Tuesday, December 5, 2017

जीवन के रंग मेरे संग (मेरी आत्मकथा- 34) आख़िरी भात

लाला राम नारायण के चार लड़के तथा छह लड़कियां थी | उनके १५ नातिन तथा १० नाती थे | परन्तु वे अपने किसी भी नाती या नातिन की शादी न देख सके थे | अर्थात उनके लड़कों ने अपने पिता जी के सामने किसी भी भांजे या भांजी का भात नहीं भरा | लाला राम नारायण जी के स्वर्गवास सिधारने से पहले उनका परिवार एक संयुक्त परिवार था | हालाँकि उनके बाद उनके सभी बेटों ने राजी खुशी अपने अपने परिवार का कार्य भार अलग अलग संभाल लिया था परन्तु आपस में एकता बनाए रखना बहुत जरूरी था | भाईयों में सबसे बड़ा होने के नाते शिव चरण ने यह फर्ज बखूबी निभाया |
भात भरने शुरू हुए तो एक के बाद एक सिलसिला चलता ही रहा | शिव चरण भात भरने का सारा प्रबंध खुद करते | यह तो तर्क संगत, व्यावहारिक एवं जायज बात थी कि वे भात का पूरा खर्चा चार हिस्सों में बाँट कर अपने भाईयों से उनका हिस्सा वसूल लेते थे | उनकी देख रेख में तेईस भात हंसी खुशी निबट गए | अब तक उनकी पांच बहनों के सभी बच्चों की शादियाँ हो चुकी थी | अब केवल उनकी छोटी बहन अनीता (सुशीला) के दो बच्चों की शादियाँ होनी रह गई थी कि अचानक वे स्वर्ग सिधार गए |
समय व्यतीत होने लगा | अनीता के बच्चे भी शादी लायक हो गए | वह दिन भी आया जब उनकी लड़की राशि का रिस्ता भी पक्का हो गया | अनीता ने, बड़ा भाई न रहने के कारण, अपने बाकी तीनों भाईयों से जानना चाहा कि वह भात नौतने कहाँ आए | वैसे तो उसका फर्ज बनता था कि वह इस बारे में शिव चरण से छोटे भाई ज्ञान चन्द से सलाह लेती और शायद उसने ऐसा किया भी होगा परन्तु उनके निराशा जनक रवैये तथा उससे छोटे भाई की आकांशाओं को भांपकर उसने सभी से पूछना उचित समझा होगा |
मैनें समय की नजाकता को देखते हुए उचित समझा कि सभी भाईयो को एक साथ बिठाकर इस बारे में फैसला लिया जाए कि भात कहाँ नुतवाया जाए, उसकी रकम कितनी हो तथा किस दिन नुतवाना ठीक रहेगा | इसके लिए भाई ज्ञान चंद के यहाँ बैठक हुई जिसमें औंम प्रकाश एवं राकेश भी शामिल हुए |
बैठते ही औम प्रकाश ने अपनी महत्त्वकांशाओं को उजागर करते हुए अपना मत प्रकट किया, यह हमारे यहाँ से आख़िरी भात है इसलिए हमें पूरे रंग चाव से करना चाहिए |
अपने चाचा जी के उतावलेपन को देखकर राकेश ने पूछा, भात नौतने जैसे छोटे से कार्यक्रम को रंग चाव से करने से आपका क्या मतलब है ?
बस तुम देखते रहो कि मैं क्या करता हूँ |
औम प्रकाश का आख़िरी भात कहना मुझे कुछ अटपटा सा लगा अत: पूछा, आप इसे आख़िरी भात क्यों कह रहे हैं जबकि राशि का भाई वरुण अभी कुंवारा है ?
वरुण का क्या भरोसा पता नहीं उसकी शादी होगी भी या नहीं |
क्यों ?”
उसके लक्षणों के कारण |
बातों ही बातों में पता चला कि कुछ दिन पहले अनीता औम प्रकाश से मिलने उनके घर आई थी क्योंकि उन दिनों उनकी तबीयत खराब चल रही थी | मैनें औम प्रकाश से पता करने के लिए पूछा, क्या अनीता कुछ कह रही थी?
