Thursday, December 14, 2017

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा-36) अमिट छाप


जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्म कथा-36) अमिट छाप
समय बितता गया | चरण सिंह की शादी हो गई | वह तीन बच्चों का बाप भी बन गया | वह अपनी फौज की नौकरी छोड़कर घर आ गया | यहाँ आकर उसने काफी अच्छी तरक्की कर ली तथा अपने को इस काबिल बना लिया कि अपने परिवार के लिये हर जरूरत का सामान जुटा सके | देखते ही देखते उसने अपनी लड़की की शादी भी एक सभ्रांत परिवार में कर दी |
वैसे तो चरण सिंह (मैं) और उसकी बड़ी बहन इन्द्रा की उम्र में लगभग 18 साल का अंतर था परंतु किसी कारणवश उसकी बहन के बच्चे अब शादी लायक हुए थे | जब चरण सिंह अपने बड़े लड़के की शादी की सोच रहा था तो बड़ी बहन जी की लड़की बबलीका रिस्ता पक्का हो गया | अतः भात भरने की बात उठी जो चरण सिंह समेत उसके तीनों बड़े भाईयों को मिलकर भरना था | इसके लिये एक दिन चरण सिंह के फोन की घंटी टन टनाई  | चरण सिंह ने चोगा अपने कान पर लगाया तो उसे आवाज सुनाई दी, हैलो, हैलो ! कौन, चरण सिंह |
चरण सिंह अपने भाई ज्ञान चन्द की आवाज पहचान कर,” नमस्ते भाई साहब |”
नमस्ते, अच्छा ऐसा है कि हम तीनों यहाँ बैठे हैं | बड़ी बहन जी की लड़की बबली के भात के बारे में बातें करनी हैं इसलिये तुम भी आ जाओ |”
भाई साहब अभी मैं यहाँ अकेला हूँ | घर पर कोई नहीं है | आप लेने देने का जो फैसला करो कर लो मुझे मंजूर होगा | अगर यहाँ कोई आ गया तो मैं आ जाऊंगा |”
ज्ञान चन्द टेलिफोन रखते हुए, अच्छा ठीक है |”
लगभग आधा घंटा व्यतीत होने पर एक बार फिर चरण सिंह के टेलिफोन की घंटी टन टनाई टर्न टर्न |
चरण सिंह ने टेलिफोन उठाकर, हैलो |”
दूसरे छोर से चरण सिंह के भाई ज्ञान चन्द बोले, हाँ भाई हमने फैसला कर लिया है कि हम भात नहीं भरेंगे तथा न ही हममें से कोई शादी में जाएगा |” 
चरण सिंह अपने भाई साहब के ऐसे वचन सुनकर सकते में आ गया | उसे विशवास ही नहीं आ रहा था कि उसके तीनों बड़े भाई ऐसा फैसला भी ले सकते हैं | उसने तो यह सोचकर उनसे कह दिया था कि जितना खर्चा करना है इसका फैसला वे कर लें उसे मान्य होगा | चरण सिंह ने यह तो सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके भाई अपनी सगी भांजी के विवाह के लिये ऐसा रूख अपनाएंगे | अपने भाईयों का फैसला जानकर चरण सिंह का रक्त प्रवाह एक दम बढ़ गया | उसके दिमाग की नसें फटने सी लगी | चरण सिंह ने टेलिफोन का रिसीवर रखते हुए इतना ही कहा, “ठहरो मैं आता हूँ फिर बातें होंगी |”
इसके बाद चरण सिंह ने फटाफट अपनी दूकान बन्द की | घर में ताला लगाया तथा अपने भाईयों के पास जा पहुँचा | चरण सिंह आराम से बैठकर, हाँ भाई साहब अब बताओ कि क्या फैसला किया ?”
