Wednesday, May 29, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 14

 

भाई से समझौता  

हालांकि चन्दगी खेती करके अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था परन्तु महंगाई अपनी चरम सीमा पर होने के कारण उसकी कमाई पर्याप्त नहीं थी | चन्दगी अपने परिवार में छ: बच्चों में सबसे बड़ा था | उसके भाई गुगन ने ट्रक चलाने का लाईसेंस बनवा लिया था परन्तु उसे कोई काम नहीं मिल रहा था | उसके पिता जी बढ़ती उम्र के कारण मेहनत कर नहीं सकते थे | इसलिए धीरे –धीरे चन्दगी के परिवार की आर्थिक स्थिति भी बिगडती जा रही थी | एक दिन चन्दगी की माँ ने इस बारे में उससे अपने दिल की बात करना चाही और बोली, “चन्दगी ऐसे कब तक चलेगा ?”

चन्दगी ने सवाल के जवाब में सवाल किया, “कैसा माँ ?”

“तू अकेला ही खटता रहता है |”

“तो क्या करूँ ?”

“कोई ऐसा काम कर ले जो तेरे भाई को भी कुछ काम मिल जाए क्योंकि खेती करना तो उसके बसकी बात नहीं है |”

“ठीक है माँ, देखता हूँ मैं क्या कर सकता हूँ |”

विभाजन के एकदम बाद भातर सरकार ने अपना मुख्य उद्देश्य विकास को रखा | इसी के तहत स्वाधीनता मिलते ही औद्योगिक विकास तथा खेती की उन्नति को बढ़ावा देने के लिए बिजली तथा पानी की महत्ता को ध्यान में रखकर सबसे पहले भाखड़ा नांगल डैम परियोजना पर काम शुरू कर दिया गया | इसकी आधारशिला 17 नवम्बर 19 55 को भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू के कर कमलों द्वारा रखी गयी | इस परियोजना के तहत सतलुज नदी पर दो डैम भाखड़ा और नांगल,  बनाने की शुरूआत की गयी | इस योजना को अंजाम तक पहुचाने के लिए भारत के असंख्य नागरिकों का सहयोग बहुत आवश्यक था | इसके लिए बहुत से कामगारों की जरूरत थी | देश के दूरदराज हिस्सों से मिट्टी, बजरी, सीमेंट, पत्थर तथा ईंटें ढोकर लाने के लिए गाड़ियों की भारी मात्रा में जरूरत थी |  अपने भाई की बेरोजगारी को ध्यान में रखकर चन्दगी ने भी अपना भाग्य आजमाने की सोची | 

एक दिन चन्दगी अपने आढ़ती के पास गया | कुशल क्षेम पूछने के बाद बैठा ही था कि आढ़ती ने पूछा, “अरे भाई चन्दगी आज तो बहुत दिनों बाद आए ?’

“हाँ सेठ जी |”

“परन्तु अभी तो फसल पकने में समय है ?”

“हाँ सेठ जी वह तो है |”  

और कोई काम ?

हाँ सेठ जी आप से एक सलाह लेनी थी ?

हाँ, हाँ कहो कैसी सलाह लेनी है ?

आप तो देश की हालत जानते ही हैं कि लोग किस तरह से अपना भरण पोषण कर रहे हैं |

सेठ सब जानता था अत: कहा, चन्दगी मुद्दे की बात करो |

सेठ जी आपको यह भी खबर मिल ही गई होगी कि भारत सरकार ने भाखड़ा-नांगल डैम बनाना शुरू कर दिया है?

हाँ ! तो ?

मेरा विचार बन रहा है कि मैं भी एक गाड़ी खरीद कर वहां माल ढोने के लिए लगा दू | इस बारे में आपका क्या विचार है ?

तुम्हारे ख्याल तो नेक हैं परन्तु तुम्हे तो गाड़ी चलानी आती नहीं, और घर से इतनी दूर तुम उसकी देखभाल कर भी नहीं सकोगे ?

सेठ जी आपकी सोच बिलकुल ठीक है परन्तु गाड़ी चलाने तथा उसकी देखभाल करने के लिए मेरा भाई गुगन है ना |

सेठ को चन्दगी और गुगन के बीच खटास भरे रिश्ते की भनक थी अत: पूछा, ‘उस पर भरोसा कर लोगे ?

