Tuesday, April 22, 2025

समझाने की कोशिश - 24

 

समझाने की कोशिश (24)

इसी तरह एक अन्य मौके पर लिखा:

मैं रूठा, तुम भी रूठ गए, फिर मनाएगा कौन ?

आज दरार है, कल खाई होगी, फिर खाई को भरेगा कौन ?

मैं चुप, तुम भी चुप, इस चुप्पी को फिर तोडे़गा कौन ?

छोटी बात को, लगा लोगे दिल से, तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ?

दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर, सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ?

न मैं राजी न तुम राजी, फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ?

डूब जाएगा, यादों में दिल कभी, तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ?

एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी, इस अहम् को फिर हराएगा कौन ?

ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ,फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन ?

मूंद ली दोनों में से, गर किसी दिन एक ने आँखें, तो कल इस बात पर फिर

पछतायेगा कौन ?

•Respect Each Other•

थोड़े दिनों बाद नाना जी ने फिर मदन जी को फोन किया | बहुत दिन हो गए आप से मिले | समय निकाल कर कभी मिल लो |

नाना जी ठीक है | बताओ कहाँ मिलना है ?

घर पर ही मिलेंगे और कहाँ |

मैं घर तो किसी के आऊंगा नहीं | आप बाहर कहीं भी मिलने का प्रोग्राम बना लो |

नाना जी ने बहुत समझाया कि हमारे चार पांच घर हैं कहीं भी आ जाओ परन्तु वे अपनी बात से टस से मस न हुए | आखिर नाना जी को झुकना पडा और कहा ठीक है |

मदन ने इस पर कहते हुए कि आप बता देना कि कहाँ और कब मिलना है  फोन काटना ही चाहा था कि नाना जी ने पूछा परन्तु यह तो पता चले कि मिलकर किस विषय पर बात करनी है |

यह तो आप मस्तानी से ही पूछना |

वह तो मैं पूछ ही लूंगा परन्तु आपकी भी तो कुछ नाराजगी होगी |

मेरी कोइ नाराजगी नहीं है |

नाराजगी भी नहीं है और घर भी आना नहीं चाहते |

नहीं पहले आप मस्ताननी से ही पता करें कि वह यहाँ क्यों नहीं आ रही है

कौन कहता है कि वह ससुराल नहीं जाना चाहती | आप लिवाने आओ मैं गारंटी से उसे भिजवा दूंगा |

नहीं पहले आप उससे पता कर लो कि उसे ससुराल में क्या दिक्कत है |

 मदन की बात मानते हुए नाना जी ने मस्तानी के दिल की सारी बातें जान ली तथा मदन को फोन मिलाया | मदन जी , मैंने मस्तानी से सारी बातें जान ली हैं अब आप अपने दिल की बात भी बताओ |

मेरे पास बताने के लिए कुछ है ही नहीं अत: आप बताओ कि उसने क्या बताया है |

देखो जी आपने मुझे बीच में डाला है तो मैं दोनों की नाराजगी को जानकार ही तो कुछ निर्णय ले सकता हूँ |

नहीं मेरी कोइ नाराजगी नहीं है |

तो फिर खुशी-खुशी आओ और मस्तानी को लिवाकर ले जाओ |

मैं तो आऊँगा नहीं | आप बताओ कि मस्तानी ने क्या क्या बताया है |

फिर वही बात, आप अपनी नाराजगी का कारण तो बता नहीं रहे केवल दूसरे की पूछना चाहते हो | आप अपने बड़ों से भी बात करवाने में राजी नहीं हो | मैं दोनों तरफ की बात जाने बिना किसी का भी राज नहीं खोलूंगा | जिस दिन भी आप अपनी न्माराजगी के कारण जाहीर कर देंगे , मै दोनों की बातों का मिलान करके ही किसी निर्णय पर पहुँच सकता हूँ |

मस्तानी के साथ ससुराल में कैसा व्यवहार किया गया था का काला चिटठा नाना जी ने  निम्नलिखित बना कर तैयार तो कर लिया था परन्तु खुलासा तब करता जब मदन अपने मन की बात खोलता |

