Tuesday, October 20, 2020

लघु कहानी (टूटी चप्पल)

 टूटी चप्पल

जून का महीना था | लगभग बारह बजे का समय था जब सूरज सिर पर होता है | चिलचिलाती धूप पड़ रही थी | लू का प्रकोप था | ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारा वातावरण आग  से घिरा हो | सड़कों पर मृग तृष्णा की लहरें सी बन रही थी | ठेली वाले, रिक्सा वाले, पानी बेचने वाले, तथा सड़कों के किनारे बैठकर सामान बेचने वाले जहाँ तहाँ पेड़ों की छाया को ढ़ूँढ़कर उनके नीचे जमघट लगाने पर मजबूर थे | 

श्याम अपनी पानी की रेहड़ी कलेज के गेट के पास लगाता था | वैसे तो दोपहर के वक्त उसके उपर पेड़ की छाँव रहती थी परंतु उगते सूरज तथा डूबते सूरज के समय उसकी रेहड़ी धूप से नहा जाया करती थी | उससे बचने के लिए श्याम ने अपने पास एक छतरी भी रखी हुई थी | 

लम्बी छुट्टियों के बाद आज कालेज खुले हुए तीन दिन ही बीते थे | नव जवान लड़के लड़कियाँ नए नए रंग बिरंगे परिधानों में कालेज की रौनक बढ़ा रहे थे | अधिअकतर विद्यार्थी चार पाँच के गुटों में बंटे नजर आ रहे थे | कुछ के चेहरों पर कालेज में पहली बार आने की खुशी झलकती थी तो कुछ अपने नए साथियों का साथ पाने की लालसा लिए चक्कर काट रहे थे | ऐसा लगता था जैसे नव जवानों के जोश के सामने चिलचिलाती गर्मी की लू तथा इतनी भयंकर उष्णता भी अपने को शर्मिन्दा महसूस कर रही थी | सभी ऐसे घूम रहे थे जैसे हताश करने वाली गर्मी न होकर वह बसंत ऋतु हो | हाँ, नव युवतियों पर गम्री के प्रकोप की झलक देखने को मिल जाती थी | 

शवेता ने इस कालेज में पाँच वर्ष बिताए थे | आज वह अपनी स्नातकोत्तर की डिग्री लेने कालेज आई थी | शवेता जब तक कालेज में पढ़ी उसने अपने नाम के स्वरूप सफेद कपड़े पहनना ही पसन्द किया | उसके दूसरे साथी रंग बिरंगे, चमकीले तथा भड़कीले परिधान पहन कर आते थे परंतु शवेता हमेशा शवेता ही बनी रही | वैसे शवेताके उपर सफेद रंग का पहनावा फबता भी खूब था | आज भी वह सफेद कुर्ता, सफेद चुड़ीदार सलवार,सफेद चुनरी तथा सफेद चप्पल पहनकर आई थी |

हालाँकि शवेता ने स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर ली थी परंतु कद काठी से वह ऐसी लगती थी जैसे कोई नई लड़की कालेज में दाखिला लेने आई हो | डिग्री लेकर वह वापिस अपने घर जाना चाहती थी | कालेज के गेट तथा कालेज की मुख्य इमारत के बीच लगभग आधा किलोमीटर का फासला था | शवेता ने गर्मी की तपन से बचने के लिए चुनरी से अपना सिर तथा मुहँ ढ़क लिया | आँखों पर धूप का चश्मा चढ़ाया तथा हिम्मत करके कालेज के गेट की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए | अभी उसने आधा रास्ता ही पार किया होगा कि उसकी एक चप्पल की तनी टूट गई |          

