Monday, June 16, 2025

मस्तानी - 29

 

खुद का बुना जाल

जब भी मोहन ,मस्तानी से मिलता यही दोहराता, “मेरी पोस्टींग बैंगलूरू होने वाली है अत: तैयार रहना |”

मस्तानी भी उसे आश्वाशन देती, “वह तैयार है |”

यह सिलसिला जून २०२२ तक चलता रहा | इस दौरान मस्तानी के रिश्ते में दो शादियाँ भी हुई परन्तु मोहन को निमंत्रण मिलने के बावजूद वह उनमें सम्मिलित नहीं हुआ | उसने तो मस्तानी को यहाँ तक कह दिया कि वह उसे बैगलूरू जाते समय लिवाने उसके पीहर नहीं आएगा अपितु उसे देहली एअरपोर्ट पर खुद ही आना पडेगा |

पिछले लगभग ढाई साल के मोहन के आचरण को परखते हुए मस्तानी ने शांत स्वभाव से मोहन की हर बात स्वीकार करने की सोच ली थी परन्तु इसका यह कतई मतलब नहीं था कि उसने पूरी तरह समर्पण कर दिया था | उसने भी अपना एक ध्येय निर्धारित कर लिया था “जैसे को तैसा” | इसके साथ ही मस्तानी को विश्वाश था कि “जाको राखे साइयां, मार सके न कोय’।  अर्थात जिसके साथ ईश्वर होता है उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। संपूर्ण सृष्टि ईश्वर निर्मित है। उन्होंने ही संपूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण किया है । विभिन्न ग्रह, पृथ्वी, समुद्र, पर्वत, नदियाँ, विभिन्न प्राणी, मनुष्य आदि सभी उन्हीं की रचना है। जड़ – चेतन सभी उन्हीं की इच्छा का परिणाम हैं। अत: उनकी इच्छा के बगैर कोई भी हमारा बाल बांका नहीं कर सकता । भारतीय पुराणों में समझाया गया हैं कि ईश्वर किसी भी रूप में आकर साकार हो जाते हैं और सत्य मार्ग पर चलने वाले को संकट से बचाते हैं।

 

आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें बैंगलूरू जाने कि सूचना मिल गई |  मस्तानी का अधिकतर सामान उसकी ससुराल में ही था | अत: मोहन ने कहा, “जो भी सामान उसे वहां से चाहिए वहां जाकर ले आए |”

मस्तानी ने अपना मन शीतल रखा और अपने ध्येय के अनुसार कहा, “जब आपने अपनी ससुराल न जाने की कसम खा ली है तो आप मुझे ऐसा करने को कैसे कह सकते हैं?”

मोहन झेंपते हुए, “तो फिर आपका सामान वहां से कैसे आएगा ?”

“जो आप वहां से लाना चाहो ले आना बाकी जो जरूरत होगी मैं बैंगलूरू से खरीद लूंगी |”

मोहन किंकर्तव्यमूढ़ मस्तानी को देखता रह गया | न मोहन अपनी ससुराल से विदा हुआ न  मस्तानी अपनी ससुराल से विदा हुई और वे बैंगलूरू पहुँच गए | वहां उन्होंने कुछ दिन गेस्ट हाऊस में रहकर मकान ढूँढने का इरादा किया | मोहन ने बहुत से मकान देखे परन्तु उसे हर मकान में कुछ न कुछ कमी नजर आती | मसलन महंगा है, छोटा है, कम्पनी से दूर है, जगह ठीक नहीं है इत्यादि | पांच दिनों के अन्दर ही उसने अपने को हताश और निराश दिखाते हुए, “यहाँ रहना मुश्किल है, चलो वापिस दिल्ली लौट चलते हैं |” 

मस्तानी शांत स्वाभाव, “आपकी कम्पनी कोइ खाला जी का घर है क्या ?”

“क्या मतलब?”

“मतलब ये कि जब चाहे आ जाओ और जब चाहे उठ कर चल दो?”

