Saturday, January 27, 2024

उपन्यास - भगवती (35)

 

भगवान शिव शंकर भोले नाथ की वजह से चाँदनी और प्रभात का मतभेद चार दिनों में ही दूर हो गया |

परन्तु चाँदनी का विश्वास अपने पति प्रभात पर अधिक दिनों तक कायम न रहा सका | मुश्किल से एक महीना बीता होगा कि भगवान शिव शंकर के आशीष एवम चरणों की आस्था का असर धूमिल पड़ गया | चाँदनी का शक्की दिमाग अपने पति के प्रति एक बार फिर चेतन हो गया | इससे पहले कि चाँदनी राकेश को अपने लड़के को समझाने की दिशा में नकारा घोषित कर दे राकेश ने अपना एक उपन्यास आत्म तृप्ति जो राकेश के जीवन पर आधारित था तथा हाल ही में राकेश ने उसे लिख कर पूरा किया था, चाँदनी को छपने से पहले ही पढ़ने को देना पड़ा | राकेश द्वारा हस्तलिखित पन्नों को देखकर चाँदनी ने असमंजसता की स्थिति में पूछा, पापा जी यह क्या है ?

मेरे द्वारा लिखित एक उपन्यास है |

मैं इसका क्या करूँ ?

इसे पढ़ो |

इसे पढने से क्या होगा ?

इसे पढ़ने के बाद शायद तुम्हें ज्ञान हो जाए कि अपने जीवन साथी पर किस हद तक विश्वास करना चाहिए |

परन्तु पापा जी मैंने खुद अपनी कानों से सुना है और आँखों से देखा है |

बेटा जैसे शक्की दिमाग को हिलती झाड़ी भी असली भूत दिखाई देता है उसी प्रकार उसकी आँखे और कान भी धोखा खा जाते हैं |

मैंने अपना उपन्यास चाँदनी की तरफ बढ़ाया तो वह अनमने मन एवम थके से हाथों से पकड़ कर ऊपर जाने के लिए सीढियां चढ़ने लगी | जाते जाते मैंने चाँदनी से कहा, बेटा आप ने तो हिन्दी में स्नातकोत्तर की डिग्री ली हुई है अत: इस उपन्यास को पढकर इसकी समीक्षा भी लिख देना क्योंकि अभी यह काम पूरा नहीं हुआ है |

चाँदनी ने लिखा, आत्म तृप्ति उपन्यास की मूल कथा गुलाब-संतोष नामक मुख्य पात्रों के इर्द गिर्द बुनी गई है | लेखक ने गुलाब-संतोष के मध्य उनके वैवाहिक जीवन में आपसी अटूट विश्वास को दर्शाया है | संतोष के विश्वास को लेखक ने बढ़ा चढ़ा कर दिखाया है क्योंकि वह अपनी पूर्व सहेली तथा रिश्ते में अपनी बुआ माला के विवाह पूर्व अपने होने वाले पति के साथ संबंधों को जानते हुए भी उसके साथ अपने रिश्ते की बात को आसानी से मान जाती है | हो सकता है कहानीकार का यह तर्क हो कि १९६०-७० के दशक के माहौल में लड़की अपनी शादी के बारे में अपने परिवार वालों से बात करते हुए हिचकिचाती थी तथा अपने जीवन साथी के लिए उनके चुनाव पर कोई एतराज नहीं उठाती थी |

यह उपन्यास का कमजोर पक्ष हो सकता था अगर गुलाब अपने विवाह के पश्चात भी माला से सम्बन्ध बनाए रखता | परन्तु गुलाब के आचरण को परख कर संतोष के परिवार वालों को भी  पूरा विश्वास था कि ऐसा नहीं होगा | क्योंकि माला एवं संतोष एक ही परिवार से थी | अत: यह बात दोनों घरों के किसी भी सदस्य से नहीं छिपी थी कि गुलाब एवं माला के एक दूसरे के प्रति  झुकाव को भांपकर उनके रिश्ते की बात चली थी और संतोष यह बखूबी जानती थी कि गुलाब ने अपने ऊपर संयम रखते हुए माला को सही मार्ग समझाकर शादी से पहले चरित्रहीन होने से कैसे बचाया था | इसलिए संतोष को गुलाब पर पूर्ण विश्वास था कि वह अपने लंगोट का पक्का, भारतीय संस्कृति और जीवन के नैतिक मूल्यों को बखूबी जानता होगा |

