Friday, December 1, 2017

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा-33) कलियुग का असर

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा-33) कलियुग का असर
राजा दशरथ के समान राम, भरत लक्ष्मण और शत्रुघ्न, जैसे सेठ राम नारायण के भी चार पुत्र थे, | शिव चरण, ज्ञान चन्द, औम प्रकाश तथा चरण सिंह | सेठ ने यह तो सोच लिया था कि बड़े होकर उसके पुत्र भी त्रेता युग के पुरूषोत्तम राम तथा उनके भाईयों की तरह उसका नाम रोशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे | परन्तु सेठ यह न सोच सका कि अब कलियुग चल रहा था और त्रेता युग तथा कलियुग में बहुत अंतर है |
त्रेता युग में आपसी प्रेम, सदभावना, सत्यता, आदर-सत्कार, विश्वास, इंसानियत और भाई चारा इत्यादि बहुत महत्त्व रखते थे | प्राण जाए पर वचन न जाई को निभाने में अपना गर्व समझते थे | परन्तु कलियुग में आपसी अविश्वास, घृणा, झूठ, निरादर, धोखा, फरेब तथा अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की अपकीर्ति का प्रचलन शुरू हो गया था |
इतनी गनीमत थी कि कलियुग का अभी आगमन हुआ ही था इस वजह से सेठ राम  नारायण के लड़कों पर इस युग का अधिक असर नहीं हो पाया था परन्तु वे कलियुग की तरंग अर्थात लहर से अछूते भी नहीं रह पाए थे |
जैसे राजा दशरथ को राम प्यारे थे उसी तरह सेठ राम  नारायण को अपना बड़ा बेटा शिव चरण बहुत प्यारा था | सेठ निस्वार्थ भाव से कोई भी काम करने से पहले शिव चरण  की सलाह जरूर लेता था | परन्तु शिव चरण  ‘बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रूप्पया’ को ध्यान में रखकर ही कोई कदम बढाता था | अमूमन  शिव चरण  बहुत ईमानदारी से काम करता था परन्तु कभी कभी वे अपने फायदे के लिए अपने अंदर से निकलती तरंग के वशीभूत नाजायज तथा अपने असूलों के खिलाफ भी कदम उठाने से नहीं चूकते थे |     
ऐसी ही विचार धारा के चलते शिव चरण  ने सेठ की कई सलाह को नकार दिया जिससे वे परवान न चढ सकी | राम  नारायण द्वारा सुझाई गई कई जमीन के सौदों को शिव चरण  ने अलग अलग बहाने बनाकर जैसे यह सैयद की है, यह शमशान के पास है, यह सर्प मुंह वाली है इत्यादि बताकर लेने से इनकार कर दिया क्योंकि उनमें उंसके भाई हिस्सेदार बन जाते | इसके विपरीत अपने भविष्य की कल्पना से उन्होंने एक मकान का सौदा करने में कोई आनाकानी नहीं की जब राम  नारायण ने पूछा, बेटा वह सामने वाला अपना मकान गिरवी रखने को कह रहा है |
शिव चरण  एकदम बोला, जैसे वह ऐसे किसी सौदे का इंतज़ार ही कर रहा था, रख लो गिरवी रखने में कोई हर्ज तो है नहीं |
राम  नारायण को मकान मालिक द्वारा बताई गई कीमत कुछ ज्यादा ही लग रही थी अत: कहा, वह १००००/- मांग रहा है |
शिव चरण  ने भी अपने पिता जी के दिल की बात का समर्थन किया, यह तो बहुत ज्यादा रकम है |
राम  नारायण ने अपने तजुर्बे से बताया, गिरवी क्या इतनी तो इस मकान की कीमत भी नहीं होगी |
शिव चरण  ने इस बारे में अपने स्वार्थी मन के वशीभूत सलाह दी, पिता जी वैसे गिरवी के लिए ज्यादा पैसा देना भी हमारे पक्ष में ही रहेगा |
शिव चरण  की सोच राम  नारायण की सोच से बहुत ऊपर की थी | उसे कुछ समझ न आया इसलिए आशचर्य से पूछा, वह कैसे ?
मकान मालिक की माली हालत दर्शा रही है कि वह हमारा पैसा समय पर चुकता नहीं कर पाएगा |
बेटा फिर भी इस मकान की कीमत छह हजार से ज्यादा की नहीं है |
पिता जी बात करके देख लो शायद वह मान जाएगा |
मकान मालिक से बात हो गई वह छह हजार में मान गया | रजिस्ट्री कराने के समय राम  नारायण ने पूछा, रजिस्ट्री किसके नाम कराई जाए ?
