़ एवम विवेकशील शब्दों में मुझे कहा कि मेरा तथा उनका (प्रवीण) का विचार है कि अगर हमारी देवरानी अंजू गुडगांवा रहती है तो हम आपके पूर्वजों के स्थल पर ही रहना पसंद करेंगे | आगे आप जैसा विचार बनाएँ मुझे मंजूर है |

आज मुझे महसूस हो रहा है कि नई पीढी की चेतना को आभाष था कि वर्त्तमान युग में खुशी से जीवन जीने का मूल मन्त्र क्या है | उसे अंदाजा था कि आजकल की नई दुल्हन जब परिवार में आती है तो उसका पारिवारिक, शैशिक स्तर और जीवन जीने का तौर तरीका घर के सदस्यों से भिन्न होता है | वह चाहती है कि घर में उसकी भी कुछ अहमियत हो | हमेशा जिठानी के विचारों से  घर न चले | यदि जिठानी की कुछ गुणों के कारण तारीफ़ होती है तो उसके भी अन्य गुणों का गुणगान किया जाए | यही खींचातानी तनाव पैदा करने लगती है और घर में कलह का कारण बन जाती है | फिर एक दूसरे को नीचा दिखाने का सिलसिला शुरू हो जाता है | उसने यह भी सोचा होगा कि वह कितनी भी सहनशीलता और जिम्मेदारियां निभाए परन्तु देवरानी की किसी एक गल्ती पर उसे मेरी टोका टाकी पसंद नहीं आएगी और उसका रवैया प्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगा | इस प्रतिस्पर्धा में उसकी कही अच्छी बातें या अच्छा व्यवहार भी ईर्षावश देवरानी को आडम्बर या षड्यंत्र का हिस्सा नजर आएगा | अंतत: परिवार बिखरने का अंदेशा रहता है | कुछ दिन नारायणा रहते हुए अंजू ने कई अजीब हरकतें भी कि जैसे गश खाकर गिरना, पंखों का हिलना ढुलना बताना इत्यादि | यह भी चेतना की शंका का कारण रहा होगा कि शायद उसकी अंजू के साथ न पट सके |

परन्तु मेरी दिली इच्छा थी कि मेरा पूरा परिवार साथ रहे | इस बारे में अपनी पत्नी से सलाह मशवरा करने के बाद हम इस निषकर्ष पर पहुंचे कि प्रवीण  की नौकरी, बच्चों की पढाई तथा और काम काज के चलते उसका अपने परिवार के साथ अपने पुश्तैनी मकान में ही रहे तो उसके लिए हितकर रहेगा |

अंजू अपने सास ससुर के साथ गुडगांवा रहने लगी | इसका मतलब यह नहीं की सास ससुर गुडगांवा के ही होकर रह गए थे | वे महीने में दस बारह दिन अपनी मर्जी के मुताबिक़ चेतना के पास भी रह लेते थे | उन पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं थी कि उन्हें कहाँ रहना है | अगले दो साल का समय गुजर तो गया परन्तु घर में सौहार्द पूर्ण वातावरण का हमेशा अभाव ही रहा |

मैं भरसक प्रयत्न करता रहा कि अंजू खुश रहे परन्तु न जाने क्यों वह उखड़ी-उखड़ी सी रहती थी | फिर एक दिन न जाने क्यों वह आपे से बाहर होकर पालम विहार थाणे चली गयी | पवन भी उसके साथ था | मुझे इसका कोई आभाष न था | मुझे तो तब पता चला जब अचानक मेरे घर अंजू के हिमायती तथा मेरे हिमायती आ धमके | पता चला कि थाने में अंजू के पक्ष वालों ने बहुत अभद्र व्यवहार किया था | बाद में इस बारे में दोनों पक्षों की बैठक भी हुई जिसमें थाने में हुए अभद्र व्यवहार का बदला ले लिया गया परन्तु अंजू की बगावत का कारण पता न चला | मेरे घर के सारे सदस्य इस विचार के थे कि अंजू से पवन का तलाक करवा दिया जाए परन्तु पवन और मैं इस पक्ष में नहीं थे | अत: निर्णय के अनुसार अंजू अलग किराए पर रहने लगी |

मेरा मन पवन की तरफ से बहुत व्यथित रहता था कि अंजू के कारण वह छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे निभाएगा तथा भरी गर्मी में वह बिना ए.सी., फिरिज, पलंग इत्यादि के कैसे रहता होगा क्योंकि इस दौरान अंजू ने अपने बाप से मिले एक लाख मिलने की बात उठाई थी || खैर किसी तरह जुगाड़ भिड़ा कर तथा अंजू को अपनी सास के साथ कैसा व्यवहार करना है अच्छी तरह समझाकर मैं अंजू को फिर अपने साथ ले आया था | परन्तु थोड़े दिनों में ही ढाक के तीन पात वाली कहावत अजमाई जाने लगी |