वह कह रही थी लड़का अच्छा है, उसका काम बढ़िया है तथा परिवार भी सभ्य एवं पढ़ा लिखा है |
ज्ञान ने कुरेदा, भात के बारे में कुछ बात हुई ?
हाँ पूछ रही थी कि भात नौतने कहाँ आऊँ |
राकेश ने, जिसके मन में खर्चे को लेकर जिज्ञासा बनी हुई थी पूछा, वह तो हो जाएगा पहले यह तय करलो कि भात कितने का देना है |
औम ने अपने अकेले का फैसला सुनाते हुए कहा, देखो भाई बात साफ़ है | मैनें अनीता से कह दिया है कि हम भात पचास हजार का देंगे |
औम प्रकाश की बात सुनकर बाकी सभी के मुहं से अचानक निकला, पचास हजार ?
हाँ पचास हजार|
ज्ञान: तुमने अपने मन से ऐसे कैसे कह दिया | इस बारे में हमसे तो कोई जिक्र किया नहीं ?
राकेश: इससे पहले तो १२-१३ हजार से ज्यादा का कोई भात दिया नहीं | अब अचानक इतना ज्यादा कैसे तय कर दिया ?               
औम: आज से दस साल पहले दिए भात में और अब दिए जाने वाले भात में बहुत फर्क है |
राकेश: वो क्या ?
औम: अब महंगाई कितनी बढ़ गई है | आजकल दस हजार में होता ही क्या है ?
ज्ञान: पहले तो तुम दस हजार के नाम पर ही बिदक उठते थे कि इतना ज्यादा |
राकेश: मानलो महंगाई बढ़ भी गई है तो इतनी तो नहीं कि पांच गुना हो गई है ?
औम अगर दबता था तो अपने बड़े भाई शिव चरण से | उनके बाद औम के मन में बहुत दिनों से दबी महत्वकाशाओं ने बाहर निकलना शुरू कर दिया था | अब वह अपने से बड़े भाई ज्ञान चंद को दरकिनार करके अपने को परिवार का मुखिया समझने लगा था तभी तो बिना किसी से सलाह लिए उसने अपना रूतबा दिखाने के लिए अनीता से पचास हजार का भात भरने को कह दिया था | औम के पास ज्ञान तथा राकेश द्वारा पूछे गए सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए उसने झल्लाकर कहा, देखो मैनें कह दिया सो कह दिया | आगे आप जानो | अब आगे बात करो कि कैसे करना है |
थोड़ी देर को चुप्पी व्याप्त हो गई | अपने भाई औम की बात सुनकर मेरे मन में अचानक शंका उपजी कि हो न हो उनके कथन में कोई गहरी शतरंज की चाल का समावेश जन्म ले चुका है | क्योंकि हमेशा से ही उनकी चाल सोची समझी दूरगामी परिणाम देने वाली होती थी |
बातों का सिलसिला जारी करते हुए ज्ञान ने सुझाव दिया, इससे पहले बड़े भाई साहब एवं मैनें ही अपने यहाँ भात नुतवाए हैं अत: इस बार अगर तुम दोनों में से किसी के यहाँ भात नुत जाए तो अच्छा रहेगा |
औम: अनीता पहला भात नौतने आएगी इसलिए अपने साथ अपनी नन्द नन्दोईयों एवं अन्य रिश्तेदारों को भी अवश्य लाएगी |         
ज्ञान: हाँ कम से कम १२-१४ व्यक्ति तो हो ही जाएंगे |
राकेश: फिर तो इस काम के लिए चाचा जी का गुडगांवा वाला मकान ही ठीक रहेगा |
ज्ञान: हाँ तू ठीक कह रहा है |
औम ने बुझे दिल से अपनी सहमति जताकर मुझ से पूछा, क्यों तुझे कोई एतराज तो नहीं है ?