Wednesday, April 16, 2025

समझाने की कोशिश - 23

 

समझाने की कोशिश (23)

 

इस बीच नाना जी ने संपर्क साधे रखने के लिहाज से मदन को थोड़े थोड़े अंतराल में उनके वाट्स एप पर प्रेरणादायक लेख लिखने के साथ फोन करना भी न छोड़ा | सबसे पहले नाना जी ने मदन के वाट्स एप पर एक उपन्यास ‘आत्म तृप्ति’ का वह अंश भेजा जो सिखाता था कि पति-पत्नी में  एक दूसरे पर कितना अथाह विशवास तथा भरोसा होना चाहिए |

थोड़े दिनों बाद फोन पर जब पूछा गया कि क्या वह अंश पढ़ा तो जवाब मिला कि पढ़ने का समय नहीं मिला |

होली के पर्व के बाद जब नाना जी को पता चला कि मदन को निमंत्रण देने के बावजूद वह होली खेलने अपनी ससुराल नहीं पहुँचा था तो उन्होंने मदन से फोन पर कुशलक्षेम पूछने के बाद पूछा, “आप होली पर ससुराल नहीं गए?”

“कौन सी ससुराल, कैसी ससुराल”

 “मैं मस्तानी के घर जाने की बात कर रहा हूँ “

‘जहां किसी के साथ बेवजह हाथापाई हो वहां भला कौन जाएगा?’

आप क्या कह रहे हो ! हमारे यहाँ दामाद को विष्णु का रूप समझा जाता है |

विष्णु की बात तो दूर मुझे वहां एक साधारण इंसान भी समझ लिया जाए तो बहुत है |

आप ऐसा किस बिना पर कह रहे हैं?

वहां मुझे पकड़ कर पीटने की कोशिश की गयी थी |

ऐसा कभी हो नहीं सकता | आपको ..........

अगर आप को यकीन नहीं है तो ठीक है और फोन कट गया |

पूजा से सारी बातों का पता करके कुछ दिनों बाद नाना जी ने फोन मिलाया, “मदन जी आपकी पिटाई की कोशिश  के माजरे के बारे में मैंने पता किया था |

आपको क्या बताया गया ?

यही कि आप मस्तानी को लेने गए थे | आपने जाते ही उस पर चलने का दबाव डालना शुरू कर दिया | गर्मी के दिन थे आप पसीने-पसीने हो रहे थे | आपकी सास ने आप को बैठने के लिए कहा | आप नहीं बैठे | आपको पानी का गिलास पकडाना चाहा तो आपने वह भी नहीं लिया | मस्तानी ने समझाने की कोशिश की परन्तु आपकी एक ही रट रही कि जल्दी चलो अन्यथा मैं चला जाऊंगा | इस पर आपकी सास ने ममता दर्शाते हुए आपको बाहों में भरकर बैठाने की कोशिश की | आपने इस पर अपना सिर दीवार पर मारना चाहा तो उन्होंने आपको छोड़ दिया | फिर आप भनभनाते हुए बाहर निकल गए | जीने पर आपको ससुर मिले | उनके पूछने पर बिना जवाब दिए आप चले गए |

इसका मतलब मैं झूठा हूँ ?

मैं तो आपको झूठा नहीं मान सकता परन्तु मेरा इतना विशवास भी है कि मेरी बेटी में ऐसे संस्कार नहीं हो सकते जो अपने दामाद पर हाथ उठाने का साहस कर सके |

नाना जी, मैंने वही बया किया है जो मेरे साथ घटित हुआ था |

बिलकुल, परन्तु आपकी सास ने भी वहीं बया किया है जो उस दिन घटित हुआ था | अब असल में क्या हुआ वह तो आपके, मस्तानी और पूजा के आमने सामने बैठकर ही पता चल सकता है |

