Saturday, June 15, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 17

 

चन्दगी की निडरता

 

आत्म-ग्लानि मनुष्य के मन की एक भावना ग्रन्थि है जो जाने-अनजाने, भूलवश या असावधानी में किए गये गल्त आचरण पर अत्यधिक सोचने से पैदा हो जाती है। वैसे किसी भी दुष्कृत्य, गल्त आचरण पर मनुष्य को पश्चाताप अवश्य होता है और उस सीमा तक यह आवश्यक भी है जब मनुष्य भविष्य में वैसा न करने का संकल्प करता है । ऐसी स्थिति में पश्चाताप मनुष्य का उद्धार भी कर देता है। लेकिन जब यह सीमा से अधिक बढ़ जाता है तब आत्म-ग्लानि का रूप धारण कर लेता है। आत्म-ग्लानि की स्थिति में मनुष्य सुधार की ओर अग्रसर नहीं होता वरन् अपने आपको दुराचारी मान बैठता है। इस हीन भावना से उसकी कार्यक्षमता, सृजन-शक्ति व्यर्थ ही नष्ट होने लगती है। हीन विचारों में डूबे रहने से कई शारीरिक और मानसिक व्याधियां उत्पन्न हो जाती है।

आत्म-ग्लानि पैदा हो जाने पर मनुष्य अपने आपको पापी, दुष्ट समझकर धिक्कारता रहता है। वह सामाजिक जीवन में कोई काम करने में एक प्रकार का भय और घबराहट सी महसूस करता है। जो व्यक्ति आत्म-ग्लानि के बोझ से दबा हुआ है चाहे कितना ही योग्य, अनुभवी, जानकार क्यों न हो, वह प्रगति के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकेगा क्योंकि आगे कदम रखने से पूर्व ही जो अपने आपको दुराचारी मान बैठा है, दूसरों के साथ चार आँखें करने की जिसमें हिम्मत नहीं है, संकोच, शंकायें, भय जिसे कुछ करने नहीं देते, ऐसा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में सफल हो सके यह सम्भव नहीं। अत्यधिक आत्म-ग्लानि के कारण मनुष्य कई बार बिना अपराध के भी अपने आपको अपराधी मान बैठते हैं। ऐसी स्थिति में रास्ते में, बाजार में चलते हुए भी मनुष्य यह अनुभव करने लगता है कि दूसरे लोग उसकी तरफ ही देख रहे है और उसे बुरा समझ रहे हैं। इस भय के कारण वह दूसरों से नीची निगाह रखता है।

इस तरह के लोग जीवन भर आत्म-ग्लानि में डूबे रहते है। उसकी महत्वाकांक्षायें, आशा, अभिलाषायें, उमंगें असमय ही मुरझा जाती हैं और वे अपने जीवन को नष्ट कर लेते हैं। किसी सामान्य-सी भूल को बहुत महत्व देकर जीवन भर लज्जा, शोक में डूबे रहकर अपराधी की तरह मानसिक परेशानी में डूबे रहते हैं। कभी कभी ग्लानि से ग्रसित उनकी मन; स्थिति उन्हें समाज से दूर जाने या अपनी जीवन लीला को समाप्त करने पर बाध्य कर देती है |

द्वेष अथवा जलन या नफ़रत दूसरे के नुकसान करने की भावना से प्रेरित होती है | किसी की सफलता देखकर कुछ लोंगों के अन्दर यह भावना उपजने लगती है | किसी को अमीर बनते देख, कोई कार खरीद ले, कोई सुन्दर मकान बनवाले, कोई पढ़ लिखकर बड़े ओहदे पर लग जाए, कोई बाहुबली का खिताब जीत ले अथवा दूसरे के अप्रत्यासित विकास के कारण द्वेष पनपता है और इसके साथ ही पनपते है ईर्षा और प्रतिस्पर्धा के विचार | फिर अगर इन दोनों के सन्दर्भ में विचारों को सफलता नहीं मिली तो मनुष्य का मन ग्लानी से भर जाता है |