मुझे क्या एतराज होगा | जैसा आप सभी का विचार हो मैं उसी से सहमत हूँ |
ज्ञान: तो ठीक है यह निश्चित हो गया है कि भात चरण के घर गुडगांवा में ही नुतेगा |
औम: फिर अपना अपना खर्चे का हिस्सा देने का कैसे रहेगा ?
राकेश: देखो बात साफ़ है | वैसे तो इस खर्चे में मेरा हिस्सेदार होना ही जायज नहीं है | क्योंकि बाबू जी ही नहीं हैं | फिर भी मैं भाभी जी (मम्मी जी) से सलाह करके जो देना होगा दे दूंगा |
औम: भाई साहब नहीं हैं तो क्या भाभी जी तो अभी हैं ?
राकेश: तभी तो कह रहा हूँ कि उनसे सलाह करके ही कुछ कह सकता हूँ | हाँ अगर पहले की तर्ज पर खर्चे का रुझान होता तो मैं अभी देने की हामी भर लेता |
ज्ञान: मुझे जो देना था मैं तो अनीता को पहले ही दे चुका हूँ |
औम: आप ने भात से पहले ही क्या दे दिया ?
ज्ञान: एक टेलीवीजन और दो तीन सामान और |
औम: क्या ये वस्तुएँ भात के नाम की दी थी ?
ज्ञान: इस बात से कोई मतलब नहीं | मैं उन पर खर्च कर चुका हूँ |
औम, जिसके मनमें अपने से बड़े भाई के प्रति कोई सम्मान नहीं था गुस्से में बोला, अरे तू रहने दे इन बातों को | मैं तेरी रग रग से वाकिफ हूँ | वैसे जो तूने उन पर खर्च किया है वह किस लिए किया था ?
ज्ञान: मैं बताना जरूरी नहीं समझता |
औम: इसका मतलब तू अपना हिस्सा नहीं देगा ?
ज्ञान: जो जायज होगा मैं अपने आप दे दूंगा |
हम भाई ज्ञान चंद के यहाँ लगभग एक घंटा बैठने के बाद उलटे पाँव वैसे ही लौट आए जैसे गए थे | अर्थात उनके यहाँ तीन तीन बहुएँ होने के बावजूद चाय नाश्ता तो क्या पानी भी नसीब नहीं हुआ | इस पर औम प्रकाश, अपनी भाभी जी को सामने खड़ा देखकर, वहाँ से उठते हुए व्यंग कसना न भूला, भाभी जी चाय के साथ काजू बादाम खिलाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
भाभी जी केवल खिश्यानी मुस्कराते हुए ही रह गई |    
कुछ दिनों बाद हमारी बहन काँता के यहाँ किसी प्रोग्राम में सभी इकट्ठा हुए थे | उन दिनों काँता मेरे से कुछ नाराज चल रही थी | मेरा उनके यहाँ आना जाना नहीं था तथा न ही नन्द किशोर जी की तरफ से मेरे पास कोई निमंत्रण आया था जो मैं जाने की सोचता | इन्हीं दिनों औम प्रकाश जी ने अपने मकान में फेर बदल करके १५-२० आदमियों के बैठने का स्थान बना लिया था | इसको भांपते हुए औम प्रकाश के मन में, जो बड़े भाई साहब के गुजरने के बाद अपने को एकमात्र निर्णायक फैसला लेने वाला समझने लगा था भाईयों की सामूहिक विचार धारा को दरकिनार करते हुए, अपनी वाह वाही लूटने के अंकुर फूट गए |
शतरंज की एक गोटी, वह अनीता को ५००००/- का भात भरने का वायदा करके, पहले ही चल चुके थे | कांता मेरे से नाराज चल ही रही थी इसलिए उसका अनीता के साथ मेरे मकान पर आना मुश्किल था | सदा से ही औम प्रकाश की मसालेदार चटकारों वाली बातों से फिसल जाने वाली बहनें एक बार फिर फिसल गई | जानते हुए भी उन्होंने औम प्रकाश की जालसाजी वाली बातों का समर्थन किया तथा अंदर ही अंदर बिना किसी को कुछ बताए उनके घर पर भात नौतने का निशचय कर लिया |
एक दिन अनीता का मेरे पास फोन आया, भईया जी मैं भात नौतने आ रही हूँ |
बहुत खुशी की बात है | वैसे कब आ रही हो ?
