Tuesday, April 2, 2024

चन्दगी राम निभोरिया (भाग 4)

 

माँ की मजबूरी-2  

बहोडू राम एक भोला भाला, अनपढ़, गरीब बुनकर था | कुछ अपनी ससुराल वालों के दबाव में भी आ गया था | वैसे भी सारा दिन मेहनत करके इतना थक जाता था कि रात का खाना खाते खाते ही नींद उसे अपने आगोश में समा लेती थी | वह मुश्किल से ही दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाता था परन्तु उसकी पत्नी की अपेक्षाएं बहुत ऊँची थी | नानकी अपने तथा दिलीप के लिए नए नए कपडे चाहती थी तथा उसके अपने श्रृंगार वगैरह के ऊपरी खर्च भी बहुत थे | बहोड़ू राम उनको पूरा करने में असमर्थ जान पड़ता था |

स्त्रियों का स्वभाव समुंदर की लहरों की तरह चंचल होता है | जैसे समुन्द्र की लहरों का कुछ अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि वे कब किस और मुड़ जाएं वैसे ही स्त्री के स्वभाव को जानना भी टेढ़ी खीर है | स्त्री के सामने पुरूष बुद्धी बल और युक्ति में बहुत तुच्छ होता है | अत: अगर वे अपनी पर आ जाएं तो उनको रोकना ना मुमकिन हो जाता है | मायावी तो असुरों को कहा जाता है परन्तु मायाजाल फैलाने में स्त्रियाँ उनसे भी दो कदम आगे ही होती हैं |

उन दिनों गाँव में एक दर्जी था | नानकी अपने कपड़े भी उसी से सिलवाने लगी थी परन्तु समय पर उसकी मजदूरी का भुगतान नहीं कर पाती थी | दरजी को भी बहोडू राम की माली हालत का पता था | इस मजबूरी का फ़ायदा उठाने के लिए उसने अपने शैतान दिमाग में एक प्लान पर अपने कदम बढाने शुरू कर दिए | कहते हैं कि जब गाय को बस में करना हो तो उसके बछड़े को अपने काबू में कर लो गाय अपने आप तुम्हारे पास आ जाएगी | अब वह अपनापन दिखाने के बहाने नानकी से अपनी सिलाई की मजदूरी चुकता करने के लिए कोई जोर नहीं देता था | बल्कि चन्दगी के कपड़े बिना दाम लिए सिलाई करने लगा | नानकी जब भी आती दर्जी उसके बच्चे को टाफी वगैरह दिला देता | गोद में उठाकर उसे ऐसे खिलाता जैसे उसी का बच्चा हो | एक दिन नानकी ने मुस्कराते हुए दरजी से पूछ ही लिया, तेरे को चन्दगी अच्छा लगता है, क्या?

दरजी सकपकाकर, आप ऐसा क्यों पूछ रही हैं?

नानकी दरजी की वासना भरी नज़रों को भली भांती समझ सकती थी अत: वह एक दम अपनापन दिखाकर बोली, ये आप आप क्या लगा रखी है | भाभी भी तो कह सकता है |

दरजी को जैसे मन की मुराद मिल गयी हो वह नानकी का यह खुला न्यौता समझ दांत पिसता तथा सिसकी सी लेता हुआ बुदबुदाया, कह और समझ तो हम और भी बहुत कुछ सकते हैं परन्तु सामने वाला मान जाए तब न |

दरजी की बात का आशय समझ कर, अपने मायाजाल में फंसा जान, नानकी ने भी सहमती सी जताते हुए कनखियों से कहा, सामने वाला तो खुद कह रहा है | और हंसते हुए चली गयी |

धीरे धीरे दोनों में आत्मीयता बढ़ी और नौबत यहाँ तक आ गई कि दरजी कभी-कभी बहोड़ू राम   के घर के चक्कर भी लगाने लगा | मोहल्ले पडौस की औरतों को तो मसाला मिलना चाहिए वे तिल का ताड़ बनाने में कोई देरी नहीं लगाती | अन्दर ही अन्दर कानाफूसी होने लगी कि दरजी और नानकी के बीच अवैध सम्बन्ध बन गए हैं | अब उस इलाके में यह अफवाह गरम हो गई थी कि एक माँ केवल माँ न रहकर औरत बन गयी थी | नानकी एक दबंग औरत थी अत: उसके मुंह पर यह कहने की किसी में हिम्मत न थी वैसे भी हाथी के चलने से कुत्ते केवल भौंकते ही रह जाते हैं उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते | वह औरतों में फ़ैली सुगबुगाहट से वाकिफ थी परन्तु न कर न डरकी कहावत को चरितार्थ करते हुए वह किसी से भी, जब तक पैसों के मामले में उसका हाथ तंग था अपने ऊपर बिना किसी का हाथ डलवाए, मायाजाल फैलाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थी |

        

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