Saturday, May 10, 2025

मस्तानी - भाग 26

 

समझाने की कोशिश (26)

 

      एक दिन फिर समझाने हेतु नाना जी ने लिखा :

          पति-पत्नी

एक बनाया गया रिश्ता, पहले कभी एक दूसरे को देखा भी नहीं था...

अब सारी जिंदगी एक दूसरे के साथ |                      

पहले अपरिचित, फिर धीरे धीरे होता परिचय | धीरे-धीरे होने वाला हृदय स्पर्श,

फिर नोकझोंक, झगड़े, बोलचाल बंद |

कभी जिद, कभी अहम का भाव, फिर धीरे धीरे बनती जाती प्रेम पुष्पों की माला

फिर एकजीवता, दो शरीर एक आत्मा |

जीवन को परिपक्व होने में समय लगता है | धीरे धीरे जीवन में स्वाद और मिठास आती है...

ठीक वैसे ही जैसे अचार जैसे जैसे पुराना होता जाता है, उसका स्वाद बढ़ता जाता है.......

पति पत्नी एक दूसरे को अच्छी प्रकार जानने समझने लगते हैं,

वृक्ष बढ़ता जाता है, बेलें फूटती जातीं हैं, फूल आते हैं, फल आते हैं,

रिश्ता और मजबूत होता जाता है, धीरे-धीरे बिना एक दूसरे के अच्छा ही नहीं लगता |

उम्र बढ़ती  जाती है, दोनों एक दूसरे पर अधिक आश्रित होते जाते हैं, एक दूसरे के बगैर खालीपन महसूस होने लगता है |

फिर धीरे-धीरे मन में एक भय का निर्माण होने लगता है,

"ये चली गईं तो मैं कैसे जिऊँगा", "ये चले गए तो मैं कैसे जीऊँगी"..........??

अपने मन में घुमड़ते इन सवालों के बीच जैसे, खुद का स्वतंत्र अस्तित्व दोनों भूल जाते हैं |

कैसा अनोखा रिश्ता, कौन कहाँ का और एक बनाया गया रिश्ता | "पति-पत्नी"

 सभी शादीशुदा जोड़ो को समर्पित |

अबकी बार जब नाना जी ने मिलने का समय पूछा तो टका सा जवाब मिला कि ‘अभी मेरे पास समय नहीं है , जब होगा तो फोन कर दूंगा | और वह दिन कभी नहीं आया | फिर भी यदा कदा नानाजी मदन को वैवाहिक जीवन के सुखमय राजों से अवगत कराते रहे |

विवाह एक भरोसा है, समर्पण है |

तारीफ उस स्त्री की, जिसने खुद का घर छोड़ दिया

और

धन्य है वो पुरुष, जिसने अंजान स्त्री को, घर सौंप दिया ..........

 Dedicated to all Couples.

अचानक नाना जी को एक दिन पता चला कि मदन ने मस्तानी से पूछा कि तलाक के पेपर किस पते पर भेज दूं | अभी तक नाना जी ने समझ रखा था कि मदन समय के अनुसार समझ कर सुलह तक पहुँच जाएगा | क्योंकि वह नाना जी से हमेशा बात करता रहा था और अपनी ऐसी मर्जी कभी जाहिर नहीं की थी | इसके बाद नाना जी ने मदन को कभी फोन नहीं किया क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि कोइ उसे उसका अपना सगा ही उसका परिवार तोड़ने की घिनौनी साजिस रच रहा है तथा वह पढ़ा लिखा मूर्ख बन रहा है | मदन अपना खुद का पक्का निश्चय लेने में असमर्थ था इसलिय दूसरों की हाथ की कठपुतली बन कर ऐसा व्यवहार कर रहा था | यह भी निश्चित था कि उसकी गृहस्थी को बर्बाद करने की चाहत रखने वाले एक दिन खुद सामने आएँगे और मुंह की खाएंगे | वह व्यक्ति ठोकर लगने के बाद ही संभलेगा | इसी आशय से नाना जी ने मदन को त्यौहारों पर शुभकामनाओं के सन्देश भेजना भी बंद नहीं किया |

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