“ऐसा नहीं है | मेरा अर्थ था कि यहाँ तो कोइ ढंग का मकान मिल नहीं रहा तो तुम देहली ही रह लेना जब तक मेरी पोस्टींग वापिस देहली की न हो जाए |”

“मैं वहां रहकर क्या करूंगी क्योंकि नौकरी तो छोड़ आई हूँ ?”

मस्तानी की बात सुनकर मोहन के चेहरे पर मुस्कान के भाव स्पष्ट दिखाई देने लगे, “तो यहीं क्या करोगी ?”

“अब आई हूँ तो कुछ दिन तो रूक कर देख लूं | हो सकता है कहीं न कहीं जुगाड़ भीड़ ही जाए |”

मोहन आशंका से बिदक कर,”तुम्हारा जुगाड़ से क्या मतलब है?”

“यही कि कोशिश करने से  मन पसंद मकान मिल ही जाएगा ?”

अभी बैंगलूरू 10 दिन भी नहीं बीते थे कि मोहन ने फिर अलापना शुरू कर दिया, “यहाँ नहीं तो चलो पुणे ही चलते हैं |”

“आप इतनी बेसब्री क्यों दिखा रहे हो ?”

“होटल में ठहरना हमें बहुत महँगा पड़ रहा है |”

मस्तानी ने सुझाया, “ऐसी बात है तो कुछ दिन हम गेस्ट हॉउस में रह लेते हैं |”

मोहन को सुझाव पसंद आया और दोनों गेस्ट हॉउस में रहने लगे | वहां रहते हुए अभी दो दिन ही बीते थे कि मस्तानी ने एक लिफाफा मोहन की तरफ बढाया, “यह क्या है?” पूछा मोहन ने |

“खोलकर देख लो |”

मोहन ने लिफाफा खोलकर पढ़ना शुरू किया तो उसकी नजरें उस लिखावट पर ही गडी रह गई | काफी देर तक वह नज़रे उठाकर मस्तानी से नजरें न मिला सका | शायद उसकी आवाज उसके कंठ में अटक कर रह गई थी अत: ठीक प्रकार से निकल नहीं रही थी | इसलिए थोड़ी देर बाद टूटे – फूटे शब्दों में बोला, “यह ..क्या है ?”

“आपने पढ़ तो लिया ?”

“परन्तु .....हम तो वापिस जाने वाले हैं |”

मस्तानी निडरता से, “हम नहीं, मैं अब कहीं जाने वाली नहीं हूँ |”

“मतलब ?”

“मतलब यही कि, जैसा आपने पढ़ा, मेरी नौकरी इतने बड़े इंटरनेशनल स्कूल में लगी है तो अब दो वर्ष तक तो मैं इसे छोडूँगी नहीं |”

“क्यों ?”

“क्योंकि किस्मत से ही ऐसा स्कूल मिलता है जहां का अनुभव भविष्य में उन्नति के सारे रास्ते खोल देता है | तथा ऐसा मौक़ा छोड़ने से मेरे कैरियर पर बहुत खराब असर पडेगा |”

मोहन कांपती आवाज में, “अगर मेरी बदली और कहीं हो जाती है तब तुम क्या करोगी?”

मस्तानी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैं अब दो साल तक यहाँ से कहीं नहीं जाऊंगी ?”

“क्या अकेली रह लोगी ?”