हाँ सेठ जी पहले नहीं था अब पक्का है |

सेठ आश्चर्य से, ऐसा क्या हो गया जो एकदम इतना विशवास हो गया ?

सेठ समझलो कभी कभी परिस्थितियाँ ऐसी बन जाती हैं कि दुश्मनों को दोस्त बना देती हैं |

मतलब

 चन्दगी ने सेठ जी को समझाने के लिए एक किस्सा सुनाया |

एक बार एक दम्पति अपने तीन महीने के बच्चे को लेकर पहाड़ों के भ्रमण के लिए निकले | गर्मी का मौसम था परन्तु उन्हें चिंता नहीं थी क्योंकि उनकी गाड़ी में ए.सी.लगा था | वे खुशी-खुशी बढे जा रहे थे कि रास्ते में उन्हें एक स्थान पर ट्रैफिक जाम मिला | पता चला कि आगे पहाडी का एक टुकड़ा गिरने से सड़क टूट गई थी तथा जल्दी उसे ठीक भी नहीं किया जा सकता था | अचानक एक मैले कुचैले कपडे पहने, अपनी गोद में एक तीन चार महीने का बच्चा लिए औरत ने उनकी कार की खिड़की पर दस्तक दी और हाथ के इशारे से कुछ भिक्षा देने का इशारा किया | पहले तो आदमी ने उसे नजर अंदाज करने की कोशिश की परन्तु जब वह नहीं हटी तो आदमी ने अपनी नाक पर रूमाल रखते हुए बंद खिड़की के अन्दर से ही ऐसे भाव प्रकट करके जैसे उस औरत के वहां खड़े रहने से उसे बदबू महसूस हो रही है अपने हाथ के इशारे से उसे दूर चले जाने के लिए कहा | वह भिखारिन आगे बढ़ गयी | अचानक उस दम्पती का बच्चा रोने लगा | दोनों ने उसे चुप कराने की हर संभव कोशिश की परन्तु सब व्यर्थ | बच्चा भूखा था | किसी बीमारी के कारण उसकी माँ का दूध बनता नहीं था इसलिए वह बहुत चिंतीत थी  | यह जगह ऐसी थी जहां दूध मिल भी नहीं सकता था | बच्चे का रो-रोकर बुरा हाल होता जा रहा था | आगे रास्ता बंद होने के कारण वह भिखारिन वापिस लौट आई थी तथा उनकी गाड़ी की तरफ आ ही रही थी कि आदमी झुंझलाहट में चिल्लाया, तूझे मना किया था न कि भीख नहीं मिलेगी | हम तो यहाँ इतने परेशान हैं और तुम फिर आ गई हाथ फैलाने, दुश्मन कहीं की |

भिखारिन निर्भीक आगे बढ़ी और उस आदमी की पत्नी के पास जाकर रूकी ही थी कि आदमी चिल्लाया, दूर हट-दूर हट, काहे को सिर पर चढी जा रही है | क्या इरादा है ?

पत्नी जो बच्चे को चुप कराने में मशगूल थी अपने पति की ऊंची आवाज सुन झुंझला कर बोली, क्यों इतना शोर मचा रहे हो, बेटा पहले ही परेशान है आपकी आवाज सुनकर और बेचैन हो रहा है |  

ठीक है, ठीक है परन्तु इससे सावधान रहना |

इतने में भिखारिन उस औरत से मुखातिब होकर बोली, मैडम अगर आप मान जाओ तो मैं आपके बच्चे को चुप करा सकती हूँ ?

आदमी की निगाह तथा कान अपनी पत्नी की तरफ ही लगे थे भिखारिन की बात सुनकर वह उत्तेजना में चिल्लाया, खबरदार, मैं तेरे को किसी प्रकार की कोई चालाकी नहीं करने दूंगा |

पत्नी ने अपने पति की और इशारा करके आँखों ही आँखों में उसे चुप रहने की सलाह दी तथा भिखारिन से बोली, आप मेरे बच्चे को कैसे चुप करा सकती हो ?

पति फिर भड़क उठा, आप...आप उसे आप बुला रही हो?

पत्नी जो अब तक अपने बेटे की स्थिति से निढाल हो चुकी थी तथा भिखारिन के शब्दों से उसे अपने बेटे के लिए जीवन दान की लहर सी महसूस हुई थी बिना अपने पति की बातों पर ध्यान दिए भिखारिन से पूछा, जल्दी करो जो कुछ करना है जिससे मेरे मरणासन बेटे की जान बच जाए ?