दस तारीख को आऊँगी |
कौन कौन आ रहा है ?
कुल मिलाकर १४-१५ के लगभग हो जाएंगे |
कितने बजे तक आओगी ?
दोपहर बारह बजे तक नारायणा पहुँच जाएंगे |
नारायणा”, सुनकर मैं अचंभित हो गया |
हाँ, नारायणा |
क्या मतलब, गुडगांवा की जगह नारायणा कैसे हो गया ?
उस दिन कांता के यहाँ भाई औम प्रकाश ने इतना कुछ कहा कि मुझे उनकी बात माननी पड़ी |
बहन जी आपको तो पता था कि हम सभी ने मिल बैठकर फैसला लिया था कि भात गुडगांवा नुतेगा ?
भईया जी मुझे सब पता था परन्तु भाई औम ने मुझे मजबूर कर दिया |
और उनकी दबंगई से आप डर गई ?
भईया जी....ही...ही...ही..|
खैर कोई बात नहीं | मुझे जायजा है कि आपने किस दबाव में आकर ऐसा निर्णय लिया होगा | परन्तु एक बात मैं भी साफ़ कर देना चाहता हूँ कि अगर भात औम के यहाँ नुता तो मैं शामिल नहीं हूँगा |
भईया जी ऐसा मत करना |
बहन जी जब आप सब कुछ जानते हुए, हमारे बीच सहमति से बने निर्णय को, अपना एक पक्षीय निर्णय ले कर बदल सकती हो तो इसका मतलब निकलता है कि आपके लिए मैं कोई अहमियत नहीं रखता |
भईया जी ऐसी बात नहीं है |
बहन जी चिंता मत करो | आप मेरी जितनी भी उपेक्षा करो मैं अपना फर्ज अवश्य निभाऊंगा |
और वार्तालाप बंद हो गया |      
औम प्रकाश ने, बिना किसी और से सलाह लिए और अपनी वाह-वाही लूटने के लिए, अपने घर पर भात नुतावाने का पूरा बंदोबस्त कर लिया | अनीता एवं उसके साथ आने वाले मेहमानों का स्वागत करने हेतु गाँव के बाहर पूरा इंतजाम किया गया | इसके बाद बैंड बाजे के साथ उन्हें घर तक लिवाकर ले जाया गया | पूरे समारोह की वीडियो रील बनवाई गई | घर पर खाना बनाने के लिए हलवाई का इंतजाम था | घर के बाहर टैंट लगवाए गए थे | सब मिलाकर ऐसा वातावरण बनाया गया जो एक भात नौतने के छोटे से कार्यक्रम के लिए जरूरी न होते हुए भी यह दिखे कि केवल मुझे आता है कि मेहमान नवाजी कैसे होती है | और अगर मेरा राज होता तो अब तक के दिए सभी भातों में ऐसा ही नजारा देखने को मिलता |
विदा लेते समय आए हुए मेहमानों ने औम प्रकाश के आचरण के तारीफों के पुल बाँध दिए | विदा होने से पहले अनीता भी बहुत खुश थी | क्योंकि उसके भाई ने उनका भावभीना स्वागत करके उसकी इज्जत में चार चाँद जो लगा दिए थे | इसी वजह से पूरे प्रकरण के दौरान उसे अपने छोटे भाई का ख्याल ख्यालों में भी नहीं आया था | परन्तु अपने भाई की दहलीज पार करते हुए अनीता के कदमों में स्थिलता दिखाई देने लगी थी | शायद उसने महसूस किया कि उसकी खुशी को ग्रहण लग गया है जब उसने पाया कि उसके भाई ने इतना आडम्बर रचाने के बावजूद अपनी जबान के अनुसार अपनी भांजी का सामान जुटाने के नाम पर उसके हाथ पर एक अठ्ठनी भी नहीं रखी |
इसके दो दिनों बाद अनीता मेरे घर आई | वह मेरे यहाँ भात नौतने का सामान लेकर आई थी क्योंकि औम प्रकाश के यहाँ मैं उसके प्रोग्राम में शामिल नहीं हुआ था | वह काफी परेशान व् उदास लग रही थी | उसका चेहरा पढकर मैंने पूछा, क्या बात है बहन जी खुशी के माहौल में आप कुछ चिंतित नजर आ रही हो ?