औम प्रकाश :-यही कि न तो हम भात देंगे तथा न ही हम शादी में जाएंगे |
चरण सिंह कुछ सोचकर, आप लोगों की शादी में न शरीक होने की बात तो एक बार को मान भी ली जा सकती है क्योंकि हो सकता है आप लोगों को उस दिन इस काम से भी ज्यादा जरूरी काम हो परंतु आप अपनी भांजी के कन्यादान के लिये कुछ नहीं भेजोगे यह बात तो कुछ जँचती नहीं |”
इसमें जँचने ओर न जँचने की क्या बात है ?”
चरण सिंह थोडा रूककर, बात है | मैं आप से एक बात पूछता हूँ | अगर आपके यहाँ किसी नाई, धोबी, चमार या राजपूतों के घरों से किसी की लड़की की शादी का कार्ड आता है तो क्या आप उसके लिये कन्यादान नहीं भेजते ?”
चरण सिंह के तीनों भाई एक साथ बोले, “भेजते हैं परंतु वह और बात है |”
और बात है ! मैं नहीं समझ पा रहा कि आप लोगों को क्या हो गया है ? जब आपके यहाँ किसी गैर जात का कार्ड आ जाता है तो आप उनके यहाँ कन्यादान भेजना नहीं भूलते और जब आप लोगों की खुद की सगी भांजी की शादी का कार्ड आया है तो आप भात देने से तो कतरा ही रहे हो उसमें कन्यादान देना भी तुम्हे अखर रहा है |”
शिव चरण :-उन्होंने काम ही ऐसा किया है कि वे कन्यादान लेने के भी काबिल नहीं हैं |
ऐसा उन्होंने क्या कर दिया मैं भी तो जानूं, चरण सिंह ने जानना चाहा |
औम प्रकाश :- बहन जी हमारे यहाँ भात नौतने नहीं आई | जब भात ही नहीं नौता तो हम भात क्यों भरें ?
चरण सिंह ने अपना तर्क पेश किया, “ठीक है | बहन जी हमारे यहाँ भात नौतने नहीं आई तो क्या आप में से किसी ने इतनी तकलीफ उठाई कि उनसे पूछ लेते कि बहन जी भात नौतने क्यों नहीं आई, क्या कारण है ? हो सकता है उनकी कुछ मजबूरी रही हो |”
औम प्रकाश :-चरण सिंह तू उनके इतनी फेवर वाली बात क्यों कर रहा है ?
शिव चरण :-बिलकुल सही | यह तो सरासर फेवर वाली बात है |
फेवर, फेवर, इसमें मैने ऐसी कौन सी बात कह दी जो यह दरसाती हो कि मैं उनका फेवर कर रहा हूँ | जैसे वह तुम्हारी बहन है वैसे ही मेरी भी है | मुझे वह अलग से खोए के लड्डू नहीं खिला रही जो आप लोगों को नहीं मिले |
फिर चरण सिंह ने अपना दो टूक फैसला सुनाते हुए कहा, “सभी सुंन लो कोई जाए या न जाए मैं तो शादी में अवशय जाऊँगा |”
एक बार को चारों ओर खामोशी छा गई | सभी अपने अपने विचारों में खो गये | चरण सिंह  एक एक करके सभी के चेहरों पर उतरते हाव भाव परखने लगा | चरण सिंह के ऐसे दो टूक जवाब की शायद किसी भी भाई को आशा न थी | थोड़ी देर की निस्तब्धता के बाद :
शिव चरण :- क्या हमनें किसी की खाट के नीचे आग बाल (जला) दी थी जो दिल्ली आकर भी वे (जीजा जी) हमसे मिलने नहीं आते | और तो और खुद कार्ड देने भी नहीं आए |
यह तो मुझे नहीं पता कि किसने किस की खाट नीचे आग जला रखी है परंतु इतना अवशय जानता हूँ कि शादी का कार्ड देने खुद मनीष आया था | और शायद आप सभी के यहाँ भी वही खुद कार्ड देकर गया होगा |”
ज्ञान चन्द :-वह तो कार्ड दे गया परंतु जीजा जी खुद तो नहीं आए ?
शिव चरण :- यही तो मेरा कहने का मतलब था कि वे क्यों नहीं आ सकते थे ?
