Wednesday, July 10, 2024

चन्दगी राम निभोरिया - भाग -21

 

दबंग का अन्त

 

चन्दगी के कहे वाक्य ‘किसी को तो आगा लेना ही पडेगा’ ने सेठ को बेचैन कर दिया था इसलिए उस रात सेठ ठीक से सो भी न सका क्योंकि उसे महासिंह की बातें एक चलचित्र की भाँती उसकी आँखों के सामने आकर बार-बार याद दिला रही थी कि उसे बीस हजार रूपयों का इंतजाम करना है | खैर रात के आख़िरी पहर में कुछ देर के लिए सेठ की नींद लग गई | नींद में उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसे कोई कह रहा है कि सेठ लोहे को लोहा ही काटता है’ |

सेठ ने इसका मतलब सोचने की बहुत कोशिश की परन्तु इसका कोई सिर-पैर न समझ सका और मायूस सा होकर बाजार में अपनी गद्दी पर जा बैठा |

 

अचानक सेठ का चेहरा चमक उठा जब उसने चन्दगी को अपनी गद्दी की ओर आते देखा |     जैसे उसे अपनी समस्या का समाधान मिल गया हो | उसे एक ऐसी तरकीब सूझी जिसके अनुसार वह महासिंह की ज्यादती से अपने पूरे समाज को बचा सकता है | उसने सोचा कि महासिंह एक भट्ठा लगाने की सोच रहा है, उसके पास कुछ पैसों की कमी है जिसके कारण वह मेरे से ऋण लेने की कह रहा है, सेठ को पता था कि चन्दगी को भट्ठे की काफी समझ थी और उसके पास पैसा भी है, क्यों न मैं चन्दगी को महासिंह के साथ मिलकर भट्ठा खोलने की सलाह दे दूं | अगर वह मान  गया तो मुझे ऋण भी नहीं देना पडेगा और अगर महासिंह ने चन्दगी के साथ कोई गड़बड़ी करी तो वह उसे छोड़ेगा भी नहीं |

चन्दगी के देहली पर कदम रखते ही सेठ बड़ी आत्मीयता से बोला, आओ चन्दगी राम बैठो |

सेठ हमेशा उसे चन्दगी कहकर ही संबोधित करता था अत: चन्दगी को बहुत आश्चर्य हुआ कि आज सेठ ने केवल चन्दगी बुलाने के बजाय चन्दगी राम कैसे कह दिया | खैर वह बैठ गया तो सेठ ने बात शुरू की, चन्दगी तुम्हें भट्ठा चलाने का तो काफी तजुर्बा है न ?

हाँ सेठ |

हाँ मुझे याद है कि एक बार बाढ़ आने के कारण आपको भट्ठे में काफी नुकसान हुआ था |

चन्दगी हाँ सेठ, तभी तो आपसे रूपये उधार लेकर मैनें माल धोने वाली गाडी ली थी |

सेठ ठीक-ठीक |

सेठ अपने मुद्दे पर आता हुआ, क्या अब दोबारा भट्ठा लगाने का विचार नहीं आता ?

चन्दगी सेठ मैं अकेला अब क्या-क्या करूंगा |

सेठ गाडी तो तुमने अपने भाई के सुपुर्द कर रखी है |

हाँ ! यह बात तो है | फिर भी खेती बाड़ी तो देखनी पड़ती है |

सेठ - एक बार खेत जोत दो तो फिर तो फुर्सत मिल ही जाती होगी |

चन्दगी हाँ सेठ, दो-तीन महीने के आराम के दिन तो मिल ही जाते हैं |

सेठ तो क्या हर्ज है कि इन दिनों में भी कुछ कमाई हो जाए |

चन्दगी सेठ, मैं आपका मतलब समझा नहीं |

सेठ ने समझाना शुरू किया | देख चन्दगी उस दिन जब तू यहाँ बैठा था तो महासिंह आया था | उसने भट्ठे के लिए बीस हजार रूपये के कागज़ बनवाये थे |

चन्दगी तो |

सेठ - उसने यह भी कहा था कि उसके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह अकेला भट्ठा चला सके इसलिए ऋण ले रहा है |

चन्दगी हाँ तो ?

