Thursday, December 26, 2024

मस्तानी भाग-10

 

अगली मुलाक़ात

गुलाबी ठण्ड पड़ रही थी | दिन के ग्यारह बजे थे | सुबह के सूरज की तपिस शरीर में गर्मी का एहसास देकर मन को प्रफुल्लित कर रही थी | बागीचे में रात को पड़ी ओस प्राय: समाप्त हो चुकी थी | देवेन्द्र और मस्तानी ने ठंडी हवा से बचने के लिए बागीचे के एक कौने में आश्रय ले लिया था | बैठते ही मस्तानी ने सवाल किया, “आज आप मेरे मन में जो पुराणी बातें हैं उनका जवाब दो”|

देवेन्द्र ने असमंजसता में मस्तानी की और निहारा |

देवेन्द्र की हालत देखकर मस्तानी ने कहा कि चिंता मत करो, प्रशन बहुत ही मामूली हैं | मैं जानना चाह रही थी कि आप ने अपनी पहली मुलाक़ात में मुझे तस्वीर कहकर क्यों संबोधित किया था ?

सांत्वना पाकर देवेन्द्र जोर से हंसा और बताया कि हैदराबाद में एक सलारजंग म्यूजियम है | उसमें एक विश्व प्रसिद्द तस्वीर लगी है | उस तस्वीर के चेहरे पर एक रोशनी पड़ रही है और उस तस्वीर का चेहरा उस रोशनी से दमक कर ऐसा मनोहर दृश्य उत्पन्न कर रहा है जैसे कोई बहुत सुन्दर तथा मनमोहक अप्सरा बैठी है | उस दिन तुम्हारे चेहरे पर भी अन्धकार में रोशनी से वैसी ही छवी झलक रही थी जिससे मैं बहुत प्रभावित हो गया था और मैंने तुम्हे तस्वीर कह दिया था | क्या तुम्हारी शान में मैनें कुछ गुस्ताखी कर दी थी ? 

मस्तानी शर्मा गई, नहीं –नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो बस पता करना चाह रही थी कि तस्वीर की क्या कहानी थी | फिर थोड़ा सोचकर, अच्छा वह जो दुमंजिला मकान था वह तुम्हारा अपना है ?

हाँ-हाँ वह मैंने चार साल पहले ही खरीदा है | मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि हम देश के बंटवारे के समय पाकिस्तान से विस्थापित होकर यहाँ भारत में आ गए थे | उस समय हमारी हालत बहुत दयनीय हो गई थी | रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या बहुत जटिल थी | हमें कई वर्षो तक रिफुजी कैम्प में रहना पडा था | मेरे दादा जी बुजूर्ग थे | अब्बा बीमारी की वजह से काम करने में असमर्थ थे | घर की सारी जिम्मेदारी का बोझ मेरे ही कन्धों पर था | मैंने हिम्मत नहीं हारी | मुझे संगीत में बहुत रूची थी उस परवर दिगार का बहुत शुक्रगुजार हूँ जिसने मेरे मन मुताबिक़ काम दिलाकर मेरी बहुत सहायता करी | बाकी तुमने मेरे साथ जाकर यह देख ही लिया कि एक रात में ही कितना पैसा मिल जाता है |

वास्तव में ही आपने बहुत कष्ट उठाए होंगे | आपने रात-रात भर जागकर और कड़ी मेहनत करके अपने आप को स्थापित किया है | वास्तव में ही आप एक ‘Self made’ व्यक्ति हो | मैं आपको ‘हैट आफ सलूट’ करती हूँ |

देवेन्द्र : और कोई मन की दुविधा ?

इस बार मस्तानी शर्मा गई | थोड़ी देर चुप्पी के बाद उसने चोर नजरों से देवेन्द्र को निहारते हुए पूछा, “वह पसंद वाली क्या बात थी |”

देवेन्द्र ने जानकर बनते हुए, “कौन सी पसंद, किसकी पसंद |” 

ज्यादा बनो मत | जब आपकी मम्मी जी मेरी तारीफ़ कर रही थी तो आप बीच में बोले थे न ?

हाँ शायद मेरे मुंह से कुछ शब्द निकला तो था |

तो उसका आशय क्या था ?

मैं मम्मी जी से पूछ रहा था कि उन्हें पसंद है कि नहीं |

मम्मी जी से पूछ रहे थे या अपनी मंशा जाहीर कर रहे थे ?

मेरी मंशा की जड़े तो पहली ही नजर में, जब मैंने तुम्हें अँधेरे में रोशनी से नहाए देखा था, पक्की हो गई थी |

फिर मुझे अभी तक क्यों नहीं बताया, मस्तानी ने थोड़ा बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा |

देखो ! तुम भी जानती होगी कि सेकंड ओपिनियन लेना हमेशा अच्छा रहता है |

अरे तुम तो बड़े अक्लमंद हो |

यह तो मैं अपने नाम से ही हूँ |

देवेन्द्र का मतलब अक्लमंद तो नहीं होता ? 