भईया जी राशी के ब्याह की ही चिंता है |
सब हो जाएगा | आप अपने सिर पर बोझ क्यों समझ रही हो | आपके घर में तो संभालने वाले बहुत लोग हैं |
हाँ भईया जी आप वजा फरमा रहे हैं |
और बताओ मामाजी की तरफ से उसकी भांजी के लिए क्या गढ़वा रही हो ?
अनीता जो शायद अभी तक अपनी दुखती रग को दबाने की कोशिश कर रही थी झिझकते हुए बोली, भईया जी क्या बताऊँ वैसे तो औम भईया ने मेरे मेहमानों के प्रति प्रशंसात्मक रवैया दिखाया था परन्तु अपनी भांजी के लिए तो अभी तक कुछ दिखाया नहीं |
परन्तु उन्होंने तो पचास हजार खर्च करने की हामी भरी थी ?
कहा तो था परन्तु आज मिले तो उन्होंने मेरे हाथ में एक चिट्ठा थमा दिया है |
कैसा चिट्ठा ?
आप ही देख लो, अनीता ने एक कागज़ मेरी और बढ़ा दिया |
मैनें पढ़ा तो पता चला कि वह उनके यहाँ भात नौतने के खर्चे का हिसाब था | उसमें सब मिलाकर लगभग १८०००/- रूपये का खर्चा दर्शाया गया था | पूरा पर्चा पढकर जब मैनें अनीता की तरफ प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा तो उसने बताया, औम भईया कह रहे थे कि पचास हजार में उनका हिस्सा १२५००/- बनता है |
तो ?
उनका कहना है कि जब और भाई अपना हिस्सा दे देंगे तो वे मुझे बाकी रकम दे देंगे |
इसका क्या मतलब जब उन्होंने किसी से सलाह लिए बिना ही आप से वायदा किया है तो उसे पूरा करने की जिम्मेवारी भी तो खुद उठानी चाहिए | बड़े भाई साहब ऐसा ही करते थे |वे पूरा खर्च करके सब भाईयों से बराबर बराबर लेते थे |
अनीता ने अपने मन को खोला, हाँ होना तो ऐसा ही चाहिए |
अगर किसी ने नहीं दिए तब ? क्योंकि मेरा संशय है कि अगर किसी को देना होता वे भात नौतने वाले दिन ही दे देते |
मेरा प्रश्न सुनकर अनीता मेरे मुहं की तरफ टुकर टुकर देखने लगी | वह विचारों में खो गई क्योंकि शायद उसे भी महसूस हो रहा था कि कुछ ऐसा ही होने वाला है | उसको उसके विचारों के मंथन से बाहर करने के लिए मैनें दिलासा दी, बहन जी मैं राशी के भात पर १५०००/- रूपये खर्च करने का विचार रखता हूँ | आप दस हजार में राशी की इच्छानुसार कुछ बनवा लेना बाकी पांच हजार मैं भात वाले दिन नकद थाली में रख दूंगा |
मेरे कहने से अनीता के मुरझाए चेहरे पर एक मुस्कान एवं संतुष्टि की झलक उभरती दिखाई दी | अभी तक जो  भाईयों की तरफ से आगे का रास्ता धूमिल सोचकर अंदर ही अंदर कुढ़ रही थी बुदबुदाई, इतना आडम्बर रचकर फिजूलखर्ची करने की क्या जरूरत थी जब असली काम के लिए तुम कुछ नहीं कर सकते | अब मुझे पछतावा हो रहा है कि उनके बहकावे में आकर मैनें बहुत बड़ी गल्ती की है |
अनीता की मन: स्थिति को समझकर मैनें उसे उकसाया, बहन जी अभी भी गल्ती को सुधारा जा सकता है |
वह कैसे ?
