रूढीवादी सोच
शास्त्र कहते हैं
कि एक आदर्श विद्यार्थी में पांच लक्ष्ण होने चाहिए |(1) कव्वे जैसा दृढ प्रयास, (2) बगुले जैसी तल्लीनता, (3) कुत्ते के सामान हलकी नीद, (4) कम भोजन करना (5) घर से दूर रहने
जैसे पांच लक्षण होने चाहिए| जैसे शास्त्र विद्यार्थी के पांच लक्ष्ण बताता है वैसी ही अनुभव के आधार पर
अहंकारी व्यक्ति में भी पांच लक्ष्ण पाए
जाते हैं |
1. दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों पर भड़कता है व अपने बड़े-बड़े दोषों को भी
स्वीकार नहीं करता।
2. अपने से योग्य व्यक्तियों को उभरते देख परेशान हो उठता है। यह जानते हुए भी कि
महिला सश्क्तिकर्ण से उनमें भी नेतृत्व करने की क्षमता आ गई है ।
3. सदा विफलताओं का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ता है व सफलताओं का श्रेय स्वयं लेता
है क्योंकि वह अपने को सबसे ज्यादा बुद्धिमान समझता है |
4. अपनी प्रशंसा तथा चापलूसी पसन्द करता है व जो उसको सचेत करे चाहे उसकी
पत्नी ही क्यों न हो उसको लात मारने में भी संकोच नहीं करता।
5. परिवारवाद से जुड़े रूढ़ीवादी संस्कारों को बढ़ावा देकर घर की औरतों को पैर की
जूती समझना या उसके साथ दासी जैसा व्यवहार करना तथा सदैव अपने विचारों को
सर्वोपरीय मानता है ।
एक बार की बात है कि एक वृक्ष पर एक बन्दर व
चिडि़या रहते थे। वर्षा ऋतु आई। चिडि़या सुरक्षित अपने घोंसले में रहती व बन्दर
भीग-भीग कर परेशान हो इधर-उधर मारा-मारा फिरता। एक बार चिडि़या ने प्रेमपूर्वक तरस
खा कर आग्रह किया - ‘‘बन्दर मामा,वर्षा ऋतु बीतने पर आप भी प्रयत्न कर मेरी तरह
एक सुरक्षित कवच बना लीजिए जिससे भविष्य में आपको कष्ट न हो।’’ बन्दर को क्रोध आया-‘‘मुर्ख तू मुझे शिक्षा देती है अभी तूझे बताता हू
। उसने तुरन्त चिडि़या का घोंसला तोड़ दिया। इसलिए अहंकारी को कभी सीख नहीं देनी
चाहिए तथा अहंकारी व्यक्ति से सदा सावधान रहना चाहिए।
डाक्टर बताते हैं
कि कई रोग पुश्तैनी होते हैं | जैसे शुगर (डाईब्टीज), अस्थमा, बल्ड प्रेशर इत्यादी
| इसी प्रकार माना जा सकता है कि बच्चे के ऊपर घर से मिले संस्कार तथा आदतों पर भी पुश्तैनी असर अवश्य पड़ता होगा | वर्तमान समय के
प्रचलन में पला बढ़ा मदन भी अपने घर
में प्रचलित रूढ़िवादी विचार, संस्कार तथा आदतों से उभर न सका |
अपने हनीमून पर
उसने मस्तानी को वर्तमान युग की वेशभूषा, टी-शर्ट और नेक्कर, बड़े चाव से खुद खरीद
कर पहनाई परन्तु वापिस आकर घर वालों को उसके सलवार-जम्फर पहनने पर भी राजी न कर
सका था | मस्तानी की सास अपने पति दिनेश की ताकीद की अवहेलना कभी न कर सकी और पूरी
उम्र साड़ी के अलावा कुछ और न पहन सकी | घर में अब मदन भी अपने पिता जी के नक़्शे
कदम पर चलना चाहता था और उनके दवाब में आकर मस्तानी से भी अपनी माँ की तरह का
व्यवहार चाहता था |
दिनेश अपनी पत्नी
के हर काम में कुछ न कुछ कमी निकालकर उसे डांटता रहता था | उसने मस्तानी के साथ भी
वैसा ही सलूक करना शुरू कर दिया था | कभी सब्जी में मसालों के खातिर, कभी दाल या
कढी की पतली-गाढ़ी होने के कारण उसे ससुर के दरबार में उपस्थित होना पड़ता था और उस
समय मदन अपनी बाहों को बांधे एक कौने में बेबस खडा मुस्कराता नजर आता था |
मस्तानी के घर
में आने से धीरे-धीरे काम वाली बाई जो झाडू-पौछा और बर्तन साफ़ करने को आती थी हटा
दी गई | फिर धोबी को प्रैस के कपडे देने बंद कर दिए गए | और इन सभी कामों का बोझ
मस्तानी पर लाद दिया गया |
मस्तानी स्कूल
में एक अध्यापिका थी | इन कामों के बोझ से उसे अपने तथा स्कूल के कार्यों के लिए
समय मिलना मुश्किल हो गया | उसने जब अपनी समस्या अपने पति मदन को बताई तो उसका
सीधा जवाब था कि नौकरी छोड़ दो | मदन ने दलील दी कि उसकी नौकरी का पैसा तो उसके
पीहर वालों पर ही खर्च होता है | ऐसे में उसकी नौकरी उनके लिए कोई मायने नहीं रखती
|
मदन मस्तानी और
उसके घर वालों की दो-चार झूठी रिकार्डिंग
करके यह पहले ही दर्शाने की कोशिश कर चुका था कि वह कितना बुद्धिमान तथा जासूस है |
उससे कुछ छिपा नहीं रह सकता तथा वह बाल की
खाल निकालने में माहिर है | परन्तु अपनी बुद्धिमता से वह अपनी बहन को ही दलदल में गिरने
से न बचा सका |
मस्तानी ने थोड़े
दिनों में ही जान लिया कि उसकी ससुराल में उसका ससुर ही पूर्णता सुपर पावर है और
उसके मन में रूढ़िवादी विचारों के कारण औरतों के लिए कोई इज्जत नहीं है | उसके
अनुसार महिला कोई भी निर्णय लेने में असमर्थ होती है | वह तो केवल घर की चार
दिवारी में रखने, चौका-चुल्हा संभालने, संतान बढाने तथा भोगने की वस्तु मात्र है |
घर के ऐसे
वातावरण से नीजात पाने के लिए मस्तानी ने निश्चय कर लिया कि उसे उस घर की रूढ़िवादी
सोच का डटकर मुकाबला करना होगा अन्यथा उसे भी अपनी सास की तरह घर के मर्दों के
रहमों कर्म पर जीवन निर्वाह करने पर मजबूर होना पड़ेगा |
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