शिव चरण  ने अपनी मंशा न बताते हुए जवाब दिया, देख लो |
राम  नारायण ने अपने दिल की बताई,
चरण सिंह के नाम करा देते हैं |
अपनी आशा को निराशा में परिवर्तित होते जान शिव चरण  बोला, पिता जी अभी तो गिरवी रख रहे हैं जब रजिस्ट्री की बात आएगी तो देखा जाएगा |
फिर ?’
पिता जी आप अभी तो अपने नाम से बयाना करा लो |
राम  नारायण अपने बेटे शिव चरण  की बात से सहमत होकर, ठीक है |
और मकान का बयाना हो गया | समय पर पैसा चुकता न करने पर मकान मालिक को राम  नारायण के हक में मकान बेचना पड़ा | समय व्यतीत होने लगा | राम  नारायण का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन बिगडने लगा था | इसलिए समय पर अपनी दिनचर्या के लिए उन्होंने अपने बेटे ज्ञान चन्द  को दुकान की ऊपरी मंजिल पर ही रख लिया था | अब शिव चरण  और औम प्रकाश  पुराने मकान पर रह गए थे | फिर भी यह एक संयुक्त परिवार ही था |
अचानक राम  नारायण का स्वर्गवास हो गया | उनके जाते ही घर में लड़कों के बीच स्वार्थ सिद्धी की होड मच गई | अचानक घर के शांत वातावरण में तूफ़ान आने की सम्भावनाएं मुहँ उठाने लगी | शिव चरण  के अंदर से निकली तरंग ने अपनी दबी आकांशाओं को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया | ज्ञान चन्द  तो पहले से ही अपने पिता जी की देखभाल के नाम पर अपनी रसोई अलग कर चुका था | अब शिव चरण  ने भी मन बना लिया कि उसे भी औम प्रकाश  से अपनी खिचड़ी अलग पकानी शुरू कर देनी चाहिए | मौक़ा भी अच्छा था | राम  नारायण के तीन मकान थे | चरण सिंह बाहर सर्विस करता था | सब भाई यही सोच रहे थे कि वह तो जीवन भर अब यहाँ आकर बसने से रहा | इस बात को ध्यान में रखकर शिव चरण  ने अपनी पुरानी रिहाइस को छोड़कर लिए गए नए मकान में डेरा जमाने का मंसूबा बना लिया |
इसके तहत एक दिन शिव चरण  ने बिना अपने मन की इच्छा जाहिर किए तथा अपने भाईयों के मन की टोह लेने के लिए उनसे पूछा, अब क्या करना है ?
छोटे भाईयों ने शिव चरण  की बात न समझ उल्टा प्रश्न किया, किस बारे में ?
पिता जी के न रहते अब सम्मिलित परिवार चलाना तो मुश्किल है |
औम प्रकाश  ने हामी भरी, हाँ यह तो सही है |
ज्ञान चन्द  ने असमंजसता दिखाई, हमारे पास तीन मकान हैं परन्तु हम भाई चार हैं |
औम प्रकाश  अधीरता से एक दम बोला, चरण सिंह तो बाहर नौकरी करता है और उसके वापिस आने का भी नामुमकिन लगता है |
शिव चरण  बनते हुए जो पहले से ही दूसरे के कंधें से बन्दूक चलाना चाहता था, ने पूछा, तो ?