तुमने शायद ठीक से सुना नहीं होगा जब मेरी मम्मी ने, जब तुम मेरे घर पर गई थी और मैंने आवाज लगाई थी तो उन्होंने मुझे आई ‘दनी’ कहकर संबोधित किया था |

‘तो’

अरे भाई दनी का मतलब ही अक्लमंद अर्थात बुद्धिमान होता है और जोर से हंस दिया |  

ठीक है ठीक है परन्तु अब कोई तीसरी ओपिनियन तो नहीं लेनी |

नहीं अब तो बस मम्मी-अब्बा से मशवरा करना है कि आगे कैसे करना है | उस समय तुम्हे भी उपस्थित रहना होगा |

देवेन्द्र कुछ सोचकर, “अच्छा एक बात बताओ क्या कभी तुमने मेरे बारे में अपने घर कुछ बात की है ?

“नहीं”

देवेन्द्र ने मस्तानी की नजरों में अपनी नजरे गड़ाकर, “तो क्या तुम्हारे घर वाले हमारे आपसी रिश्ते को मंजूरी दे देंगे ?      

‘क्यों नहीं देंगे’

तुम इतनी आसत्वस्त कैसे हो ?

‘अरे मैं अब बालिग़ हो चुकी हूँ, मैं अपने जीवन के फैसले खुद ले सकती हूँ “

मस्तानी का उत्तर सुनकर देवेन्द्र की बाछें खिल गई | उसने मस्तानी का चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर बड़े जोश में कहा, “बस तुम इसी बात पर अडिग रहना फिर हमें दुनिया की कोई ताकत एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकती |”

अब तक मस्तानी पूरी तरह देवेन्द्र के मायाजाल में फंस चुकी थी अत: उसने भी हामी भरी कि मैंने भी आपकी जीवन संगिनी बनने का अटल निश्चय कर लिया है | और मैं इस पर अडिग रहूँगी |

इस प्रकार का आश्वासन मिलने पर देवेन्द्र के हौसले बुलंद हो गए और वह मस्तानी को एक बार फिर अपने मम्मी अब्बा से मिलवाने अपने घर ले गया |

देवेन्द्र के घर में चारों मेज के चारों और बैठ गए | कबीर (देवेन्द्र के पिता) ने कहना आरम्भ किया, बेटी तुम्हारे बारे में देवेन्द्र की मम्मी ने मुझे सब कुछ बता दिया है | वह तुम्हें पसंद भी करती है और दनी भी | तुम अपनी पक्की राय बताओ |

थोड़ी देर सन्नाटे के बाद मस्तानी ने शर्मा कर अपनी नजरें नीची करके हामी भरते हुए कह दिया कि वह भी राजी है |

परन्तु तुम्हारे घर वाले नहीं माने तब ?

यह मेरे ऊपर छोड़ दो मौक़ा देखकर मैं उन्हें मना लूंगी |

उसके बाद घर के तीनों  सदस्यों में कुछ मंत्रणा हुई और मस्तानी से कहा गया कि एक बार सुप्रसिद्ध मजार पर मन्नत मांग ली जाए तो मस्तानी का घर बताना शुभ होगा | 

इस बीच मस्तानी ने नौकरी छोड़कर एम्.एस.सी. में दाखिला ले लिया था | एकबार मस्तानी ने बहाना बनाकर कि यूनिवर्सिटी की तरफ से जम्मू जाने का एक प्रोग्राम बना है अत: जाने के लिए उसने अपना नाम दे दिया है | अपनी लडकी पर विसवास से भरे माता-पिता ने सहज ही जाने की मंजूरी दे दी |

जम्मू हवाई अड्डे के एक छोर पर स्थित मजार बहुत प्रसिद्ध है | दूर –दूर से लोग उस पर मन्नत माँगने आते हैं | यहाँ प्रत्येक वीरवार को एह बहुत बड़ा मेला लगता है | भीड़ इतनी अधिक होती है कि वहां पैर रखने की जगह नहीं मिलती | लोगों को घंटो लाइन में लग कर अपनी बारी आने का इंतज़ार करना पड़ता है | यह सभी का पक्का विशवास है कि यहाँ पर माँगी गयी मन्नत हमेशा पूरी होती है | देवेन्द्र और मस्तानी के साथ उसके माता-पिता ने यह सुनिश्चित किया कि मान्नत मागने में किसी प्रकार की कोई त्रुटी न रह जाए | आश्वस्त होकर वे घर लौटे और मस्तानी को कहा कि वह अब अपने माता पिता को इस सम्बन्ध के बारे में अवगत करा दे | क्योंकि अब उन्हें पक्का विशवास हो गया था कि मस्तानी के माता-पिता अब कितना भी जतन कर लें वह उनके चंगुल से आजाद नहीं हो सकती |  

 

 

No comments:

Post a Comment