तपती दुपहरी,लू का प्रकोप, जमीन भी खुद सूरज की तरह आग का गोला बनी हुई थी | शवेता ने बेबस नजरों से चारों और देखा परंतु ऐसा कोई दिखाई नहीं दिया जो उसकी सहायता कर सकता हो | मरती क्या न करती साहस करके शवेता ने उन टूटी चप्पलों के सहारे ही उस आधा किलोमीटर जलते रेगिस्तान को पार करने की ठान ली | वह मुश्किल से दस कदम ही आगे बढ़ी होगी कि उसकी लचक लचक कर चलने वाली चाल देखकर मनचले युवकों का एक झुंड आया और फबती 'जरा धीरे रे चलो मेरी बाँकी हिरनियाँ ' कसता तथा हँसता हुआ आगे निकल गया | 

अगर किसी को पहले से ही यह ज्ञान हो कि अगले पल उसके साथ क्या व्यवहार होने वाला है और अगर उसके साथ वास्तव में ही वह घटना हो जाती है तो उस व्यक्ति विशेष को इतना दुख या महसूस नहीं होता क्योंकि वह तो उसे झेलने के लिए तैयार ही रहता है | शवेता को भी उन नौजवानों के व्यवहार से अधिक दुख नहीं हुआ क्योंकि वह जानती थी कि कालेज में पढ़ने वाले अधिकतर नौजवानों का एक जवान लड़की के प्रति कैसा रवैया रहता है |   

अचानक शवेता की नजर अपनी सलवार्,जम्फर तथा कंधे पर लटकती हुई चुनरी के पल्लू पर पड़ी | शायद उसकी टूटी चप्पल के कारण उसके चलने से जमीन की मिट्टी ने उछल उछल कर उसके सफेद कपड़ों पर दाग बना दिए थे | वह झुककर अपने सफेद कपड़ों पर लगे इन मिट्टी के दागों को झाड़कर साफ करने का प्रयास कर रही थी कि पास से गुजरते लड़कों ने एक और फबती 'हाय लागा चुनरी में दाग मिटाऊँ कैसे' यही नहीं एक  तो उसकी टूटी चप्पल देखकर उसकी सहायता करने के बजाय हँसता हुआ और कहता हुआ कि 'अब घर जाऊँ कैसे' आगे निकल गया | इसी तरह की न जाने कितनी हृदय बेधक  फबतियाँ शवेता को सुननी पड़ रही थी | 

श्याम ने दूर से शवेता की बेबसी को भाँप लिया | वह विद्युत वेग से अपनी सीट से उठा और अपना छाता लेकर शवेता की और दौड़ पड़ा | पलक झपकते ही वह शवेता के सामने जाकर खड़ा हो गया | शयाम ने अपनी पहनी हुई चप्पलों को उतार कर शवेता के आगे रखा तथा छाता खोलकर उसके उपर फैलाते हुए बड़े ही मार्मिक श्ब्दों में, जैसे उसका दिल शवेता की व्यथा को देखकर बहुत दुखी था, अपनी चप्पलों की तरफ देखकर बोला, "दीदी आप इन्हें पहन लो |"

शवेता ने पहले अपने सामने रखी श्याम की चप्पलों की तरफ देखा और फिर उसके नगें पैरों को निहारा | तपती जमीन के कारण श्याम कभी अपने पंजों पर खड़ा हो रहा था तो कभी अपनी एडियों पर खड़ा हो रहा था | उसकी हालत देखकर शवेता बोली,"आप कैसे जाओगे ?"

"आप मेरी चिंता न करें |"


"अरे जो मेरी इतनी चिंता कर रहा है भला मैं उसकी चिंता क्यों न करूँ ?"

"दीदी, गरीब के शरीर को हर प्रकार के अंगारे सहन करने की आदत हो जाती है |"

"फिर भी.....|"

"दीदी जल्दी करो, यह छाता पकड़ो, मेरी चप्पल पहनो और अपनी चप्पलें मुझे दो |"

शवेता को न जाने क्या हुआ कि वह श्याम की हर बात मानती रही और फिर पलक झपकते ही श्याम शवेता की टूटी चप्पलें हाथ में लिए नंगे पैरों अपनी पानी की रेहड़ी की तरफ दौड़ पड़ा |

शवेता चलते चलते सोचने लगी कि आजकल के पढ़े लिखे नौजवानों तथा इस अनपढ़ लड़के के व्यवहार,सोच एवं जज्बातों के बीच कितना बड़ा अंतर है |   