गुलाब भी संतोष के विश्वास पर खरा उतरा | वह संतोष को एक पूरी तरह समर्पित पति के रूप में मिला तथा अपनी पूर्व प्रेमिका के लगाव को कभी अपने नए संबंधों पर हावी नहीं होने दिया | उसने निष्ठा पूर्वक अपनी पत्नी के साथ सभी कर्तव्यों को पूरा किया |

उपन्यास में दूसरी और एक फ़ौजी पति का अपनी पत्नी पर अगाध विश्वास भी प्रकट हुआ है | जब गुलाब अपनी फ़ौज की नौकरी पर रहते हुए, अपनी पत्नी को अपने घरवालों की छत्रछाया में छोड़कर चला जाता है तब संतोष जो कि घर के सदस्यों, रिश्तेदारों, तथा मिलने-जुलने वालों की हवस एवं कामवासना की दृष्टि से अपने आपको बचाकर रखती है तथा निडरता से सबका सामना करती है, पर पूरा विश्वास रखता है तथा अपनी ग्रहस्थी को सभी उतार चढ़ावों में पूर्णता प्रदान करता है |

माला की गहन बीमारी की बात सुनकर भी गुलाब अपने मनोभावों को प्रकट नहीं होने देता तथा पत्नी के द्वारा जोर देने पर ही वह माला की आत्मतृप्ति के लिए उसके घर जाता है | यह कहानी का सबसे अच्छा और मजबूत पक्ष है जो कि इस उपन्यास आत्मतृप्तिके मूल तत्व विश्वासमें आधारशिला का काम करता है | आत्म तृप्ति उपन्यास ने पति पत्नी के आपसी विश्वास की चरम सीमा को छू लिया है |

Tuesday, January 23, 2024

उपन्यास - भगवती (34)

 

प्रभात को ताकीद करने के बाद राकेश निश्चिन्त हो गया था कि अपने पति पर शक करना चाँदनी का जरूरत से ज्यादा  वहम मात्र था | और यह तो जगत प्रसिद्ध कहावत है कि बहम की दवा तो हकीम लुकमान के पास भी नहीं थी तो फिर चाँदनी को कहाँ से मिलती | यह भी प्रचलित है कि चोर चोरी से जाए पर हेरा फेरी से न जाए | ऐसा ही प्रभात तथा चाँदनी के साथ हुआ | प्रभात ने अपना रवैया नहीं बदला और चाँदनी ने उस पर शक करना नहीं छोड़ा | चाँदनी के जीवन में कई ऐसे अवसर आए जब उसके पति के शुष्क व्यवहार ने चाँदनी को अंदर तक घायल कर दिया था | वह तिलमिला जाती परन्तु प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कह पाती | वह अपने मन की पीड़ा को छिपाना जानती थी | प्रतिरोध करना, उलाहना देना उसका स्वाभाव नहीं था | विडम्बना यह थी कि वह अपने मन की पीड़ा किससे कहती |

चाँदनी के बहम ने आज २५ अगस्त २०११ को उग्र रूप धारण कर लिया था | चाँदनी की सारी व्यथा सुनने के लिए राकेश को अपनी पत्नी के साथ नारायणा जाना पड़ा |  वह भरी बैठी थी | रो रोकर उसकी आँखें लाल सुर्ख होकर बाहर निकलने जैसी प्रतीत हो रही थी | हमें देखते ही चाँदनी ने बिफर बिफर कर रोते हुए अपने पति के ऊपर इलजाम पर इल्जाम लगाने शुरू कर दिए |

