Sunday, May 26, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 13

 

भारत का विभाजन 

भारत का विभाजन तो हो गया था लेकिन भारत-पाकिस्तान की सीमा रेखा के बारे में 15 अगस्त के बाद बताया गया | पंजाब के टुकड़े होने के बारे में तो लोगो को पता चल गया था लेकिन लाहोर पाकिस्तान में चला जाएगा ऐसा कभी लोगो ने नही सोचा था | उस समय लाहोर में काफी हिन्दू रहा करते थे और फैसला आते ही उन्होंने अपना बोरिया बिस्तर बांधना शुरू कर दिया था

एक बार सीमा रेखा तय होने के बाद लगभग 1.5 करोड़ लोगो को सीमा के एक तरफ से दुसरी तरफ जाना था और सुरक्षा की जिम्मेदारी बहुत महत्वपूर्ण थी | अब माउंटबेटन को पता था ऐसी परिस्थितियों में दंगे अवश्य हो सकते थे इसलीये उसने अपनी आधी से ज्यादा सेना पहले ही इंग्लैंड रवाना कर दी थी | 1951 के आंकड़ो के अनुसार लगभग 72 लाख लोग भारत से पाकिस्तान आये थे जिसमे सारी आबादी मुस्लिम लोगो की थी | दुसरी तरफ उतने ही 72 लाख लोग पाकिस्तान से भारत आये थे जिनमे अधिकतर हिन्दू और सिख समुदाय के लोग थे | लाल किले पर कई मुस्लिम शरणार्थि अभी भी पाकिस्तान जाने के लिए तैयार बैठे थे |

ऐसी परिस्थीती में सीमा के दोनों ओर ही नहीं बल्कि देश के अन्दर भी कई हिस्सों में विस्फोटक स्थिति बनी हुई थी | चारों ओर अविश्वास का वातावरण बना हुआ था | अफवाहों का बाजार गरम था | प्रत्येक धर्म के लोग एक जुट होकर दूसरे धर्म के लोगों से अपनी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करके चौकन्ने बैठे थे | उन दिनों दिल्ली के महरौली इलाके में मुस्लिम लागों की बहुत संख्या थी | ऐसे वातावरण में उन्होंने अपने नीचे के मकान खाली करके छतों पर अपना डेरा जमा लिया था | उन्होंने रात के अँधेरे में आसपास के हिन्दुओं पर गोलियों की बौछार करने का मंसूबा बना लिया था | परन्तु समय रहते इसकी सूचना आग की तरह फ़ैल गई | अन्दर ही अन्दर हिन्दुओं ने भी सारी तैयारी कर ली और दूर दराज के गावं के चन्दगी जैसे जवान लोग भी महरौली पहुँच गये | इससे पहले की मुस्लिम अपनी चाल चलते हिन्दुओं ने उनके छप्परों में आग लगा दी जिसकी रोशनी से उनके अड्डों का पता चल गया और उन्हें वहीं गोलियों से भून दिया गया | इस तरह देश के बहुत से इलाकों में बड़े पैमाने पर हिंसा और नरसंहार हुआ  | आंकड़ो के अनुसार मौतों की संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल हो रहा था फिर भी ऐसा माना जाता है कि मरने वालो की संख्या 2 लाख से लेकर 10 लाख के बीच थी | लाखो लोग एक देश से दुसरे देश में पैदल जा रहे थे और लगभग 10 किलोमीटर लम्बी लाइन में लोग चल रहे थे | बुढो और बच्चो को बैलगाडियो में बिठा दिया गया था लेकिन युवा पैदल ही चल रहे थे | खाने के लिए हवाईजहाज से सरकार खाना गिरा रही थी लेकिन वो इतनी बड़ी आबादी के लिए पर्याप्त नही था और हजारो लोग भूख और पानी के मारे रास्ते में ही मर गये थे |

The Story of India Pakistan Partition-Part Fourth

उस समय सरकार ने एक रेल अम्बाला से लेकर अमृतसर तक चलाई थी जिसमे लाखो लोग एक तरफ से दुसरी तरफ आये थे | कई बार तो विद्रोही लोग रेलों में घुस घुस कर लोगो की हत्याए कर रहे थे और लूटपाट कर रहे थे | लाशो से भरकर रेल सीमा पार जा रही थी और ऐसा मंजर था जो कोई देख नही सकता था | अब सीमा के दोनों तरफ शरणार्थी शिविर लगाये गये थे जिसमे लोगो को ठहरने और खाने की व्यवस्था की गयी थी | भारत में उस समय 2 प्रतिशत आबादी रिफ्यूजी थे और अकेले दिल्ली में लगभग 10 लाख रिफ्यूजी रुके हुए थे | कुरुक्षेत्र के निकट सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर लगा था जिसमे लगभग 35000 शरणार्थी रुके हुए थे | उसके बाद धीरे धीरे इन रिफ्यूजी के लिए पक्के घरो और पैसो की व्यवस्था की गयी थी |