शवेता ने मनो विज्ञान की डिग्री में स्वर्ण पदक हासिल किया था | वैसे भी वह इतनी गुणी थी कि अब उसने आई.ए.एस्. की परीक्षा भी पास कर ली थी तथा इसी महीने शवेता को अरूणाचल में जाकर डिप्टी कलेक्टर का पद भार सम्भालना था | शवेता आज इसी वजह से कालेज से अपनी स्नातकोत्तर की डिग्री लेने आई थी | क्योंकि उसकी डिग्री देखकर ही उसे उसकी नौकरी का पदभार सम्भालने का फरमान दिया जा सकता था | कालेज के गेट पर पहुँचते पहुँचते शवेता ने अपने मन में एक दृड़ निशचय कर लिया था | 

शवेता को देखकर श्याम बोला,"दीदी मैं आपकी टूटी चप्पल अभी सिलवा कर ला देता हूँ | आप थोड़ी देर यहीं छाँव में रूको |" 

"नहीं, श्याम इसकी जरूरत नहीं है | ये पुरानी हो चुकी हैं | वैसे मैं नई चप्पलें खरीदने की सोच ही रही थी |"

"दीदी, अभी तो ये भी नई......|"

शवेता ने श्याम को बीच में ही टोककर पूछा," तुम कितने पढ़े लिखे हो ?" 

"दीदी, इस वर्ष दसवीं की परीक्षा दी है | परिणाम घोषित होने ही वाले हैं |" 

"कैसे पढ़ते हो ?"

"जब कालेज बन्द हो जाता है तो उसके बाद ही समय मिल पाता है |"

"कहाँ बैठकर पढ़ते हो ?"

"यहीं बैठकर और रात हो जाने पर इसी बिजली के खम्बे के नीचे बैठकर |"

"क्यों यहाँ क्यों ? घर में पढने की सहुलियत नहीं है क्या ?"

" घर में बिजली का कनेक्शन नहीं है |"

"कहाँ तक पढ़ने की आशा रखते हो ?"

"जहाँ तक मेरी कमाई मेरा साथ देगी |"

" कमाई के पीछे अपनी तमन्नाओं का गला घोट दोगे क्या ?"

""दीदी, मजबूरी सब कुछ करा देती है |"

"अगर तुम्हें कोई मजबूर न होने दे तब ?"

आज तक न जाने कितने ही लोग श्याम को ऐसा आशवासन दे चुके थे परन्तु किसी  ने भी उसे पूरा नहीं किया था इसलिए अपने मन के संशय को उजागर करते हुए श्याम ने कहा ," दीदी मैं आपकी बातों का आशय बखूबी समझ सकता हूँ परंतु  माफ़ करना ऐसा आशवासन मुझे बहुत बार मिल चुका है | अंजाम वही निकला है 'ढ़ाक के तीन पात ' | अपनी आँखों से औझल होते ही मैं उनके मन से भी औझल होकर रह जाता हूँ |"

शवेता ने बड़ी  द्रड़ता से जवाब दिया ," परन्तु मेरा दिया हुआ आशवासन मिथ्या नहीं होगा |"

जैसे दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है श्याम भी इतनी जल्दी शवेता की बातों पर विश्वास करने को राजी नहीं था अत पूछा ," वैसे दीदी मेरे किस व्यवहार ने आपको इतना प्रभावित कर दिया है कि आप इतनी बड़ी जिम्मेवारी का बोझ उठाने को उतारू हो गयी हैं |"

शवेता ने बड़ी शालीनता से धीरे धीरे कहा ,"श्याम इसके बहुत से कारण हैं परन्तु इनमें सबसे अहम मेरा अपना स्वार्थ है |"

श्याम आश्चर्य से शवेताकी और देखकर,"आपका अपना स्वार्थ ! "

"हाँ मेरा अपना स्वार्थ |"

" क्या मैं जान सकता हूँ कि वह क्या है दीदी"

