Thursday, March 28, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 3

 

माँ की मजबूरी -1

अक्सर देखा गया है कि बचपन में, अगर पापा जी के सामने, कोई मन की इच्छा पूर्ती नहीं हो पा रही है तो बच्चे अपनी फ़रियाद लेकर माँ के पास पहूँच जाते हैं और अधिकतर उनका बेड़ा पार हो जाता है | कभी कभी परिस्थितिवश हमें दूसरे अनजान को कभी भाभी, कभी बहन, कभी आंटी, कभी माता जी आदि से संबोधित करके रिश्ते बनाने पड़ते हैं | हालाकि प्राकृतिक द्रष्टि से तो ये सब हमारे कुछ नहीं लगते परन्तु कई बार माँ के अभाव में ये हमें वही संबल, स्नेह और संस्कार देती है जो हमें माँ से मिलता है | माना जाता है कि माँ परिवार रूपी बगीचे की बाढ़ का काम करती है परन्तु अगर बाढ़ ही बगीचे में फलते फूलते पौधों को नष्ट करने पर तुल जाए तब बगीचा वीरान होने के कगार पर आ ही जाता है ऐसे समय में केवल परमात्मा अर्थात भगवान ही उसे बचा सकता है |

चन्दगी जब से कुछ समझ ने लगा था उसने अपने बाप को हमेशा मेहनत करते ही देखा था | उसका बाप एक बुनकर था | लोग अपना सूत लाते और चन्दगी के बाप के सामने पटक कर कहते, देख ले रे भौडू पूरा दो किलो है |

भौडू हाथ जोड़कर कहता, मालिक ठीक है, परन्तु इसका बनाना क्या है?

अरे सर्दियां आने वाली हैं, खेस बना देना जो सुबह ओढ़ने के काम आ जाए |

ठीक है मालिक खेस बना दूंगा |

अरे यह तो मुझे भी पता है कि तू खेस बना देगा परन्तु ज़रा सफाई से बनाना |

नहीं मालिक, मन लगाकर बनाऊँगा |

देख ले अगर पसंद नहीं आया तो एक पैसा नहीं मिलेगा |

ऐसी नौबत नहीं आने दूंगा मालिक |

इन सारी वार्तालापों के बीच बहोड़ू राम हाथ जोड़कर ही खडा रहता | चन्दगी को आने वाले उन लोगों पर गुस्सा भी आता जो उसके बाप को बहोड़ू राम न कहकर भौडू बुलाते थे | चन्दगी कभी कभी अपने बाप की सहायता कर दिया करता था | उसने महसूस किया कि जितनी मेहनत सूत का कपडा बनाने में लगती थी उस लिहाज से उनकी मजदूरी बहुत कम थी | सूत को खेस में तबदील करने के लिए पहले उसे भिगोते थे | फिर सूखाने के बाद अट्टी बनाते थे | अट्टी के बल निकालने के लिए उसे कसकर चरखी पर लपेटा जाता था | अंत में उसे तानपूरे पर पूरा जाता था और खेस बनाना शुरू किया जाता था | मजदूरी के नाम पर मिलते थे केवल दो आने |

इन कामों में चन्दगी की माँ नानकी कोई हाथ नहीं बटाती थी |

वह इन कार्यों को हीन भावना से देखती थी | शायद उसके दिमाग में अपने पीहर जी जमादारी का घमंड था | वह अपनी वर्त्तमान जिन्दगी से समझौता नहीं कर पा रही थी | इसलिए बहोड़ू राम के कहने का भी उस पर कोई असर नहीं होता था | फिर भी एक वर्ष किसी तरह गुजर गया और इस बीच दिलीप का इस संसार में अवतरण हो गया | इसके बाद एक बार खर्चे कमाई से अधिक होते देख बहोड़ू राम ने जोर देकर अपनी पत्नी से अपनी सहायता करने के लिए कह भी दिया तो उसने सिर पर आसमान खडा कर दिया | उसने यहाँ तक ताने दे दिए कि अगर खर्चा उठाना बसकी नहीं था तो शादी ही क्यों की थी | पता नहीं तेरे जैसे फूहड़ तीतर को मेरे जैसी सुन्दर बटेर कैसे मिल गयी | मेरी तो किस्मत ही फूट गयी | नानकी ने इसकी शिकायत अपने भाईयों से भी कर दी | बिना कुछ सोचे समझे उसके भाई भी बहोड़ू राम के घर आ धमके और निर्लज्जता दिखाते हुए बोले, अरे ओ जीजा के बात सै ?

बहोड़ू राम   कुछ समझ नहीं पाया कि माजरा क्या था अत: पूछा, साले साहब आप किस बारे में कह रहे हैं ?

बड़ा साला गुर्राया, ज्यादा भोला मत बने | तन्ने म्हारी भैन न डांटा क्यूं ?

अरे भाई मैं तो उसे काम में अपना हाथ बटाने की कह रहा था |

देख जीजा साफ़ सुनले, काम करके कमाई करना सै तेरा काम वो तो चौका चुल्हा संभाल ले वही बहुत सै |

बहोडू राम ने भी शिकायत के लहजे में कहा, चुल्हा चौका भी तो वह ढंग से सम्भाल नहीं पाती |

छोटे साले ने अपनी बहन का पक्ष लेकर कहा, संभाले तै तब जब चौके में पूरा सामान हो |

बड़ा साला पीछे कहाँ रहने वाला था, देख जीजा, उसनै अब दिलीप नै भी देखना सै | जितना वो कर सकै उतना करन दे | ज्यादा टोका-टाकी अच्छी ना हो सै | और हाँ, अब म्हारे पास आगे कोई शिकायत ना आनी चाहिए |

ऐसी चेतावनी देकर नानकी के भाई चले गए |

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