चरण सिंह सभी भाईयों को सम्बोधित करते हुए, वैसे मुझे कहना तो नहीं चाहिये क्योंकि फिर आप सब यही कहोगे कि मैं बहन जी का फेवर कर रहा हूँ परंतु जब बात उठी है तो कहना भी पडेगा | अच्छा एक बात बताओ | आप सभी ने अपने अपने बच्चों की शादी कर ली है | क्या कभी आप में से एक बार भी कोई खुद कार्ड देने अपनी गरीब बहन के पास शामली गया है ?
असली प्रश्न का मुद्दा छोडकर सभी भाई एक साथ, तेरे गरीब बहन कहने का क्या मतलब है ?
चरण सिंह ने अपने भाईयों के उपर खोजी नजर डालते हुए कहा, “आप सब का दिल अच्छी तरह समझता हैं कि मैने ऐसा क्यों कहा है | और हाँ हो सकता है वह भात नौतने भी इसीलिये न आई हो क्योंकि उसे भी आभाष है कि उसके भाई उसके बारे में क्या सोचते हैं | परंतु मेरे विचार से वह गरीब नहीं है क्योंकि उसका मन गरीब नहीं है | गरीब आप सब लोग हो क्योंकि आप लोगों का मन गरीब है | आप अपने आप को किस लिये धन्ना सेठ समझते हो ? क्या कभी किसी ने तुम्हारे सामने सहायता के लिये हाथ फैलाया है | शायद यही सोचकर कि उसका भात नौतना उसके भाईयों को उसका हाथ फैलाना ही लगेगा वह नहीं आई होगी |”
चरण सिंह की बात सुनकर जैसे तीनों भाईयों को साँप सूंघ गया हो | किसी को भी जवाब देते न बन पडा | जवाब देते भी कैसे जो चरण सिंह ने बातें कही थी वे बिलकुल सही थी |
कहते हैं एक खून को परास्त होते देख उसका अपना दूसरा खून जोश मारता है | वही हुआ | स्शिव चरण का लड़का राकेश अपने पिता जी की चुप्पी सहन न कर सका | वह बौखलाया हुआ एकदम आपे से बाहर होकर बोल उठा, "सभी बुआ तो चाहती हैं कि उनका तो कुछ लगे नहीं और हम उन्हें सब कुछ देकर हरिद्वार चले जाएँ |”   
चरण सिंह जिसे राकेश की बात बहुत अखरी, उसकी तरह आपे से बाहर होते हुए, अरे तू अपनी बहन को तो चवन्नी दे नहीं सकता तू अपनी बुआओं को क्या देगा ? नहीं तो बता ,आज तक तूने, अपनी बुआओं की बात छोड़, अपनी बहनों को क्या दिया है ?”
राकेश पहले की तरह वैसे ही तैश में आंखे तरेर कर, ना हम तो किसी को कुछ देते ही नहीं |”
चरण सिंह जो राकेश की आंखे सहन न कर सका, खड़े होकर, अबे ये अंडे जैसी आंखे उनको दिखाना जिन्हें इनको सहन करने की आदत पड़ चुकी है | मेरे सामने ऐसा किया तो आंखे निकालकर हाथ में दे दूंगा | कहीं अपने को गामा समझता हो |”
इसके बाद चरण सिंह के तीनों भाई तथा उसकी बड़ी भाभी एकदम चरण सिंह के चारों और खड़े होकर कहने लगे कि, गाली नहीं, गाली नहीं | चरण सिंह का तमतमाया चेहरा देखकर किसी अनहोनी घटना को टालने के लिये राकेश को चरण सिंह के सामने से हटा दिया गया | शायद चरण सिंह ने अनजाने में किसी गाली का प्रयोग कर दिया था | चरण सिंह का रक्त चाप बढ़ गया था अतः उसने रक्त चाप की दो गोलियाँ ली तथा जब राहत महसूस हूई तो अपना निर्णय सुनाते हुए बोला, "खैर जो हुआ सो हुआ | मैं आपको बताना चाहता हूँ कि मैं तो बबली की शादी में अवशय जाऊंगा तथा कन्यादान भी अवशय दूंगा | आगे आप अपनी जानो |”