शवेता ने बड़े ही मार्मिक होते हुए बताया," मुझसे राखी बंधवाने वाला कोई नहीं है |" और कहते कहते उसका गला भर आया |

श्याम को अभी भी  जैसे शवेता के कहने पर विश्वास नहीं हो रहा हो उसने जानना चाहा ," परन्तु मुझ जैसे गरीब ,काले कलूटे तथा एक अनजान बच्चे के बारे में आपने इतना बड़ा निर्णय लेने का कैसे सोच लिया |"

शवेता ने श्याम को समझाते हुए कहना शुरू किया | देखो श्याम तुम मेरे लिए अनजान नहीं हो | मैंने इस कालेज में पांच वर्ष गुजारे हैं | हालांकि मैं तुम्हारी इस पानी की रेहड़ी पर मुश्किल से ही कभी आई हूँगी परन्तु आते जाते तो तुम पर निगाह पड़ ही जाती थी | मैनें कभी भी तुम्हें समय को बेकार गवांते नहीं पाया था | तुम किसी न किसी काम में तल्लीनता से उलझे हुए ही दिखाई देते थे |इसमें तुम्हारा पढ़ना भी दिखाई देता था | काम के प्रति तुम्हारी लग्न को भांप कर मेरे मन में तुम्हारे प्रति अनजानी हमदर्दी बढ़ती गयी | और आज तो तुम्हारी हमदर्दी, इंसानियत तथा सेवा भाव देखकर मैनें प्रत्यक्ष ही महसूस कर लिया है |      

अब बात आती है काले कलूटे की | तो मनुष्य की चमड़ी का रंग उसके गुणों को नहीं ढांप सकता | भगवान राम , कृष्ण  तथा शिव शंकर भी तो काले थे | हम तुम तो उनकी तुलना में कहीं नहीं आते | इसको समझाने के लिए मैं तुम्हें एक गुब्बारे बेचने वाले का किस्सा सुनाती हूँ |  

एक गुब्बारे बेचने वाला रंग बिरंगे गुब्बारे बेच रहा था | उसके पास हरा,लाल,नीला, सफ़ेद, बैंगनी  इत्यादि रंगों के गुब्बारे थे परन्तु उनमें काले रंग का कोई गुब्बारा नहीं था | उसके अधिकतर गुब्बारे आकाश की और उड़ने की कोशिश कर रहे थे परन्तु उनमें से कुछ ऐसे भी थे जो ऊपर उड़ने की बजाय नीचे की तरफ लटके हुए थे | उनमें कोई भी काले रंग का गुब्बारा न देख एक बच्चे ने गुब्बारे वाले से जिज्ञासावश पूछा," क्या आपके पास काले रंग का गुबारा नहीं है ?"

"है बेटा काले रंग का गुब्बारा भी है |”

"तो आपने उसको यहाँ क्यों नहीं लटकाया | क्या वह इन रंग बिरंगे गुब्बारों की तरह ऊपर उड़ेगा नहीं  ?"

गुब्बारे वाले ने बच्चे को समझाते हुए कहा,"बेटा, गुब्बारे को ऊपर उड़ाने में उसके रंग का कोई महत्त्व नहीं होता | महत्त्व तो उस वस्तु का है जो गुबारे के अन्दर विद्यमान है | गुब्बारे के अन्दर भरी वस्तु ही उस गुब्बारे को आसमान की ऊंचाईयों छूने में सहायता करती है |"  

शवेता ने आगे कहा,  मैंने मनोविज्ञान पढ़ा है | इसलिए मैनें तुम्हारे अन्दर के उन गुणों को परख लिया है जो एक मनुष्य को गुब्बारे की तरह  शिखर तक पहुंचाने में सहायता करते हैं |

