Friday, April 11, 2025

समझाने की कोशिश -22

 समझाने की कोशिश (22)

बड़े घरों का हाल तो और भी खराब है। कुत्ते बिल्ली के लिये समय है। परिवार के लिये नहीं।

सबसे ज्यादा गिरावट तो इन दिनों महिलाओं में आई है। दिन भर मनोरँजन, मोबाईल, स्कूटी. समय बचे तो बाज़ार और ब्यूटी पार्लर। जहां घंटों लाईन भले ही लगानी पड़े ।

भोजन बनाने या परिवार के लिये समय नहीं। क्योंकि होटलों में खाना खाना शान माना जाने लगा है |

यह कोइ नहीं सुनना चाहता कि घर के शुद्ध खाने में पौष्टिकता तो है ही प्रेम भी है। लेकिन ये सब पिछड़ापन हो गया है। आधुनिकता तो होटलबाज़ी में है।

पहले शादी ब्याह में महिलाएं गृहकार्य में हाथ बंटाने जाती थी। और अब नृत्य सीखकर।

क्यों कि महिला संगीत मे अपनी प्रतिभा जो दिखानी है। जिस की घर के काम में तबियत खराब रहती है वो भी घंटों नाच सकती है। घूँघट और साङी हटना तो ठीक है। लेकिन बदन दिखाऊ कपड़े ? ये कैसी आधुनिकता है ? बड़े छोटे की शर्म या डर रहा ही नहीं | इसलिए बुज़ुर्गों को तो बोझ समझते हैं वे तो घर में चौकीदार होकर रह गए हैं |

माँ बाप बच्ची को शिक्षा दे रहे है। ये अच्छी बात है लेकिन उस शिक्षा के पीछे की सोच ?

ये सोच नहीं है कि परिवार को शिक्षित करे। बल्कि दिमाग में ये है कि कहीं तलाक वलाक हो जाये तो अपने पाँव पर खड़ी हो जाये। जब ऐसी अनिष्ट सोच और आशंका पहले ही दिमाग में हो तो दाम्पत्य सूत्र का जोड़ भी केवल निभाने भर की बात रह जाती है |

वैसे तो बचपन में घर का वातावरण वहां पल रहे लड़का और लडकी दोनों के संस्कारों पर एक जैसा असर डालता है परन्तु इनका परिणाम आगे चलकर औरत को अधिक झेलना पड़ता है जब वह दूसरे घर जाती है और पीहर में मिले संस्कारों में वर्त्तमान समय के अनुसार ससुराल में बदलाव लाने की कोशिश नहीं करती | अगर वह बदलाव लाने की सोचती भी है तो उसकी शिक्षा उसके आड़े आ जाती है | शिक्षा का तर्क देकर वे यह प्रमाणित करने का प्रयास करती हैं कि वर्तमान युग की चाल देखकर उन्हें बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि उसके ससुराल वालों अर्थात घर के बुजर्गों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है | साक्षरता ने लड़कियों की सोच में एक बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है | वे महसूस करने लगी हैं कि शादी तो जीवन की एक रस्म है, जैसे तैसे निभा ली जाएगी किन्तु वर्तमान परिवेश में रोजगार महत्त्व पूर्ण है |

लड़का हो या लडकी अपनी संतान सभी को प्रिय है। लेकिन ऐसे लाड़ प्यार में हम उसका जीवन खराब कर रहे हैं। पहले स्त्री की बात तो छोड़ो पुरुष भी कोर्ट कचहरी से घबराते थे। और शर्म भी कर ते थे। अब तो फैशन हो गया है। पढे लिखे युवा तलाकनामा तो जेब मे लेकर घूमते हैं। पहले समाज के चार लोगों की राय मानी जाती थी। और अब माँ बाप तक को जूते पर रखते है। ऐसे में समाज या पँच क्या कर लेगा, सिवाय बोलकर फ़जीहत कराने के ?

सबसे खतरनाक है औरत की ज़ुबान। कभी कभी न चाहते हुए भी चुप रहकर घर को बिगड़ने से बचाया जा सकता है। लेकिन चुप रहना कमज़ोरी समझती है। आखिर शिक्षित है। और हम किसी से कम नहीं वाली सोच जो विरासत में लेकर आई है। आखिर झुक गयी तो माँ बाप की इज्जत चली जायेगी।

इतिहास गवाह है कि द्रोपदी के वो दो शब्द ..’अंधे का पुत्र भी अंधा’ ने महाभारत करवा दी थी | काश चुप रहती। गोली से बड़ा घाव बोली का होता है।

आज समाज सरकार व सभी चैनल केवल महिलाओं के हित की बात करते हैं। पुरुष जैसे अत्याचारी और नरभक्षी हों। बेटा भी तो पुरुष ही है। एक अच्छा पति भी तो पुरुष ही है। जो खुद सुबह से शाम तक दौड़ता है, परिवार की खुशहाली के लिये। खुद के पास भले ही पहनने के कपड़े न हों। घरवाली के लिये हार के सपने देखता है। बच्चों को महँगी शिक्षा देता है।  मानता हूँ पहले नारी अबला थी। माँ बाप से एक चिठ्ठी को मोहताज़। और बड़े परिवार के काम का बोझ। परन्तु अब घर में सारी आधुनिक सुविधाएं होने के बावजूद गृहस्थी बनाने से पहले ही तार-तार हो रही है |

पहले की हवेलियां सैकड़ों बरसों से खड़ी हैं। और पुराने रिश्ते भी। रिश्ते झुकने पर ही टिकते है। तनने पर टूट जाते है। इस खूबी को निरक्षर बुज़ुर्ग जानते थे। आज के शिक्षित युवा-युवती नहीं। जिस परिवार ने इसको समझ कर सुधार कर लिया तो समझ लेना घर स्वर्ग हो जायेगा..!!

इसके विपरीत अगर ससुराल ऐसी मिल जाए जहां के बुजूर्ग अपने रूढ़िवादी विचारों को किसी हालत में छोड़ने को तैयार न हों तो परिवार में बिखराव होना तय है | इसे ‘जेनेरेसन गैप’ की संज्ञा दी जाती है | इसमें बहुत सी बातें आ जाती है जैसे घर के मर्दों से पर्दा करना, घर में वही पहनना जो बुजूर्ग कहें, घर के और सदस्य सभी काम से मुक्त क्योंकि घर में काम करने वाली आ गयी है , हमेशा दबी आवाज में बोलना, नौकरी छुडवाने की धमकी मिलते रहना, बहू की हर बात और चाल पर टीका टिप्पणी करना  इत्यादि |

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