“बिलकुल |”

मोहन ने सपने में भी ऐसी उम्मीद नहीं की थी कि मस्तानी इतना स्पष्ट बोल देगी | शायद वह अपने खुद के बिछाए जाल में फंस चुका था | वह काफी देर तक चुपचाप खडा मस्तानी को देखता रह गया | और जब कोइ जवाब न बन पडा तो अपने माथे पर उभरती पसीने की बूंदों को पौंछता हुआ एक तरफ जाकर निढाल सा कुर्सी पर बैठ गया | 

छोटी बहू - 45

 

छोटी बहू-45

प्रकृति के चक्र (भूमिका पवन की घर वापसी)  

प्रकृति का मतलब हैभौतिक जगत या ब्रह्मांडइसमें जीवन भी शामिल है. प्रकृति, सगी चीज़ों के समूह को कहते हैं जो मनुष्य ने नहीं बनाई हों | प्रकृति में नदी, पहाड़, जंगल, और जंगली जीव-जंतु शामिल हैं | प्रकृति, मानव जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है |

प्रकृति चक्रों का एक माया जाल है | इसमें अधिकतर एक पदार्थ एक  रूप से चलकर भिन्न-भिन्न रूपों को ग्रहण करके अंत में अपने पहले स्वरूप में आ जाता है या पहली स्थिति में वापिस परिववर्तित हो जाता है | और फिर दोबारा वही चक्र प्रारम्भ हो जाता है |

हमारे सौर मण्डल में बहुत से ग्रह हैं जो सूर्य के चारों ओर निर्धारित पथ पर चक्कर लगाते रहते हैं | इनमें पृथ्वी भी सम्मिलित है | हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने के साथ-साथ अपनी धुरी पर भी घूमती रहती है जिससे पृथ्वी पर मौसम बदलते रहते हैं | आखिर में पूरा चक्कर लगाकर वह फिर अपने मूल स्थान पर आ जाती है जहां से उसने चक्कर काटना शुरू किया था |

पृथ्वी और वायुमंडल के बीच पानी की निरंतर गति को जल चक्र कहते हैं. यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें पानी कई चरणों से होकर गुज़रता है: 

  • पानी वाष्पित होकर जल वाष्प बन जाता है. 
  • यह वाष्प ऊपर उठकर ठंडी होती है और संघनित होकर बादल बनाती है. 
  • बादल बारिश या बर्फ़ के रूप में धरती पर गिरते हैं. 
  • यह पानी फिर से जलाशयों में जमा हो जाता है और फिर से इस प्रक्रिया को शुरू कर देता है. 

जल चक्र से जुड़ी कुछ और बातें:

  • जल चक्र में पानी की मात्रा स्थिर रहती है. 
  • जल चक्र के चरणों में ऊर्जा का विनिमय होता है. 
  • जल चक्र के ज़रिए वायुमंडल, महासागर, और ज़मीन के बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान होता है. 
  • जल चक्र से ही हमारे ग्रह की जलवायु और मौसम तय होता है. 

 

जल चक्र में पानी की कुल मात्रा अपेक्षाकृत स्थिर रहती है, लेकिन विभिन्न प्रक्रियाओं में पानी का वितरण समय के साथ बदलता रहता है।

खाद्य चक्र को हिन्दी में खाद्य श्रृंखला कहते हैं: 

  • खाद्य श्रृंखला, जीवों के बीच भोजन के रूप में ऊर्जा और पदार्थों के हस्तांतरण का क्रम है. 
  • यह एक ऐसा जाल है जो स्वपोषित जीवों से शुरू होकर शीर्ष परभक्षियों पर खत्म होता है. 
  • खाद्य श्रृंखला में, हर जीव एक अलग स्तर पर होता है. 
  • खाद्य श्रृंखला में जीवों की चार श्रेणियां होती हैं: उत्पादक, उपभोक्ता, शिकार, और शिकारी. 
  • खाद्य श्रृंखला में, हरे पौधे भोजन बनाते हैं, जिसे शाकाहारी जीव यानी प्राथमिक उपभोक्ता खाते हैं. 
  • वे जीव जो प्राथमिक उपभोक्ताओं को खाते हैं |  
  • ज़्यादातर जीव एक से ज़्यादा तरह के जानवरों या जीवों को खाते हैं, इसलिए स्थानीय रूप से खाद्य श्रृंखलाएं आपस में जुड़ती हैं और खाद्य जाल बनाती हैं. 

