Tuesday, July 16, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 22

 

नेक नियत का फल

एक राजा बहुत बड़ा प्रजापालक था, हमेशा प्रजा के हित में प्रयत्नशील रहता था. वह इतना कर्मठ था कि अपना सुख, ऐशो-आराम सब छोड़कर सारा समय जन-कल्याण में ही लगा देता था . यहाँ तक कि जो मोक्ष का साधन है अर्थात भगवत-भजन, उसके लिए भी वह समय नहीं निकाल पाता था.

एक सुबह राजा वन की तरफ भ्रमण करने के लिए जा रहा था कि उसे एक देव के दर्शन हुए. राजा ने देव को प्रणाम करते हुए उनका अभिनन्दन किया और देव के हाथों में एक लम्बी-चौड़ी पुस्तक देखकर उनसे पूछा- महाराज, आपके हाथ में यह क्या है?”

देव बोले- राजन! यह हमारा बहीखाता है, जिसमे सभी भजन करने वालों के नाम हैं.

राजा ने निराशायुक्त भाव से कहा- कृपया देखिये तो इस किताब में कहीं मेरा नाम भी है या नहीं?”

देव महाराज किताब का एक-एक पृष्ठ उलटने लगे, परन्तु राजा का नाम कहीं भी नजर नहीं आया.

राजा ने देव को चिंतित देखकर कहा- महाराज ! आप चिंतित ना हों , आपके ढूंढने में कोई भी कमी नहीं है. वास्तव में ये मेरा दुर्भाग्य है कि मैं भजन-कीर्तन के लिए समय नहीं निकाल पाता, और इसीलिए मेरा नाम यहाँ नहीं है.

उस दिन राजा के मन में आत्म-ग्लानि-सी उत्पन्न हुई लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इसे नजर-अंदाज कर दिया और पुनः परोपकार की भावना लिए दूसरों की सेवा करने में लग गए.

कुछ दिन बाद राजा फिर सुबह वन की तरफ टहलने के लिए निकले तो उन्हें वही देव महाराज के दर्शन हुए, इस बार भी उनके हाथ में एक पुस्तक थी. इस पुस्तक के रंग और आकार में बहुत भेद था, और यह पहली वाली से काफी छोटी भी थी.

राजा ने फिर उन्हें प्रणाम करते हुए पूछा- महाराज ! आज कौन सा बहीखाता आपने हाथों में लिया हुआ है?”

देव ने कहा- राजन! आज के बहीखाते में उन लोगों का नाम लिखा है जो ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय हैं !

राजा ने कहा- कितने भाग्यशाली होंगे वे लोग ? निश्चित ही वे दिन रात भगवत-भजन में लीन रहते होंगे !! क्या इस पुस्तक में कोई मेरे राज्य का भी नागरिक है ? ”

देव महाराज ने बहीखाता खोला , और ये क्या , पहले पन्ने पर पहला नाम राजा का ही था।

राजा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा- महाराज, मेरा नाम इसमें कैसे लिखा हुआ है, मैं तो मंदिर भी कभी-कभार ही जाता हूँ ?

देव ने कहा- राजन! इसमें आश्चर्य की क्या बात है? जो लोग निष्काम होकर संसार की सेवा करते हैं, जो लोग संसार के उपकार में अपना जीवन अर्पण करते हैं. जो लोग मुक्ति का लोभ भी त्यागकर प्रभु के निर्बल संतानो की सेवा-सहायता में अपना योगदान देते हैं उन त्यागी महापुरुषों का भजन स्वयं ईश्वर करता है. ऐ राजन! तू मत पछता कि तू पूजा-पाठ नहीं करता, लोगों की सेवा कर तू असल में भगवान की ही पूजा करता है. परोपकार और निःस्वार्थ लोकसेवा किसी भी उपासना से बढ़कर हैं. कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की ईच्छा करो तो कर्मबंधन में लिप्त हो जाओगे.राजन! भगवान दीनदयालु हैं. उन्हें खुशामद नहीं भाती बल्कि आचरण भाता है.. सच्ची भक्ति तो यही है कि परोपकार करो. दीन-दुखियों का हित-साधन करो. अनाथ, विधवा, किसान व निर्धन आज अत्याचारियों से सताए जाते हैं इनकी यथाशक्ति सहायता और सेवा करो और यही परम भक्ति है..

