बढ़ते कदम
होटल से वापसी में देवेन्द्र, “कल का क्या प्रोग्राम है ?”
‘कल तो मेरी छुट्टी है’ |
‘तुम्हारे घर वालों को तो नहीं पता ?
’नहीं |”
‘तो फिर कहाँ मिलोगी’
‘रोजाना जरूरी है?’
‘कल एक बहुत ख़ास व्यक्ति से तुम्हें मिलवाऊंगा |’
‘मस्तानी माथे पर बल लाकर, “मुझे नहीं मिलना किसी ख़ास
व्यक्ति से |”
देवेन्द्र मस्तानी का हाथ अपने हाथों में लेकर
तथा मस्तानी की आखों में आँखे डालकर, “यह वह ख़ास व्यक्ति है
जिसके साथ तुम्हें जिन्दगी बितानी है |”
मस्तानी देवेन्द्र की बातों का कुछ सर-पैर न
समझ, “ये क्या पहेलियाँ बुझा रहे हो, भला तुम्हारे सिवाय वह
कौन होगा जिसके साथ तुम जीवन बिताने का कह रहे हो ?”
देवेन्द्र ने मस्तानी का हाथ धीरे से दबाया और
कहा, “बस तुम कल आ जाना “ और विदा ली |
हालांकि मस्तानी बहुत दिनों के बाद जी भरकर
नाचने के बाद पूरी तरह से थक चुकी थी तथा उसकी आँखे नींद से भरी हुई थी परन्तु
देवेन्द्र की ख़ास व्यक्ति से मुलाक़ात का रहस्य उसे सोने नहीं दे रहा था | उसकी पूरी रात करवटें
बदलने में ही गुज़री |
सुबह उसका पूरा शरीर बुरी तरह से दर्द कर रहा
था फिर भी उसने कोई सुस्ती नहीं दिखाई और तय समय पर देवेन्द्र से जा मिली | उसने उतावलेपन में चारों
और देखा और पूछा, “कहाँ है वह आपका ख़ास व्यक्ति?”
‘थोड़ा धीरज रखो | चलो मेरे साथ |’
‘कहाँ ?’
‘जहां वह खास व्यक्ति रहता है |’
ज्यों ही देवेन्द्र ने अपने कदम बढाए मस्तानी
एक समर्पित औरत की तरह उसका अनुशरण करने लगी | थोड़ी देर में वे एक दो
मंजिला मकान के सामने थे |
देवेन्द्र ने मकान को ऊपर से नीचे तक देखा और
साथ खड़ी मस्तानी से कहा, “चलो अन्दर चलते हैं |”
इस बार मकान को ऊपर से नीचे देखने की बारी
मस्तानी की थी | वह सोच में पड़ गई कि वह मुझे अन्दर क्यों ले
जाना चाहता है | क्या उसकी नीयत खराब हो गई है | अन्दर कोई और भी हो सकता
है | वहां मुझे अकेली जान मेरे साथ धोखे से जबरदस्ती भी हो सकती
है | उसकी दुविधा को समझ देवेन्द्र ने घर के दरवाजे को अन्दर धकेल कर आवाज लगाई, मम्मी जान, और चोर नजरों से मस्तानी
की तरफ देखा कि कहीं उसके ‘मम्मी जान’ कहने से उसे कुछ शक तो नहीं हुआ |
अन्दर से आवाज आई, “हाँ दनी |”
अन्दर से किसी औरत की आवाज सुनकर मस्तानी की
जान में जान आई और उसके कदम आगे बढ़ गए |
अपने लड़के के साथ एक अजनबी लडकी को देख माँ ने
पूछा, “ये कौन है ?”
मम्मी जी (इस बार देवेन्द्र ने सजग होकर मम्मी
जान नहीं कहा) यह मेरे आफिस में काम करती है |
मम्मी ने मस्तानी को ऊपर से नीचे तक निहारा, “लडकी तो सुन्दर है |”
देवेन्द्र ने पूछा,पसंद है” और जोर से हंस
दिया |
मम्मी ने दोनों की और प्रशन वाचक दृष्टि से
देखा तो देवेन्द्र तो मुस्करा रहा था परन्तु मस्तानी ने शर्मा कर अपनी नजरें झुका
ली थी | परन्तु वह कनखियों से देवेन्द्र को ताक रही थी
तथा आँखों ही आँखों में जैसे कह रही हो मैं कितने दिनों से तुम्हारे मुंह से ऐसा
कुछ सुनने को बेताब थी | जो आज आपने मेरे मन की
बात अपनी मम्मी जी के सामने रख दी है |
अचानक मम्मी जी ने अपना हाथ मस्तानी के सिर पर
रख कर उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “ऐसी सुन्दर लडकी को कौन
पसंद नहीं करेगा” | उसने उसका हाथ पकड कर अन्दर ले जाकर कुर्सी पर
बैठा दिया | फिर पानी का गिलास थमाते हुए बोली, “बेटी तुम्हारा नाम क्या
है?’
‘मस्तानी’
अरे वाह ! तुम्हारा नाम तो तुम्हारी कद-काठी, निडरता तथा रूप लावण्य पर
खूब फबता है | वैसे तुम्हारा वंश क्या है ?
मस्तानी प्रशन सुनकर कुछ झेंपी परन्तु साहस
बटोर कर बताया – गुप्ता |
मस्तानी का उत्तर जानकार देवेन्द्र की माँ
अचानक असमंजस में पड़ गयी तथा उसने एक-एक करके दोनों पर प्रशनवाचक दृष्टि डाली |
माँ की उलझन समझ देवेन्द्र ने धीरे से उसका हाथ
दबाते हुए कहा, “माँ अभी ऐसा कुछ नहीं है जैसा आप समझ रही हो |”
अपने बेटे के बात सुनकर माँ कुछ आश्वस्त हुई और
मस्तानी से और बहुत सी बातें की मसलन !
कितनी पढी-लिखी हो ?
क्या काम करती हो ?
कौन से आफिस में हो ?
अब्बा क्या करते हैं ?
कितने भाई बहन हो ?
अम्मी क्या करती हैं ? इत्यादि |
वह पूछती तो जा रही थी परन्तु देवेन्द्र को ऐसा
महसूस हो रहा था जैसे उसकी माँ के मन में मस्तानी के वंश को लेकर एक डर बैठा हुआ
था | इसलिए उसने अपनी माँ को रोकने के लिए कहा, “मम्मी क्या सारी बातें आज
ही दरियाफ्त कर लोगी | अगली मुलाक़ात के लिए भी कुछ छोड़ दो |”
देवेन्द्र की बात से उन दोनों को बहुत राहत
मिली और थोड़ी देर बाद वे दोनों वहां से निकल गए | रास्ते में देवेन्द्र ने
जानना चाहा कि उसे उसका घर कैसा लगा तो मस्तानी यह कहते हुए उसे अकेला छोड़ कर चली
गयी कि अगली मुलाक़ात में बताऊँगी |
‘अगली मुलाक़ात’ के शब्द ने दोनों के चेहरे पर
एक लम्बी मुस्कान फैला दी थी |
No comments:
Post a Comment