जीवन चक्रजीवों के जीवन में होने वाले बदलावों का क्रम होता हैयह जन्म से शुरू होकर मृत्यु तक चलने वाला चक्र होता है. जीवन चक्र, हर जीव के लिए अलग-अलग होता है और प्रजातियों के आधार पर इसमें बदलाव आ सकते हैं. जीवन चक्र सरल से लेकर जटिल तक हो सकता है. 

जीवन चक्र से जुड़ी कुछ और बातेंः

  • जीवन चक्र के बारे में कई धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में ज़िक्र मिलता है. 
  • कई धर्मों और आध्यात्मिक परंपराओं में, जीवन को आत्मा की यात्रा का एक चरण माना जाता है. 
  • जीवन चक्र के बारे में कुछ विचारधाराओं के मुताबिक, हम अलग-अलग जातियों और प्रजातियों के रूप में जन्म लेते हैं. 
  • कुछ लोगों का मानना है कि हम अपने ही तरह के जीवन शरीर में जन्म लेते हैं. 

·        जीवन चक्र के आठ चरण हैं: शिशु, बच्चा, युवा, युवा वयस्क, माता-पिता, दादा-दादी, और बुजुर्ग।

पारिवारिक जीवन चक्र क्या है?

बचपन से लेकर परिवार के सदस्य के रूप में सेवानिवृत्ति के वर्षों तक आप जिन भावनात्मक और बौद्धिक चरणों से गुजरते हैं, उन्हें पारिवारिक जीवन चक्र कहा जाता है। प्रत्येक चरण में, आप अपने पारिवारिक जीवन में चुनौतियों का सामना करते हैं जो आपको नए कौशल बनाने या हासिल करने की क्षमता तथा हौसला देते हैं। इन कौशलों को हासिल करने से आपको उन बदलावों से निपटने में मदद मिलती है जिनसे लगभग हर परिवार गुजरता है।

हर कोई इन चरणों से आसानी से नहीं गुज़र पाता। गंभीर बीमारी, वित्तीय समस्याएँ, विघटन या किसी प्रियजन की मृत्यु जैसी परिस्थितियाँ इस बात पर प्रभाव डाल सकती हैं कि आप इन चरणों से कितनी अच्छी तरह प्रभावशाली ढंग से गुज़रते हैं।

 

छोटी बहू-46

पवन का पारिवारिक चक्र

मेरे पुत्र पवन का जीवन चक्र भी प्रकृति के बहुत से चक्रों से मिलता-जुलता रहा है | जब वह पढ़ता था तो पाठशाला में अध्यापक द्वारा आफिसरों के बच्चों पर अधिक ध्यान देना तथा उनको ही ईमतिहानों में जानबूझकर अधिक नंबर देना पवन को रास नहीं आता था | वह अंदर ही अंदर खून के घूंट पीकर रह जाता था | यही कारण रहा कि उसे दसवीं के बाद दूसरे स्कूल गुरु तेग बहादुर सेन्टीनरी पब्लिक स्कूल – राजा गार्डन – देहली में भरती कराना पड़ा था | जहां उसने बारहवीं कक्षा अच्छे नंबरों से पास की |

इसके बाद पवन ने कंप्युटर हार्डवेयर का कोर्स E.T.N.T. चाणक्य पुरी -देहली से किया तथा नौकरी करने लगा | कुछ वर्षों तक नौकरी में अनुभव प्राप्त करने के बाद उसने कंप्यूटर का अपना शो रूम खोल लिया | उसका काम अच्छा चल रहा था | 10 मार्च 2002 को उसकी शादी हो गई | अपना गृहस्थ जीवन उसने अपने माँ-बाप-के साथ रहकर शुरू किया | जैसा की अमूमन होता है सास-बहू के बीच तालमेल न होने के कारण परिवार विघटन के कगार पर पहुँच गया |