हम तीनों एक एक मकान ले लेते हैं |
औम प्रकाश  की बात से शिव चरण  को बहुत शकुन मिला | क्योंकि वह यही चाहता था तथा उसकी मनोइच्छा को औम प्रकाश  ने जाहिर कर दिया था | ज्ञान चन्द  पहले से ही एक अलग मकान में रह रहा था अत: उसे कोई आपत्ति क्यों होनी थी | इस प्रकार तीनों भाई ने एक एक मकान के मालिक बनने की ठान ली |
चरण सिंह जो बाहर रहता था उसका कुछ सामान राम  नारायण के पुराने मकान में रखा था | जब कभी वह घर पर छुट्टी आता था तो उसका इस्तेमाल करता था | जब उसकी माँ को अपने तीनों बड़े बेटों की मनशा पता चली तो उन्होंने साफ़ कह दिया कि उस मकान के नीचे का हिस्सा जिसमें चरण सिंह का सामान रखा था वह खाली नहीं करने देगी तथा वह चरण सिंह के लिए ही रहेगा | इतने बड़े मकान में से थोड़ा सा हिस्सा चरण सिंह के लिए सुरक्षित रखने में किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई |
चरण सिंह के अपने पिता जी की तेरहवीं के जाने के बाद कुछ ही दिनों में संदेशा मिला कि उसके सब भाई अलग रहने लगे थे | राम  नारायण की अन्य संपत्ति का निपटारा भी भाईयों ने आनन् फानन में चरण सिंह की अनुपस्थिति में कर दिया | उसका हिस्सा उसकी माँ के सुपुर्द कर दिया गया | चरण सिंह को अपने बड़े भाई शिव चरण  पर पूर्ण विश्वास था कि हिस्सा बाँट में वे किसी प्रकार की कोई बेईमानी नहीं होने देंगे | इसी वजह से उसने इस बारे में कोई आपत्ति नहीं उठाई तथा जैसा उन्होंने किया उस को मान लिया |
चरण सिंह ने जब अचानक बाहर से नौकरी छोड़कर अपने घर बसने की कोशिश की तो उसके  जीवन में एक तरह का भूचाल सा आ गया था | पहले वह जब भी कुछ दिनों के लिए छुट्टियों पर आता था,तो उसके भाई यह कहते नही थकते थे कि  बाहर की नौकरी में क्या रखा है उसे छोड़कर यहीं आ जा यहाँ करने को बहुत काम है अब उसे कोई काम कराने के नाम पर कन्नी काटते नजर आए |
यह तो भगवान ने उसकी माता जी को सदबुद्धी दे दी जिसकी वजह से वह अपने घर में घुसने का मौक़ा पा सका अन्यथा उसके तीनों भाई, उसे भूल कर एक एक मकान के मालिक बन बैठे थे | जब चरण सिंह नौकरी छोड़कर आया था तो उसके तीनों भाई हर प्रकार से संपन्न थे | उनके पास सुख पूर्वक जीने के हर साधन मसलन गाड़ी, टेलीवीजन, कूलर, सोफा,, फ्रिज इत्यादि  सभी कुछ था परन्तु उसके पास इनमें से एक भी नहीं था |
इन्हीं सभी बेजान वस्तुओं के कारण भाई के परिवार के बड़े सदस्यों के माध्यम से बच्चों के बीच ईर्षा फैलाने का काम शुरू हो गया | चरण सिंह के बच्चे अपने ताऊ जी के घर जब टेलीवीजन देखने जाते तो उन्हें कुर्सी या चारपाई पर न बैठाकर नीचे जमीन पर बैठा दिया जाता | गर्मियों में अगर प्यास लगती तो ठंडा पानी नहीं दिया जाता | अगर वे अकेले कमरे में रह जाते तो कूलर बंद कर दिया जाता | वे ईर्षावश आपस में ऐसी बहुत सी बाते करते जो चरण सिंह की हीनता दर्शाती थी |
धीरे धीरे चरण सिंह को महसूस होने लगा कि उसके पास इन भौतिक वस्तुओं की कमी के कारण दो भाईयों के बीच, जो कभी एक थाली में रोटी खाए बिना नहीं रहते थे एक गहरी खाई बनती जा रही है | यह खाई दिन पर दिन इतनी चौड़ी होती गई कि एक दिन ऐसा आया जब चरण सिंह को साफ़ कह दिया गया, तेरा इस मकान में रहने का कोई हक नहीं है तू अपना कही और इंतजाम करले |
घर में कलह का वातावरण व्याप्त होने लगा था | चरण सिंह के परिवार को घर से बाहर खदेड़ने कि लिए हर कदम पर उन्हें तंग करना शुरू कर दिया गया था | चरण सिंह किसी प्रकार का कोई फिसाद खड़ा करना नहीं चाहता था | उसने निजात पाने के लिए अपना मन बना लिया था कि वह गुड़गांवा में अपने एक जमीन के टुकड़े पर मकान बना कर चैन से रहेगा | परन्तु   उसके  भाई औम प्रकाश  को शायद उसका सुख चैन मंजूर न था एक दिन उन्होंने माँ से कहा, माँ मैनें एक मकान बनवा लिया है मैं उसमें जाकर रह लूंगा तू मुझे इस मकान के एवज में चरण सिंह का प्लाट दिलवा दे |
कहाँ बनवा लिया है ?