पापा जी ये अब भी छिप छिपकर बड़ी धीरे धीरे किसी से बातें करते हैं |

किसी को घर का राशन पहुचाते हैं |

बिजली, पानी और टेलीफोन का बिल जमा करते हैं |

इनके टेलीफोन पर किसी औरत के वाहियात सन्देश आते है |

ये अपने भेजे हुए तथा आए हुए सारे सन्देश मिटा देते हैं |

धीरे धीरे बात करने के बाद ये सब कुछ साफ़ कर देते हैं |

आप खुद जांच लो इनके फोन पर न कोई सन्देश है और न कोई फोन करने की लिस्ट | इत्यादि |

चाँदनी की मनोदशा भांपकर राकेश  अंदाजा लगा लिया था कि अभी उसे कोई सांत्वना देना उचित नहीं होगा अत:राकेश चुपचाप उसके मन के लावे की गर्मी को सहन करता रहा | बल्कि उसको ठंडक पहुंचाने के लिए प्रभात को समझाया कि यह उसकी गल्ती है कि वह टेलीफोन पर अभी भी धीरे धीरे तथा चोरों की तरह चारों तरफ देखते हुए कि तुम्हारी बातें कोई सुन न ले, बातें करता है जिससे शक पैदा होता है |राकेश जानता था कि इतने भयंकर लावे की गर्मी को शांत करने के लिए राकेश के इतने से शीतल शब्द कोई मायने नहीं रखते थे और इसका एहसास राकेश को चाँदनी ने करा दिया, जब उसने कहा, पापा जी आपने इनकी (प्रभात की) बातों को सीरियसली कभी नहीं लिया |

पुराने जमाने के इतिहास से पता चलता है कि उस समय के ठाकुर और चौधरियों तथा आजकल के लोगों के रहन सहन में कितना अंतर आ गया है | उस समय एक औरत को केवल घर से मतलब होता था | उनका आदमी बाहर क्या करता है उनको उससे कोई मतलब नहीं होता था | सभी जानती थी कि ठाकुरों की कई रखैल होती थी परन्तु वे अपना मुहं खोलने का साहस नहीं कर पाती थी | आज समय बदल गया है | शिक्षा के क्षेत्र में औरतों के आ जाने से उनका दबदबा आदमियों पर बढ़ने लगा है | वे चहूँ और उन्नति कर रही हैं जिसमें शक, बहम और अहंकार भी शामिल हो गया है |

अपने पति की बार बार की हरकतों से चाँदनी को कभी कभी लगने लगता था कि अब उन दोनों का जीवन नदी के दो किनारों की तरह होकर रह जाएगा | उनके जीवन में कभी न समाप्त होने वाला कोहरा कई बार छाया परन्तु जैसे प्रत्येक सुबह का सूरज चढते-चढ़ते उस कोहरे का नामों निशान मिटा देता है उसी प्रकार स्वामी भक्त एक भारतीय नारी होने के नाते चाँदनी के मन में भी अपने पति के प्रति प्यार, सनेह, सहानुभ्हूति और अपनेपन की भावना जाग्रत हो जाती थी | हालाँकि उसके पति का व्यवहार चाँदनी को अंदर तक घायल कर जाता था |वह तिलमिलाकर रह जाती थी |थोड़ी देर के लिए उसके मन में आता कि वह उनसे सदा के लिए अपने सम्बन्ध विच्छेद कर ले परन्तु दूसरे पल ही भावानात्मक होकर उसके अंतर्मन से आवाज निकलती जैसा भी है , है तो मेरा  ओर एक और मौक़ा देने की ठान लेती | 

राकेश ने अपनी पत्नी के साथ उज्जैन के महाकालेश्वर तथा इंदौर के ओंकारेश्वर के ज्योतिर्लिंग के दर्शनों का प्रोग्राम बना रखा था | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, भारत की परम पवित्र सप्त पुरियों में से एक उज्जैन नगर (उज्जयिनी, अवंतिका पुरी) में शिप्रा नदी के तट पर अव्यस्थित है | कहते हैं कि एक बार दूषण नाम का राक्षस ब्रह्मा जी वरदान से शक्तिशाली बनकर अत्याचार करने लगा | उसने चारों ओर त्राहि त्राहि मचा दी | इस पर भगवान शिव ने प्रकट होकर उसे अपनी एक हुंकार से जलाके भस्म कर दिया | इसलिय इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकाल पड़ा |