सेठ मेरे कहने का मतलब है कि अब तुझे एक मौक़ा मिल सकता है कि तुम अपना भट्ठा चला सको |

चन्दगी वह कैसे ?

सेठ ने झट से कहा महासिंह का हिस्सेदार बनकर |

चन्दगी सेठ, आप तो जानते है कि महासिंह कितना डफर तथा बेईमान है, आप अपनी जान बचाने के लिए उससे मुझे भिड़ाना चाहते हैं ?

सेठ नहीं चन्दगी, पूरी मंडी के लोग जानते हैं कि एक तुम ही तो हो जिसके ऊपर महासिंह हाथ डालने से कतराता है तथा कुछ नहीं कहता | इसलिए वह तुम्हारे साथ बेईमानी भी नहीं करेगा | 

आज चन्दगी के दिल में दबी चिंगारी को हवा मिल गई थी वह सुलगने लगी | उसे अपनी पहली नाकामयाबी को कामयाब बनाने की मन में तीव्र इच्छा जाग्रत होती महसूस हुई | और उसने महासिंह के साथ मिलकर भट्ठा लगाने की हामी भर दी | 

सेठ को पक्का यकीन था कि महासिंह साजे के काम में जरूर हेरा फेरी केरेगा जो चन्दगी राम कभी बर्दास्त नहीं करेगा और फिर दोनों की ठनना लाज्मी है | सेठ ने शतरंज की बिसात बिछा दी थी | अब उसे इंतज़ार था कि कब और कैसे दबंग महासिंह और चन्दगी राम को आपस में मिलाया जाए | अगले दिन जब महासिंह मंडी में आया तो सेठ ने पास बुलाकर पूछा, आप भट्ठे के लिए रूपया कर्ज पर लेने की कह रहे थे न ?

हाँ |

सेठ - और आप यह भी कह रहे थे कि आप अकेले हैं तथा भट्ठे के बारे में अधिक कुछ नहीं जानते |

हाँ |

सेठ - अगर मैं आपको एक ऐसा व्यक्ति दे दूं जो भट्ठे चलाने का हुनर जानता है तथा आधा पैसा भी लगा देगा तो |

महासिंह सेठ, ‘नेकी और पूछ-पूछ’, जल्दी बताओ कौन है वह ?

इतने उतावले मत होवो कल सुबह जब मंडी आओगे तो मैं आपको उससे मिलवा दूंगा | अगले दिन सेठ ने संदेशा भिजवाकर चन्दगी राम को अपने यहाँ बुला लिया | महासिंह ने आकर सेठ से पूछा बुलाया हमारे साझीदार को ?

सेठ - हाँ बुलाया |

महासिंह कहाँ है ?

सेठ (चन्दगी की और इशारा करके )- यही तो है आपका साझीदार |

चन्दगी को देखकर एक बार तो महासिंह की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई परन्तु अपने को कमजोर न दिखाते हुए अपना दांया हाथ चन्दगी से मिलाने के लिए आगे बढ़ा दिया | चन्दगी ने भी पूरे गरमजोशी से महासिंह का हाथ थाम लिया और दोनों गले मिल गए |

भट्ठा शुरू करने में दोनों ने बराबर का पैसा लगाया तथा बराबर के हिस्सेदार के कागज़ भी बनवा लिए | भट्ठा चालू हो गया और ईंटों की पहली खेप भी पककर बाहर आ गई | इन दिनों चन्दगी अपने खेत की फसल की कटाई- छंटाई में व्यस्त हो गया अत: भट्ठे की तरफ ज्यादा तवज्जो न दे सका | महासिंह, अपनी आदत से मजबूर को, हेराफेरी करने का यह सुनहरा अवसर मिल गया | भट्ठे से निकासी तीन ट्रक ईंटों की होती थी और वह दिखाता दो ट्रक | एक ट्रक महासिंह मुफ्त में ही अपने काम पर भेज देता था | आख़िरी में जब दोनों का हिसाब किताब बना तो चन्दगी को लगा कि लगभग दस लाख ईंटों की हेरा फेरी हुई है | महासिंह यह मानने को तैयार नहीं था | चन्दगी उससे उलझाना नहीं चाहता था इसलिए राय दी कि भट्ठा चलाने वाले मालिकों की पंचायत बुला ली जाए तथा जो वे फैसला करेंगे दोनों को मान्य होगा | बड़ी हूँ-हुज्जत के बाद मानसिंह इस बात पर राजी हो पाया |