 शायद तुम नहीं जानते कि एक व्यक्ति के आचरण को तीन चीजें प्रभावित करती हैं | 

१. व्यक्ति के आस पास का माहौल जहाँ वह अपने जीवन का अधिक समय व्यतीत करता है |

२. उसकी सगत कि वह कैसे लोगों के साथ रहता है |

३. उसकी शिक्षा प्राप्त करने की लग्न |

मैनें महसूस किया है कि ये तीनों स्थिति तुम्हारे पास हैं जिनके कारण तुम उन्नति के पथ पर अग्रसर होने में सक्षम हो सकते हो | अगर थोड़ी सी आर्थिक सहायता के साथ साथ तुम्हें मार्ग प्रशस्त कराने वाला कोई मिल जाए |

तुम तो किसी के आश्रित नहीं हो परन्तु मैं तो अभी तक अपनी मम्मी जी पर आश्रित थी | अत: चाहकर भी मैं किसी की आर्थिक सहायता नहीं कर सकती थी | परन्तु अब मुझे एक अच्छी नौकरी मिल रही है | अब मैं किसी की आर्थिक सहायता करने में समर्थ हो जाऊँगी | 

तुमने अपनी नेक नियति, मृदुल भाषा, निस्वार्थ भाव, एवं सज्जनता के व्यवहार से मेरा मन जीत लिया है | मैनें यह भी जान लिया है कि तुम एक सर्वगुण संपन्न व्यक्ति हो | तुमने मुझे दीदी कहा है और एक आर्थिक स्थिति से मजबूत होने जा रही बहन का भाई गरीब नहीं हो सकता |

श्याम जो मूक द्रष्टि से अभी तक  सुनता रहा था शवेता द्वारा अपने लिए भाई का शब्द सुनकर भाव विभोर हो गया | उसकी आँखों से खुशी की अश्रुधारा बह निकली और आगे बढकर श्याम ने अपनी बहन के चरण छू लिए | शवेता ने श्याम को कंधों से पकड़कर ऊपर उठाया और गले लगाकर उसके सिर पर ममतामयी हाथ फेरने लगी | 

कालिज के गेट के बाहर पेड़ों की छाँव में  आराम कर रहे ठेले वाले,रिक्शा वाले इत्यादि तथा  कालेज के सभी विद्यार्थी जो वहां खड़े थे उनका मिलन देखकर आशचर्य चकित थे | वे लड़के जिन्होंने शवेता पर फब्तियाँ कसी थी अपने ऊपर ग्लानी महसूस करने लगे थे | जब शवेता ने जमा भीड़ को देखकर अपनी नजरें चारों और घुमाई तो उन लड़कों ने अपनी नजरें झुका ली |  उनकी जबान पर ताला पड़ गया था तथा सिर पर घड़ों पानी | अब  वे अपनी हरकत से जो उन्होंने शवेता के साथ की थी बहुत शर्मिन्दा जान पड़ते थे | 

इसके बाद शवेता ने श्याम को कुछ हिदायतें दी | उसका पता लिया और सामने की दुकान से नई चप्पलें पहन कर अपने घर की और चल दी | शवेता ने अपनी टूटी चप्पलों के बारे में कुछ नहीं पूछा तथा न ही श्याम ने इस बारे में उसे याद दिलाना उचित समझा | 

जैसे श्याम के व्यवहार ने शवेता के दिल में जगह बना ली थी उसी प्रकार शवेता के वचनों ने श्याम को बहुत उत्साहित कर दिया था | श्याम ने शवेता को अपने लिए एक देवी का प्रतिरूप समझते हुए, जैसे भरत ने अपने बड़े भाई श्री राम चन्द्र जी को अपना ईष्ट देवता समझते हुए उनकी खडाऊं को अपने सिर पर धारण कर लिया था उसी प्रकार, श्याम ने शवेता की टूटी चप्पलों को अपने सिर पर धारण कर लिया |       

 यही नहीं जिस प्रकार से  भरत ने अयोध्या जाकर श्री राम चन्द्र जी की खडाऊओं को सिंहासन पर विराजमान करके उनकी पूजा की थी उसी प्रकार श्याम ने भी शवेता की टूटी चप्पलों को अपने घर के एक आले में रखकर उनके सामने नित नेम अपना शीश झुकाने लगा तथा अपनी उन्नति की दुआ माँगने लगा |  