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में माधान्ता पर्वत पर स्थित है | यहाँ नर्मदा नदी दो धाराओं में विभक्त होकर एक टापू सा बना देती है इसी को माधान्ता या शिवपुरी भी कहते हैं | यह एक बहुत ही रमणीक स्थान होने के साथ साथ श्रधालुओं के लिए सभी प्रकार के उत्तम पुण्य-मार्ग खोलने वाला भी है | इसकी परिक्रमा मनोकामना पूर्ण करने में सक्षम कही गई है |

 

 

अब चाँदनी की उग्रवादी मनोदशा को जल्दी शांत करने के लिए उसे भी अपने साथ ले जाने का मन बना लिया | एक औरत जितनी जल्दी उग्रवादी बन जाती है उतनी जल्दी ही उसके मन में समर्पण की भावना भी जाग्रत हो जाती है | खासकर अपने पति एवम बच्चों के प्रति | चाँदनी के साथ भी यही हुआ | उसने अपने मन के सारे विषाद मिटाते हुए प्रभात को कहा, पापा जी घूमने जा रहे हैं |

तो ?

वे मुझे तथा बच्चों को साथ ले जाने की कह रहे थे |

तो जाओ |

उनके साथ मेरा अकेले जाना क्या अच्छा लगेगा ?

क्यों माँ-बाप के साथ ही तो जा रही हो |

सो तो ठीक है परन्तु वे हम सब की देखभाल कैसे करेंगे ?

प्रभात थोड़ी देर के बाद सोचकर बोला, मुझे आफिस से पता करना पड़ेगा कि छुट्टीयाँ मिल सकती हैं या नहीं |

पता कर लेना |

मुझे दुकान के ग्राहकों को भी सूचना देनी पड़ेगी कि मेरी दुकान एक सप्ताह के लिए बंद रहेगी |

जो जो करना है समय से पहले कर लेना |

चाँदनी ने जब अपने पति के मुहँ से सुना, ठीक है तो वह यह सोचकर संतुष्ट हो गई कि अब उसके पति उसके साथ जाने को तैयार हैं |

इस प्रकार चाँदनी ने अपने रूठे पति को भी उज्जैन-इंदौर की यात्रा पर अपने साथ जाने को मना लिया |

राकेश के विचार से चाँदनी का अपने पति को साथ ले जाने के कई कारण रहे होंगे |

१.     वह अपने पति पर विश्वास नहीं कर पा रही थी कि वे अपना रवैया बदल लेंगे |

२.     अकेले रह कर तो वे खुले सांड की तरह हो जाएगें और पीछे से न जाने क्या क्या गुल खिलाएंगे |

३.     चाँदनी को पूरा भरोसा था कि भगवान शिव के सानिध्य से प्रभात के दुष्कर्म करने की प्रवर्ति को विराम लग जाएगा |

४.     चाँदनी की लड़की दसवीं पास कर चुकी थी और लड़का नौवीं में था | बच्चे सब कुछ समझते थे कि उसके पापा जी क्या कर रहे हैं |

५.     चाँदनी यह सोचकर अधिक चिंतित थी कि कहीं उसके बच्चे अपने पापा के पद चिन्हों पर न चल पड़ें |

६.     चाँदनी चाहती थी कि अपने पापा के धार्मिक विचारों से बच्चे भी समझ लें कि उनके पापा कुछ गलत काम नहीं कर रहे थे तथा उनके प्रति माँ का बहम मात्र था | 

७.     धार्मिक प्रवर्ति की होने के कारण उसे विश्वास था कि भगवान शिव की पूजा आराधना उसके पति के अंदर के अज्ञान का संहार करके ज्ञान का प्रकाश फैला देगी और हमारे जीवन की विषाक्ता को हमारे तन मन पर हावी नहीं होने देगी |

८.     दोनों मंदिर शक्ति पीठ होने के कारण औरतों के लिए बहुत ही महत्त्व पूर्ण मंदिर माने जाते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि माँ भगवती जगदम्बे माहाकाली उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती हैं |