सास – बहू के बीच अनबन के कई कारण हो सकते हैं | जैसे पीढ़ी का अंतर, जिम्मेदारियों का टकराव, आपसी समझ की कमी और अपना-अपना अहम इत्यादि | सास (संतोष) पुराने खयालात की ग्रहणी थी |  उसके कुछ अपने ऊसूल थे | मसलन सुबह उठते ही अपने बिस्तर की तह करना, घर में झाड़ू देना, दिन के तीनों समय, (नाश्ता, दोपहर का खाना तथा रात का खाना) झूठे बर्तन माँज कर रखना | अर्थात रात को खाने के बाद झूठे बर्तन माँज कर ही सोना |  गुरुवार को नाखून नहीं काटना | समय पर खाना आदि | इसके साथ हर सास यह तो चाहती ही है की घर में उसकी बहू उसके नक्शे कदम पर चले |

इसका मतलब यह कतई नहीं था की संतोष अपनी बहू को अपने अंगूठे के नीचे दबाकर रखना चाहती थी | उसने अपनी बहू की कभी कोई बुराई नहीं की अपितु सास, बहू की कमियाँ जरूर गिनाती थी जो वर्तमान युग की युवती को पसंद नहीं आता था | अन्यथा सास, बहू के रहन – सहन, बच्चों के खाने-पीने, उनके पहनने-औढने आदि की हर प्रकार अच्छे से देखभाल, तथा उसके खुद के कहीं जाने पर ढंग से तैयार होकर जाने की प्रशंसा किया करती थी | परंतु युवती का सास के गुणों की तारीफ न करना, ,विनम्र भाव से उनकी बात न सुनना तथा न कहना, उनकी बात न समझ बहस पर उतारू हो जाना तथा  सहनशीलता की कमी के कारण परिवार में विघटन हो गया था |

और 2 सितंबर 2019 को पवन अपने परिवार के साथ किराए पर रहने को मजबूर हो गया | उसने नम आँखों से विदाई ली |

कहते हैं भगवान मनुष्य से जो कुछ कराता है या करता है अच्छे के लिए ही कराता है या करता है | हालांकि अंजू के व्यवहार से सभी खफा थे तथा उससे कोई रिस्ता नहीं रखना चाहते थे परंतु मैंने कभी पवन का साथ नहीं छोड़ा न ही उसने कभी मेरे पास आना छोड़ा | पवन को जब भी, जैसी भी जरूरत पड़ी मैंने उसकी दिल खोलकर सहायता की | लगभग दो साल किराए पर रहने के बाद पवन ने अपना मकान बनवाना शुरू कर दिया |

जब पवन मकान बनवा रहा था तो कोरोना का प्रकोप अपनी चरम सीमा पर था परंतु उसके मकान का काम सुचारू रूप से चलता रहा और उसके रास्ते में कोई रूकावट नहीं आई | फिर भी यह सोचकर की पुलिस या कमेटी द्वारा कोई झंझट खड़ा न कर दिया जाए पवन ने मकान में रंग-पेन्ट होने से पहले ही वहाँ रहना शुरू करने की ठान  ली |

हालांकि गृह प्रवेश के लिए क्या तथा कैसे होना चाहिए इस बारे में उसने अपनी माँ से सब जानना चाहा और माँ ने बताया भी परंतु गृह प्रवेश पर वहाँ उपस्थित होने के सवाल पर माँ गोल-मोल जवाब देकर चुप हो गई | कारण था कि अभी तक बहू के व्यवहार के विपरीत सास का मन अभी तक ग्लानि से भरा हुआ था | शायद यही कारण रहा होगा कि इस बारे में पवन ने अपनी बहन प्रभा से भी कोई बात करना उचित नहीं समझा होगा | क्योंकि अभी तक सभी का अंजू के प्रति व्यवहार सौहार्द पूर्ण नहीं हो पाया था | पवन ने यह भी सोचा होगा कि जब माँ ही नहीं आएगी तो बेटी तो बिल्कुल भी उसके घर में पैर नहीं रखेगी | 

गृह प्रवेश के दो-तीन दिन पहले मैंने प्रभा से पूछा, “आप तो जा रही हो न |”

“कहाँ ?”