चलो दिखा लाता हूँ |
और वास्तव में ही वे माँ को एक मकान दिखा लाए जो बनकर पूरा होने वाला था | चरण सिंह ने माँ के कहने पर वह अपना प्लाट भाई के नाम कर दिया | औम प्रकाश  ने वह प्लाट बेचकर ठेंगा दिखाए हुए कहा, न तो मैं यह घर छोड़कर जाऊंगा तथा न ही प्लाट बेचे के पैसे लौटाऊंगा | जिसे जो करना है कर ले |
यही नहीं दो तीन और ऐसे प्लाट जो उन दोनों भाईयों ने मिलकर खरीदे थे उनका भी तिकड़म भिड़ाकर मुनाफ़ा वे खुद ही हड़प कर गए | चरण सिंह जब बाहर नौकरी करता था तो घर आकर कैसे जीवन व्यतीत करना बेहतर रहेगा अधिकतर इनसे ही सलाह लेता था परन्तु नौकरी छोद्दने के बाद ये ही सबसे ज्यादा उसके खिलाफ रहे | अपनी भाभी जी को, जब उनके रिस्ते अपने भाई औम प्रकाश  के साथ ठीक नहीं चल रहे थे तो, चरण सिंह ने ही उन्हें सान्तवना देने का फर्ज निभाकर उनके जीवन की खुशियाँ लौटाने का काम किया था परन्तु न जाने क्यों ये भी  उसके  तथा उसके परिवार के प्रति भाई औम प्रकाश  के व्यवहार से दो कदम आगे ही दिखाई देती थी | चरण सिंह उनके इस घर्णात्मक रवैये का राज उनके आख़िरी दम तक समझ न पाया  फिर भी उसने अपनी तरफ से कभी भी उनका प्रतिरोध नहीं किया तथा उन्हें हमेशा अपने बड़े भाई का दर्जा दिया |
बेकार से बेगार भली को ध्यान में रखकर चरण सिंह ने अपने घर में एक दुकान खोलने का मन बना लिया | ज्ञान चन्द  ने उसे थोड़ा सामान का सहारा देते हुए जनरल मर्चेंट की दुकान खुलवा दी | जिस पर औम प्रकाश  ने टोंट कसते हुए कहा था, कुर्सी पर बैठना सभी की किस्मत में नही होता नमक मिर्च की चुटकी उड़ाने वाले तो बहुत मिल जाते हैं | परन्तु भगवान की दया से चरण सिंह की दूकान का काम किसी की भी सोच से दस गुना ज्यादा फायदेमंद रहा | उसकी दुकान अच्छी चल रही थी | भगवान ने चरण सिंह को छप्पर फाड़ कर पैसा दिया कुछ ही दिनों में  उसके पास भी ग्रहस्थी का हर प्रकार की सुविधा का सामान आ गया था |
चरण सिंह की दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की ने उसके भाई औम प्रकाश  के परिवार के सदस्यों में उसकी तरक्की के अनुपात में ईर्षा बढ़ा दी | जो जिस प्रकार से चरण सिंह के परिवार को नुकसान तथा तंग कर सकता था करने लगा | चरण सिंह की भाभी जी की ईर्षा तो इस हद तक पहुँच गई कि उसने चरण सिंह की दुकान का काम बंद कराने के मकसद से उसकी दुकान की छत को ही मुस्ली की चोट से तोडना शुरू कर दिया | 
अपने बड़े भाई साहब शिव चरण  को चरण सिंह अपने तथा औम प्रकाश  के बीच पनप रहे तनाव से अवगत करा देता था परन्तु  उसे सुलझाने का उन्होंने कभी कोई कारगर कदम नहीं उठाया | चरण सिंह को उनका ऐसा रूखापन कई बार बहुत खटकता था परन्तु यही सोचकर चुप रह जाता था कि शायद वे केवल अपने परिवार में ही उलझे रहना चाहते थे |वैसे जन भी कभी ऐसा मौक़ा आता था जहां चारों भाईयों को मिल कर खर्च करना पड़ता था तो वे बड़े कायदे से उस काम को अंजाम देते थे हांलाकि चरण सिंह  के दूसरे भाई उनके काम की नुक्ताचीनी कर भी देते थे परन्तु उसने कभी भी उनसे किसी प्रकार का विरोध नहीं किया तथा अपनी हैसियत न होते हुए भी जो उन्होंने खर्चे का हिस्सा माँगा उन्हें चुकता कर दिया | चरण सिंह उन्हें अपने पिता के समान समझता था |