मुझे किसी के सामने नहीं बैठना तथा न ही इस बारे में कोइ और बात करनी है |

मदन जी गलत फहमी तो दूर होनी ही चाहिए |

नाना जी अगर आप इसे गलत फहमी समझते हैं तो ठीक है | समय आने पर आपको भी असलियत का पता चल जाएगा |

बहस को आगे न बढाते हुए नाना जी ने यही सोचकर कि कभी मिल-बैठकर बात को सुलझा लिया जाएगा मैंने विराम देना ही उचित समझा |

अंतराष्ट्रीय महिला समानता दिवस के अवसर पर नाना जी ने मदन को सन्देश भेजा:

वर्तमान में बहस करने का मन नहीं करता।

आप सही मैं ग़लत बात ख़त्म।

आज अंतराष्ट्रीय महिला समानता दिवस पर,

जब जिंदगी थम-सी गई है,

तो मुस्कुरा कर उसे दोबारा शुरू कर लो।

Friday, April 11, 2025

समझाने की कोशिश -22

 समझाने की कोशिश (22)

बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है। कुत्ते बिल्ली के लिये समय है। परिवार के लिये नहीं।

सबसे ज्यादा गिरावट तो इन दिनों महिलाओं में आई है। दिन भर मनोरँजन, मोबाईल, स्कूटी. समय बचे तो बाज़ार और ब्यूटी पार्लर। जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।

भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं। क्योंकि होटलों में खाना खाना शान माना जाने लगा है |

यह कोइ नहीं सुनना चाहता कि घर के शुद्ध खाने में पौष्टिकता तो है ही प्रेम भी है। लेकिन ये सब पिछड़ापन हो गया है। आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।

पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थी। और अब नृत्य सीखकर।

क्यों कि महिला संगीत मे अपनी प्रतिभा जो दिखानी है। जिस की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है। घूँघट और साङी हटना तो ठीक है। लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ? ये कैसी आधुनिकता है ? बड़े छोटे की शर्म या डर रहा ही नहीं | इसलिए बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं वे तो घर में चौकीदार होकर रह गए हैं |

माँ बाप बच्ची को शिक्षा दे रहे है। ये अच्छी बात है लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?

ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करे। बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये। जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो दाम्पत्य सूत्र का जोड़ भी केवल निभाने भर की बात रह जाती है |

वैसे तो बचपन में घर का वातावरण वहां पल रहे लड़का और लडकी दोनों के संस्कारों पर एक जैसा असर डालता है परन्तु इनका परिणाम आगे चलकर औरत को अधिक झेलना पड़ता है जब वह दूसरे घर जाती है और पीहर में मिले संस्कारों में वर्त्तमान समय के अनुसार ससुराल में बदलाव लाने की कोशिश नहीं करती | अगर वह बदलाव लाने की सोचती भी है तो उसकी शिक्षा उसके आड़े आ जाती है | शिक्षा का तर्क देकर वे यह प्रमाणित करने का प्रयास करती हैं कि वर्तमान युग की चाल देखकर उन्हें बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि उसके ससुराल वालों अर्थात घर के बुजर्गों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है | साक्षरता ने लड़कियों की सोच में एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है | वे महसूस करने लगी हैं कि शादी तो जीवन की एक रस्म है, जैसे तैसे निभा ली जाएगी किन्तु वर्तमान परिवेश में रोजगार महत्त्व पूर्ण है |

लड़का हो या लडकी अपनी संतान सभी को प्रिय है। लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं। पहले स्त्री की बात तो छोड़ो पुरुष भी कोर्ट कचहरी से घबराते थे। और शर्म भी कर ते थे। अब तो फैशन हो गया है। पढे लिखे युवा तलाकनामा तो जेब मे लेकर घूमते हैं। पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी। और अब माँ बाप तक को जूते पर रखते है। ऐसे में समाज या पँच क्या कर लेगा, सिवाय बोलकर फ़जीहत कराने के ?