पहले तो ग्लानि की प्रवृति बहुत छोटी दिखाई देती है परन्तु कभी-कभी बड़े विनाश का कारण बन जाती है | इतिहास गवाह है कि हिटलर, जो जर्मनी का तानाशाह सम्राट था तथा पिछली सदी के दोनों विश्व युद्धों का कारण बना था, अपनी हार के बाद वह हीनता और आत्म ग्लानी से पीड़ित हो गया था | मन की इसी हीनता के चलते उसने सिद्ध करना चाहा कि वह सबसे उत्कृष्ट है | उसने भारी नर संहार करवा दिया परन्तु जब उसके मंसूबे पूरे नहीं हुए तो मन पर आत्म ग्लानि के बोझ ने उसे खुद ही आत्म ह्त्या करने पर बाध्य कर दिया था |

 

चन्दगी पहले से ही एक गबरू जवान था | अब उसने नौकरी छोड़कर अपनी जमीन खरीद कर खेती-बाडी का अपना धंधा शुरू कर दिया था | खेत की जुताई, बुआई, सिंचाई बहुत मेहनत का काम था तथा खेत को जोतने के लिए खेतों में हल चलाना तो बहुत ही परिश्रम मांगता था | खेती का काम करने से उसकी मांस पेशियाँ मजबूत हो गई थी इसलिए वह और भी बलिष्ठ हो गया था | वैसे तो वह किसी से भिड़ता नहीं था परन्तु अगर उसे कोई किसी भी आचरण के लिए ललकारता था तो वह पीछे नहीं हटता था तथा उसका चैलेन्ज स्वीकार कर लेता था |

एक बार चन्दगी अपनी मस्ती में झूमता, छाती फुला कर, चौड़े हाथ करके, ऊंची गर्दन किए हुए कहीं जा रहा था कि रास्ते में उसका सामना एक पहलवान से हो गया | पहलवान को उसके सामने चन्दगी की चलने की मुद्रा से बहुत जलन महसूस हुई | वह एक माना हुआ पहलवान था | उसे यह गंवारा नहीं हुआ कि एक अदना सा व्यक्ति उसके सामने चौड़ी छाती कर के निकल जाए | ज्यों ही चन्दगी उस पहलवान के पास से गुजरा उसने चन्दगी की बांह पकड़ कर उसे रोक लिया |

पहलवान बड़ी चौड़ी छाती है ?

चन्दगी ने कुछ जवाब नहीं दिया |

पहलवान चाल भी बहुत मस्त थी |

चन्दगी शांत रहा |

पहलवान ने चन्दगी को ऊपर से नीचे तक निहारा शरीर भी अच्छा खासा भरा है |

चन्दगी बिना कुछ कहे उसके सामने चौड़ी टांग किए खडा रहा | अब पहलवान के सब्र का बाँध टूट गया तो उसने चन्दगी की छाती पर एक धौल जमाते हुए कहा, कुछ दम भी है या शरीर यूं ही फुला रखा है ?

उसकी अचानक धौल से चन्दगी दो कदम पीछे हो गया |यह देख पहलवान जोर से हंसा, अरे तेरे अन्दर तो केवल हवा भरी दिखती है ?

चन्दगी जब इतने पर भी कुछ नहीं बोला तो पहलवान ने नजदीक आकर उसके जबड़े पकड कर पूछा, अरे मुंह में जबान नहीं है, गूंगा है क्या ?

उसका मुंह पकड़ना चन्दगी को रास नहीं आया | उसने जल्दी से उसका हाथ हटाकर पहलवान की कलाई पकड़ ली और बोला, तू क्या चाहता है ?

चन्दगी की हाथ का दबाव अपनी कलाई पर महसूस करके पहलवान को अंदाजा हो गया कि उसमें भी दम है फिर भी उसने अपने अहंकार वश कहा, तेरे से कुश्ती करना चाहता हूँ, मुझसे करेगा क्या ?

चन्दगी उसे टालने के लिहाज से बोला, मैं पहलवानी नहीं करता |

पहलवान तो इतना अकड़ कर क्यों चल रहा था ?

यह मेरी आदत है |

पहलवान गर्व से, यह इलाका मेरा है यहाँ से गुजरते हुए तुम्हें अपनी चाल-ढाल पर लगाम लगानी होगी |

अगर न लगाऊँ तो ?