राजा को आज देव के माध्यम से बहुत बड़ा ज्ञान मिल चुका था और अब राजा भी समझ गया कि परोपकार से बड़ा कुछ भी नहीं और जो परोपकार करते हैं वही भगवान के सबसे प्रिय होते हैं।

हमारे पूर्वजों ने कहा भी है- परोपकाराय पुण्याय भवतिअर्थात दूसरों के लिए जीना, दूसरों की सेवा को ही पूजा समझकर कर्म करना, परोपकार के लिए अपने जीवन को सार्थक बनाना ही सबसे बड़ा पुण्य है. और जो व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने के लिए आगे आते हैं, परमात्मा हर समय उनके कल्याण के लिए यत्न करता है और इसकी पूर्ती के लिए ऐसे लोगों की संगत नसीब करा देता है जो व्यक्ति विशेष का मार्ग दर्शक बन जाता है |

देहली के नारायणा गाँव का ठेकेदार, चंद्रभान, एक मानी हुई हस्ती बन चुका था | उसके पास नौ रोड रोलर, बीस टट्टू ठेले, ठेकेदारी में काम आने वाले असंख्य सामान, कई जीप तथा कारें थी | वह देहली का माना हुआ एक नंबर का ठेकेदार था | वह कई बड़े-बड़े पुल बना चुका था | अब उसने नारायणा से गुजरने वाली रेलवे लाइन के ऊपर से पुल बनाने का ठेका लिया था | हालांकि माल ढोने के लिए उसके पास खुद के 20 टट्टू ठेले थे परन्तु काम बड़ा होने की वजह से उसने कुछ बाहरी ठेलों को भी काम में लगाना उचित समझा |

चन्दगी ने सुन रखा था कि ठेकेदार चंद्रभान बहुत दयालू, दानी, वचन का पक्का, समय पर पैसा देने वाला तथा ईमानदार व्यक्ति है | इसलिए उसने भी ठेकेदार चंद्रभान के पुल के काम पर अपना ठेला भी लगा दिया | चन्दगी का ठेला उसका भाई चलाता था तथा उसे राजोकरी की पहाड़ियों से पत्थर ढ़ोकर जहां पुल बन रहा था वहां लाना होता था | पहाड़ की तलहटी पर एक नाका बनाया गया था जिससे आने-जाने वाले ट्रकों का हिसाब-किताब रखा जाता था |

इन दिनों देश में भर्ष्टाचार पनपने लगा था | मनुष्यों में पैसे कमाने की होड़ लग चुकी थी | वे किसी भी तरह, चाहे नैतिक हो या अनैतिक रास्ते, पैसा कमाना चाहते थे | चंद्रभान के दो भाई थे | उनके प्रति चंद्रभान के दिल में संवेदना थी इसी के चलते उसने एक भाई को अपने यहाँ अंदरूनी काम काज (मजदूरों का हिसाब रखना, गाड़ियों में पैट्रोल डलवाना तथा उनकी मरम्मत करवाना इत्यादि) संभालने का काम दे दिया तो दूसरे को परिवहन अर्थात ठेलों का सारा जिम्मा सौंप दिया | इतना ही नहीं अंदरूनी जिम्मा संभालने वाले भाई को उसने एक मर्सिडीज कार तथा एक रोयल एंड फिल्ड मोटर साईकिल भी दे दी जिससे उसे अपना काम की देखभाल करने में कोई तकलीफ न हो | दूसरे भाई को एक टट्टू ठेले का मालिकाना हक़ भी दे दिया जिससे वह काम करते-करते दूसरों की देखभाल भी कर सके |    

राजोकरी पहाड़ी की तलहटी में बने नाके से जब भी कोई ठेला भरकर बाहर निकलता था तो चुंगी वसूली जाती थी और एक रसीद काटी जाती थी | ठेकेदार के दोनों भाईयों ने नाके पर तैनात व्यक्ति से मिलकर पैसा कमाने की तरकीब को अंजाम दिया | नाके से 15 भरे ठेले गुजरने पर वहां का तैनात व्यक्ति केवल दस पर्चियां काटता था और 15 भरे ठेले काम की जगह पहुचने पर 18 दिखा दिये जाते थे | इस तरह ठेकेदार के हिसाब में 18 ठेलों के पत्थर का हिसाब चढ़ाया जाता था | ऐसा करने से पांच ठेलों के पैसे नाके वाला तथा चन्दगी का भाई आपस में बाँट लेते थे तो तीन ठेलों के पैसे ठेकेदार का भाई हडप जाता था |

एक बार चन्दगी का भाई बीमार हो गया तो वह खुद ठेकदार के यहाँ हिसाब करने पहुँच गया | नाके की पर्चियों के हिसाब से उसके 300 चक्कर बनते थे परन्तु उसे 450 चक्करों का पैसा दिया गया | इतना पैसा ज्यादा देखकर चन्दगी को बहुत आश्चर्य हुआ अत: पूछा, इतना कैसे ?

मुनीम- हिसाब से इतना ही बनता है, रख लो |

चन्दगी परन्तु .....?

मुनीम देखो, मेरे पास जो सूचना है उसके हिसाब से तुम्हारा इतना ही बनता है अगर तुम्हें कुछ कमी-बेशी लग रही है तो छोटे मालिक से बात कर लो |

कमरे से बाहर आकर चन्दगी ने कई बार नाके से मिली पर्चियों को देखा और उतनी ही बार अपने हाथ में पकड़े रूपयों को देखा | जब उसकी कुछ समझ नहीं आया तो पहले तो मुनीम के कहे अनुसार उसने छोटे मालिक के पास जाने की सोची परन्तु फिर यह सोचकर कि पहले अपने भाई से ही इसका अंदाजा लेना ठीक रहेगा उसने अपने घर की राह पकड़ ली |

घर पहुंचकर अर्जुन, तेरे कितने रूपये निकलते थे ?