सबसे खतरनाक है औरत की ज़ुबान। कभी कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है। लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझती है। आखिर शिक्षित है। और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में लेकर आई है। आखिर झुक गयी तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।

इतिहास गवाह है कि द्रोपदी के वो दो शब्द ..’अंधे का पुत्र भी अंधा’ ने महाभारत करवा दी थी | काश चुप रहती। गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।

आज समाज सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं। पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों। बेटा भी तो पुरुष ही है। एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है। जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये। खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों। घरवाली के लिये हार के सपने देखता है। बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।  मानता हूँ पहले नारी अबला थी। माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़। और बड़े परिवार के काम का बोझ। परन्तु अब घर में सारी आधुनिक सुविधाएं होने के बावजूद गृहस्थी बनाने से पहले ही तार-तार हो रही है |

पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं। और पुराने रिश्ते भी। रिश्ते झुकने पर ही टिकते है। तनने पर टूट जाते है। इस खूबी को निरक्षर बुज़ुर्ग जानते थे। आज के शिक्षित युवा-युवती नहीं। जिस परिवार ने इसको समझ कर सुधार कर लिया तो समझ लेना घर स्वर्ग हो जायेगा..!!

इसके विपरीत अगर ससुराल ऐसी मिल जाए जहां के बुजूर्ग अपने रूढ़िवादी विचारों को किसी हालत में छोड़ने को तैयार न हों तो परिवार में बिखराव होना तय है | इसे ‘जेनेरेसन गैप’ की संज्ञा दी जाती है | इसमें बहुत सी बातें आ जाती है जैसे घर के मर्दों से पर्दा करना, घर में वही पहनना जो बुजूर्ग कहें, घर के और सदस्य सभी काम से मुक्त क्योंकि घर में काम करने वाली आ गयी है , हमेशा दबी आवाज में बोलना, नौकरी छुडवाने की धमकी मिलते रहना, बहू की हर बात और चाल पर टीका टिप्पणी करना  इत्यादि |

Friday, April 4, 2025

मस्तानी - भाग 21

 

समझाने की कोशिश

एक तरफ तो जनता कोरोना के कारण त्राही-त्राही पुकार रही थी | इसके प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से लोग बहुत से यत्न कर रहे थे | कई संस्थाए भूखों को खाना बाँट रही थी, कुछ रेन बसेरा बना रही थी, कुछ अस्पताल बनवा रही थी तो कुछ भगवान् की दया हासिल करने के लिए हवंन इत्यादि कर रही थी | ऐसी महामारी के समय जनता एक दूसरे का सहारा बनना चाहती थी | दूसरी और मस्तानी के ससुराल वाले अपने ही बेटे की शादी शुदा जिन्दगी को बर्बाद करने की साजिस रच रहे थे |

मस्तानी के ममिया ससुर के आश्वासन देने पर की वह मदन के पिता जी (दिनेश)से सलाह मशवरा करके मस्तानी को लिवा लाने की बात करके उन्हें (मोहन) को सूचना दे देंगे, मस्तानी  पुलिस थाने से अपने पीहर आ गयी थी | परन्तु दिनेश ने गिरगट की तरह रंग बदलते हुए उसे साफ़ कह दिया कि वह उनके बीच में सुलह कराने की कोशिश न करे तथा दूर ही रहे |  ममिया ससुर की बहन दिनेश की अड़ के चलते १५ साल तक अपने पीहर जाने से वंचित रही थी तथा अभी-अभी उनकी सुलह हुई थी | शायद यही सोचकर कि कहीं फिर दिनेश कोइ वैसा ही कदम न उठा ले  जिससे उनकी बहन का पीहर न छूट जाए उन्होंने सुलह मशवरा कराने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी |

