Friday, May 3, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 9

 

चन्दगी  की लक्ष्य पूर्ति  

चन्दगी का साथी जो उसके साथ डिपो में अन्दर काम करता था वह बाहर से आने वाले सामान को पहचान कर उसे सही जगह पर रखता था | वह उस सामान पर, जो उन पांच प्यारों को वहां से निकालना होता था, एक ख़ास निशान लगा देता था तथा चन्दगी को बता देता था | शाम को ड्यूटी ख़त्म होने पर चन्दगी बाहर न जाकर सामान के हैंगर में ही रह जाता था | वह धीरे धीरे उन सब सामानों को एक बक्से या बोरे में भर लेता था जो उनके काम के होते थे | इसके बाद उनका साथी गार्ड हैंगर का शटर खोल देता था | हालांकि सामान का वजन बहुत हो जाता था परन्तु चन्दगी को उसे उठाने में कोई दिक्कत नहीं आती थी क्योंकि उसे तो भारी वजन उठाने की आदत हो चुकी थी | जोखीम तो सामान को 10 फीट ऊंची दिवार के दूसरी पार पहुंचाने में था | दीवार के साथ साथ अन्दर की तरफ चार फुट चौडा तथा 6 फुट गहरा नाला बना था | पहले तो सामान के साथ उसे पार करना पड़ता था | फिर 10 फीट ऊँची दीवार पर चढ़कर सामान दूसरी तरफ फैकना पड़ता था | इसके लिए गार्ड नाले पर एक फट्टा तथा दीवार के साथ एक सीड़ी का प्रबंध कर दिया करता था | हालाकिं डिपो के चार कौनों पर चार बुर्जी थी जिनपर फ़ौज के जवानों का पहरा रहता था | इन पहरेदारों को डिपो की दीवार के पास होने वाली गतिविधिओं पर ध्यान रखना होता था क्योंकि डिपो की दीवार से लगभग 10 फुट की दूरी पर पास वाले  गाँव वालों के खेत थे जहां फसल उगाई जाती थी | डिपो की दीवार के चारों और कच्चे रास्ते थे इसलिए फौजियों के खाने वगैरह की गाडी उसके मेन गेट पर ही आती थी | दूसरे जब भी ड्यूटी बदलने का समय होता था तो ड्यूटी पर तैनात फ़ौजी को आने वाले गार्ड को बन्दुक तथा गोलियां इत्यादि सुपुर्द करने के लिए मेंन गेट पर ही जाना पड़ता था | यही एक समय होता था जब चन्दगी और उसके साथी अपनी योजना को अंजाम तक पहुंचा सकते थे, वह भी केवल रात की ड्यूटी बदलते समय | चन्दगी दीवार के बाहर सामान का बोरा फैंक कर खुद भी 10 फुट ऊँची दीवार से बाहर कूद जाता था | वहां उनका ड्राईवर साथी गाडी लेकर तैयार रहता था | दोनों मिलकर बोरा लादते और रफूचक्कर हो जाते थे | यह क्रम लगभग एक साल चला | अब तक चन्दगी ने 7000 रूपये जमा कर लिए थे | जब चन्दगी ने अंदाजा लगा लिया कि अब वह इन पैसों से अपनी आगे की जिन्दगी को खुशहाल बनाने के लिए बहुत कुछ कर सकता है तो उसने ज्यादा लालच न करते हुए अपनी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया |

चन्दगी के त्याग पत्र ने उसके साथियों में हडकंप मचा दिया | एक एक करके वे चन्दगी को अपना त्याग पत्र वापिस लेने पर जोर देने लगे | पहले तो चन्दगी ने उन्हें समझाया था परन्तु  अब उनकी बारी थी | खजान ने पूछा, चन्दगी ऐसा क्यों कर रहे हो?

चन्दगी ने अपनी मंशा बताई, देख भाई मैं हूँ मजदूर आदमी | अगर मैं यहीं रहा तो बोझा ढोते ढोते मेरी उम्र गुजर जाएगी |

गार्ड बोला, बेशक आप मजदूर हो परन्तु कमाई तो अच्छी हो रही है?

वो तो है परन्तु एक मनुष्य का आत्म सम्मान भी तो कुछ मायने रखता है |

विक्की ने जवाब दिया, मनुष्य के पास पैसा बढ़ता है तो उसका आत्म सम्मान अपने आप बढ़ जाता है |

तुमने बिलकुल ठीक कहा विक्की परन्तु यहाँ कौन जानेगा कि मेरे पास इतना पैसा है | अगर बता भी दिया तो एक मिनट में सब बंटाढार हो जाएगा |  

विक्की ने अहंकारी अंदाज में कहा, मुझे देख लो जब से मैनें नई गाड़ी ली है मेरे साथी मुझे सलाम सी करने लगे हैं |

चन्दगी ने अपना मन खोला, तुम यह सब दिखा सकते हो परन्तु मैं नौकरी में तो मजदूर ही रहूँगा |

खजान कुछ बुदबुदाया, परन्तु आपने ही तो यह कला शुरू कराई थी ?

कराई थी और अब कह रहा हूं बंद करने की |

क्यों?

चन्दगी द्रड़ता से,क्योंकि ज्यादा लालच अच्छा नहीं | अब हम सब आर्थिक द्रष्टि से इतने समर्थ हो चुके है कि बाहर जाकर कोई काम करके सम्मान जनक जीवन जी सकते हैं |

उसके साथियों ने उससे बहुत आग्रह किया कि वह उनका साथ निभाता रहे परन्तु चन्दगी नहीं माना | चन्दगी के बाकी साथी उसी हेरा फेरी में उलझे रहे और अंत में वही हुआ जो एक बुरे काम का नतीजा होता है | सौ सुनार की एक लुहार की, कुछ साल बाद चन्दगी के सभी साथी हेराफेरी करते हुए पकडे गए और उन्हें जेल की हवा खानी पड़ी |

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