चरण सिंह के दोनों बड़े भाई सुख चैन से अलग अलग अपने मकानों में रह रहे थे | इधर औम प्रकाश  तीसरे मकान पर अपना पूरा मालिकाना हक समझते हुए चरण सिंह  को परेशान करता रहता था | एक बार दोनों छोटे भाईयों के मकान को दुरूस्त कराने के लिए दोनों बड़े भाईयों ने हमदर्दी जताते हुए महज पांच पांच हजार सहयोग देने का ऐलान किया | औम प्रकाश  ने तो वे पांच हजार शिव चरण  ये पकड़ लिए परन्तु चरण सिंह ने हाथ नहीं फैलाए | वैसे चरण सिंह आज तक नहीं समझ पाया कि औम प्रकाश  जैसा व्यक्ति जो जमीनों एवं मकानों के बड़े बड़े फैसले कराता हो वह भला अपने मकान का आधा हिस्सा महज पांच हजार में कैसे छोड़ सकता है | चरण सिंह के विचार से ऐसा केवल एक साजिस के तहत ही हो सकता है |
चरण सिंह को अपने ईश्वर पर भरोसा था वह अपने हिस्से का घर ठीक करवा रहा था | मकान का काम धीरे धीरे रेंग रहा था जितनी कमाई होती थी उसी अनुसार उसे थोड़ा थोड़ा बनवाया जा रहा था | एक दिन चरण सिंह  के बड़े भाई आए और बीच गली में खड़े होकर जोर से चिल्लाए, चरण सिंह तू बेईमान है |
चरण सिंह शिव चरण  की इस अप्रत्याशि उपाधी से सकते में आ गया | उसकी समझ में नहीं आया कि  आखिर उसने ऐसा क्या कर दिया था जो आज वे मुझे यह उपाधी दे रहे हैं | उसने उनसे पूछने की कोशिश की परन्तु जवाब न देकर वे वापिस मुड़े और चले गए |
दिन प्रतिदिन लक्षमन एवं भाभी जी का चरण सिंह के परिवार के प्रति घर्नात्मक एवम ईर्षालू  रवैया बढता जा रहा था, उसके मन का गुब्बार भी भारी एवं असहनीय होता जा रहा था | समझ नहीं आ रहा था कि वह अपना मन हल्का कैसे करे | वह लड़ाई झगड़े एवें कोर्ट कचहरी से कोसों दूर रहना चाहता था |  
जब घर के भाईयों में मन मुटाव होता है तो भेडिये की तरह मौके की तलाश में ऐसे कई लोग होते हैं जो अपनी पुरानी रंजिस या ईर्षा को भुनाने की कोशिश करते हैं | जब चार भाईयों के बीच मन मुटाव चल रहा था तथा चरण सिंह के बड़े भाई साहब ने उसे सरे आम बेईमान कहा था तो उसके चाचा के लड़के ने अपना उल्लू सीधा करने के लिहाज से उसके प्रति सहानुभूति दिखाते हुए कहा, मेरा एक रिश्तेदार बहुत नामी वकील है तुम्हें तुम्हारा हक दिला देगा |
कौन सा हक, कैसा हक, भाई साहब  मैं कुछ समझा नहीं ?
चाचा के लड़के ने ऐसे कहा जैसे चरण सिंह एक बहुत बड़ा मूर्ख था, अरे यही बाप की जमीन जायदाद का हक |
परन्तु वह तो मुझे मिल गया है |
मिल गया, अपनी चाल सफल न होते देख उसने फिर कोशिश की, परन्तु आपको पूरा कहाँ मिला है ?
चरण सिंह नें बड़े संयम से कहा, भाई साहब जो मिल गया मैं उसी में खुश हूँ अगर मैं ज्यादा के लिए मुकदमें बाजी करूँगा तो तो सालों बाद जितना मुझे मिलेगा उतना तो मैं बर्बाद कर चुका हूँगा | ऊपर से मन की शांति भंग रहेगी |  किस्मत में होगा तो ईश्वर मुझे और किसी रास्ते से दे देगा | यह किसी गैर ने नहीं बल्कि मेरे भाईयों ने ही तो लिया है जिन्हें इसकी जरूरत है |
चरण सिंह के विचार सुनकर उसके चाचा के लड़के को उठना भारी पड़ गया और उसने हताश सा होकर यह कहते हुए, मैं तो आपकी मदद करना चाहता था आगे आपकी मर्जी कहकर अपने घर की राह पकड़ी |
थोड़े दिनों बाद चरण सिंह को अपने बड़े भाई शिव चरण  की इस हीन भावना तथा उसके प्रति स्वार्थ भरी ईर्षा का पता चल गया |  कुछ दिनों पहले वे एक राजी नामे का पत्र लाए थे | पत्र को चरण सिंह की तरफ बढ़ाकर कहा था, इस पर अपने दस्तखत कर दो |
यह क्या है ?