(कहना न होगा समय पर चरण सिंह अपनी भानजी की शादी में गया और उसके भाईयों ने भी उसका अनुशरण किया था)
इसके लगभग एक साल बाद चरण सिंह के बड़े लड़के की शादी तय हो गई थी | चरण सिंह एवं उनके बड़े भाई औम प्रकाश में कुछ मन मुटाव चल रहा था | चरण सिंह को यह कभी समझ नहीं आया कि आखिर उसके भाई  की नाराजगी का कारण क्या था | शायद चरण सिंह की अप्रत्याशित उन्नति ने औम के मन में ईर्षा का बीज बो दिया था, जो भगवान की अनुकम्पा से उसे मिली थी परन्तु वे पचा नहीं पा रहे थे |


इतना होने पर भी, छोटा भाई होने के नाते चरण सिंह अपने बड़े भाई को हर पल की खबर देता रहता था फिर भी औम प्रकाश के व्यवहार से हमेशा उनके रूखेपन का आभास हो जाता था |
चरण सिंह के लड़के के चाक पूजन का समय भी आ गया | सभी मेहमान एकत्रित थे | परंतु अपने भाई औम  प्रकाश के परिवार का उपस्थित न होना चरण सिंह को चैन नहीं लेने दे रहा था | खुशी के माहौल में उसका मन दूखित था | अतः एक दो मेहमानों के साथ वह अपने भाई के घर उनको बुला लाने के लिये गया | घर के अन्दर उसने देखा कि उसकी बड़ी भाभी तथा उनका लड़का राकेश उनके भाई के अगल बगल बैठे थे | चरण सिंह सीधे स्वभाव वहाँ गया था तथा उसे किसी प्रकार का कोई अन्देशा नहीं था
नमस्ते भाई साहब |”
नमस्ते | कह कैसे आया ?”
भाई साहब चलो, चाक पूजने की तैयारी हो गई है |”
औम प्रकाश जो शायद ईर्षा से भरा बैठा था, तू मुझे बुलाना ही नहीं चाहता |”
चरण सिंह आश्चर्य परंतु बड़े ही निर्मल स्वर में बोला, “भाई साहब यह आप क्या कह रहे हो | मैं तो हर बात से आपको सूचित करता आ रहा हूँ |”
औम थोडा गुस्से में, यह सब दिखावा है | असल में तू मेरे परिवार को बुलाना ही नहीं चाहता |” और अचानक जैसे वे आपे से बाहर हो गये, तू कुत्ता है | कुत्ते मैं तूझे जानता हूँ | तू घुन्ना है | कुत्ते तू अपने को क्या समझता है | कुत्ते तेरे पास थोडा सा पैसा क्या आ गया तू अपने को धन्ना सेठ समझने लगा | तू माँ का सारा पैसा हड़प गया कुत्ते | तेरे जैसे कुत्तों को मैने बहुत देखा है | कुत्ते तुझे तो मैं ही ठीक करूंगा, कुत्ते |”
जब औम प्रकाश, चरण सिंह के प्रति कुत्ते कमीने जैसे श्ब्दों की बौछार लगा रहा था तो उसकी अगल-बगल में बैठे उसकी भाभी तथा भतीजे राकेश के चेहरों पर मुस्कान बिलकुल साफ नजर आ रही थी |  औम प्रकाश ने उनके सामने ही चरण सिंह को सैकडों बार कुत्ता कमीने की उपाधि दी परंतु उन दोनों में से एक बार भी किसी ने भी, झूठे से भी, औम प्रकाश को ऐसा कहने से रोका नहीं | इसके विपरित जब बबली के भात को लेकर, चरण सिंह के मुहँ से अनजाने में राकेश के लिये, जिसका चरण सिंह को ज्ञात भी नहीं था कि वह क्या थी, एक गाली निकल गई थी तो सभी एक साथ भड़क उठे थे |
