Sunday, July 7, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग 20

 दबंग से सामना

 

भारतीय समाज में एक आदमी से ज्यादा महत्वपूर्ण कोई नहीं होता। वो आदमी है- दामाद। दामाद सिर्फ आदमी नहीं है। एक परंपरा है। एक उत्सव है। दामाद आता है तो पूरा घर मुस्कराने लगता है। गरीब घर का बच्चा भी उछलने-कूदने लगता है। जिस घर में दाल-रोटी भी मुश्किल से जुटता है, और दाल-रोटी के साथ भाजी शायद ही कभी बनती है, दामाद के आने पर उस घर में पकवान बनता है। खीर-पूरी बनता है। 

वैसे तो पूरे भारतवर्ष में किसी न किसी रूप में, दामाद को सिर पर बैठाने की परम्परा है परन्तु  उत्तर भारत में दामाद की खातिरदारी की खातिर कुछ भी कर गुजरने की परम्परा है। भले ही गैर कानूनी हो, पर दामाद को खुश करने का यह सिलसिला विवाह के समय दहेज से शुरू हो कर जीवन भर आगे तक चलता ही रहता है। फिर आंचलिक क्या हरियाणा, पंजाब में तो खासकर दामाद को पूज्य मानते हैं | यहाँ तो परम्परा यह भी है कि किसी एक घर के दामाद को, बिना किसी जाति भेदभाव के, गांव भर का दामाद मान कर उसकी खातिरदारी करने की जाती रही है

इस बात को अंग्रेज प्रसाशक भी अच्छी तरह समझते थे कि गाँव के दामाद के साथ भूलकर भी सख्ती या बदसलूकी करने से उनके खिलाफ बगावत होने का ख़तरा रहता है | वैसे तो अंग्रेज अधिकारी के बंगले के सामने से कोई व्यक्ति चौड़ी छाती करके, बाहें फैलाकर, गुनगुनाता हुआ, मस्त चाल से गुजर जाने की हिम्मत नहीं कर सकता था | क्योकि उस रास्ते से हर गुजरने वाले पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी तथा ऐसा करने वाले की तरफ से अंग्रेज अधिकारी की तौहीन समझी जाती थी | इसके लिए व्यक्ति विशेष को कड़ी सजा दी जाती थी |

चन्दगी राम की शादी पटौदी के एक संपन्न घराने में हुई थी | उनकी पत्नी, भगवानी, अपने नाम के अनुरूप सुन्दर, सुशील, गुणवंती तथा धार्मिक स्वभाव की लडकी थी | उसकी शादी बड़े धूमधाम से हुई थी जिसमें वहां के अंग्रेज प्रसाशक ने भी शिरकत की थी | एक बार चन्दगी राम बनठन कर, सिर पर तुर्रेदार पगड़ी लगाए, चौड़ी छाती किए, मस्त चाल से अपनी ससुराल जा रहा था | वह ज्यों ही अंग्रेज प्रसाशक के बंगले के सामने से गुजरा, पीछे से आवाज आई, ओए, कौन जा रहा है ?

चन्दगी राम अपनी मस्ती में गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ता गया तो पीछे से फिर आवाज आई, रूकता है या गोली मार दूं ?

सुनकर चन्दगी राम के बढ़ते कदम रूक गए | पीछे से सुनाई पडा, वापिस आओ |

चन्दगी राम पीछे तो मुड़ गया परन्तु अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला, क्या पूछना है यहाँ आकर पूछो |

तेरी इतनी हिम्मत, कहकर गार्ड ने चन्दगी के ऊपर अपनी बन्दूक तान दी |

बाहर का शोर सुनकर अंग्रेज अधिकारी भी बाहर आ गया | उसने देखा एक गबरू, सजीला जवान निर्भीक सामने खडा था | उसे पहचानते देर न लगी कि वह तो उनके इलाके की बेटी, भगवानी का घर वाला है | उसने अपने गार्ड को डांटते हुए कहा, सामने वाले आदमी को अगर पहचानते नहीं तो कम से कम सलीके से बात तो कर सकते हो | चलो हटो जाओ यहाँ से | गार्ड असमंजस में था कि आज अंग्रेज प्रसाशक ने उस युवक के प्रति इतनी निर्मलता कैसे दिखा दी अन्यथा अगर कोई उस रास्ते से सिर ऊंचा करके भी निकल जाता था तो उसे उसका भयानक परिणाम भुगतना पड़ता था | अंग्रेज जानता था कि गाँव में ब्याहे (बटेऊ) व्यक्ति की कितनी अहमियत होती थी |      