उधर पाकिस्तान की 80 प्रतिशत से भी ज्यादा आबादी रिफ्यूजी थी जिनके लिए व्यवस्था करना बड़ा कठिन कार्य था |

इस विभाजन के अंतर्गत न केवल भारतीय उप-महाद्वीप के दो टुकड़े किये गये बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया और बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारतसे अलग कर पूर्वी पाकिस्तान वर्तमान (बांग्लादेश) बना दिया गया।

 

इस विभाजन का जो मुख्य कारण दिया जा रहा था वो था की हिंदू बहुसंख्यक है और आज़ादी के बाद यहाँ बहुसंख्यक लोग ही सरकार बनायेंगे तबमोहम्मद अली जिन्नाको यह ख़्याल आया कि बहुसंख्यक के राज्य में रहने से अल्पसंख्यक के साथ नाइंसाफ़ी या उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता है तो उन्होंने अलग से मुस्लिम राष्ट्र की मांग शुरू की । इस ख्याल में उसकी अपनी महत्त्वकांक्षा भी जुडी हुई थी | भारत के विभाजन की मांग वर्ष दर वर्ष तेज होती गई। भारत से अलग मुस्लिम राष्ट्र के विभाजन की मांग सन 1920 में पहली बार उठाई और 1947 में उसे प्राप्त किया। 

गुजरात का जूनागढ़ पहले पाकिस्तान में शामिल हो गया था लेकिन 1948 में फिर भारत में विलय हो गया था | अब हैदराबाद भी अपना स्वंतंत्र राष्ट्र बनाना चाहता था इसलिए उस समय वो ना भारत में विलय हुआ था और ना ही पाकिस्तान में विलय हुआ था |  उस समय हैदराबाद की जनता तो भारत में विलय होना चाहती थी लेकिन हैदराबाद का निजाम अपनी बात पर अड़ा हुआ था | अब हैदराबाद के निजाम ने अंतिम फैसले के लिए एक वर्ष का समय माँगा | अब एक साल बाद 13 सितम्बर 1948 में भारत की सेना ने हैदराबाद की ओर अपनी सेना भेजन शुरू कर दिया | अब निजाम को पता चल गया था कि उनकी छोटी सी सेना भारत का मुकाबला नही कर पायेगी इसलिए 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद के निजाम ने समर्पण कर दिया और हैदराबाद को भारत में विलय कर निजाम शाही को खत्म कर दिया गया |

अब केवल जम्मू -कश्मीर रह गया जो ना भारत में था और ना ही पाकिस्तान में था | उस समय जम्मू कश्मीर पर महराजा हरी सिंह का राज था | अब भारत की आजादी के तुंरत बाद  22 October 1947 को पाकिस्तान ने हमला बोल दिया लेकिन जम्मू-कश्मीर के पास इतनी सेना नही थी कि वो पाकिस्तान को हरा सके इसलिए उसने तुंरत भारत के गृह मंत्री वल्लभभाई पटेल से सहायता माँगी | वल्लभभाई पटेल ने पहले तो ये कहकर मना कर दिया कि वो जम्मू-कश्मीर की सहायता क्यों करे जबकि वो तो भारत का अंग ही नही है | महाराजा हरि सिंह की विनती पर सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा कि वो सहायता केवल एक शर्त पर करेंगे कि जम्मू कश्मीर को भारत में विलय होना पड़ेगा | अब महाराजा हरि सिंह के पास कोई विकल्प नही था और उसने भारत में विलय होने वाले दस्तावेजो पर हस्ताक्षर कर दिए |

जम्मू कश्मीर के भारत में विलय होते ही सरदार वल्लभभाई पटेल ने तुंरत अपनी सेना जम्मू-कश्मीर की सीमा पर भेज दी | अब भारत की सेना ने पाकिस्तानी सेना को लाहोर तक खदेड़ दिया था तभी जवाहरलाल नेहरु ने बिना वल्लभभाई पटेल की सलाह लिए युद्ध विराम की घोषणा कर दी और पाकिस्तान पर कब्जा किये प्रदेशो को वापस लौटाने को कहा | इस तरह भारत ने पाकिस्तान के प्रदेशो पर कब्जा करने का मौका गवा दिया था लेकिन जम्मूकश्मीर भारत में विलय हो गया था |जम्मू कश्मीर तो भारत में विलय हो गया था लेकिन जम्मू कश्मीर का उत्तरी भाग एक विवादित क्षेत्र बन गया था जो आज तक गले में फंसी हड्डी बना हुआ है |

स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। 30 जनवरी 1948 ई. को नाथूराम गोडसे नामक हिन्दू ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। चारों और हा-हाकार मचा था | सभी कामकाज ठप्प पड़े थे | गरीब लोग ही नहीं बल्कि मध्य वर्गीय लोग भी भूखे मरने की कगार पर आ गये थे |

 

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