Wednesday, September 4, 2024

सुखद अंत

 

चन्दगी कोई नेता नहीं थे | वे न तो कभी किसी नेता के जलसे में गए तथा न ही कभी किसी नेता के पिच्छ लग्गू बनें | यहाँ तक कि उन्होंने कभी भी किसी भी नेता से कोई काम नहीं निकलवाया | चन्दगी कोई गुरू भी नहीं थे  परन्तु वे अपने आपमें एक पूरक व्यक्ति थे | गाँव क्या अपने रिश्तेदारों में उनकी एक अलग पहचान थी | एक अच्छे सलाहकार होने की वजह से उनकी ख्याती दूर दूर तक फ़ैली हुई थी |

चन्दगी को सादगी बहुत पसंद थी | वे सादा कपड़े ही पहनते थे | आजकल की तरह मैचिंग करके कपड़े पहनना उनको आता ही न था | खाने में वे अधिक मिर्च मसाले पसंद नहीं करते थे | दूध पीने के वे बहुत शौक़ीन थे | सुबह नाश्ते में तथा रात को सोते समय उनका दूध लेना अनिवार्य था | घर से बाहर किसी काम को जाते हुए वे घर का खाना साथ ले जाना कभी नहीं भूलते थे | अड़ी भीड़ में वे चौका, चूल्हा, खाना बनाना तथा बच्चों की परवरिश करने में भी माहिर थे | यहाँ तक की स्नान आदि से निवृत होकर वे अपने कपड़े खुद धो लेते थे | वे कहा करते थे कि अपना काम स्वयं करने में कैसी शर्म बल्कि अपने सामर्थ के अनुसार मनुष्य को हमेशा काम करते रहना चाहिए | इस बारे में वे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी का उदाहरण बड़ी शान से दिया करते थे कि गांधी जी तो अपना स्नानघर भी खुद ही साफ़ किया करते थे | इसलिए अगर काम करते हुए उन्हें कोई टोकता था तो वे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी जी का उदाहरण देकर उसे चुप करा दिया करते थे | 

वे बड़े दयावान व्यक्ति थे | दूसरों का दुःख देखकर वे इसे अपना दुःख समझते तथा परेशानी से घिरे व्यक्ति की हर संभव सहायता करने की कोशिश करते थे | पीड़ित व्यक्ति की सहायता करते समय उन्होंने कभी इस और ध्यान नहीं दिया कि सामने वाले ने कभी उसके साथ अभद्र व्यवहार भी किया था | उस समय उनका एक ही ध्येय रहता था सहायता, सहायता और सहायता | वे तन मन धन से अपने सामर्थय अनुसार ऐसा काम करने को हमेशा तत्पर रहते थे | यही कारण रहा कि हरियाणा के कार्टर पुरी, चौमा, दौलताबाद तथा आसपास के ग्रामीण अभी भी चन्दगी के गुण गाते थकते नहीं क्योंकि उसकी सहायता के कारण ही उनके पक्के मकान बन पाए थे |

चन्दगी का मनोबल बहुत ऊंचे दर्जे का था |

ईशवर में आस्था का उनके लिए यह मतलब कतई नहीं रहा कि वे घंटों बैठकर भगवान का ध्यान करते थे या पूजा अर्चना करते रहते थे | भारतवर्ष का शायद ही कोई ऐसा धार्मिक स्थल होगा जो उन्होंने भ्रमण न किया हो परन्तु  वे वहाँ किसी मकसद को पूरा करने के इरादे से कभी नहीं गए | उन्होंने धार्मिक स्थलों पर जाकर कभी भी किसी प्रकार की कोई याचना नहीं की तथा कोई मन्नत नहीं माँगी |

वे हमेशा से अपने घर के मंदिर के सामने तथा फिर अपने पूज्य माता-पिता की तस्वीर के सामने हाथ जोडकर यही प्रार्थना करते थे, हे भगवान जो गल्ती हो सो माफ कर, ताकत दे, इज्जत दे, निरोग बना, शक्ति दे शुद्ध विचार दे सफलता दे | शायद उनकी इस छोटी सी पूजा के कारण ही, जो वे अपने अंतर्मन मन से, एकाग्र चित्त होकर करते थे, अनपढ़ होते हुए भी उन्नति के शिखर पर पहुँचने में कामयाब हुए | घर के सभी सदस्य उनकी पूजा की विधी से अचम्भित थे | सभी सोचते थे कि क्या चन्दगी की वह पूजा वास्तव में पूजा थी | क्या भगवान चन्दगी की एक वाक्य की पूजा को रोज दोहराने से खुश हो जाते होंगे | अधिकतर लोगों के विचार से तो ईशवर को खुश करने के लिए मनुष्य को घंटों एकाग्रचित होकर, ध्यान मग्न रहकर, भगवान की प्रतिमा के सामने धूप, अगरबती, चन्दन तथा माल्यार्पण करके संस्कृत की ऋचाएं बोलकर फल, फूल, बेलपत्र, दूध, दही, शहद इत्यादि अर्पण करके ही मोक्ष, सुख, शान्ति तथा संतोष की प्राप्ति हो सकती है | परन्तु चन्दगी ऐसा कुछ नहीं करते थे | 

चन्दगी को, जब से उसने होश सम्भाला, को जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहा | अपनी सामाजिक हैसियत के अनुसार उनके पास सब कुछ था | जो उन्हें मिलता था वे उससे संतुष्ट रहते थे | अगर किसी काम में कोई ऊंच नीच हो जाती थी तब उनके मुख से यही निकलता था कि भगवान की जैसी मर्जी | मैंने उन्हें भगवान पर दोष थोपते हुए कभी नहीं सुना | अपने जीवन काल में अपनी गलतियों के कारण, अगर कोई थी, वे कभी दण्डित नहीं किए गए |              

भगवान ने उन्हें वे सभी मनोकामनाएं प्रदान कर दी थी जो उनके मुख से पूजा के समय निकलती थी | सफल जीवन वही होता है जब बिना किसी बड़ी रुकावट, स्वस्थ शरीर, सुख व संतुष्टि के साथ सुचारू रूप से आत्मा एक उत्कृष्ट जीवन जीते हुए ईशवर में विलीन हो जाए | ऐसी ही जिन्दगी जीते हुए चन्दगी राम निभोरिया की आत्मा परमात्मा में 22-01-2022 को विलीन हो गई |

                     

 


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