यही नहीं बटेऊ के भाई को भी गाँव में उतनी ही इज्जत बख्शी जाती है जितनी असली बटेऊ को | चन्दगी राम का एक चचेरा भाई नजफगढ़ के पास एक गाँव दिचाऊं कलां में ब्याहा था | उन दिनों नजफगढ़ एक मानी हुई मंडी थी | उसके आसपास के गाँव वाले अपनी उपज लाकर यहाँ आढ़तियों के जरिये बेचते थे | मंडी के बीच एक लम्बे-चौड़े मैदान में सुबह से ही तरह-तरह के अनाज, दालें तथा सब्जियों की ढेरियाँ लगनी शुरू हो जाती थी | अपनी अपनी ढेरियाँ लगाकर किसान लोग अपने पशुओं को चारा-पानी देकर खुद भी सुस्ताने बैठ जाते थे क्योंकि मंडी के आढ़ती दस बजे के लगभग अपना काम शुरू करते थे | इस बीच एक लंबा चौड़ा जवान, महासिंह अपने गुर्गों के साथ, वहां लगी पूरी ढेरियों का निरक्षण करता तथा अपनी उगाही करने की लिस्ट तैयार कर लेता था | वैसे तो वह सभी किसानों से नाजायज पैसे वसूलता था इसके साथ ही अगर उसे कोई ढेरी पसंद आ जाती थी तो वह किसान को औने-पौने दाम में उसे बेचने पर मजबूर कर देता था | यही नहीं वह मंडी के आढतियों से भी पैसे वसूलता था | मंडी में सभी उससे बहुत परेशान थे | परन्तु किसी की हिम्मत नहीं थी कि उसके सामने चूं तक भी कर सके क्योंकि जिसने भी कभी ऐसी हिम्मत दिखाई उसे महासिंह ने ऐसी मार दिलाई कि वह फिर कभी उस मंडी में दिखाई ही नहीं दिया |

उगाही के साथ- साथ महासिंह ने अधिकतर आढतियों से ऋण भी ले रखा था परन्तु उसे लौटाने का कभी प्रयास नहीं किया | किसान, आढ़ती क्या उस इलाके के और छोटे-मोटे दुकानदार भी महासिह की उगाही से त्रस्त हो चुके थे |

प्रकृति का नियम है कि कभी न कभी सेर को सवा सेर मिल ही जाता है तथा अपने को बलवान समझने वाले को टक्कर देने वाला मिल ही जाता है | हमारे पुराण ऐसी घटनाओं से भरे पड़े है जब वरदान पाकर असुर अपने को अजर-अमर समझकर अपने कारनामों से चारों ओर जुल्म ढाने लगता था परन्तु अंत में घटना क्रम ऐसी स्थिति पैदा कर देते थे कि उसे शिकस्त का मुंह देखना पड़ता था | हमारी रामायण में राम द्वारा रावण तथा उसके अनुयायियों का वध तथा कृष्ण लीला में भगवान् श्री कृष्ण द्वारा कंस का वध दर्शाता है कि एक समय आता है जब दूसरों पर जुल्म ढाने वाले का अंत करने की प्रकिर्या शुरू हो जाती है और अंत सुखद |        

चन्दगी राम भी कभी-कभी अपनी फसल लेकर नजफगढ़ मंडी में जाया करता था | उसे भी पता था कि वहां महासिंह का आंतक फैला हुआ था परन्तु उसका कभी भी महासिंह से आमना सामना नहीं हुआ था | एक दिन चन्दगी राम अपने आढ़ती के यहाँ बैठा था कि महासिंह आया और आढ़ती से बोला, सेठ राम स्वरूप, बीस हजार रूपयों का इंतजाम करो |

सेठ कुछ बोल न सका केवल महासिंह की तरफ देखता ही रह गया | इस पर महासिंह ने हंसते हुए पूछा, क्यों पूछोगे नहीं कि पैसे किस लिए चाहिएं ?

सेठ हमारी इतनी औकात कहाँ कि आप से पूछ सकें |

इस पर महासिंह ने जोर का ठहाका लगाया और खुद ही जवाब दिया, मुझे एक भट्ठा लगाना है |

सेठ (डरते हुए) – पर आपके पास पैसों की क्या कमी है |

महासिंह सेठ, वैसे तो भगवान की दुआ है फिर भी अकेला होने के कारण शायद हाथ कुछ तंग हो जाए | इसलिए पैसे तैयार रखना |

सेठ ठीक है मालिक |

महासिंह - ठीक-वीक मैं कुछ नहीं जानता अभी पढ़ा लिखी कर लो |

सेठ परन्तु अभी तो पैसे हैं नहीं |

महासिंह कोई बात नहीं मैं भी तो अभी नहीं मांग रहा |

सेठ तो जब दूंगा तभी लिखवा लूंगा |

महासिंह सेठ, लिख ले क्योंकि लिखा रहेगा तो तुझे हमेशा याद दिलाता रहेगा कि महासिंह को रूपया देना है |

सेठ परन्तु इतना पहले............

महासिंह सेठ, मैं तेरी शंका समझता हूँ पर तू भी अच्छी तरह जानता होगा कि कसाई का माल कटड़ा ना खा सके कहकर जोर से ठहाका लगाया और कागजों पर दस्तखत करके हाथ हिलाता हुआ चला गया |

महासिंह के जाने के बाद सेठ बुदबुदाया, न जाने हमें इस से कब छुटकारा मिलेगा, और कुछ सोचने लगा |

चन्दगी राम तुम सब आढ़ती एक साथ मिलकर इसके अन्याय के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाते |

सेठ समस्या तो यह है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे अर्थात पहल कौन करे |

चन्दगी भी उठ खडा हुआ और यह कहता हुआ चला गया कि सेठ किसी को तो आगा लेना ही पडेगा |

No comments:

Post a Comment