साथ साथ जैसे अरूणाचल में रहते हुए श्याम की बहन अपने  वचन को नहीं भूली तथा श्याम को उसकी जरूरतों के अनुसार आर्थिक सहायता भेजती रही | वैसे ही श्याम भी शवेता की आर्थिक सहायता के प्रति वफादार रहा और अपना फर्ज पूरा करते हुए देखते ही देखते मनोविज्ञान में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने में सफल हो गया | 

इन सात साल के लम्बे अरसे के दौरान वैसे तो शवेता एवं श्याम के बीच पत्र व्यवहार होते रहे थे परन्तु आपस में मिलना न हो सका था | श्याम के कालिज में दिक्षांत समारोह होने जा रहा था | इस वर्ष पास हुए विद्यार्थियों को डिग्रियां प्रदान की जानी थी | कालेज के उन सभी पुराने विद्यार्थियों को, जिन्होंने पिछले दस सालों के दौरान इस कालेज से डिग्री हासिल की थी, निमंत्रण पत्र भेजे गए थे | हालांकि शवेता भी कालिज की तरफ से निमंत्रित थी परन्तु श्याम ने भी अपनी तरफ से शवेता को एक मार्मिक पत्र लिखाकर उसे दिक्षांत समारोह में उपस्थित होने का आग्रह कियाथा|

निश्चित समय पर दिक्षांत समारोह का शुभारम्भ हो गया था | एक एक करके विद्यार्थियों के नाम पुकारे जा रहे थे | उन्हें डिग्रियाँ प्रदान की जा रही थी | श्याम बार बार मुड़ मुड़कर  हाल के दरवाजे की और देख रहा था | वह अपनी दीदी शवेता का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था | डिग्री हासिल करने के लिए उसका नाम कभी भी पुकारा जा सकता था | परन्तु उसकी देवी ने अभी तक दर्शन नहीं दिए थे | उसका दिल रोने को कर रहा था | अचानक  उद्यघोषणा हुई, " श्याम सुन्दर गुप्ता, स्वर्ण पदक विजेता |"

पूरा होल तालियों  की गड़गड़ाहट  से गूँज उठा परन्तु स्वर्ण विजेता होने के बावजूद श्याम अपना नाम सुनकर अपने स्थान से ऐसे उठा जैसे उसे अतिरिक्त नंबर देकर डिग्री लेन योग्य बनाया गया हो | डिग्री प्राप्त करने का हर्षोल्लास उसके चहरे तथा शरीर से नदारद था | उसकी गर्दन झुकी हुई थी | कदम ऐसे पड़ रहे थे जैसे  उसके शरीर में जान ही न थी |  ऐसा जान पड़ता था जैसे वह बहुत दिनों से बीमार चल रहा था तथा शरीर  में शक्ति  न के बराबर होने के कारण अब गिरा की तब गिरा | 