पढ़ ले |
चरण सिंह ने पढ़ा | लिखा था, राम  नारायण के चार पुत्रों की सहमती के अनुसार शिव चरण  और ज्ञान चन्द  अलग मकानों में रहेंगे तथा औम प्रकाश  और चरण सिंह पुराने मकान में आधे आधे के हकदार होंगे |
चरण सिंह ने अपनी खोजी नजर अपने बड़े भाई की तरफ देखकर पूछा, इसकी क्या जरूरत है ?
बस ऐसे ही कि बाद में बच्चों के बीच आपस् में कोई तकरार न हो |
चरण सिंह ने उन्हें याद दिलाने के लहजे में जवाब दिया, तकरार तो मैंने तब भी नहीं करी थी जब आपने मेरे बिना पिता जी की संपत्ति का बंटवारा कर दिया था |
शिव चरण  के पास इसका कोई जवाब नहीं था | उन्होंने इतना ही कहा, हमारी बात और थी आगे वैसा समय नहीं रहेगा |
चरण सिंह ने अपने भाई को आश्वासन दिया, भाई साहब मुझे इसमें कोई एतराज नहीं है |
इतना सुनते ही शिव चरण  ने पैन चरण सिंह के हाथ में थमाते हुए बताया, यहाँ दस्तखत करदो |’
उस पत्र के अनुसार शिव चरण  सभी भाईयों से उस मकान का मालिकाना हक चाहते थे जिसमें वे रह रहे थे | हालाँकि उस मकान पर चरण सिंह का हक था क्योंकि राम  नारायण ने यही सोचकर वह मकान खरीदा था | फिर भी चरण सिंह ने उनके पत्र पर चुपचाप दस्तखत कर दिए थे |
चरण सिंह से दस्तखत कराने के बाद शिव चरण  ने औम प्रकाश  से भी राजीनामा लेना चाहा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया था | बल्कि उन्होंने शिव चरण  पर बहुत से इल्जाम लगा कर यहाँ तक कह दिया कि वह पंचायत बुलाकर पूरा फैसला कराएगा |
औम प्रकाश  के एतराज ने शिव चरण  की रातों की नींद उडा  दी | शिव चरण  परेशान रहने लगा कि उस समस्या से कैसे पार पाया जाए | उनके दिमाग ने या किसी की सलाह से उन्होंने औम प्रकाश  का भरोसा हासिल करने के लिए अपने ईमानदार भाई से ईर्षा करने का नाटक करने का फैसला ले लिया | इन्हीं विचारों के चलते शिव चरण  ने अपने दिल पर पत्थर रख कर चरण सिंह को बेईमान कहने से कोई गुरेज नहीं किया था |
चरण सिंह को अपने प्रति शिव चरण  की बेरूखी का राज पता चल गया था | इसके कारण ही जब भी चरण सिंह उनसे लक्षमन की कोई शिकायत करता था तो शिव चरण  चुप्पी साध लेते थे | वास्तव में अपने बड़े भाई की बेबसी और संतान मोह को भांपकर चरण सिंह खुलकर रोए बिना न रह सका था क्योंकि वह भी अपने आप को उनके बेटे के सामान ही समझता था | यही वजह रही कि शिव चरण  द्वारा अपना तिरस्कार सहने के बाद भी चरण सिंह ने उनके प्रति अपनी इंसानियत व श्रधा कायम रखी और अपने भाई शिव चरण  के प्रति मन में कोई गिलानी नहीं लाया |
एक छोटे से प्रलोभन के लिए अपने बेटे तुल्य भाई से ईर्षा करने का नाटक भी शिव चरण  को अपनी मंजिल तक नहीं पहुंचा पाया क्योंकि औम प्रकाश  ने उनके पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए | इससे शिव चरण  को बहुत पश्चाताप हुआ और एक दिन खाने के समय वह आकर चरण सिंह के घर बैठ गया और चुपचाप खाना खाकर चला गया | उनके इस व्यवहार से चरण सिंह समझ गया कि असलियत में उनकी वह ईर्षा नहीं थी बल्कि उनकी बुद्धि पर कलियुग के कारण अपनी वास्तविक संतान मोह का असर था |



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