पूरी मंडी अब इस बात का इंतज़ार करने लगी कि देखो ऊँट किस करवट बैठता है’ | वैसे मंडी के किसान, मजदूर, आढ़ती तथा अन्य सभी को विश्वास था कि महासिंह ने जरूर हेराफेरी की होगी और यह उजागर होने पर भी वह पंचायत की बात भी नहीं मानेगा |

पंचायत बैठ गई | पंचों ने पहले चन्दगी से पूछा, तुम्हारा क्या कहना है ?

मुझे ईंटों के बेचने में कुछ गड़बड़ी का अंदेशा है |

पंच तुम्हारे अनुसार वह क्या हो सकता है ?

चन्दगी पहले यहाँ बैठे भट्टा मालिकों से इस बात की पुष्ठी की जाए कि एक करोड़ कच्ची ईंटों की निकासी कितनी बनती है |

सभी भट्ठा मालिकों ने हिसाब लगाकर अपनी राय दी कि अव्वल नंबर की ९५००००० लाख निकलनी चाहिए फिर भी अगर कुछ तकनीकी खराबी आ जाए तो भी ९०००००० ईंटें तो निकलेंगी ही | बाकी टूटी हुई, चट्टा और काली इत्यादी निकलती हैं |              

पंच (महासिंह की तरफ मुखातिब होकर) – आपके अनुसार ईंटें बिकी कितनी हैं ?

महासिंह हिसाब की कापी बता रही है ८०००००० |

पंच तो फिर १०००००० ईंटें कहाँ गई |

महासिंह मैं क्या जानूं |

पंच ईंटें बेचने का हिसाब किताब तो आपके हाथ में ही था न ?

महासिंह तो ?

एक भट्ठा मालिक उत्तर प्रदेश में तुम्हारा एक काम भी तो चल रहा है ?

महासिंह – (कुझ झिझकता हुआ) हाँ चल रहा है |

पंच तो उसके लिए ईंटें कहाँ से ले रहे हो ?

महासिंह वह तो वहीं से आ रही हैं | मैं भला यहाँ हरियाणा से उत्तर प्रदेश में इतनी दूर ईंटें भेजने का बे फिजूल खर्चा क्यों उठाऊंगा |

पंच चन्दगी, क्या तुम्हें कोई शक है कि यहाँ से ईंटे वहां भेजी गई हैं ?

एक भट्ठा मालिक यह भी जांच का एक विषय होना चाहिए |

पंच ठीक है महासिंह के काम पर इस्तेमाल होने वाली ईंटों के ठप्पे की भी जांच की जाए |

महासिंह – (क्रोध से) आप सब लोगों का दिमाग खराब हो गया है | जब मैं कह रहा हूँ कि मेरे काम पर यहाँ से ईंटें नहीं गई तो |

पंच जब जांच हो ही रही है तो इसे जांचने में क्या हर्ज है ?

महासिंह ने जब समझ लिया कि सभी की राय जांच उसके काम तक पहुचने वाली है तो उसने कहा अच्छा ठीक है बताओ मुझे मेरी गलती का क्या हर्जाना भरना पडेगा ?

महासिंह के ऐसे वचन सुनकर सभी बैठे लोगों ने समझ लिया कि उसने चन्दगी के साथ विश्वासघात अवश्य किया है इसलिए हिसाब लगाकर बताया कि महासिंह को, चन्दगी राम को, १०००० रूपये देने होंगे | इस पर महासिंह बिफर पड़ा और गाली देता हुआ बोला, इतने रूपये, मैं एक कौड़ी नहीं दूंगा जिसमें हिम्मत हो लेकर दिखाए |