तो पहले तुम्हें मुझे कुश्ती में हराना होगा |
हालांकि चन्दगी हट्टा-कट्टा छ: फुटा जवान था, मेहनती था, कड़ा परिश्रम कर सकता था, निरोगी था परन्तु वह कुश्ती के दांव पेंचों से अनजान था | वैसे जब चन्दगी ने उसकी कलाई पकड़ी थी तो उसने अंदाजा लगा लिया था कि उस समय पहलवान अपनी कलाई छुडाने में अपने को बेबस महसूस करने लगा था | 

इतना अंदाजा लगाकर चन्दगी को अपने एक साथी का सुनाया हुआ किस्सा याद आ गया | उसने बताया था कि वह भारतीय वायु सेना में भरती होकर बंगलौर गया था | ट्रेनिंग के दौरान वहां हर बड़े कमरे में दस लड़के रहते थे | उनमें एक पहलवान भी था | पहलवान अपने को सभी दूसरे साथियों से बेहतर समझता था | उसकी हर बात में अहंकार की बू आती थी | उनके साथियों में एक हरियाणा का ठेठ जट्ट भी था | वह हट्टा-कट्टा छ: फिट दो इंच का जवान था | वह शांत स्वभाव खाली समय में चारपाई पर लेटा-लेटा बीड़ी फूंकता रहता था | वह अपने में ही मस्त रहता था तथा किसी से उसकी अधिक दोस्ती भी नहीं थी | वह न किसी ले लेने में था न किसी के देने में | उसकी चारपाई उस पहलवान के सामने वाली पंक्ति में थी | पहलवान उस पर हमेशा तंज कसता रहता था, पड़ा रहता है, बीड़ी फूंकने के अलावा कोई काम नहीं, अनाज का दुश्मन है, पता नहीं इस शरीर का अचार डालेगा इत्यादि | वह जट्ट लड़का पहलवान की बे वजह की सारी खरी खोटी सुनता रहता था | एक दिन पहलवान कुश्ती का पदक जीत कर आया तो उस लड़के की और मुखातिब होकर बोला , है तेरे में हिम्मत इसे जीतने की | मुझे पता है तेरी माँ ने तुझे इतना दूध ही नहीं पिलाया होगा कि तू इसके बारे में सोच भी सके | कहकर पहलवान अपनी चारपाई पर जाकर लेट गया | लड़के ने कोई प्रतिक्रया नहीं दिखाई परन्तु थोड़ी देर बाद वह जट्ट लड़का अचानक धीरे से अपनी चारपाई से उठा, पहलवान की चारपाई के उस तरफ जाकर खडा हुआ जिस तरफ उसके पैर थे, शांत स्वभाव उसने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाये और पहलवान के दोनों पैरों को हाथ के पंजो से पकड़ कर पहलवान को ऊपर उठा लिया तथा ऐसे खडा हो गया जैसे कोई सांप पकड़ने वाला व्यक्ति सांप को पूंछ से पकड़ कर खड़ा हो जाता है | पहलवान बेबस अपने को उसकी पकड से छुटाने का व्यर्थ प्रयत्न करता रहा | जब लड़के ने भांप  लिया कि पहलवान निढाल हो गया है तो वह उसे चारपाई पर पटक कर फिर अपनी चारपाई पर जाकर लेट गया और अपनी बीड़ी सुलगा कर ऐसे दिखा जैसे उसके साथ कुछ हुआ ही न था तथा उसने कुछ किया भी नहीं था | परन्तु आठ लड़के तो उस घटना के प्रत्यदर्शी थे जिसके कारण पहलवान को इतनी शर्मिन्दगी तथा गिलानी हुई कि उसने अपना कमरा ही बदलवा लिया तथा फिर कभी उसने अपनी शेखी नहीं बघारी थी |        

चन्दगी को विचारों में खोया देख उसको चैलेन्ज देने वाला पहलवान बोला, क्यों हो गई सिट्टी-पिट्टी गुम ?

चन्दगी सिट्टी-पिट्टी गुम होने की तो कोई बात नहीं है |

फिर क्या है ?

