समझाने की कोशिश
एक तरफ तो जनता कोरोना के
कारण त्राही-त्राही पुकार रही थी | इसके प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से लोग
बहुत से यत्न कर रहे थे | कई संस्थाए भूखों को खाना बाँट रही थी, कुछ रेन बसेरा
बना रही थी, कुछ अस्पताल बनवा रही थी तो कुछ भगवान् की दया हासिल करने के लिए हवंन
इत्यादि कर रही थी | ऐसी महामारी के समय जनता एक दूसरे का सहारा बनना चाहती थी |
दूसरी और मस्तानी के ससुराल वाले अपने ही बेटे की शादी शुदा जिन्दगी को बर्बाद
करने की साजिस रच रहे थे |
मस्तानी के ममिया ससुर के
आश्वासन देने पर की वह मदन के पिता जी (दिनेश)से सलाह मशवरा करके मस्तानी को लिवा
लाने की बात करके उन्हें (मोहन) को सूचना दे देंगे, मस्तानी पुलिस थाने से अपने पीहर आ गयी थी | परन्तु
दिनेश ने गिरगट की तरह रंग बदलते हुए उसे साफ़ कह दिया कि वह उनके बीच में सुलह
कराने की कोशिश न करे तथा दूर ही रहे |
ममिया ससुर की बहन दिनेश की अड़ के चलते १५ साल तक अपने पीहर जाने से वंचित
रही थी तथा अभी-अभी उनकी सुलह हुई थी | शायद यही सोचकर कि कहीं फिर दिनेश कोइ वैसा
ही कदम न उठा ले जिससे उनकी बहन का पीहर न
छूट जाए उन्होंने सुलह मशवरा कराने में अपनी असमर्थता जाहिर कर दी |
मस्तानी के नाना जी का
ममिया ससुर की सूचना पर माथा ठनका | उनको आभाष हुआ कि हो न हो दिनेश अपनी रूढ़िवादी
सोच अपनी पुत्रवधू पर भी लादना चाहता है |
उनका यह आभाष उन्हें सच्चाई में परिवर्तित होता नजर आया जब उन्हें पता चला
कि दिनेश के साथ मदन ने भी अपने ससुराल वालों को अपने मोबाईल से हटा दिया है | फिर
भी यह सोचकर कि मेरा उनका सामना उनके मनमुटाव के चलते कभी नहीं हुआ, नाना जी ने
दिनेश तथा मदन से संपर्क साधने हेतु मदन को उनकी शादी की वर्ष गाँठ पर संदेशा भेजा
‘शादी की साल गिरह पर हार्दिक शुभ कामनाए | इन फूलों की तरह खिलते रहो” | इसका जवाब ‘धन्यवाद’ भी मिला | परन्तु इसके बाद नाना
जी द्वारा किसी भी त्यौहार, स्वतंत्रता
दिवस, गणतंत्र दिवस, जन्म दिवस, शादी की साल गिरह इत्यादि पर भेजे गए संदेशों का
लिखित में कोइ जवाब नहीं आया |
वर्त्तमान में हर दिन
किसी न किसी का घर खराब हो रहा है ।
नींव ही कमजोर पड़ रही है
गृहस्थी की ।
इसके कारण और जड़ पर कोई
नहीं जा रहा।
मेरे ख्याल से निम्नलिखित
कारण ही दाम्पत्य सूत्र को कमजोर करने में सहायक बनते हैं |
1,
माँ बाप की
अनावश्यक दखलंदाज़ी।
2,
संस्कार विहीन
शिक्षा
3,
आपसी तालमेल का
अभाव
4,
ज़ुबान
5,
सहनशक्ति की कमी
6,
आधुनिकता का
आडम्बर
7,
समाज का भय न
होना
8,
घमंड झूठे ज्ञान
का
9,
अपनों से अधिक
गैरों की राय
10,
परिवार से कटना।
11. रूढ़िवादी विचार
12. लड़कियों की कमाने की
लालसा, इत्यादि |
पहले भी तो परिवार होता
था, और वो भी बड़ा। लेकिन
वर्षों आपस में निभती थी ।
क्योंकि बड़े बुजुर्गों का
भय भी था प्रेम भी था और रिश्तों की मर्यादित जवाबदेही भी।
पहले माँ बाप ये कहते थे
कि मेरी बेटी गृह कार्य मे दक्ष है, और अब मेरी बेटी
नाज़ो से पली है आज तक हमने तिनका भी नहीं उठवाया। तो फिर करेगी क्या शादी के बाद ?
शिक्षा के घमँड में आदर
सिखाना और परिवार चलाने के सँस्कार नहीं देते। माँएं खुद की रसोई से ज्यादा बेटी
के घर में क्या बना इसपर ध्यान देती हैं। भले ही खुद के घर में रसोई में सब्जी जल
रही हो। ऐसे मे वो दो घर खराब करती है।
मोबाईल तो है ही रात दिन
बात करने के लिए। परिवार के लिये किसी के पास समय नहीं।
या तो TV
या फिर पड़ोसन से
एक दूसरे की बुराई या फिर दूसरे के घरों में ताक झांक।
जितने सदस्य उतने मोबाईल।
बस लगे रहो। पूरा परिवार साथ बैठकर भोजन तक नहीं कर सकता। सब अपने कमरे में। वो भी
मोबाईल पर।
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