“पवन के यहाँ गृह प्रवेश में |”

“कब का है, मुझे तो पता नहीं ?”

“बता देगा, अभी तो समय है |”

मेरे कहने पर पवन ने अपनी बहन को गृह प्रवेश का न्योता दे दिया | गृह प्रवेश के दो दिन पहले मैंने प्रभा से पूछा, “न्योता तो मिल गया होगा | अब तो जा रही हो ?”

प्रभा बड़े अनमने मन से बोली, “पापा जी, मैं नहीं जा रही |”

उसके उत्तर से मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकि मैं उसके मन की उधेड़-बुन को अच्छी तरह जानता था | वह सोच रही होगी कि उसकी माँ तो जाएगी नहीं इसलिए उसका जाना उचित नहीं रहेगा | अत: बिना उससे कोई प्रश्न किए मैंने कहा, “आपको बुलाया है तो अवश्य जाना चाहिए |”

इस पर वह रूआन्सी होकर केवल इतना ही कह पाई, “पापा जी |”

हाँ, बेटा, आपको भाई से रिस्ता बनाए रखना चाहिए | मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ कि अगर आप जाओगी भी नहीं तो भी वह भविष्य में आप से अपना रिस्ता निभाता रहेगा | इसलिए मौका मत दो | वैसे  चिंता मत करो हम भी वहाँ अवश्य आएंगे |

सामाजिक ऊंच-नीच की बहुत सी बातें समझाने के बाद संतोष, पवन के घर जाने पर राजी तो हो गई परंतु उसने एक कड़ी शर्त रख दी कि हम वहाँ खाना नहीं खाएंगे | मरता क्या न करता मुझे शर्त माननी पड़ी | पवन के गृह प्रवेश का कार्यक्रम 21 अक्टूबर 2022 को सुचारू रूप से सम्पन्न हो गया | पवन तथा अंजू के खाना खाकर जाने का आग्रह मुझे दुखी मन से टुकराना पड़ा | हालांकि पवन का मन बहुत दुखित था परंतु मेरे एक इशारे से उसे कुछ सांत्वना जरूर मिल गई थी | हमारे अलावा प्रभा तथा प्रवीण के परिवार ने वहाँ खाना अवश्य खाया जिससे पवन ने घर वापसी के जीवन चक्र की आधी मंजिल पूरी कर ली थी |   

समय व्यतीत होता गया | पवन तथा अंजू हमारे पास आते जाते रहे | पवन तो हमारे यहाँ खाता पीता भी रहा परंतु अंजू अपनी सास से कम न थी | शायद उसने हमारा उसके यहाँ खाना न खाने को अपनी नाक का सवाल बना लिया था क्योंकि उसने हमारे यहाँ आकर कभी भी न कुछ खाया न पीया | मैं तथा पवन इसी बात से संतुष्ट थे की कम से कम दोनों का आना जाना तो बना हुआ है तथा समय के साथ एक दूसरी के यहाँ खाने-पीने की समस्या भी सुलझ जाएगी |

इस बीच अपनी ढलती उम्र को भाँपते हुए तथा दुनिया के प्रचलन को देखते हुए जिसमें पिता के मरने के बाद, अगर पिता अपनी जायदाद का बंटवारा करके न गया हो तो, संतान के सदस्य आपस में दुश्मनी मोल ले लेते हैं, अपनी जायदाद का बंटवारा करने की ठान ली | इसके लिए मैनें अपनी पत्नी,बेटे प्रवीण तथा बेटी प्रभा को भरोसे में लिया क्योंकि मैं पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहता था कि उन्होंने अपने  मन में अभी भी किसी प्रकार का, पवन तथा अंजू के बारे में, कोई द्वेष तो नहीं पाल रखा है | फिर सभी की सहमती से मैंने निम्नलिखित वसीहत बनाई तथा सभी की रजामंदी ले ली |