सोच रहा हूँ क्या कहूँ |

सोचना क्या है आपस में मल्ल करना है |

चन्दगी चलो ठीक है, कभी कर लेंगे जोर आजमाईश |

पहलवान कभी का क्या मतलब, आज ही निर्णय कर लेते हैं |

चन्दगी आज ! अभी तो मैं किसी काम से जा रहा हूँ |

पहलवान बहाने मत बना | अगर तू असली माँ-बाप का है तो अभी हो जाए भिड़ंत |

माँ-बाप का नाम सुनते ही चन्दगी का खून खौल उठा और उसकी तरफ उंगली का इशारा करके बोला, खबरदार माँ-बाप का नाम मत ले |

पहलवान तो फिर डरता क्यों है ?

इस बार चन्दगी भी पीछे नहीं रहा और बोला डरता होगा तेरा बाप, मैं किसी से नहीं डरता, चल आजा, अगर तेरी यही इच्छा है कि फैसला आज ही हो जाए तो हो जाए, बोल कहाँ भिड़ेगा |

पहलवान सोच रहा था कि चन्दगी तो पहलवानी में अनाड़ी है, इसे ऐसी जगह पटकूंगा कि इसका पूरा शरीर ही छिल जाए और यह लहूलुहान हो जाए | यही सोच उसने उस जगह की तरफ इशारा किया जहां सड़क के एक तरफ बजरी पड़ी थी |

जब उनकी आपस में बात चीत चल रही थी तो ऊंटों का एक कारवाँ वहां से गुजर रहा था | वे अपने ऊंटों को दाना पानी देने का विचार कर ही रहे थे कि उनकी बात सुनकर उन्होंने वहीं डेरा डाल दिया कि चलो उनकी कुश्ती से थोड़ी देर के लिए कुछ मनोरंजन भी हो जाएगा | देखते ही देखते पहलवान के गाँव के कुछ लोग और बच्चे भी जमा हो गए | दोनों ने कपड़े उतारे और भिड़ गए | शुरू में दोनों एक दूसरे की ताकत का अंदाजा लगाते रहे | पहलवान अपनी कलाई चन्दगी के हाथ में देने से बचाता रहा क्योंकि उसने भांप लिया था कि चन्दगी की पकड़ से छूटना बहुत मुश्किल हो जाएगा | और एकबार पकडाए में आ गया तो चन्दगी उसे घसीटकर नीचे पटक देगा | दोनों जवान थे एक को पहलवानी का तजुर्बा था तो दूसरे को खेतों में परिश्रम करने की आदत | काफी देर तक दोनों जोर आजमाईश करते रहे | जब किसी का दांव भारी पड़ने लगता था तो लोग तालियाँ बजा-बजा कर उसकी हौसलाफजाई करने लगते | पहलवानी की जोर आजमाईश तो अधिकतर एक घंटे के लगभग चली है परन्तु खेतों में तो कई घंटों का परिश्रम एक साथ करना पड़ता है | धीरे धीरे पहलवान के दांव पेच में थकावट के कारण शिथिलता दिखाई देने लगी परन्तु चन्दगी अभी भी पूरे जोश में था |

चन्दगी को, जब वह सी..डी. में मजदूरों में भरती हुआ था तो वहां भारी-भारी सामान सिर से ऊपर उठाने का अभ्यास हो गया था | जब उसने जांच लिया कि पहलवान में अब ज्यादा दम नहीं रहा तो उसने एक झटके से उसे अपने दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाया और धडाम से नीचे पटक दिया | उसके नीचे गिरते ही लोगों ने चन्दगी की जय के नारे लगाते हुए उसे अपने कन्धों पर बिठा लिया | परदेशियों के सामने हार जाने से इतनी शर्मिन्दगी महसूस नहीं होती जितनी अपने लोगों के हज्जुम के सामने वह भी उससे जिसको अहंकार वश खुद ही भिड़ने का न्यौता दिया हो | इस हार से पहलवान को इतनी गिलानी हुई कि वह चुपचाप उठा और चला गया यहाँ तक की अपने परिवार से भी मिलाने फिर कभी अपने गाँव वापिस नहीं आया | हालांकि चन्दगी का इसमें कोई दोष नहीं था फिर भी उनके परिवार की लाचार और बेबस आँखों को देखकर खुद भी दुःख का आभाष करता रहा |             

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