शतरंज के हाथी, ऊँट, घोड़े, वजीर, राजा और सिपाहियों की चाल की तरह पंचायत में गहमा-गहमी शुरू हो गई थी | चन्दगी राम ने अपने लठैत को इशारा किया कि इस अफरातफरी का फ़ायदा उठाकर वार कर दे | लठैत ने कोई वक्त नहीं गवांया और एक ही वार में महासिंह को धुल चटाकर फरार हो गया | शतरंज के खेल में जैसे कभी-कभी सिपाही के वार से राजा बेबस हो जाता है और उसे मात मिल जाती है उसी प्रकार महासिंह को भी चन्दगी के लठैत ने एक ही वार में धराशाही कर दिया था | महासिंह को जमीन पर गिरा देख चारों और शोर उठा कि किसने मारा किसने मारा परन्तु कोई अंदाजा न लगा सका | हालांकि महासिंह के भी साथी वहां उपस्थित थे परन्तु हुजूम के सामने थोड़े से लोग क्या कर सकते थे | ऊपर से उन्हें भी धमकी मिल गई कि अगर कुछ बोले तो उनका भी महासिंह जैसा ही हश्र होगा इसलिए वे एक कौने में खड़े होकर चुपचाप पंचायत की कार्यवाही देखते रहे |

महासिंह से पूरा इलाका त्रस्त था | सभी अन्दर ही अन्दर खुश थे कि एक अत्याचारी का अंत हो गया है | आनन्-फानन में एक खाली जगह देखकर महासिंह का शव वहां ले जाया गया | जिसको जो जवल्न पदार्थ मिला उसे महासिंह की लाश के ऊपर डाल दिया गया और फिर मिट्टी के तेल की सहायता से उसमें आग लगा दी गई | देखते ही देखते लोंगों की भारी भीड़ के सामने महासिंह का पार्थिव शरीर पांच तत्वों में विलीन हो गया |

महासिंह के परिजनों तथा उसके सहयोगियों ने इसका पूरा इलजाम चन्दगी पर लगाकर उसे सबक सिखाने के लिए एक गुट बना लिया | उन सबने मिलकर पंचायत में बैठे चन्दगी पर हमला कर दिया | परन्तु घुम्मन हेड़ा के पूरे गाँव वासियों ने चन्दगी को अपना मेहमान मानकर (चन्दगी का छोटा भाई उस गाँव में ब्याहा था) उस पर किसी तरह का भी वार अपने सम्मान के प्रतिकूल जान उसके बचाव पक्ष में खड़े हो गए | जब वहां स्थित महासिंह के समर्थकों का बस न चला तो उन्होने अपने ईलाके में खबर पहुँचाकर अपने और साथी बुला लिए | अब इस लड़ाई ने दो गुटों के बीच आत्म सम्मान की लड़ाई का रूप ले लिया | महासिंह के समर्थकों की भारी भीड़ जुटते देख घुम्मन हेड़ा के लोगों ने भी अपने आसपास के बिरादरी वाले गावों में डौंडी फिरवा दी कि गाँव के मेहमान की इज्जत के लिए जल्दी से जल्दी चौपाल पर इकट्ठा हों | सूचना मिलते ही आसपास के गाँव के जवान, बूढ़े, औरतें जिसको जो हाथ लगा मसलन लाठी, डंडा, खुरपी, दंराती, कुल्हाड़ी इत्यादि लेकर पहुँच गया | इतने बड़े हुजूम के सामने महासिंह के समर्थकों की एक न चली | आखिर मामला पुलिस के पास पहुँच गया |

पुलिस को अगर भेंट चढ़ा दी जाए तो वह रस्सी का सांप बनाने में ज़रा भी देर नहीं लगाती | जब  महासिंह भट्ठा शुरू करने की बात सोच रहा था तो उसने सेठ से २००००/- रूपये ऋण लेने के कागज़ बनवा लिए थे परन्तु बाद में चन्दगी का साथ मिल जाने से उसने वे रूपये नहीं लिए थे | पुलिस को चढ़ावा चढ़ा कर उनका मुंह बंद करवाने के लिए सेठ ने उन रूपयों का इस्तेमाल किया | सबकी राय से केस ख़त्म करवाने के ऐवज में पुलिस को तीन हजार रूपये दिये  गए |     

पूरे गवाहंड का साथ मिलने से चन्दगी राम इतना प्रभावित हुआ कि उसने पूरे इलाके के लिए भंडारे के आयोजन की घोषणा कर दी | चन्दगी राम की दिलेरी से पूरे गवाहंड के लोग गदगद हो गए और चारों ओर चन्दगी राम जिंदाबाद के नारे गूंजायमान हो उठे |

No comments:

Post a Comment