इस पर मुझे अपने फूफा जी की बात याद आई कि कासन वाले बड़े कुम्मसल होते हैं और उनकी लडकियां तो ससुराल वालों की नाक में दम करके रखती हैं | यही नहीं उनके यहाँ ब्याही गयी लडकियां भी कभी सुखी नहीं रहती | यही नहीं मेरा एक साथी ओम प्रकाश भी कासंन की लडकी  जो उसकी ताई लगती थी का भुगत भोगी था | उसका भी मत का था कि कासन की लडकियां उस सर्प के सामान होती हैं जिसे कितना भी दूध पिला लो वह तुम्हारा नहीं हो सकता | अर्थात वहां की लडकी कब क्या बखेड़ा खडा कर दे तथा किस राह पर चल दे कुछ कहा नहीं जा सकता |

एक बार हमारा प्रोग्राम खाटू श्याम जी के दर्शन का बन गया | इसमें पवन के परिवार को छोड़कर हम सभी को जाना था | जाने वाले दिन प्रवीण का परिवार सुबह छह बजे गुडगांवा आ गया | परन्तु मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि सुबह सात बजे हमारे जाने तक अंजू अपने कमरे से बाहर तक नहीं निकली | उससे इतना भी नहीं हुआ कि बाहर निकल कर अपने सास –ससुर के लिए कुछ पूछना तो दूर सद्भावना दिखाते हुए अपनी जेठानी के लिए चाय भी पूछ ले |

मैं यह नहीं कहता कि संतोष (मेरी पत्नी) दूध की धुली हैं | परन्तु सास एक लम्बे अनुभव और उतार  चढ़ाव के बाद बनती है संभव है इस यात्रा में उसने कई अभावों और विषंगताओं को झेला हो इसलिए उसका स्वभाव एक नेता की तरह हो जाता है जिसे अपने साथ-साथ घर का भी संचालन करना होता है। घर की मालकिन न समझ एक बुजूर्ग के नाते घर के और सदस्यों की तरह बहू का फर्ज तो बनता है कि वह भी अपनी सास को सम्मान दे | दो चार घड़ी अपनी सास के पास बैठकर उसके दिल की बात सुनने के साथ अपनी भी बात बताए | परन्तु लाख समझाने के बावजूद अंजू के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया और सास-बहू में दूरियां बढ़ती रही | इसके चलते संतोष की मन:स्थिति पर बहुत असर पडा और वे डिप्रेसन का शिकार हो गयी |

इसके साथ अंजू की नौकरी ने आग में घी डालने का काम किया | वह सुबह जाकर शाम को घर में दर्शन देने लगी | स्कूल के बाद बच्चों को संभालने का काम संतोष के कन्धों पर आ गया | इसमें उसे कोई परेशानी नहीं थी परन्तु हद तो तब हो गयी जब स्कूल से आने के बाद तथा रविवार को अंजू ने सिर दर्द या थकावट का बहाना बनाकर घर का काम करने में ढिलाई दिखानी शुरू कर दी | ऐसी बहुत सी बातें थी जिससे जाहिर होता था कि अंजू हमसे आजाद होना चाहती थी | मुझे भी महसूस होने लगा था कि मेरे पास सब सुविधाएं होने के बावजूद मैं अपनत्व के मोह में फंस कर नाहक अपना सुख चैन खो रहा हूँ |

एक दिन पवन तथा अंजू के आपसी झगड़े में गुस्से में अंजू ने जब कहां कि वह अब यहाँ नहीं रह्रेगी और अपने दोनों बच्चों को लेकर कहीं चली जाएगी तो मेरी बुद्धी जाग्रत हुई और कहा, “तुम अकेली नहीं जाओगी पवन तुम्हारे साथ जाएगा |” और इसके साथ ही मैंने पवन को अपना आशियाना ढूढने की कह दी | इस बारे में जब मैनें अंजू के पिता जी को सूचना दी कि वह हमारे से अलग रहना चाहती है तो उन्होंने अपनी बेटी को समझाने की बजाय यह कह कर पल्ला झाड लिया कि यह आपके घर का मामला है अत: मैं कुछ नहीं कर सकता | इसके बाद कई दिनों तक लगातार पवन को कहने के बाद अलगाव का काम पूरा हुआ |

आज हमें अलग रहते लगभग दो वर्ष पूरे होने को हैं | इस दौरान पवन ने अपना एक मकान भी बनवा लिया है | अलग रहते हुए भी पिता-पुत्र ने अपने –अपने फर्ज भी बखूबी निभाए हैं | दोनों ही परिवार (शायद) लगभग संतुष्ट और खुश हैं | कारण मैंने वर्तमान युग की जीवन शैली की हकीकत, देर से ही सही, पर जान ली थी | परन्तु मलाल इस बात का है कि अंजू ने अपने मन की बात साफ़ न कहकर कई वर्षों तक कासन की लड़कियों की तरह नाम रोशन कर, कई प्रकार के हथकंडे अपना कर केवल वही पाया जो वह, चेतना की तरह, खुशी – खुशी स्वेच्छा से कहकर पा सकती थी |  

इति | ॐ शान्ति 

 

 

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