ओम श्री नम:

मैं, चरण सिहँ गुप्ता सुपुत्र लाला स्वर्गीय रामनारायण गुप्ता एवं माता जी स्वर्गीय शरबती देवी, आज अपने सतत्तरवें जन्म दिन पर दिनाँक 02-03-2023 को अपने पूरे होशोहवास में निम्नलिखित वसीहत करता हूँ |

मेरे दोनों लड़के प्रवीण एवं पवन भी अपनी गृहस्थी ठीक प्रकार चला रहे हैं | अब भविष्य में, भगवान करे, यदि मेरी प्रापर्टी के बंटवारे में कोई अड़चन आने लगे तो मैं उसके बारे में विस्तार से लिख रहा हूँ |

मेरे पास दो प्रापर्टी हैं |(1) मकान नंबर 653 (पूर्वजों की),नारायणा गाँव,नई देहली 110028  (2) मकान नंबर 973 , सैक्टर 23 A, गुरुग्राम, हरियाणा |

दोनों प्रोपर्टी का मूल्यांकन करने के बाद यह सहमती बनी कि नारायणा वाले मकान के साथ पवन कुल मूल्यांकन का बाकी हिस्सा प्रवीण को नकद देगा जिससे प्रवीण को उसका आधा हक़ मिल जाए |  यह लेन-देन की प्रकिर्या भी पूरी कर ली गई है |

अत: मेरा  मकान नंबर 973 सैक्टर 23 -A गुरुग्राम, मेरे छोटे बेटे पवन या उसके बच्चों (गर्व तथा यश) के नाम हो जाएगा |  

मेरी सुपुत्री, प्रभा कुमारी गुप्ता धर्मपत्नी श्री मनोज कुमार गुप्ता सुपुत्र स्वर्गीय भजन लाल गुप्ता का मेरे विचार से एक सुखमय परिवार है | उसे मेरी और से सब कुछ मिल गया है तथा आगे भी जब तक मेरा जीवन रहेगा मैं अपनी सामर्थ अनुसार उसे देता रहूँगा | इसलिए मेरी मृत्यू के बाद वह  मेरी उपरोक्त प्रापर्टी में किसी भी हिस्से की हकदार नहीं रहेगी | परन्तु मेरी मृत्यू के बाद मेरे दोनों लड़कों को मिलकर मेरी बेटी प्रभा को सालाना, कम से कम बारह हजार रूपये का खर्चा उसके त्यौहारों, बच्चों के जन्म दिन इत्यादि पर करना अनिवार्य होगा | 

मेरी पत्नी किसी भी घर में रहने के लिए स्वतन्त्र रहेंगी | उनकी देखभाल दोनों बेटों को अच्छी तरह उनकी इच्छानुसार करनी होगी | मेरे बाद मेरी पत्नी की इच्छा के बिना 973, गुडगाँवा वाला मकान बेचा नहीं जाएगा |

वैसे तो मेरी पत्नी को भारतीय स्टेट बैंक एवम सेना से पेंशन मिलती रहेगी जो उनके खर्चे के लिए प्रयाप्त होगी परन्तु अगर उनकी इच्छा कुछ अधिक करने की हो तो दोनों बेटे उसे पूरा करेंगे |  

 

 

चरण सिंह गुप्ता                                                         सन्तोष कुमारी गुप्ता

सुपुत्र स्व.राम नारायण गुप्ता

एवं स्व.सरबती देवी

 

 

प्रभा गुप्ता                                   प्रवीण कुमार गुप्ता            पवन कुमार गुप्ता

इस वसीहत के अलावा मेरी और जो चल-अचल संपत्ति थी उसका बंटवारा भी सबकी सहमती से कर दिया | 