सोच विचार के बाद चरण सिंह को यह बात तो साफ पता चल गई कि उसकी भाभी ने चरण सिंह  को अपने लड़के को दी गई एक गाली के बदले उसे सैकडों गालियाँ दिलवा दी थी | हालाँकि राकेश को अपने मम्मी पापा एक आंख न भाते थे तथा हमेशा उनके बीच कहा सुनी होती रहती थी | छोटी छोटी बातों पर वह उनको आंखे दिखाता रहता था | फिर भी अपना खून तो अपना ही खून होता है | परंतु चरण सिंह की समझ में यह नहीं आया कि उसके भाई औम प्रकाश ने, जिसका खून उसके खून से मिलता था, बीच में भांड का रोल किस लिये अदा किया | शायद चरण सिंह की समानता वाला खून ईर्षा के कारण जल-भुन कर खत्म हो चुका था  |   
अपनी माँ सी भाभी एवं भाई के व्यवहार को महसूस करते करते चरण सिंह का मन ग्लानि से भर गया तथा उसकी यह ग्लानि उसकी आंखो के रास्ते अश्रुओं के रास्ते बाहर  निकलने को बेताब हो गई | इसके साथ ही चरण सिंह को एक बुजूर्ग के 30 साल पहले कुत्तों के बारे में कहे शब्द अपने कानों में गूंजने का आभास हुआ, “कुत्तों की जाती सा आभाष कहीं-कहीं अपनी जात में भी होता है .........मैं उन लोगों को कुत्तों की जात में ही शामिल करता हूँ तथा ऐसे लोगों से घृणा करता हूँ | मैं उनसे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता |”
अचानक चरण सिंह को अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श मह्सूस होने से उसकी तंद्रा टूटी | उसने अपने चारों और देखा | सभी मौन खड़े थे | चरण सिंह ने बाहर आने को अपने कदम बढाए ही थे कि उसके सामने उसके जीजा जी कृष्ण कुमार जी आ गये | उनको देखते ही चरण सिंह के दिमाग ने पलटा खाया तथा उसे उनके (कृष्ण कुमार जी के) पिता जी द्वारा कही बहुत पुरानी एक कहावत याद आ गई कि चलना सड़क का चाहे फेर क्यों न हो और बैठना भाईयों का चाहे बैर क्यों न हो’| हालाँकि चरण सिंह का मन अपने भाई के मुख से अपशब्द सुनकर ग्लानि से भरा था फिर भी इस कहावत के याद आते ही वह पलट कर एक बार फिर कोशिश करने लगा कि उसके भाई का परिवार उसकी खुशी में शामिल होना ही चाहिए |
अपने भाई के परिवार के, उसके टेहले में, सम्मिलित होने से चरण सिंह की खुशी का पारावार न रहा | सब कार्य खुशी-खुशी सम्पन्न हो गए | परंतु अब भी चरण सिंह जब अकेला बैठता है तो उसे अपने भाई के कहे "कुत्ते" शब्द की गूंज अपने कानों में सुनाई देने लगती है | तथा मन में एक टीस सी भर देती है | उसे ऐसा महसूस होने लगता है जैसे सैकडों बार कहे उनके कुत्ते शब्द ने उसे हर बार काटा था | और वह काटना उसके शरीर पर तथा मन पर कई गहरे घाव छोड़ गया है जो अभी तक हरे हैं |
ये घाव अपने हैं क्योंकि इनको अपनों ने दिया है | इनसे खून नहीं बहता परन्तु रह रहकर टीस उठती है जैसे इनमें मवाद भर गई हो | शब्दों की चोट सीधे दिल पर लगती है और जिंदगी भर के लिए नासूर बन जाती है क्योंकि शब्दों की मार तलवार से भी अधिक धारदार होती है |
कई बार तन्हाई में बैठने पर चरण सिंह की आँख से निकले आँसू भी अभी तक उसके दिमाग में लगी उस छाप को धो नहीं पाए हैं | चरण सिंह को अब ऐसा लगता है कि जैसे उसके भाई द्वारा ईर्षावश दी गई उपाधि की यह छाप आजन्म उसके दिलो दिमाग पर छाई रहेगी अतः बन गई है एक अमिट छाप |


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