मस्तानी के नाना जी का ममिया ससुर की सूचना पर माथा ठनका | उनको आभाष हुआ कि हो न हो दिनेश अपनी रूढ़िवादी सोच अपनी पुत्रवधू पर भी लादना चाहता है |  उनका यह आभाष उन्हें सच्चाई में परिवर्तित होता नजर आया जब उन्हें पता चला कि दिनेश के साथ मदन ने भी अपने ससुराल वालों को अपने मोबाईल से हटा दिया है | फिर भी यह सोचकर कि मेरा उनका सामना उनके मनमुटाव के चलते कभी नहीं हुआ, नाना जी ने दिनेश तथा मदन से संपर्क साधने हेतु मदन को उनकी शादी की वर्ष गाँठ पर संदेशा भेजा ‘शादी की साल गिरह पर हार्दिक शुभ कामनाए | इन फूलों की तरह खिलते रहो” |  इसका जवाब ‘धन्यवाद’ भी मिला | परन्तु इसके बाद नाना जी द्वारा  किसी भी त्यौहार, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, जन्म दिवस, शादी की साल गिरह इत्यादि पर भेजे गए संदेशों का लिखित में कोइ जवाब नहीं आया |

वर्त्तमान में हर दिन किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।

नींव ही कमजोर पड़ रही है गृहस्थी की ।

इसके कारण और जड़ पर कोई नहीं जा रहा।

मेरे ख्याल से निम्नलिखित कारण ही दाम्पत्य सूत्र को कमजोर करने में सहायक बनते हैं |

 

1, माँ बाप की अनावश्यक दखलंदाज़ी।

2, संस्कार विहीन शिक्षा

3, आपसी तालमेल का अभाव

4, ज़ुबान

5, सहनशक्ति की कमी

6, आधुनिकता का आडम्बर

7, समाज का भय न होना

8, घमंड झूठे ज्ञान का

9, अपनों से अधिक गैरों की राय

10, परिवार से कटना।

11. रूढ़िवादी विचार

12. लड़कियों की कमाने की लालसा, इत्यादि |

पहले भी तो परिवार होता था, और वो भी बड़ा। लेकिन वर्षों आपस में निभती थी ।

क्योंकि बड़े बुजुर्गों का भय भी था प्रेम भी था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।

पहले माँ बाप ये कहते थे कि मेरी बेटी गृह कार्य मे दक्ष है, और अब मेरी बेटी नाज़ो से पली है आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया। तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?

शिक्षा के घमँड में आदर सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते। माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं। भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल रही हो। ऐसे मे वो दो घर खराब करती है।

मोबाईल तो है ही रात दिन बात करने के लिए। परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।

या तो TV या फिर पड़ोसन से एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में ता‌क झांक।

जितने सदस्य उतने मोबाईल। बस लगे रहो। पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता। सब अपने कमरे में। वो भी मोबाईल पर।

Tuesday, April 1, 2025

मस्तानी भाग-20

 

धीरता

एक दिन अचानक मस्तानी जब स्कूल जाने के लिए सलवार-जम्फर पहन कर तैयार हुई तो सभी की आँखे फटी की फटी रह गई | उसकी पौशाक देखकर ससुर चिल्लाया, “यह क्या पहन लिया, बदलो इसे “|

मस्तानी ने अपने को ऊपर से नीचे तक निहारा और पास खड़े अपने पति की तरफ देखकर पूछा, “इस पौशाक में आपको क्या बुराई दिख रही है?”

जब मदन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला तो  घर वालों के विरोध के बावजूद मस्तानी स्कूल के लिए निकल गई |

ससुर ने मस्तानी के इस व्यवहार को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया तथा उसे अपने असूलों पर चलाने की जुगत भिडाने लगा | जब मस्तानी स्कूल से वापिस आ गई तो ससुर ने कहा, “वह अपनी तनखा उसे (ससुर को) लाकर दे क्योंकि वह घर का खर्च खुद चलाएगा”|

मस्तानी ने साफ़ मना कर दिया तथा तर्क दिया, वह उसके पति की तनखा तो सारी खर्च कर देते हैं और उन्हें क्या चाहिए |

जब पिता पुत्र की जोड़ी ने मस्तानी को नौकरी छोड़ने का दबाव दिया तो उसने साफ़ शब्दों में जता दिया कि वह नौकरी तो किसी हालत में नहीं छोड़ेगी तथा न ही तनखा उनके हवाले करेगी |