गूगन ने असमंजसता से उल्टा प्रशन किया, क्यों क्या बात हो गई ?

चन्दगी जेब से रूपये निकाल कर, मुझे लगता है उन्होंने कुछ ज्यादा ही दे दिये हैं |

कितने दिये हैं ?

तुम्हारी पर्चियों के हिसाब से ड्योढ़े दिये हैं |      .

हिसाब ठीक है भाई |

चन्दगी असमंजसता से, कैसे ठीक है ?

गूगन ठेकेदारी में ऐसा ही होता है, भाई |

दलीप- ठेकेदारी में कब से काम का ड्योढ़ा मिलने लगा है ?

गूगन बात ऐसी है कि यह हमारी आपस की सहमती से होता है |

दलीप- किस किस की सहमती से ?

गूगन कुछ खीजकर - भाई आपको इससे क्या मतलब, आपको पैसे मिल रहे हैं न |

चन्दगी मिल तो रहे हैं परन्तु मुझे लगता है इसमें हराम के पैसे मिले हुए हैं |

चन्दगी की बात का जब गूगन उत्तर न दे सका तो चन्दगी ने थोड़ी ऊंची आवाज में पूछा, मैं ठीक कह रहा हूँ न ?

हाँ |

इन रूपयों में कौन-कौन भागीदार हैं ?

गूगन यह केवल मेरा हिस्सा है | औरों का हिस्सा इसी तरह छोटे मालिक देते हैं |

चन्दगी इसका मतलब तुम्हारे दोनों छोटे मालिक अपने भाई से ही गद्दारी कर रहे है ?

यह सोचकर चन्दगी का मन खिन्न हो गया कि जो भाई अपने छोटे भाईयों पर विश्वास करके एक महत्त्व पूर्ण काम का जिम्मा उन्हें संभाल देता है वही भाई उसकी उन्नति में सहायक बनने की बजाय उसकी जड़ें ही काटने में लगे हैं | उसने गूगन को हराम की कमाई से अपने ऊपर बीती आपदाओं का स्मरण कराया कि ऐसी कमाई का हश्र बड़ा दुखदायी होता है क्योंकि बन्दा जोड़े पली-पली और राम बढ़ाए कुप्पाअर्थात काली कमाई दुगनी होकर वापिस चली जाती है | तथा कहा कि आगे से वह ऐसे किसी धंधे में लिप्त न हो | इसे हमारा नसीब ही समझो कि हमें इतना बड़ा, शालीन, ईमानदार तथा विश्वशनीय ठेकेदार मिला है जो निस्वार्थभाव से सभी से एक जैसा व्यवहार करता है | इसलिए अपने व्यवहार में भी उसकी आदतों को शामिल करने का प्रयास करो तथा, अगर तुम्हारा कोई नुकसान न हो तो, दूसरों के दुःख दर्द में हिस्सा लेने का प्रयास करो | सच्ची, ईमानदारी से कमाया पैसा, दूसरों के साथ सदव्यवहार तथा परोपकारी रास्ता ही संतुष्ट जीवन की ओर अग्रसर करता है | और जीवन में संतुष्टि से बड़ी कोई नियामत नहीं होती | फिर चन्दगी ने गूगन को हिदायत दी कि अब तक जो पैसा गल्त तरीके से कमाया है उसका हिसाब करके मंदिर की दान पेटी में डाल दे |

बाद में पता चला कि चंद्रभान से छोटे भाई का स्वास्थ्य जवानी में ही उसका साथ छोड़ गया और अपाहिज हो गया | उसके बच्चे पढ़ न पाए तो अच्छा काम क्या करते | वे मजदूरी या कुछ छोटा-मोटा काम करके जीवन यापन करने पर मजबूर हो गये | छोटे भाई की भी आकस्मिक मृत्यु हो गई | उसके दोनों लड़के भी बिरान हो गए तथा लडकियाँ अंतरजातीय विवाह करके घर से चली गई | इस प्रकार बेईमानी से कमाए पैसे ने हर प्रकार से उनका बंटाधार कर दिया था |

हालांकि चन्दगी की सीख से गूगन पर कुछ तो असर हुआ परन्तु शक्कर खोरे को शक्कर खाने की उचक उठ ही जाती है | गूगन ने भी अपनी लत के कारण चन्दगी को बहुत नुकसान पहुंचाया यहाँ तक कि कई बार उसे बेईमान की उपाधी से भी नवाज दिया | चन्दगी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया न दिखाते हुए हमेशा अपने काम से काम रखा तथा अपने बड़ा होने का फर्ज हमेशा निभाया | चन्दगी राम की ठेकेदार चन्द्रभान की संगत तथा दरियादिली ने उसे भी ठेकेदार बना दिया |

  

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