थोड़ी देर के लिए आपको अपना बेटा मुझे देना होगा |

भिखारिन की बात सुनकर पत्नी क्या पति भी ऊपर से नीचे तक काँप गए | पति ने अपना आपा खोकर उसे धक्का देकर दूर भगाने के लिए अपने कदम बढाए ही थे कि माँ की ममता आड़े आ गई | पत्नी ने अपने होश संभालते हुए पूछा, आप क्या करोगी ?

पति एक बार फिर मिमियाया, आप..अरे इसकी गोदी में दे दिया तो बच्चे को न जाने कितनी बीमारी लग जाएं | और फिर देना ही क्यों है ?

भिखारिन ने बच्चे की हालत तथा उसकी माँ के चेहरे पर उड़ती हवाईयों को भांपकर पति की बातों पर कोई ध्यान न देते हुए एकदम कहा, इसे अपना दूध पिलाऊंगी |

दूध का नाम सुनकर पति अपनी जेब से 100 रूपये का नोट निकाल कर भिखारिन की तरफ फेंकते हुए  गुर्राया, खबरदार जो मेरी पत्नी की भावनाओं से खिलवाड़ करने की कोशिश की | उठाओ ये नोट और दफा हो जाओ |

सौ रूपये का नोट जमीन पर पड़ा रहा, भिखारिन निश्छल खडी रही, बच्चा बुझती लौ के सामान तेज होकर खामोश होता जा रहा था, माँ ने निर्णय लिया, बच्चा भिखारिन को सौंप दिया, चप्प-चप्प की आवाज आने लगी और बच्चा शांत होकर शकुन से सो गया | भिखारिन जाने लगी तो आदमी ने उसकी तरफ 200 रूपये बढाए परन्तु भिखारिन ने अपने कदम नहीं रोके और चलते चलते बोली, माँ के दूध की कीमत आप क्या जानो बाबू यह तो अनमोल होता है |   

आदमी भिखारिन को किंकर्तव्यविमूढ़ जाते देखता रहा और अपने हाथ में पकड़े नोट से महसूस करने लगा जैसे वह भिखारिन उसे ही भिक्षा देकर भिखारी बना गई है |

पत्नी अपने सोते बच्चे को अपनी छाती से लगाए अपार सुख का अनुभव कर रही थी परन्तु बीच बीच में, जब उसे याद आता था कि भूख के कारण उसका बच्चा कैसे मरणासन्न हो गया था वह सिहर उठती थी | उस समय वह भिखारिन कैसे एक दिव्य शक्ति के रूप में प्रकट हुई और मेरे बच्चे की जान बचा ली |

सेठ जी मेरे कहने का मतलब है कि भूख एक ऐसी इच्छा शक्ति है जिसकी मार से बचने के लिए मनुष्य कुछ भी करने को तैयार हो जाता है | यही समस्या अब हमारे परिवार के समक्ष उपस्थित हो जाएगी अगर हमने अपने बीच की दूरियों को ख़त्म नहीं किया तो |           

बहुत अच्छा, तो करो तैयारी |

चन्दगी कुछ झिझककर, सेठ जी तैयारी तो आप ही कराएंगे इसीलिये तो आया हूँ |

क्या मतलब ?

गाड़ी खरीदने के लिए पैसों की जरूरत है |

सेठ के मन में तो चन्दगी पहले से ही एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में चढ़ा हुआ था अत: पूछा, कितने चाहिएं ?

आठ हजार, जो मैं फसल पर चुकता कर दूंगा |

सेठ ने सोचा कि एक साल में चन्दगी का आठ हजार का गल्ला आता है तो वह पूरा तो दे नहीं पाएगा अत: अपना हिसाब लगाकर कहा, चन्दगी मैं आठ तो नहीं पर छ: हजार दे दूंगा |

चन्दगी ने भी अपना हिसाब लगाया और छ: हजार रूपये लेकर चला गया | गाडी खरीद ली गयी और भांखडा-नांगल डैम परियोजना पर लगा दी गयी | दोनों भाई मिलकर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करने लगे | उनकी देखा देखी गाँव के और कई स्वर्ण जाति के लोगों ने भी अपनी गाड़ियां डैम पर लगा दी |

No comments:

Post a Comment