अब मस्तानी का ससुर उसके बनाए खाने में बहुत सी कमियाँ निकाल कर बेकार की नोक-झोंक करने लगता था परन्तु फिर चटकारे ले कर खा भी लिया करता था | एक दिन जब वह बेतुकी बातें करने लगा तो मस्तानी से सहन न हुआ और उसने साफ़ कह दिया, “मेरे से तो ऐसा ही बनाना आता है अगर आपको पसंद नहीं आता तो किसी और से बनवा लिया करो”|  

मस्तानी को समय नहीं मिलता था कि वह घर के कपड़े प्रेस कर सके तो उसने जो धोबी हटाया गया था उसको घर के छज्जे पर से आवाज लगाकर प्रेस के कपड़े पकडाने शुरू कर दिए थे | इस पर जब पुत्र वधू को घर की मान मर्यादा का हवाला देकर उल्टी-सीधी सुनाई जाने लगी तो मस्तानी ने कपड़ों की गठड़ी मदन पर फैंकते हुए कहा, “खुद तो घर में चूड़ियाँ पहन कर बैठे रहते हैं और अगर घर का कोइ सदस्य काम करे तो उस पर इल्जाम थोपते हैं”|    

इसी प्रकार मस्तानी एक दिन स्कूल से लौटकर मकान के नीचे से ही जब दादा जी से कहकर अपनी एक सह-अध्यापिका के घर से कुछ लेने चली गयी तो घर में कोहराम मचा दिया गया | सास,ससुर यहाँ तक कि उसके पति मदन ने भी उसे बुरा-भला कहने से गुरेज न किया और यहाँ तक इल्जाम लगा दिया कि पता नहीं बाहर किस-किस से मिलती है | | मस्तानी की कोई सुनने को राजी नहीं था फिर भी मस्तानी ने अपना धैर्य नहीं खोया क्योंकि वह जानती थी कि उसने कोई गलत काम नहीं किया था |  

मस्तानी ने मदन को समझाने की बहुत कोशिश की कि उसके नौकरी छोड़ने से आगे चलकर उन्हें आर्थिक समस्याओं से झूझना पड सकता है | क्योंकि उनका खुद का पैसा तो घर खर्च में ही पूरा ख़त्म हो जाता है | जब मदन को इस बात का अहसास हुआ तो वह मस्तानी का समर्थन करने लगा | परन्तु उसके ऐसा करने से ससुर भड़क गया और चिल्लाया, “अरे ये कैसी लडकी आई है इसने तो हमारे से हमारा लड़का ही छीन लिया | अब तो वह उसके रंग में रंग गया है इत्यादि |”

मस्तानी की धीरता देख ससुर को अंदाजा लग गया था कि वह दबने वाली लडकी नहीं है तथा उसके मन में शंका उपजी कि वह यहाँ रहकर मदन की बहन के नाजायज रिश्ते का भंडाफोड़ कर सकती है तो यह सोचकर कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरीउसे अलग कर दिया जाए |

मदन मस्तानी को लेकर अलग तो रहने लगा परन्तु अपने घर वालों के बहकाए से अछूता न रह सका | इसी कारण पति-पत्नी में विशवास पैदा न हो सका और उनमें पुलिस थाने की नौबत आने से कुछ दिनों के लिए बिछोह हो गया |

परिस्थितियों ने इस बिछोह को बहुत लम्बी अवधी में परिवर्तित कर दिया | और इस लम्बी अवधी ने धीरे-धीरे पति-पत्नी के बीच प्रतिष्ठा एवं सम्मान का बीज अंकुरित कर दिया | कहावत प्रचलित है कि दो सांडों की लड़ाई में झुंडों का विनाश

इसी को चरितार्थ करते हुए प्रतिष्ठा का बीज बोने का श्रेय मस्तानी के ससुर तथा मस्तानी के पिता को जाता है | क्योंकि जहां ससुर १०० प्रतिशत रूढ़िवादी तथा अहंकारी है तो पिता भी जिद में कोई कम नहीं है |

अब आगे-आगे देखिए होता है क्या ?