मैं आपको जितना हिसाब इस पर्चे में लिखा है वह तथा पचास हजार रूपये अभी दे देता हूँ परन्तु आपको हिसाब के पैसे थाली में रखकर बा-इज्जत औम भाई को लौटाने की हिम्मत दिखानी होगी |
अनीता कांपकर झट से बोली, नहीं भईया जी यह मेरे से नहीं होगा |
मैं जानता हूँ कि यह काम आप से नहीं होगा क्योंकि आप मुझे छोड़ सकती हैं उनको......|
नहीं भईया जी ऐसा नहीं है |
ऐसा क्यों नहीं है, क्या एक हफ्ता पहले मुझे छोड़ा नहीं ?
अनीता मेरी बात का कोई जवाब न देकर चुपचाप आँखे नीची करके बैठ गई | मैनें उसकी तरफ दस हजार रूपये बढाते हुए कहा, बहन जी आप चिंता मत करो | मैं आपको नहीं छोडूंगा तथा अपना फर्ज पूरा निभाऊंगा और अगर जरूरत पड़ी तो जो मैनें कहा है उससे भी ज्यादा खर्च करने से पीछे नहीं हटूंगा |
अनीता ने दस हजार रूपये पकड़ते हुए कहा, भईया जी कांता के यहाँ मुझे सभी द्वारा बहुत मजबूर कर दिया गया  था कि मैं गुडगांवा भात न नौतुं |
बहन जी मुझे अंदाजा है कि गुडगांवा भात न नौतने के क्या क्या कारण बने हैं“, फिर अनीता को उसकी शर्मिंदगी से बाहर निकालने के लिए तथा उसका साहस बढाने के लिहाज से उसके मन की सी बात कही, बहन जी सभी मैजोरिटी का साथ देते हैं | आपने भी वैसा करके कोई गलत नहीं किया है |
और अनीता मेरे यहाँ से खुशी खुशी विदा हो गई |
भात वाले दिन सभी युसूफ सराय पहुँच गए | भाई ज्ञान ने बात छेड़ते हुए मुझ से पूछा, अब आगे कैसे क्या करना है ?
इस बारे में मैं आपको क्या सलाह दे सकता हूँ क्योंकि आप तीनों के तो अलग विचार हैं ?
ऐसी बात नहीं है | अनीता के भात नौतने वाले दिन तक मुझे पता ही नहीं था कि तुम शामिल नहीं हो रहे हो |
उस दिन से आजतक तो काफी दिन व्यतीत हो गए हैं | इस बीच आपकी तरफ से कोई बात उठी ही नहीं |
बीच में समय ही नहीं मिला इस लिए आज पूछ रहा हूँ |
मैं अब भी भात देने में आप सभी के साथ सम्मिलित हो सकता हूँ बशर्ते सारे कार्यों की बागडोर आप अपने हाथों में ले लो तभी |     
मेरी शर्त ने भाई ज्ञान की बंद जबान एवं मूक दृष्टि ने उनकी असमर्थता बयाँ कर दी | उनकी स्थिति देखकर मैं समझ गया कि उन तिलों में तेल नहीं है और मुझे उन तीनों से अपना फर्ज अलग निभाना होगा |
अनीता द्वारा आरते की रस्म निभाने के बाद भात देने का कार्यक्रम शुरू हुआ | जब औम प्रकाश ने अपने से बड़े भाई ज्ञान चंद की उपेक्षा करते हुए मेहमानों को खुद टीका करने की प्रक्रिया शुरू कर दी तो मौसा चन्द्र भान ने कटाक्ष किया, भई वाह, औम लगता है बड़े भाई के न रहने से खुद घर की चौधराहट संभाल ली है ?