अचानक श्याम के पीछे एक शोर उठा तथा घोषणा हुई की हमारे बीच अरूणाचल की कलेक्टर कुमारी शवेता गुप्ता, जो हमारे ही कालिज की भूतपूर्व विद्यार्थी रही हैं, हमारे दीक्षांत समारोह की शोभा बढाने के लिए अभी अभी उपस्थित हुई हैं | कालिज की तरफ से उनका हार्दिक अभिनन्दन है | पूरा होल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो उठा | जैसे वर्षा के आने से सूखे पेड़ पौधों यहाँ तक की हर प्राणी में निखार आ जाता है और प्राणी का मन हर्षोल्लास से भरकर पुलकित हो उठाता है उसी प्रकार शवेता के आ जाने से श्याम जो अभी तक निर्जीव सा जान पड़ रहा था अचानक उसमें चेतना जागृत हो गई | वह पलक झपकते ही मंच पर जा पहुँचा | कालेज के गेट पर पानी लगाने वाले श्याम को मंच पर देखकर सभी लड़के हैरत में आ गए | किसी को भी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था | बहुतसे लड़कों ने तो अपने को चिऊटी काटकर विश्वास करना पडा की वे कोइ सपना नहीं देख  रहे हैं बल्कि उनके सामने एक हकीकत थी | उनकी समझ से बाहर की बात थी की कैसे एक रेहड़ी पर पानी बेचने वाला गरीब लड़का स्नातकोत्तर की डिग्री वह भी स्वर्ण पदक लेकर हासिल कर सकता है | सभी इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे कि कालिज के उपकुलपति ने अपना हाथ श्याम से मिलाने के लिए आगे बढ़ा दिया | तत्पशचात उपकुलपति ने श्याम की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए उसका स्वर्ण पदक तथा स्नातकोत्तर की डिग्री उसकी तरफ बढ़ाई | जब श्याम ने उनको ग्रहण करने के लिए कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो होल में उपस्थित सभी व्यक्तियों के अचरज का पारावार न रहा | इससे भी ज्यादा आशचर्य तो उन्हें तब हुआ जब श्याम ने आगे बढ़कर यह घोषणा की कि ' मैं समझता हूँ कि इस स्वर्ण पदक एवं डिग्री को प्राप्त करने का असली हकदार मैं नहीं बल्कि मेरे लिए देवी शरीक मेरी दीदी शवेता गुप्ता हैं' |       

 श्याम के शवेता  गुप्ता के नाम लेने से सारे होल में फुसफुसाहट फ़ैल गयी तथा उनकी  निगाहें शवेता के लिए  पूरे होल के चप्पे चप्पे को खोजती हुई सी नजर आने लगी | किसी को यह रती भर भी गुमान न था कि जिस शवेता गुप्ता के  आने का ऐलान अभी कुछ देर पहले हुआ था श्याम ने उसी का सम्बोधन किया था | और लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वास्तव में ही यह घोषणा हुई कि शवेता गुप्ता, कलेक्टर अरूणाचल प्रदेश, कृप्या मंच पर आ जाएं | शवेता के अपनी सीट से उठते ही होल में उपस्थित सभी व्यक्तियों की निगाहें शवेता का पीछा करने लगी तथा पूरा हाल एक बार फिर तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया | 

कालेज के उपकुलपति ने जैसे ही श्याम द्वारा अर्जित स्वर्ण पदक तथा स्नातकोत्तर  की डिग्री शवेता के हाथों में थमाई वैसे ही श्याम ने शवेता की पुरानी चप्पलों को अपने सिर पर धारण करते हुए कहा," मेरा असली स्थान यही है |"

फिर श्याम ने अपनी पूरी कहानी सुनाई कि कैसे शवेता के कारण वह आज इस मुकाम पर पहुँचने में सफल हुआ है | श्याम के  पूरी दास्तान बयान करने के बाद पूरा होल शवेता की जय जयकार से भर गया |                      

 शवेता ने अपनी टूटी चप्पलों को, जिनको श्याम ने अपने सिर पर धारण कर लिया था, झपट कर नीचे फेंक दिया तथा श्याम को अपने गले से लगाते हुए भाव विभोर हो उठी | ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे श्री राम चन्द्र जी के अयोध्या लौटने पर ही सिंहासन से उनकी खडाऊं हटाई गयी थी उसी प्रकार आज श्याम की देवी स्वरूप शवेता के आने पर श्याम को शवेता की टूटी चप्पलों को तिलांजलि देनी पड़ी | जब श्याम  ने झुककर शवेता के चरण छूने चाहे तो शवेता ने  एक झटके से उसकी कलाई पकड़ी और राखी बाँध दी| 

इसके बाद शवेता श्याम के हाथ को पकड़ कर उसे अपने साथ ले चली | श्याम भी गाय के साथ एक अबोध बछड़े की तरह, बिना किसी हुज्जत के, शवेता के साथ खिंचा चला गया | शवेता एवं श्याम को अपने पीछे होल में तालियों की गड़गड़ाहट तथा उनकी गूँज दूर तक सुनाई देती रही |     


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