लव जिहाद (2)-8
देवेन्द्र :-
तुम्हारी हॉबी क्या है ?
मुझे संगीत से
बहुत लगाव है |
देवेन्द्र :- तो
क्या तुम्हें गाना भी पसंद है ?
नहीं – नहीं केवल
सुनना |
देवेन्द्र :- केवल
सुनना या ठुमके भी लगाना |
इस पर मस्तानी
मुस्कराकर तथा शर्माते हुए बोली, “कभी-कभी |”
मस्तानी की
कभी-कभी सुनकर देवेन्द्र की रूह अन्दर तक आनंदमयी हो गई || मन ही मन उसने अल्लाह का शुक्र अदा किया कि आगे चलकर उसको अधिक मेहनत नहीं
करनी पड़ेगी क्योंकि मस्तानी की रुचि तो पहले से ही उसके मन मुताबिक़ थी |
देवेन्द्र को
विचारों में खोया देख मस्तानी ने पूछा, “क्यों कहाँ खो गए |”
कुछ नहीं कुछ नहीं
बस भगवान् का शुक्र अदा कर रहा था |
किस बात का ?
यही कि हमारी क्या
खूब जोड़ी बनेगी |
वो कैसे ?
तुम्हें अभी तक
पता नहीं कि मैं भी संगीत में बहुत रूची रखता हूँ |
वो कैसे ?
मेरा काम डी.जे. का है |
मस्तानी बुरा सा मुंह बनाकर, “तो क्या तुम शादी विवाह में डी.जे. का काम करते
हो ?
अरे नहीं मैं इन छोटी-मोटी शादियों में यह काम
नहीं करता |
“फिर”
मेरा बड़े बड़े होटलों से करार है | वहां बड़ी –बड़ी हस्तियाँ थिरकती हैं |
मैं तो डर गई थी |
अपना विशवास कायम करने के लिए देवेन्द्र बोला, “अच्छा सा मौक़ा देखकर मैं किसी दिन तुम्हें अपने
साथ ले जाऊंगा |”
देवेन्द्र की बात सुनकर मस्तानी का मन बल्लियों
उछलने लगा फिर भी अपनी खुशी छिपाते हुए पूछा, “मैं वहां जाकर क्या करूंगी ?”
देवेन्द्र, मस्तानी की आँखों में अपनी नजरें गडाते हुए, “अपनी दबी इच्छाओं को साकार कर लेना और क्या |”
‘आपका मतलब’
‘यही कि चाहो तो तुम भी थिरक लेना’
‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना कहकर मस्तानी
जोर से खिलखिलाकर हंस दी |
‘अरे वहां ऐसा बेगानापन नहीं दिखता वहां तो अपनी
खुद की शादी जैसा माहौल दिखाई देता है’ |
एक दिन देवेन्द्र मस्तानी को अपने साथ होटल में
ले गया | यह पांच सितारा होटल था
वहां की सजावट देखकर मस्तानी दंग रह गई | ज्यों –ज्यों रात गहराने लगी एक से बढ़कर एक संभ्रात व्यक्ति डी. जे. पर आकर
थिरकने लगा | धीरे –धीरे समा बंधने लगा
तो मस्तानी के पैर तथा जिस्म हरकत में आने लगा | देवेन्द्र ने मस्तानी के उतावलेपन को भांपकर आखों ही आँखों
में उसे नाचती हुई जनता में शामिल होने का इशारा किया | थोड़ी सकुचाते हुए मस्तानी चली गयी और फिर जमकर नाची | देवेन्द्र को प्रसन्नता थी कि उसके अपने मन की
मुराद पूरी होने वाली थी |
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