नहीं मौसा जी बड़ा भाई तो आपके सामने बैठा है |
तभी तो मैं कह रहा हूँ |
मौसा जी का कटाक्ष समझते हुए ज्ञान चंद ने उड़ते गुब्बार को दबाने के लिए दलील दी, हाँ मैं बड़ा भाई हूँ और मैनें ही औम से कहा है कि मान के टीके वही कर दे |
टीकों का काम निबटाने के बाद औम ने एक परांत मंगाकर अपने भाईयों के सामने सरका कर कहा, जिसे जो देना है इसमें रख दो |
औम का कथन सुनकर वहाँ बैठे हुए अधिकतर लोगों के चेहरे पर प्रश्न वाचक रेखाएं उभर आई | वे सभी एक दूसरे की तरफ ऐसे देखने लगे जैसे पूछ रहे हों कि क्या आपने भी वही सुना है जो हमने सुना है | औम प्रकाश द्वारा  यह जताने की कोशिश कि अभी तक जो होता आया था वह बेकार तथा हमारी हैसीयत और औकात से बहुत छोटा होता था कामयाब न हो सकी | उसके इरादों का किला ताश के पत्तों के महल की तरह धराशाही होकर रह गया जब उसने पाया कि परांत खाली ही रह गई | जिसने भात के नाम पर कुल बारह हजार को भी हमेशा ज्यादा माना था आज खुद की चौदराहट दिखाने के लिए ५००००/- की बात करके हंस बनने की कोशिश कर रहा था |
इस समय पूरी बिरादरी के सामने अपने परिवार की साख बचाना बहुत आवश्यक समझ मैनें उस खाली परांत में वह सोने का सेट, जो अनीता ने मेरे दिए रूपयों में बनवाकर मुझे सौंप दिया था, तथा पांच हजार रूपये नकद रखकर परांत सबके सामने रख दी | और बिरादरी के लोगों ने बहुत बढ़िया बहुत बढ़िया कहते हुए विदा ली |
राशी की शादी सुचारू रूप से सम्पन्न हो गई |
एक दिन अनीता मिलने के लिए मेरे घर आई | कुशलक्षेम पूछने के बाद मैनें उससे पूछा, क्या औम भाई ने अपनी जबान के अनुसार आपको भात की पूरी रकम दे दी है ?
अनीता कुछ सकुचा कर बोली, भईया जी जो आपने किया था हाथ में बस वही आया है |
बाकी पैसों के लिए क्या कह रहे हैं ?
अनील ने बताया है कि राशन का ५५००/- रूपये का सामान उसके यहाँ से गया था जिसके पैसे उसे अभी तक नहीं मिले हैं | ज्ञान भाई का कहना है कि जितना उन्हें लगाना था वे लगा चुके हैं | बड़ी भाभी जी कह रही थी कि उन्हें जो देना होगा अपने हिसाब से दे देंगी |
औम अपने हिस्से का खर्चा भात नौतने वाले दिन कर चुका था | मैनें भात वाले दिन अपना फर्ज अदा कर दिया था | ज्ञान भाई ने कह दिया था कि वे अपना हिस्सा लगा चुके हैं और बड़ी भाभी जी ने कहा था वे अपने अनुसार  दे देंगी | इस परिस्थिति को जानकर मेरा मन व्यथित हो उठा | लगा हमारे भाईयों की राम, भरत, लक्षमन एवं शत्रुघ्न जैसी मजबूत चौकड़ी ने, बड़े भाई साहब (राम) शिव चरण के स्वर्गवास के बाद, बिखर कर चांडाल चौकड़ी, अब तिकड़ी, का रूप ले लिया है | जहां आपस में वर्त्तमान युग के लोगों के विचारों की तरह स्वार्थ एवं अहंकार के अलावा कुछ नहीं रह गया है |
अपनी सोच से बाहर निकलकर मैं बुदबुदाया, बहन जी शायद यह वर्त्तमान युग की प्रथा का असर है जहां हर वस्तु किश्तों पर उपलब्ध है | तभी तो यह (आख़िरी) भात भी किस्तों में भरा जा रहा है |
पता नहीं मेरी बात अनीता ने सूनी या नहीं तथा मेरे बोल के मायने समझ सकी या नहीं वह चुपचाप उठी और नमस्ते करके बाहर निकल गई |      


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