Monday, March 18, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 2

 

आत्मीयता 

मुझे (लेखक को) बचपन से ही रात को सोने से पहले शुद्ध ताजा दूध पीने का शौक रहा है | फ़ौज में अपने परिवार के साथ रहने पर भी मेरी यह आदत नहीं छूटी | इसके लिए मैं हर जगह अपनी पोस्टींग की यूनिट के साथ लगते गावं के किसी दूध बेचने वाले से संपर्क करके उसे एक भैस खरीदवा देता था और दूध लेता रहता था |  

भारतीय स्टेट बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद मैंने अपना एक आशियाना हरियाणा के शहर गुडगांवा के प्रदूषण रहित खुले वातावरण में बना लिया तथा रहने लगा | अपनी दूध की इच्छा पूर्ती के लिए अपनी कालोनी के पास बसी एक पुरानी कालोनी में होशियार सिंह की डेयरी से संपर्क कर लिया | सोलह सत्रह भैसों वाली यह डेयरी एक एकड़ में थी | डेरी की साफ़ सफाई, भैसों का रखरखाव, उनके खाने पीने का उचित प्रबंध, वाजिब नाप तोल, ईमानदारी, पशुओं का रख रखाव करने वाले व्यक्तियों तथा मालिक का अपने ग्राहकों के प्रति व्यवहार कुशलता को देखते हुए बाजार भाव से थोड़ा अधिक कीमत चुकता करना भी मुझे वाजिब लगा |

इस डेयरी से दूध लेते हुए मुझे लगभग 10 वर्ष व्यतीत हो गए थे | प्रत्येक दिन की तरह एक दिन जब मैं वहां दूध लेने गया तो देखा की वहां बहुत बड़ा टेंट लगा था | अन्दर की सजावट भी मन लुभावनी थी | सामने एक स्टेज थी जिस पर एक फूलों से सजी कुर्सी पर एक प्रतिभाशाली दिखने वाले बुजूर्ग विराजमान थे | क्रीम रंग के मलमली कपडे से बना कुर्ता पाजामा, गले में मोतियों की माला के साथ रंगबिरंगे गुलाब के फूलों की माला, एक हाथ में घड़ी तो दूसरे में सोने का कडा, दोनों हाथों की उंगलियाँ सोने तथा हीरों की अंगूठियों से भरी, पाँव में चमकती जूतियाँ तथा सिर पर गुलाबी रंग की तुर्रेदार पगड़ी प्रभावित करती नजर आती थी | उनके चेहरे के तेज का आकर्षण इतना प्रभावशाली था कि देखने वाला अनायास ही उसकी ओर आकर्षित हुए बिना नहीं रह पा रहा था | हालांकि दूर दूर तक मेरा उनसे कोई रिश्ता नहीं था फिर भी अचानक मेरे पैर स्टेज की और बढे और मैनें उनके चरण छू लिए |

एक अनजान व्यक्ति से ऐसा सम्मान पाकर पहले तो वह बुजूर्ग कुछ आशचर्य चकित दिखाई दिया परन्तु जल्दी ही  भावविभोर होकर उन्होंने मुझे गले से लगाकर मेरे ऊपर आशिवादों की झड़ी लगा दी | बुजूर्ग के चारों और जमा लोगों ने, लगभग सौ से अधिक व्यक्ति, जो शायद /सभी उनके परिजन एवं सगे सम्बन्धी होंगे, हमारे मिलन का तालियाँ बजाकर स्वागत किया | इस वाकया ने मेरे तथा उस बुजूर्ग के बीच एक आत्मीयता का रिश्ता कायम कर दिया |   

इसके बाद मेरे मन में उन बुजूर्ग के जीवन के बारे में जानने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हो गयी | मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उनके पुत्र होशियार सिंह से मुझे पता चला कि उनका इस बार 103 वां जन्म दिन मनाया गया था | मेरी अब उन बुजूर्ग, जिनका नाम चन्दगी राम बताया गया था, के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी | मेरे विचार से वे जीवन के रहस्यों का पिटारा साबित हो सकते थे तथा मैं उनसे बहुत कुछ सीख सकता था | हालांकि उन्हें अब कुछ कम सुनाई देता था तथा शरीर के अनुपात में वजन ज्यादा था जिससे चलने में थोड़ी परेशानी होती थी अन्यथा उनका स्वास्थ्य बिलकुल ठीक था | इसलिए मैं उनकी सेहत का राज भी जानना चाहता था क्योंकि इस उम्र के पड़ाव पर भी उनकी गर्दन एक पहलवान की तरह भरी हुई थी | शरीर पर बुढापे की कोई झुर्री नजर नहीं आती थी | उनका हंस मुख चेहरा मेरे लिए पहेली बन गया था जिसको मैं सुलझाना चाहता था |

मैनें महसूस किया कि जैसे मैं चन्दगी राम जी से मिलने का इच्छुक था उसी प्रकार वे भी मेरे से बात करने के इच्छुक जान पड़ते थे | क्योंकि मैनें उनको पहले मुश्किल से ही कभी डेयरी पर आते हुए देखा था परन्तु उस दिन के बाद वे अक्सर अपने पोते के साथ फोर्चायूनर गाडी में वहां आने लगे थे | मैं आदर सत्कार दिखाते हुए उनसे राम-राम करता तो वे मुझे कुछ देर के लिए अपने पास बैठने को कहते | थोड़े दिनों की मुलाक़ात के बाद दोनों के बीच आत्मीयता बढ़ने से मेरी मनोकामना पूर्ण होने लगी जब मेरे आग्रह पर उन्होंने अपनी निजी जिन्दगी के रहस्य मेरे सामने खोलने शुरू कर दिए |

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