हालांकि पवन इस बारे में यह सोचकर शंका कर रहा था की शायद सभी यह सोचेंगे की वह लालच वश इस संधि में सम्मिलित हो रहा है परंतु मेरे समझाने तथा अपने भाई को उसका पूरा हिस्सा मिलता देख उसकी दुविधा का निवारण हो गया था | धीरे -धीरे अंजू के व्यवहार में भी परिवर्तन आने लगा था |   

 

छोटी बहू- 47   

घर वापसी

यह किवदंति बहुत प्रसिद्ध है कि भगवान जो करता है वह अच्छे के लिए ही करता है | परंतु थोड़ी सी भी मुसीबत आ जाने पर अधिकतर मनुष्य भगवान को बुरा-भला अर्थात कोसना शुरू कर देते हैं | परंतु मेरे जीवन में ऐसे कई उदाहरण बने जिससे उपरोक्त कथन में मेरा विश्वास पक्का हो गया | क्योंकि मेरी प्रत्येक समस्या का अंत सुखद ही रहा |

मसलन (1) मैं बचपन में बहुत कमजोर स्वास्थ्य का बच्चा था | हालांकि पढ़ने में मेरी  रूचि बहुत थी परंतु दसवीं के बाद गल्त दोस्तों की संगत में पड़कर सम्मान जनक नंबरों से पास न हो सका था | 1962 में भारत – पाक युद्ध के जजबे तथा वहाँ पढ़ने की सुविधा मिलने की जानकर वायु सेना में भर्ती हो गया | वहाँ भगवान ने मेरी दोनों मनोकामनाएं पूरी कर दी अर्थात मैं स्वस्थ भी हो गया और जोधपुर यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की डिग्री भी हासिल कर ली |   

(2) 1979 में, घर वालों के कहने से, वायु सेना की नौकरी छोड़कर आया तो काफी दिनों तक परेशानी में बीता परंतु बाद में भगवान के रहमों कर्म से भारतीय स्टेट बैंक की नौकरी मिल गई | साथ ही जनरल स्टोर चलाने के कारण आर्थिक स्थिति भी सुधर गई |

(3) सभी बच्चों के शादी तथा उनका धंधा-पानी भी ठीक से चलने लगा | मेरा छोटा लड़का पवन अपने बच्चों के साथ मेरे पास रहने लगा | जैसा की मैंने ऊपर लिखा है सास-बहू के मन मुटाव के कारण 2 सितंबर 2019 को हमारा अलगाव हो गया था | अचानक 22.03.2022 को संतोष को गहन बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़  गया था | मैं अकेला उन्हें संभाल नहीं सकता था | क्योंकि संतोष बाहर / अस्पताल का खाना नहीं खाती थी | बडा लड़का दूर रहता था | वह रोज आ नहीं सकता था | उसकी पत्नी भी नौकरी करती थी | पवन ही ऐसा था जिससे उम्मीद थी | परंतु अपने तो अपने ही होते हैं को चरितार्थ करते हुए अजूँ खाना लेकर अस्पताल पहुँच गई | तीन वर्ष से चल रहा मनमुटाव एक पल में धरासाई हो गया | उस दिन पवन घर वापसी की एक ओर सीढी चढ़ गया था |   

(3) अंजू तथा सास की मन की दूरियाँ समाप्त हो चुकी थी | मेरी  अपनी चल-अचल संपत्ति का बंटवारा करने के बाद यह निश्चित हो गया था कि अब कभी भी पवन के घर छोड़ने तथा घर वापसी का जीवन चक्र समाप्त होने वाला है | फिर 21 नंबर 2024 को संतोष को चक्कर आने की वजह से वह गिर पड़ी और सिर में गहरी चोट लग गई | एक बार फिर वह काम करने लायक नहीं रही | इस बार भी अंजू ने संभाला | इस बार संतोष ने अपने मन की बात अपनी पुत्र वधू अंजू से खुलकर कह दी कि वह वापिस घर आ जाए | और 6 जनवरी 2025 को पवन के घर से जाने तथा घर वापिस आने का चक्र पूरा हो गया |